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ललित मोदी की मदद के पीछे सुषमा नहीं स्वराज कौशल

कई लोगों का कहना है कि स्वराज कौशल अपनी पत्नी सुषमा स्वराज की कमजोरी हैं, जबकि कुछ लोगों के मुताबिक, वह मौजूदा विदेश मंत्री के राजनीतिक करियर के उतार-चढ़ाव में हमेशा उनके साथ एक ताकत बनकर खड़े रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील स्वराज कौशल अक्सर मशहूर पत्नी के साए में रहे हैं और उन्हें पहले भी बीजेपी नेता से जुड़े विवादों का जिम्मेदार ठहराया जा चुका है।

सुषमा स्वराज द्वारा इंडियन प्रीमियर लीग के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी को मदद की कोशिश की खबरें भी कौशल की तरफ ही अंगुली उठाती दिख रही हैं। कौशल को लंदन के इस बिजनसमैन के काफी करीब माना जाता है। स्वराज कौशल भले ही अपनी जिंदगी के अधिकांश हिस्सों में चर्चा में नहीं रहे, लेकिन राजनीतिक हलकों में वह ऐसे शख्स के तौर पर जाने जाते हैं, जिसे दोस्त माना जा सकता है और अमीर और ताकतवर लोगों से भी उनके जुड़ाव हैं।

ललित मोदी के साथ कौशल का रिश्ता दो दशक से भी ज्यादा पुराना का है। वह बिजनसमैन-राजनेता सुधांशु मित्तल के भी करीब हैं, जो पहले विवादों में रह चुके हैं। मित्तल मरहूम बीजेपी नेता प्रमोद महाजन के दाहिने हाथ माने जाते थे। कौशल के पास देश का सबसे युवा गवर्नर बनने का रेकॉर्ड है। 1990 में जब वह मिजोरम के गवर्नर बने थे, तो उनकी उम्र महज 37 साल थी। मिजो शांति वार्ता समझौता में योगदान के कारण उन्हें यह पद दिया गया था।

वह तीन साल तक मिजोरम के गवर्नर रहे। खुद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की कार्यकर्ता रहीं और आरएसएस कार्यकर्ता की बेटी सुषमा स्वराज ने कौशल से 1975 में विवाह किया। कौशल समाजवादी कैंप से जुड़े थे। दोनों की राजनीति में गैर-कांग्रेसी रुझान था। 2000 से 2004 के दौरान वकील दंपती एक साथ राज्यसभा में रहे। कौशल का छह साल का कार्यकाल 2004 में खत्म हो गया।

कौशल उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने इमरजेंसी के दौरान बड़ौदा डायनामाइट केस में समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज का बचाव किया था। उन्होंने 1979 में मिजो नेता लालडेंगा की रिहाई मुमकिन कराई। मिजोरम के साथ उनका जुड़ाव उसी वक्त शुरू हुआ। वह भूमिगत इकाई मिजो नैशनल फ्रंट के संवैधानिक सलाहकार बने, जिसकी केंद्र सरकार के बातचीत चल रही थी। इस बातचीत के कारण 1986 में मिजोरम शांति समझौता हुआ। मिजोरम के गठन के बाद उन्हें 34 साल की उम्र में इस राज्य का पहला एडवोकेट जनरल बनाया गया।

साभार- इकॉनामिक टाईम्स से