शिक्षा और समर्पण की जीवंत मशाल:प्रो. अच्युत सामंता

कंधमाल,ओडिशा,भारत के लोकसभा के माननीय सांसद तथा भुवनेश्वर,ओडिशा के दो विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थानों कीट-कीस के संस्थापक हैं-महान् शिक्षाविद् प्रो.अच्युत सामंत।देश-विदेश के नामी विश्वविद्यालयों से अबतक कुल 52 मानद डॉक्यरेट की डिग्री पानेवाले वे भारत के इकलौते शिक्षाविद् हैं।

अपने पैतृक गांव कलराबंक के एक गरीब परिवार में 1965 में जनमे प्रो सामंत ने अपने गांव कलराबंक को एशिया का स्मार्ट विलेज बनाया है। ओडिशा उत्कल विश्वविद्यालय से 1987 में एम.एससी किया।सामाजिक विज्ञान में डाक्टरेट किया। 22साल की उम्र से ही अध्यापन कार्य आरंभ किया।

उनके पास कुल 33 वर्षों का शिक्षण अनुभव है।वे सबसे कम उम्र के कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के संस्थापक कुलाधिपति बने।विश्व के प्रथम आदिवासी आवासीय कीस डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के संस्थापक कुलाधिपति बने।2018-19 में राज्यसभा के बीजू जनतादल सांसद मनोनीत हुए और पिछले लगभग चार सालों से वे बीजू जनतादल से ओडिशा के कंधमाल लोकसभा के माननीय सांसद हैं।

उनका यह कहना है कि उनके जीवन के प्रथम 25 वर्ष भोजन के लिए संघर्ष में व्यतीत हुआ और उसके बाद के 25साल लाखों वंचित और अभावग्रस्त बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने में व्यतीत हुआ है।उनके अपने जीवन के दर्द और जुनून ही उनके सच्चे मित्र हैं जिनकी प्रेरणा से वे लाखों लोगों के लिए अपनी ओर से निःशुल्क उपलब्ध उत्कृष्ट शिक्षा के माध्यम से उनकी गरीबी दूर करने में संलग्न हैं।

उनका जीवन-दर्शन ऑर्ट ऑफ गिविंग जिसकी शुरुआत उन्होंने 17मई,2013 को की वह जीवन-दर्शन अब अन्तर्राष्ट्रीय ऑर्ट ऑफ गिविंग दिवस बन चुका है जिसको प्रतिवर्ष विश्व के लगभग 200 देशों के लोग स्वेच्छापूर्वक प्रतिवर्ष 17मई को मनाते हैं।

हम क्या थे,क्या हैं और क्या ऐसा करें कि जिससे हमारा इहलोक और परलोक दोनों सुधर सके-अपने स्व विचारों को साकार करनेवाले आलोक पुरुषः प्रो.अच्युत सामंत के सानिध्य में रहकर मैंने उनके पारदर्शी सरल,सहज,आत्मीय और सहृदय व्यक्तित्व से यही सीखा कि प्रत्येक सफल व्यक्ति को अपने जीवन के अतीत और वर्तमना समय,काल और परिस्थिति से सच्ची सीख लेनी चाहिए जिससे कि उसका इहलोक और परलोक दोनों सुधर सके। व्यक्ति को कभी भी अपने अतीत को भूलना नहीं चाहिए। बार-बार अपने अतीत से सीख लेनी चाहिए और अपने आप में सुधार लाना चाहिए।उसे अपने वर्तमान को तो विशेष रुप में ध्यान में रखना चाहिए।

इसके प्रत्यक्ष प्रमाण स्वयं प्रो अच्युत सामंत हैं जिनके कुल लगभग 8 किलोमीटर में फैले कीट-कीस और कीम्स के विशालतम परिसर को देखने से ऐसा लगता है कि इसे तो कोई एक व्यक्ति बना ही नहीं सकता,इसे तो स्वयं जगन्नाथ ने ही बनाया है।प्रो. सामंत का कीस भारत का दूसरा शांतिनिकेतन है जहां पर प्रतिवर्ष हजारों हजार चरित्रवान,ईमानदार और जिम्मेदार देशभक्त तैयार होते हैं।उनका कीट-कीस और कीम्स तो भारत का आधुनिक तीर्थस्थल है जहां से स्वावलंबन तथा आत्मनिर्भरता का प्रत्यक्ष रुप में प्रचार-प्रसार होता है।प्रो अच्युत सामंत का यह मानना है कि जिसके मरने के बाद अगर समाज उसे अच्छा नहीं कहे तो फिर उससे जीवन जीने से क्या फायदा। इसलिए हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमें सदाचारी जीवन जीकर परोपकारी जीवन का संदेश देना चाहिए जिससे यह दुनिया हमें हमेशा याद रख सके तथा हमारा अपना इहलोक और परलोक दोनों सुधर सकें।