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मोहन सोनीः जिनकी कविताओं से मालवी की मिठास और महक बरसती थी

देश के जाने माने कवि और उज्जैन – इन्दौर की मालवी संस्कृति व साहित्य को अपनी कविताओं से संवारने वाले कवि मोहन सोनी का उज्जैन में निधन हो गया। अपने जीवन के 80 वसंत देख, दादा मोहन सोनी आज 18 जून 2019 को अनंत की यात्रा पर निकल गये। सोनी जी का प्रयाण मालवा के काव्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। सत्तर अस्सी के दशक में कोई कवि सम्मेलन ऐसा नहीं होता था जब श्रोताओं की भीड़ रात रात भर मोहन सोनी को सुनने के लिए बैठी रहती थी। उनकी शिवाजी पर लिखी गई कविता सुने बगैर श्रोता उनको मंच पर चैन से नहीं बैठने देते थे। कुशल मंच संचालक, ठेठ गँवई शैली में राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों के मंच पर अपनी धाक जमाने वाले मोहन सोनी के बगैर मालवा के कई साहित्यि क व सांस्कृतिक मंच सूने होे जाएँगे।

साहित्य को अपना धर्म और कविता को अपना कर्म मानने वाले कलम के सिपाही जो सतत लेखन की प्रेरणा देते रहते थे और स्वयं भी उत्साह पूर्वक साहित्य जगत में छाए हुए थे, जिनकी लेखनी में जहॉ मालवा की काली मिट्टी के लोच के साथ लोक भाषा मालवी की मनभावन गंध की सुवास थी, तो जन जन की भाषा, राष्ट्रभाषा हिंदी की सुघड़ता भी थी। मालवी और हिंदी के यश को काव्य मंचों पर प्रसारित करने वाले कलमकारों की लम्बी सूची में विगत पॉच दशक से अधिक समय से एक नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता था वह है जन मन के प्रिय कवि मोहन सोनी का।

23 मई 1938 को जन्मे मोहन सोनी भारत के हृदय की बात,हृदय की भाषा में बड़े सलीके से कहते थे , हिंदी के प्रति जितनी निष्ठा रखते थे मायड बोली के प्रति भी उतनी ही श्रद्धा रखते थे। काव्य मंच पर जहॉ आज लतीफों का दौर चल रहा है ऐसे में अपनी कविता की धाक रखने वाले में श्री सोनी का नाम पूरे देश में मालवा की शान के रूप में जाना जाता था।

सोनी जी कहते थे, किसी समय साहित्य की केवल एक ही परिभाषा होती थी, साहित्य समाज का दर्पण होता है , लेकिन कविता जब से धन कमाने का माध्यम बनी तब से साहित्य के दो धड़े हो गये । लेखन दो तरह का हो गया एक मन के लिए और दूसरा धन के लिए । मन के लिए लिखने वाले किताबों की शान बने और धन के लिए लिखने वाले मंचों शान कहे जाने लगे। लेकिन मोहन सोनी वो नाम था जो मंच और प्रकाशन दोनो जगह पर छाया हुआ था । 1955 से मंचीय परंपरा में सक्रिय सोनी जी ने गीत चांदनी जयपुर, महामूर्ख सम्मेलन अलवर, जाजम इंदौर जैसे अन्तर्राष्ट्रीय आयोजनों में अपनी मजबूत भागीदारी कर उज्जयिनी के नाम रोशन किया था । वही हथलेवो और गजरो दो मालवी गीत संकलन देकर समाज को सम्मोहित करने में कोई कसर नही छोड़ी । सोनी जी की रचना शिवाजी अद्भुत और कालजयी रचाना है । यही वजह है कि सोनी जी की रचनाएँ विक्रम विश्व विद्यालय के कला संकाय के प्रथम वर्ष में लोकभाषा विषय के अंतर्गत पढ़ाई जा रही है ।

सोनी जी के जीवन की जिन उपलब्धियों की चर्चा जरुरी है उनमें शिवमंगल सिंह सुमन, नीरज, सोम ठाकुर, रामनारायण उपाध्याय, सुलतान मामा, सत्यनारायण सत्तन जैसे कई ख्यात नाम है जिनके साथ मंचों पर आपने काव्य पाठ किया । वही वर्तमान की पीढ के साथ भी उनका रचनात्मक और मंचिय सामंजस्य देखते ही बनता था , जब भी मिलते एक प्रश्न होता क्या लिख रहे हो । जो हर किसी के उनकी आत्मीयता का कायल बना देता था । सोनी जी को लोकमानस अकादमी, शब्द प्रवाह साहित्य मंच, म.प्र लेखक संघ, दैनिक अग्निपथ, जैसी संस्थाओं ने अपने प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किए, म. प्र. विधान सभा में भी आपने काव्यपाठ किया , आजीविका हेतु आप शिक्षक थे, लेकिन सेवा निवृत्ति के बाद भी आपने शिक्षक की भूमिका नहीं छोड़ी थी , हर समय समझाने और सिखाने को तैयार रहते थे।

उनकी दिव्यात्मा को परम शांति मिले यही प्रभु महाकाल से कामना ।

प्रस्तुत है स्व. मोहन सोनी का एक मालवी गीत

रई रई के म्हारे हिचक्याँ अ इरी हे
लजवन्ती तू ने याद कर्यो होगा

थारे बिन मोसम निरबंसी लागे
तू हो तो सूरज उगनो त्यागे
म्हारी आँख्यां भी राती वईरी हे
तू ने उनमें परभात भरयो होगा

सुन लोकगीत का पनघट की राणी
थारे बिन सूके (सूखना) पनघट को पाणी
फिर हवा,नीर यो काँ से लईरी हे
आख्याँ से आखी रात झरयो होगा

बदली सी थारी याद जदे भी छई
बगिया की सगळी कली कली मुसकई
मेंहदी की सोरभ मन के भईरी हे
म्हारा फोटू पे हाथ धर्यो होगा.

रई रई के म्हारे हचक्याँ अईरी हे
लजवंती तू ने याद कर्यो होगा

-संदीप सृजन
संपादक शाश्वत सृजन
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