मायके आई हुई बेटियां

ससुराल से मायके आई लड़कियां
होती हैं एक आस की तरह
साथ में कुछ ले जाए या नहीं
दे कर जाती है बहुत सी कहानियां

ससुराल से मायके आई बहनें
होती हैं सर्दी की उस धूप की तरह
जिसके बिना भी काम चल जाता है
पर आती हैं तो सुकून से भर जाती है

ससुराल से मायके आई हुई बेटियां
होती हैं उस समय के जैसी खुबसूरती
जो बीतता है बहुत जल्दी जल्दी
पर अपनापन बरबस बिखेर जाता है

ससुराल से मायके आई बहुएं
होती हैं उस घर की दहलीज जैसी
जो हर अच्छी बुरी नजर, नसीहत को
छोड़ कर मायके खुद को ढूंढने
आ जाती है खो जाने के डर को
मिटाने के लिए तैयार हो लोट जाती है

© रेणु सिंह राधे
कोटा राजस्थान