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लॉयंस क्लब और श्री भागवत परिवार ने वनवासी बच्चों के चेहरे को दी मुस्कान

लॉयंस क्लब मुंबई वेस्ट और श्री भागवत परिवार ने मुंबई से सटे वानगाँव के वनवासी स्कूल के बच्चों के बीच जाकर उनके साथ समय बिताया तो बच्चों की निश्छल मुस्कान और उनकी प्रतिभा देखकर दंग रह गए।

सेबी के पूर्व अधिकारी श्री प्रमोद बिंदलिस के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस कार्यक्रम में बच्चों को पठन सामग्री के रूप में पुस्तिका, कंपास, पेन व पेंसिल दिए गए। इस छोटे से उपहार को पाकर बच्चों ने जिस मीठी मुस्कान और अहोभाव से सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की वो अपने आपमें एक यादगार पल था।


श्री भागवत परिवार के मार्गदर्शक श्री वीरेन्द्र याज्ञिक की प्रेरणा से लॉयंस क्लब मुंबई वेस्ट के सर्वश्री सत्यनारायण पाराशर, गोपाल भंडारी, नटवर बंका, पंकज जैन, लोकेश जैन, आशा भंडारी, गोपाल धाकड़, सोहनलाल भंडारी जैसे समर्पित सदस्य अपने परिवार के साथ यहाँ आए और बच्चों के साथ समय बिताया। श्री भागवत परिवार की ओर से श्री सुनील सिंघल, श्री ओंकारमल चौधरी उपस्थित थे। सभी अतिथियों ने स्कूल परिसर में वृक्षारोपण भी किया।

लियो क्लब के युवा सदस्यों ने इन बच्चों के लिए चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन कर इनकी रचनात्मकता को नया आयाम दिया।


स्कूल के प्रिंसिपाल यशवंत राघौ वाटस पूरी निष्ठा से इस स्कूल का संचालन कर रहे हैं। वाटस साहब की वजह से आज ये स्कूल बचा हुआ है और यहाँ विगत कई बरसों से आदिवासी ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे इस स्कूल को 2004 में मात्र 140 छात्र होने की वजह से ये स्कूल बंद करने की नौबत आई गई थी मगर इसी स्कूल के छात्र रहे यशवंत राघौ वाटस जो तब सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में सेवाएँ दे रहे थे, उनको इस स्कूल में प्राचार्य बनाकर लाया गया और ये स्कूल बंद होने से बच गया। आज इस स्कूल में 600 बच्चे पढ़ ही नहीं रहे हैं बल्कि उनके लिए होस्टल की सुविधा भी है।

इस स्कूल की स्थापना 1940 में महाराष्ट्र के प्रथम मुख्यमंत्री बाला साहब खैर के प्रयासों से हुई थी।

वाटस जी ने इस स्कूल में 1973 से 1981 तक पढ़ाई की। फिर उन्होंने बीएड किया, 1986 में उन्हें सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिल गई। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वाटस जी ने तलवाड़ा में रोटरी क्लब द्वारा संचालित एक अस्पताल में एक्सरे टेक्निशियन का काम भी किया।

इस स्कूल में आसपास के कई आदिवासी गाँवों के वे बच्चे पढ़ने आते हैं जिनके माँ-बाप के पास पहनने को चप्पल तक नहीं होती।

इस अवसर पर श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने बताया कि श्री भागवत परिवार द्वारा भारत विकास संगम की सहायता से इस क्षेत्र में वनवासी जोड़ों के विवाह का आयोजन कर उनका घर बसाया जा रहा है।

प्राचार्य श्री वाटस ने बताया कि कोरोना काल में बच्चे जब स्कूल नहीं आ पा रहे थे तब इन बच्चों को पढ़ाई के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई। वे एक दिन भी घर पर नहीं रहे। इस स्कूल को थाणे जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार मिला तो वाटस जी ने पुरस्कार की राशि स्कूल को ही दान कर दी। आज इस स्कूल में वे बच्चे भी पढ़ने आ रहे हैं जिनके पिता को वाटस जी ने पढ़ाया था।