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गैरबराबरी और बाज़ारवाद की भी शिकार बन गई है नारी शक्ति – डॉ.चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगांव। "पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का घट रहा अनुपात एक बेहद खतरनाक भविष्य की ओर संकेत करने लगा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक आचार-संहिताओं की हथकड़ियों-बेड़ियों में जकड़ी हुई स्त्री पर अब जन्म से पूर्व ही अस्तित्व का खतरा मंडराने लगा है। कन्या भ्रूण ह्त्या का खौफनाक मंज़र हमारी सभ्यता पर लगातार सवालिया निशान लगा रहा है। आज स्त्री पुरुषवादी सत्ता के साथ-साथ पूंजीवादी बाजारवाद की भी शिकार है।इस पर गौर करना समय की एक बड़ी मांग है।" 

लायंस क्लब के डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन चेयरमैन,ख्यातिप्राप्त वक्ता और दिग्विजय कालेज के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने उक्त उदगार व्यक्त किया। अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस पर दुर्ग-भिलाई ट्विन सिटी क्लब में मुख्य वक्ता के रूप में अपने प्रभावी सम्बोधन में डॉ.जैन ने कहा कि आज विज्ञान और तकनीक भी समाज में व्याप्त पुरुष वर्चस्ववादी मूल्यों के चलते स्त्रियों के, और इस तरह पूरे समाज के, विनाश के साधन बन गए हैं। लेकिन, डॉ.जैन ने आगाह किया कि इस प्रवृत्ति के खिलाफ कोई भी संघर्ष तब तक कामयाब नहीं होगा जब तक कि उन मूल्यों और सोच को निशाना न बनाया जाए जो स्त्री के प्रति किसी भी तरह की बराबरी के भाव को अस्वीकार करते हैं।

डॉ.जैन ने स्पष्ट किया कि जाति व्यवस्था की तरह ही पितृसत्तात्मक मूल्य भी हमारे समाज के जेहन और आदतों तक में काफी गहराई तक धंसे हुए हैं। यहां स्त्री आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक शोषण की भी शिकार है। उसे दोयम दर्ज़े के काम सौपने से हम बाज़ नहीं आते हैं। लेकिन इन्हीं कामों में से जो काम समाज में आर्थिक तौर पर लाभकारी हो जाते हैं, जैसे खाना पकाना, तो वहां पुरुष स्त्री को विस्थापित करके स्वयं विराजमान हो जाता है। 

डॉ.जैन ने कहा कि विनय, कोमलता, शील, सौंदर्य, क्षमा आदि स्त्री के लिए घोषित आभूषण उसकी हथकड़ियां-बेड़ियां बनकर न रह जाएँ,इस पर चिंतन जरूरी है। ये सभी मिलकर एक जटिल जाल बुनते हैं जिसमें फंसी स्त्री को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता। इस दिशा में हीला हवाला अब ठीक नहीं। डॉ.जैन ने कहा कि सही कदम उठाने में ही महिला दिवस मानाने की सार्थकता होगी।

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