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हैदाराबाद में जीवित जलाई गई माता गोदावरी बाई

मैंने अपने पूर्व लेख में यह बात सामने रखी थी कि चाहे कोई भी आन्दोलन हो, महिलाओं को पुरुषों से कहीं अधिक अत्याचार सहने पड़ते हैं| पुरुष तो केवल अपने उद्देश्य के लिए ही लड़ते हैं किन्तु महिलाओं को अपने उद्देश्य की लड़ाई के साथ ही साथ अपने सतीत्व की, अपने चरित्र की रक्षा भी करनी होती है| इस कारण उन्हें आत्यधिक कष्टों का सामना करना होता है|एसी ही एक दारुण कथा है हैदराबाद की एक महिला गोदावरी बाई टेके की!

गोदावरी बाई टेके को हैदराबाद के स्वाधीनता संग्राम में अपनी आहुति देने वाली प्रथम महिला होने का गौरव प्राप्त है| इससे पूर्व हैदराबाद निजाम के अत्याचारों का सामना केवल पुरुष ही कर रहे थे किन्तु अपना बलिदान देकर गोदावरी बाई ने वहां की महिलाओं के लिए भी एक चुनौती खड़ी कर दी, और यह सिद्ध करके दिखा दिया कि बलिदानी मार्ग केवल पुरुषों के लिए ही नहीं है, इस मार्ग पर महिलाओं के लिए भी चलने का पूर्ण अधिकार है| इसके साथ ही गोदावरी बाई ने अपना बलिदान देकर समग्र देश की रमणियों को यह सन्देश दे दिया कि देश की रक्षा का जब जब भी प्रश्न उठता है, तब तब महिलाओं ने कभी पीठ नहीं दिखाई अपितु पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर बलिदान के मार्ग पर आगे बढती हुई पुरुषों से भी आगे निकल गईं|

हैदराबाद में इंटे नाम का एक तालुका होता था| इस तालुका में एक स्थान का नाम टेके है| इस टेके गाँव के एक प्रतिष्ठित आर्य परिवार की यह सुप्रसिध्द बलिदानी महिला के रूप में आज भी क्षेत्र भर में प्रसिध्द है और इनका नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है| गोदावरीबाई के परिवार ने सदा ही निजाम द्वारा किये जा रहे अन्याय के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया| वह अन्याय को सहन करने के लिए तो बने ही नहीं थे| इस परिवार की सत्य के प्रति दृढ निष्ठा के कारण यह पारिवार अन्याय के सामने अपनी छाती ठोक कर अड़ जाता था| स्वराज्य के लिए अपनी देह तक का त्याग कर देना इस परिवार के सब सदस्यों के लिए मानो बच्चों का खेल था|

यह परिवार ऋषि दयानंद सरस्वती का अनुगामी और दृढव्रती आर्य होने के कारण ओउम् के झंडे के प्रति अगाध श्रद्धा रखता था| इस परिवार के सदस्य अपने प्राण तो दे सकते थे किन्तु ओउम् के झंडे का अपमान नहीं देख सकते थे|

हैदाराबद की इस मुस्लिम रियासत में हिन्दुओं पर किये जाने वाले अत्याचारों को तो संसार के लोग पहले से ही जानते थे फिर यहाँ के निजाम, उसकी पुलिस तथा वहां के(रजाकार) मुसलमान यह कैसे सहन कर सकते थे कि कोई व्यक्ति ओउम् का झंडा अपने घर पर लगाए| वह लोग इसे रियासत के लिए दी गई चुनौती मानते थे| अत; पुलिस नित्य प्रति इनके निवास पर आती और इन्हें ओउम् का झंडा उतारने के लिए कह कर चली जाती| बार बार की चेतावनी के पश्चात् भी यह ओउम् का झंडा उतर नहीं रहा था| इस कारण इस परिवार से पुलिस कुपित थी|

एक दिन की बात है कि वहां का एक पुलिस अधिकारी, जिसका नाम हेनरी था, अपने कुछ पुलिस जवानों तथा कुछ मुस्लिम रजाकारों को साथ लेकर आया| उसने इस घर के सदस्यों को आदेश दिया कि वह इस झंडे को तत्काल उतार दें| वीरों का परिवार था अन्याय के विरोध में अडने के आदी थे, वह इस अन्याय पूर्ण आदेश को स्वीकार ही नहीं कर सकते थे| अत: इस परिवार के मुखिया किशन राव ने तत्काल इन्कार करते हुए कहा कि यह झंडा हमारे प्रभु का है,हम किसी भी अवस्था में इसे नहीं उतारेंगे| हेनरी, उसकी पुलिस तथा रजाकारों ने जब देखा कि यह परिवार उनके किसी भी आदेश को न मानने के लिए कटिबद्ध है तो उन्होंने दनादन इन लोगों पर गोलियां चलानी आराम्भ कर दीं| इन गोलियों में से प्रथम गोली गोदावरी बाई के पति किशनराव टेके को लगी, वह घायल होकर गिर पड़े| दूसरी गोली उसके नन्हे से पुत्र को लगी, वह भी घायल होकर गिर गया|

गोदावरी बाई अब तक घर के अन्दर ही थी, वह नहीं जानती थी कि बाहर क्या हो रहा है? ज्यों ही उसने गोलियों की आवाज सुनी तो उसे यह समझते देर न लगी कि निजाम की पुलिस अथवा यहाँ के मुस्लिम रजाकार कुछ अत्याचार कर रहे हैं, तो उसने तत्काल बन्दूक उठाई और निजामी अत्याचारों का प्रतिरोध करने के लिए क्रोध से लाल होती हुई बाहर आई| अब तक पुलिस तथा रजाकारों ने घर की लूटपाट का कार्य आरम्भ कर दिया था| जब उसने देखा कि उसके परिजन लहू से लथपथ पड़े हैं और यह सब आक्रमणकारी लूटपाट में लगे हैं तो उसने एक-एक कर तीन गोलियां लूटपाट कर रहे इन लोगों पर दाग दीं| देखते ही देखते तीन रजाकार भूमि पर गिर गए| इस वीर महिला के चंडी के रूप को देख कर हेनरी सहित रजाकारों के होश गुम हो गए| उन सब की घिग्घी बांध गई| इस दुर्गा से अपनी जान बचाने के लिए पुलिस अधिकार हैदरी , उसकी पुलिस तथा शेष बचे रजाकारों ने मिलकर गोदावरी बाई तथा उसके परिवार को आगा लगा दी और वहां से भाग गए|

आग से घिरी गोदावरी बाई अब तक भी भागते हुए इस पुलिस तथा रजाकारों के दल पर दनादन गोलियां चलाते हुए उन पर कहर ढा रही थी| रजाकार उस जलती हुई महिला से भी इतने भयभीत थे कि वह निरंतर तेजी से भागते ही चले जा रहे थे, जबकि आगकी लपटों से घिरी गोदावारी बाई की बन्दुक अब भी आग बरसाने में ही लगी थी| इस प्रकार वह निरंतर आग की लपटों में घिरती चली गई| उसे न तो अपनी सुध थी और न ही अपने घायल परिवार की चिंता थी, वह तो देश के इन दुश्मनों का नाश करने में ही लगी थी|

आग की लपटों में घिरी गोदावरी बाई तथा घायल पड़े उसके परिवार के दोनों सदस्य शोर मचाकर अन्य लोगों को सहायता के लिए भी नहीं बुलाना चाहते थे क्योंकि वह जानते थे कि जो भी उनकी सहायता के लिए आवेगा, यहां की पुलिस उसे तथा उसके परिवार को भी जीवित नहीं छोड़ेगी| इस प्रकार अपनी जान की चिंता किये बिना अपने सहयोगियों की रक्षा की भी चिंता इस परिवार के सब लोगों को थी| वह पुलिस की क्रूर छाया से अपने निकट वर्तियों को बचाने के लिए अपना तथा अपने परिवार का बलिदान देने के लिए तैयार थी|

इस प्रकार वीरता की यह देवी तथा इसका परिवार ओउम् के झंडे की रक्षा के लिए जीवित ही धू धू कर जलकर वीरगति को प्राप्त हो गया| हैदराबाद में कुल पांच लोगों को ज़िंदा जलाया गया, इन पांच में से इस परिवार के सब के सब तीन सदस्यों को श्रेय है, जो संख्या में भी अधिक और जीवित जलने वाले हैदराबाद के वीरों में भी प्रथम थे| क्या विश्व इतिहास में कहीं किसी अन्य एसी वीर देवी का दूसरा उदाहरण देखने को मिलेगा?

जिस देश के पास इस प्रकार की वीर, तथा वीर प्रस्विनी नारियां होंगी,उस देश का कभी कोई बाल भी बांका कर पावेगा, एसा कभी कोई सोच भी नहीं सकता| एसी वीरता की देवी, बलिदानी माता की कथाएं आज भी अपने परिवार में अपने बच्चों को सुनाकर उनमें भी वीरता का संचार किया जाता रहे तो निश्चय ही देश में चल रहे कुटिल लोगों के कुटिल व्यवहार का सामना कर पाना संभव हो सकेगा|

डॉ.अशोक आर्य
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