विश्व संगीत दिवस पर ‘रूह-ए-ग़ज़ल’ में शेरों और गज़लों की धूम

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नई दिल्ली। संगीत का हर आम आदमी के जीवन में विशिष्ट स्थान होता है और पूरे दिन की भाग-दौड़ के बाद भारतीय कला-संस्कृति से जुड़ी एक संगीतमय संध्या मिल जाये, जहां दिल्ली के लीजेण्ड्स शायरों को समर्पित कलाम और ग़ज़लों का बखान हो और विश्व संगीत दिवस का अवसर। निश्चित रूप से एक यादगार सौगात व ना भूलने वाला पल बन जाता है। कुछ ऐसा ही मौका आज दिल्लीवासियों को मिला गैर सरकारी संगठन साक्षी-सियेट द्वारा आयोजित संगीत संध्या ‘रूह-ए-ग़ज़ल’ में। इंडिया हैबीटेट सेंटर में आयोजित यह संध्या गज़ल के तीन परास्नातक मीर, ग़ालिब, दाग देहलवी के नाम, काम एवम् एहतराम को समर्पित रही, ऐसे शायर जिनकी कला ने गजल को अमर बनाया। उनका समय, उनका व्यक्तित्व, उनकी कविताओं को जानने सुनने का अवसर था। मानो 18वीं एवम् 19वीं शताब्दी का औरा श्रोताओं के समक्ष जीवंत हो उठा था।

मौके पर गायक व कम्पोजर शकील अहमद ने उस्तादों की ग़ज़लों व तरानो से समां बांधा। वहीं प्रो. खालिद अल्वी, अर्चना गोराड़िया गुप्ता और डॉ. मृदुला टंडन ने शायरों, शायरी व संगीत की विस्तृत जानकारी प्रदान की।


कार्यक्रम की शुरूआत पारम्परिक शमा जलाने के साथ हुई। जिसके बाद डॉ. टंडन, अर्चना गोराड़िया गुप्ता एवम् प्रो. खालिद अल्वी ने कार्यक्रम एवम् शायरों, उनके काम और इतिहास की जानकारी श्रोताओं के साथ साझा की। इसके बाद मंच संभाला शकील अहमद साहब ने जिन्होंने एक के बाद एक लीजेण्ड्स की रचनाओं को अपने अंदाज में पिरोते हुए प्रस्तुत किया और जमकर वाह-वाही लूटी। शकील का गायन, भाषा पर उनकी पकड़ और रचना की जादूगरी ने खचाखच भरे सभागार को मंत्र-मुग्ध किया।

शकील अहमद ने मीर की ‘हस्ती अपनी हुबाब की सी है ये नुमाइश सराब की सी है..’, ‘उल्टी हो गयी सब तदबीरे, कुछ ना दवा ने काम किया..’, ‘देख तो दिल के जान से उठता है, यह धुआं तो कहां से उठता है..’, मिर्जा गालिब का कलाम, ‘दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है, आखिर इस दर्द की दवा़ क्या है?’, ‘बाजीचाए अतफाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे..’, मिर्जा गालिब की ‘दिल ही तो है न संगोखिश्त दर्द से भर न आये क्यों, रोयेंगे हम हजार बार कोई हमें सताए क्यों..’, दाग देहलवी की ‘उज्र आने में भी है और बुलाते भी नही..’, ‘खातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया, झूठी कसम से आपका इमान तो गया..’ आदि प्रस्तुत की। जिनमे उनके सशक्त कला-कौशल व व्यक्तित्व का परिचय बखूबी देखने को मिला।

इस अवसर पर डॉ. मृदुला टंडन ने कहा उर्दू भाषा, शायरी और संगीत का तालमेल आत्मीय सौंदर्य से परिपूर्ण है और विश्व संगीत दिवस के अवसर पर लीजेण्ड्स के व्यक्तित्व, उनके सराहनीय कार्य एवम् व्यक्तित्व से रूबरू होने का अवसर विशिष्ट है। उन्होंने कहा उर्दू कविता के बारे में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यह कला और आज अभिव्यक्ति के रूप में निरंतर बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट के आगमन के साथ, ऑनलाइन उर्दू कविता समुदायों ने खुद को साइबर स्पेस में स्थापित किया है जिसमें प्रसिद्ध कवियों, उर्दू कवि मंच और समुदायों के शायरी पोर्टल, और मुशायरा ऑडियो-वीडियो को समर्पित वेबसाइटें शामिल हैं। उर्दू कविता के प्रशंसकों को दुनिया भर में फैलाया गया है, और लगभग हर कोई एक गज़ल के आशा के काव्य रूप में टिप्पणियों का आदान-प्रदान करता है। डॉ. टंडन ने कहा ग़ज़ल प्रस्तुति के माध्यम से इन शायरों की कविता में ढाली उनकी सोच हमें कई मुद्दों पर सोचने पर मजबूर कर देती है और हम भाषा के विचार और शायर की विनम्रता की प्रशंसा करते हैं।