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क्रांतिदूत – स्वतंत्रता संग्राम के भुला दिए गए इतिहास को सामने लाने का प्रयास

हम इस बात से अब इनकार नहीं कर सकते कि अपने इतिहास की उपेक्षा करने वाले और उसके साथ छेड़छाड़ करने वाले देश और उसके नागरिकों का भविष्य कभी उज्ज्वल नहीं रहा है। दुःख की बात यह रही है आज की पीढ़ी को यह एहसास ही नहीं है कि स्वतंत्रता के जिस उत्सव का वो आज आनंद उठा रहे हैं उसे हासिल करने के लिए भारत के युद्धवीरों और क्रांतिदूतों ने अपना पूरा जीवन न्योछावर कर डाला।

यह हर भारतीय को ज्ञात है कि हम को स्वतंत्रता के लिए कई युद्धों से जूझना पड़ा और वह समय बेहद कष्टमय तथा संकटमय रहा। पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को डी गामा के रूप में यूरोपीय व्यापारियों के १४९८ में कालीकट के बंदरगाह पर प्रथम आगमन के साथ आरम्भ हुई कथा १९४७ में जाकर भारत की स्वतंत्रता के साथ अपने अंत को प्राप्त हुई।

१७५७ वह वर्ष था जब तमिलनाडु के मवीरन अलगुमुथु कोन ने ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध खड़े होने का साहस किया था। अंत में वह सद्गति को प्राप्त हुए। मवीरन अलगुमुथु कोन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला सेनानी कहा जाता है। १७५७ में स्वतंत्रता एवं पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को लेकर आरम्भ हुआ हमारा संघर्षमयी युद्ध, अंततः १९४७ को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अंत हुआ।

करतार सिंह सराभा, जो कि गदर आंदोलन के संस्थापको में से एक थे, को भगत सिंह ने हमेशा अपना पहला नायक माना है। लेकिन करतार सिंह सराभा के साथ गदर आंदोलन की नींव रखने वाले लाला हरदयाल और बाबा सोहन सिंह भकना के नाम से भी आज की पीढ़ी अपरिचित है।

मवीरन अलगुमुथु, गेंदालाल दीक्षित, भगवान दास माहौर, भगवती चरण वर्मा, पंडित परमानंद जी जैसे ही अनेक नाम हैं जिनके बारे में जनसाधारण अनभिज्ञ है। हर युद्ध के अनेक नायक होते हैं तथा दूसरों की तरह ही योगदान देते हैं। कुछ तो आलोकित होते हैं किन्तु कुछ अँधकार में ही रह जाते हैं। भारत के स्वतंत्रता सेनानी भी इससे अछूते नही रहे। भारत के प्रत्येक क्षेत्र से अनेक ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में भाग लिया किन्तु हमेशा के लिए अंधकार में ही रह गए। उसका कारण था कि उनका एकमात्र ध्यान स्वतंत्र भारत को देखना था। उन्होंने निस्वार्थ रूप से देश के लिए अपना जीवन लगा दिया ताकि आप एक निडर और उन्मुक्त जीवन जी सकें।

हर्ष का विषय है कि भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं लोकाचार के मार्ग का निर्वाहन करते हुए इंडिक अकादमी भारतीय इतिहास की ओर भी अग्रसर है। इस कड़ी में आगे बढ़ते हुए हम आपके समक्ष प्रस्तुत करने वाले हैं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनछुए पक्षों को दर्शाती दस पुस्तकों की एक शृंखला –

क्रांतिदूत

हम को उम्मीद है कि क्रांतिदूत शृंखला को को पढ़ने के बाद आज की पीढ़ी अपने उस इतिहास को जानेगी जो ना उनको बताया गया और ना उनको पढ़ाया गया। स्वतंत्रता आंदोलन के पवित्र यज्ञ में आहुति देने वाले क्रांतिदूतों के लिए यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

साभार- https://www.indictoday.com/ से