1

उत्तराखंड के वनवासियों से पर्यावरण संरक्षण की तकनीक सीखने आए विदेशी वैज्ञानिक

सालों से उत्तराखंड के जंगलों में रह रहे वनवासियों ने अमेरिकी, ब्रिटेन, फ्रांस और जापान के वैज्ञानिकों की क्लास लगाई। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जैव विविधता और ईको सिस्टम को कैसे सहेजा जाए, यह ज्ञान अमेरिकी, ब्रिटेन, फ्रांस और जापान के विज्ञानियों ने भारतीयों से सीखा। विदेश विज्ञानियों ने राजाजी नेशनल पार्क और झिलमिल झील में जाकर इसे समझा भी।

वन गुर्जरों की सैकड़ों साल पुराने तरीकों को नोट किया। साथ ही भारतीय वन्य जीव संस्थान में 20 साल के शोध से तैयार तकनीक और कार्ययोजना की भी जानकारी ली। इन भारतीय तरीकों और तकनीक का इस्तेमाल विकसित देशों में जैव विविधता और ईको सिस्टम बचाने के लिए किया जाएगा।

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से विश्व जैव विविधता और इको सिस्टम में मंडरा रहे खतरे को रोकने के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून में 50 देशों के विज्ञानी इकट्ठे हुए थे।

यह पहला मौका था कि संयुक्त राष्ट्र के आईपीबीईएस कैपेसिटी बिल्डिंग फोरम ने पहली बार जर्मनी के बाहर जाकर मीटिंग की। वजह यह थी कि जैव विविधता और ईको सिस्टम संरक्षण के मामले में दुनिया के देश भारत का मुंह ताक रहे हैं।

जैव विविधता और ईको सिस्टम संरक्षण के लिए विदेशी वैज्ञानिकों ने तीन दिन तक यहां कार्ययोजना तैयार की। उन्होंने राजाजी नेशनल पार्क में वन्य जीवों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान के कैमरा ट्रैपिंग सिस्टम को समझा।

इसके साथ ही वन्य जीवों के गलियारों की कार्ययोजना, वनस्पतियों का संरक्षण के वैज्ञानिक तरीकों को जाना और दूसरी तरफ झाड़ियों के झुकाव, पेड़ों की छाल की खराश से वन्य जीवों की पहचान, पद चिन्हों और मल से वन्य जीवों की गतिविधियां जानने के दुर्लभ तरीके से सदियों से वनों में रह रहे गुर्जरों से समझा।

इसी तरह झिलमिल झील में स्वांप डियर को देखा। यह हिरन सिर्फ दलदल में पाया जाता है। इसे बचाए रखने के वैज्ञानिक तरीके समझे। इसे देखकर फोरम के चेयर पर्सन मलयेशिया के डॉ. जाकरी एच. हामिद और को-चेयर पर्सन नार्वे के आइवर बास्ते ने कहा कि जैव विविधता के तरीके अद्भुत हैं।

जैव विविधता और ईको सिस्टम सहेजने के देश के तरीके दुनिया भर के विज्ञानियों को अद्भुत लगे। भारत के पास नवीनतम तकनीक और अपने परंपरागत तरीकों का समन्वय है। इन्हीं तरीकों को विकासशील देश भी समझना चाहते हैं।
– डॉ. वीबी माथुर, निदेशक भारतीय वन्य जीव संस्थान

साभार-अमर उजाला से