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संस्मरण: पिता जी और विज्ञान की किताब

दीपक बारहवीं कक्षा का विद्यार्थी था | उसे बचपन से ही पढने में विशेष कर विज्ञान में बहुत रूचि थी | घर में उसने सदा ही अपनी माँ और पिता जी को कड़ी मेहनत करते देखा था | घर का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से चलता था, दादी जो बीमार रहती थीं उनकी दवाइयों के लिए भी पैसे नहीं होते थे | ऐसे में पुराने पीतल के बर्तन बेचकर दादी की दवाइयाँ मंगाई जाती थीं | जीवन इसी तरह धीमी गति से आगे बढ़ रहा था | परीक्षाओं के दिन नज़दीक आ रहे थे | किताबों के अभाव में दीपक को अपने मित्रों के घर जाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी और उनसे एक एक रात के लिए किताब माँगकर पढ़ना पड़ता था | रात भर जाग कर दीपक उन किताबों से आवश्यक नोट्स बनाता था |

अक्सर रात को दादी माँ पास आ कर दीपक का सर सहलाती और कहतीं की बहुत रात हो गयी है अब सो जा सुबह उठकर पढ़ लेना | एक दिन दीपक ने अपनी दादी माँ से कहा कि उसे विज्ञान की किताब ना होने के कारण अपने मित्रों से किताब माँगनी पड़ती है और रात भर जाग कर पढ़ाई करनी पड़ती है | दीपक को घर में पैसे ना होने का अहसास था | इसलिए वह कभी भी अपने पिता जी से पैसे नहीं माँगता था | परीक्षा के दिन धीरे धीरे नज़दीक आ गये | मित्रों ने भी किताब देने में आनाकानी शुरू कर दी क्योंकि सभी परीक्षा की तैयारी में लगे थे | एक दिन दीपक परेशान सा अपने कॉलिज से घर आते हुए यही सोच रहा था कि किस तरह विज्ञान की किताब का प्रबंध किया जाय | कई बार सोचा कोई छोटा सा काम मिल जाए तो घर की स्थिति में कुछ सुधार आ जाए परन्तु पिताजी ने कहा कि तुम अपनी पढ़ाई में मन लगाओ | घर में घुसते ही उसने देखा कि घर में हँसी ख़ुशी का माहौल है | बड़ी बहन ससुराल से आयी हुयी थी | सब हँस रहे थे | सभी के चेहरे खिले हुए थे, पिताजी ने कहा, “बेटा मुँह मीठा करो, अब तुम्हें अपने मित्रों से किताबें नहीं माँगनी पड़ेंगी क्योंकि मैंने जो एक छोटा सा व्यापार किया है उसमें आज कुछ आमदनी हुई है | यह लो दस रुपये और अपनी विज्ञान की किताब ले आओ |” दीपक यह सुन कर असमंजस में पड़ गया कि पिता जी को कैसे पता लगा कि उसे विज्ञान की किताब की आवश्यकता है | बाद में माँ से बात करने पर पता लगा कि एक रात जब वह दादी से बात कर रहा था कि उसे विज्ञान की किताब चाहिए तो उसकी बात पिता जी ने सुन ली थी और तभी से वे परेशान थे कि किस तरह दीपक के लिए किताब के पैसों का प्रबंध हो जाए ?

आज दीपक के पिता जी इस दुनियाँ में नहीं हैं परन्तु उनकी यह बात दीपक को समय समय पर याद आती रहती है और श्रद्धा से दीपक का मन द्रवित हो जाता है |

(लेखिका कैनडा में रहती हैं और समसामयिकविषयों पर लेखन करती हैं)