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भाषा : राष्ट्रीयता, समन्वय और समरसता’ पर व्याख्यान संपन्न

धारवाड़, 26 फरवरी, 2019।

“भाषा किसी राष्ट्र की बुनियाद होती है। वही अलग-अलग समुदायों को इस तरह बाँध कर रख सकती है कि बड़े से बड़े हमले में भी देश की संरचना बिखरने न पाए। भाषा को यह शक्ति उसमें छिपे जन-संस्कृति के सूत्रों से मिलती है। इसलिए किसी भाषा को इस्तेमाल करना सीखना ही काफी नहीं होता। बल्कि उसमें निहित सांस्कृतिक तत्वों की पहचान भी ज़रूरी होती है। अनेक बोलियों और भाषाओं के बीच संपर्क का काम करते-करते संस्कृति की दृष्टि से हिंदी अत्यंत समृद्ध भाषा बन गई है तथा अपने विपुल मौलिक और अनूदित साहित्य के माध्यम से वह भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतिनिधित्व करती है। भक्ति साहित्य और नव जागरण काल के साहित्य द्वारा हिंदी ने राष्ट्रीय समन्वय और समरसता को पुष्ट किया था। वर्तमान में भी वह विघटनकारी ताकतों को पहचान कर जनता को सावधान कर रही है और सह-अस्तित्व के भाव को पुख्ता करने के लिए प्रयासरत है।“

ये विचार प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कर्नाटक विश्वविद्यालय में विभिन्न भाषा-साहित्य और कला विषयों के प्राध्यापकों को संबोधित करते हुए प्रकट किए। वे विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र में संपन्न पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के तहत “भाषा : राष्ट्रीयता, समन्वय और समरसता” विषय पर दो-सत्रीय व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। कार्यक्रम में कर्नाटक के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए 65 प्राध्यापकों ने भाग लिया। डॉ. साहिबहुसैन जहगीरदार के धन्यवाद के साथ व्याख्यानमाला का समापन हुआ। 000

सादर

डॉ गुर्रामकोंडा नीरजा

सह संपादक ‘स्रवंति’

असिस्टेंट प्रोफेसर

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा

हैदराबाद – 500004