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एक साईकिल की दुकान से कारोबार शुरु किया था किर्लोस्कर के संस्थापक काशीनाथ जी ने

किर्लोसक्र समूह के संस्थापक  स्व. लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर भारत के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे।  वे 'विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट', मुम्बई में अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। अपने शुरुआती समय में लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर जी ने एक साइकिल की दुकान खोलकर जीवन संघर्ष प्रारम्भ किया था। बाद के समय में अपनी मेहनत और कठिन लगन से उन्होंने 'किर्लोस्कर' की कई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की।

लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर का जन्म 20 जून, 1869 ई. को मैसूर के निकट बेलगाँव ज़िले में हुआ था। बचपन मे पढ़ने में मन न लगने के कारण वे मुम्बई के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में भर्ती हो गए। परन्तु शीघ्र ही उन्होंने अनुभव किया कि आँखों में ख़राबी के कारण वे रंगों को सही से पहचान नहीं पाते हैं। इसके बाद उन्होंने मैकेनिकल ड्राइंग सीखी और मुम्बई के 'विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट' में अध्यापक नियुक्त हो गए। वे अपने ख़ाली समय में कारख़ाने में जाकर काम किया करते थे। इससे उनको मशीनों की जानकारी हो गई थी।

 श्री किर्लोस्कर ने जीवन में पहली बार एक व्यक्ति को साइकिल चलाते हुए देखा, तो अपने भाई के साथ मिलकर ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से साइकिल की दुकान खोल ली। वे अतिरिक्त समय में साइकिल बेचते, उनकी मरम्मत करते और लोगों को साइकिल चलाना भी सिखाते।

नौकरी में जब लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर के स्थान पर एक एंग्लों इण्डियन को पदोन्नति दे दी गई तो किर्लोस्कर ने अध्यापक का पद त्याग दिया और छोटा-सा कारख़ाना खोलकर चारा काटने की मशीन और लोहे के हल बनाने लगे। इसी बीच बेलगाँव नगर पालिका के प्रतिबन्धों के कारण उन्हें अपना कारख़ाना महाराष्ट्र लाना पड़ा। यहाँ 32 एकड़ भूमि में उन्होंने ‘किर्लोस्कर वाड़ी’ नाम की औद्यागिक बस्ती की नींव डाली। इस वीरान जगह की शीघ्र ही काया पलट गई और किर्लोस्कर की औद्योगिक इकाइयाँ बंगलौर, पूना, देवास (मध्य प्रदेश) आदि में भी स्थापित हो गईं। इनमें खेती और उद्योगों में काम आने वाले विविध उपकरण बनने लगे। किर्लोस्कर के प्रयत्नों के लोकमान्य तिलक, नेहरूजी, विश्वेश्वरय्या, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि सभी प्रशंसक थे।

एक विशाल औद्योगिक साम्राज्य खड़ा कर, देश के औद्योगिक  नक्षे पर एक नई इबारत लिखकर और भारतीय कृषि को एक नई दिशा देने के बाद 26 सितम्बर, 1956  को.उन्होंने इस नश्वर संसार को त्याग दिया। 

साभार- http://hi.bharatdiscovery.org/ से