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श्री सुरेश प्रभु: एक दूरदर्शी जन नेता

हाल ही में एक पोस्ट पढ़ने को मिली I माननीय श्री सुरेश प्रभु के बारे में लिखI गया था, और क्योंकि मैं सुरेश प्रभु का प्रशंसक हूं, मेरे दोस्तों ने इसे साझा किया। पोस्ट बहुत अच्छी थी, किसी ने इसे कोंकण महाराष्ट्र और से लिखा था। लेकिन उसे दिया गया शीर्षक उचित नहीं था। शीर्षक था , “ सुरेश प्रभु कोई बड़े नेता नहीं हैं, वे एक विचारवान नेता हैं”। वास्तव में, सुरेश प्रभु देश के उन कुछ नेताओं में से एक हैं, जिनके पास दोनों गुणों का एक अद्भुत संगम है।

मैं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से हूँ, इसलिए मेरे व्यापारिक संबंध कई देशों से, और देश के कई राज्यों से आते हैं। मेरा एक व्यवसायिक साथी मूल रुप से भारतीय हैं, और अब कनाडा का नागरिक है,और उनकी भी मानना है कि भारत में, लघु उद्योग जगत का का विकास त प्रभुजी के वाणिज्य मंत्री रहने के दौरान ही शुरु हुआ। मेरे तकनीकी के क्षेत्र में होने के कारण, देश विदेश से, व्यापार के माध्यम से, विभिन्न क्षेत्रों के लोग मेरे संपर्क में आते हैं। श्री सुरेश प्रभु के बारे में सभी क्षेत्रों के लोगों की राय को देखते हुए, मुझे अलग तरह की संतुष्टि और खुशी मिलती है और इस बात पर गर्व हुआ है कि मराठी समाज से हमें कितना दूर दृष्टा और ऊँची सोच वाला नेता मिला है।


व्यावसायिक कारणों से, हम बहुत से लोगों के संपर्क में और रहते हैं, और बहुत सारी जानकारी मिलती है। उनमें से एक दिलचस्प जानकारी मिली कि कुछ समय पहले जब आईटी क्षेत्र के लोगों को कोई पूछता नहीं था ,तब सुरेश प्रभु जी सारस्वत बैंक के माध्यम से आज की प्रतिष्ठित कंपनी को ऋण प्रदान कर रहे थे। वह तीस-बत्तीस साल पहले की बात है। प्रभु साहब उस समय बैंक के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे। आज, यही कंपनी लाखों लोगों को रोजगार देती है। यह दूरदृष्टि और नेतृत्व के बिना संभव नहीं था। सारस्वत बैंक के उनके कार्यकाल में ऐसे कई छोटे और बड़े इनोवेटर्स कंपनियों को न केवल लोन मिला बल्कि छोटे उद्यमियों को स्थापित करने के लिए मुफ्त व्यापार मार्गदर्शन भी मिला। मैं कई सालों से प्रभु साहेब के भाषणों, सेमिनारों, पोस्टों का सोशल मीडिया पर सुनता पढ़ता आ रहा हूँ। हर बार मुझे उनकी सोच में एक नई दृष्टि मिलती है।

कोविद 19 की पृष्ठभूमि पर , भारतीय अर्थव्यवस्था एक मुश्किल और महत्वपूर्ण मोड़ पर है. आज की चुनौतियों और भविष्य के नए अवसरों पर विचार किया जा रहा है। मेरे जैसे किसान परिवारों के कई युवाओं ने पिछले कुछ वर्षों में बिना किसी वित्तीय स्थिति के केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर अपनी छोटी कंपनियां स्थापित की हैं। जैसा कि मेरI प्रौद्योगिकी का क्षेत्र है, तो कई अन्य लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां पैदा की हैं, खुद के लिए एक पहचान बनाई है, लेकिन आज हम एक भीषण संकट के दौर से गुजर रहे हैं।

आर्थिक संकट, व्यापार की बदलती अवधारणा, और तो और एक खुली अर्थव्यवस्था में विकसित देश क्या निर्णय लेंगे, और यह हमारे उद्योग को कैसे प्रभावित करेगा. उनके कौनसे निर्णय भारतीय उद्यमशीलता के अनुकूल होने चाहिए।वैश्विक अर्थव्यवस्था से लेकर अपने देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संपूर्ण रूपसे समजनेवै व्यक्ति के मत, और सक्रियता अधिक महत्व पूर्ण लगता है।

मेरे कई मित्र जब इसके बारे में सोचते हैं और इस पर चर्चा करते हैं तो उस समय चर्चा में आए नामों में एक नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुरेश प्रभु का था। मैं पिछले सात वर्षों से कई विषयों पर उनके साक्षात्कार लेख देख रहा हूं, सुन रहा हूं या पढ़ रहा हूं। उनके विचार में एक निरंतरता और लक्ष्य प्राप्ति का संकेत होता है, तात्कालिक समाधान के साथ भविष्य के निर्माण की उनकी सोच की कोई तुलना नहीं की जा सकती।


कई बार कई विचारक लोग बहुत अच्छी योजना बनाते हैं, लेकिन वे उसे अस्तित्व में नहीं ला पाते, क्योंकि सत्य के तथ्य और भविष्य की कल्पना असंगत होती है । कई योजनाएं केवल तभी लागू की जा सकती हैं यदि किसी अवधारणा के साथ आने के लिए पूरे समाज के अर्थव्यवस्था की वास्तविकता की जानकारी हो और समाज में एक स्वीकृत नेतृत्व हो। उसमें अखंडता होनी चाहिए और पूरे समाज की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था के बारे में जागरूक होना चाहिए। निसंदेह श्री सुरेश प्रभु साहब ऐसे ही नेताओं में से एक हैं।

हालाँकि मैं विदर्भ क्षेत्र का एक युवा हूँ, मैं उन्हें नहीं जानता या उससे कभी मिला भी नहीं, लेकिन फिर भी मैं भी उन्हें अपना नेता मानता हूँ, मेरे जैसे कई उद्यमी युवा ऐसे सोचते हैं कि वह एक नेता है। अपने करियर में अब तक उन्होंने जो निर्णय लिए हैं, वे कभी एकतरफा या लोकप्रियता के आधार पर नहीं, बल्कि भविष्य-उन्मुख समाज को नई दिशा देने के रूप में लिए गए हैं।

रेल मंत्री के रूप में भविष्यगामी योजनाएँ बनाना, 10 लाख करोड़ रुपये का आवश्यक निवेश, बिजली क्षेत्र में बड़े परिवर्तन, उर्वरक और दवा क्षेत्र में रणनीतिक फैसले, वन और पर्यावरण क्षेत्र में दीर्घकालिक योजनाएँ, ऐसे कई प्रयोग और निर्णय हैं जिससे देश औद्योगिक क्षेत्र और सरकारी संस्थानों को एक नई दिशा मिली

आज, अगर भारत कोविद 19 को दुनिया में दवाओं की आपूर्ति कर रहा है, तो केवल इसलिए की 1999 में जब वे वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे भारत में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने, रोजगार पैदा करने और विश्व व्यापार में भारत का स्थान पाने के लिए निर्णय लिया गया था। और उन्होंने जिला स्तर पर पर सकल आय बढ़ाने के लिए छह जिलों का चयन किया था।

इस योजना पर अब भी काम चल रहा हैं। पढ़ने में ये योजना मामूली लगती है, लेकिन इसको को गंभीरता से लिया जाता है, तो भारत एक बार फिर “सोनेकी चिड़िया ” बन सकता है । मैं, एक उद्यमी के रूप में, निश्चित रूप से कह सकता हूं कि आज की जैसी हालत कोई भी विपत्ति में नहीं आएगी।

प्रधानमंत्री के शेरपा के रूप में, माननीय प्रभु साहब विश्व स्तर पर काम कर रहे हैं, लेकिन इससे पहले भी वे कई वर्षों तक विभिन्न वैश्विक मंचों में काम करते रहे हैं और विदेशों में उच्च स्तर के नेताओं से लगातार मिलते रहते हैं। कई देशों के अखबार के लेखों को देखते हुए, नेट पर आने वाली खबरें, ऐसा लगता है कि इनमें से कई लोग प्रभु साहेब को एक अलग जगह पर देखते हैं।

आज देश में, उद्योग, व्यापार, परिणामस्वरूप, रोजगार सभी संकट में हैं, एक नए भारत के निर्माण के लिए बहुतों की आवश्यकता है, प्रभु साहेब की बहुत आवश्यकता है। आपके पूरे करियर में निस्वार्थ काम के लिए हम सब उद्यमी आपके ऋणी हैं और आज हमें फिर से आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है।

चूँकि मैंने हाल ही में प्रभु साहब के दो वेब सेमिनार में भाग लिया, इसलिए मुझे लगा मैं अपनी भावनाएँ व्यक्त करूँ . मैं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हूं, मेरा लेखन बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन मैं कहूंगा कि मुझे जो लगा वो मैंने लिखा है ।

(श्री चक्रधर बोरकुटे एक आईटी कारोबरी हैं, Einnovation Technologies Pvt. Ltd. के निदेशक हैं और कई अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में आईटी से जुड़े विषओं पर शोध पत्र लिखते हैं। वे कई देशी विदेशी संस्थानों के साथ ही भारत सरकार के कई संस्थानों को भी अपनी सेवाएँ दे रहे हैं)

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