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जावेद अख़्तर का मुगलिया रंग

फिल्मी हस्ती जावेद अख्तर भारत में मुगल शासन को खुशहाली का समय मानते हैं। तुलना करते हुए वे अकबर, जहाँगीर को महान और अंग्रेजों को गया-गुजरा बताते हैं। मुख्यतः इसी मतभेद पर वे तारिक फतह को हिन्दू सांप्रदायिकों का ‘प्रवक्ता’ कहते हुए जलील कर रहे हैं। वस्तुतः मुगल काल को गौरव-काल बताना लंबे समय से चल रहा है। यह स्वतंत्र भारत में अधिक प्रचारित हुआ। कांग्रेस-कम्युनिस्ट सत्ता गँठजोड़ ने राजकीय बल से इसे स्कूल-कॉलेजों तक फैला दिया। हमारे नेताओं ने सच दबाने और झूठ फैलाने का गंदा काम किया, करवाया हैं। इसी का दूरगामी असर अब हर कहीं दिखता है।

सचाई यह है कि भारत में मुगल शासन भी ब्रिटिश शासन जैसा विदेशी था। कई मामलों में ब्रिटिश राज से अधिक क्रूर और घृणित। स्वयं मुगलों के समय लिखी गई सैकड़ों किताबें, दस्तावेज इस की गवाही हैं। महान इतिहासकार सीताराम गोयल ने अपनी पुस्तक ‘‘भारत में इस्लामी साम्राज्यवाद का इतिहास’’ (नई दिल्ली: वॉयस ऑफ इंडिया) में इस की प्रमाणिक समीक्षा की है। यदि भारत को वैचारिक रूप से निरोग, तथा विषैली राजनीति से सुरक्षित, इम्यून बनाना हो – तो यह पुस्तक प्रत्येक हाई-स्कूल छात्र, शिक्षक, प्रशासक, और नेता को अनिवार्यतः पढ़नी, पढ़ानी चाहिए! इस से भारत में आगे देश-द्रोही, हिन्दू-विरोधी, लफ्फाजों की नई खेप बननी बंदप्राय हो जाएगी!

आइए, केवल कुछ मोटी-मोटी बातें देखें। भारत में किसी ताकतवर मुस्लिम शासक ने कोई भारतीय भाषा सीखना, बोलना गवारा नहीं किया। सिवा बिलकुल अंत में जब उन की ताकत खत्म हो चुकी थी। तमाम मुस्लिम शासन में अरबी, फारसी की सत्ता थी। जैसे ब्रिटिश-राज में अंग्रेजी की थी। फिर, सारे सत्ता पद अरब, तुर्क, फारसी, और विदेशी मुस्लिमों के लिए सुरक्षित थे। जैसे ब्रिटिश राज में यूरोपियनों के लिए थे। अरब, फारस, मध्य एशिया, अबीसीनिया तक से आने वाला कोई मुस्लिम यहाँ कोई उच्च पद पा सकता था। चाहे वह कैसा भी घटिया, निपट अशिक्षित क्यों न हो। जैसे ब्रिटिश राज में कैसा भी यूरोपीय यहाँ विशिष्ट क्लबों का सदस्य हो जाता था। मुगल शासक जो पहनते थे, खाते-पीते थे, जैसे शौक पालते थे, सुंदर लड़के-लड़कियों का मोल लगाते थे, जिन तौर-तरीकों से चलते थे, उस में भारतीयता शून्य थी। वे ब्रिटिश शासकों जैसे ही पूर्णतः विजातीय थे।

वस्तुतः, कई मामलों में यहाँ मुस्लिम शासकों की तुलना में ब्रिटिश अधिक उदार थे। सभी मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं का बलात् धर्मांतरण कराया, मंदिर तोड़े, हिन्दू भावनाओं एवं संस्थाओं को अपमानित किया। तमाम मुल्लों, सूफियों ने हिन्दू धर्म-संस्कृति की खिल्ली उड़ाई। उस से खुली घृणा प्रकट की। इस्लामी दावों या कानूनों के औचित्य पर एक शब्द भी संदेह करने वाले हिन्दू की जान को खतरा था। जबकि अंग्रेजों ने कभी हिन्दू मंदिरों को अपवित्र नहीं किया। न ही कभी हिन्दू धर्म-संस्कृति को अपमानित किया। उन्होंने ईसाई मिशनरियों को हिन्दुओं का बलात् धर्मांतरण कराने की कभी इजाजत नहीं दी। हिन्दू लोग ईसाइयत के दावों पर खुले आम प्रश्न उठा सकते थे। उस पर अधिकांश ब्रिटिश प्रशासक कोई ध्यान तक नहीं देते थे।

आगे देखें, तो हरेक मुस्लिम शासक, छोटा ओहदेदार भी अपने हरम में चाहे जितनी हिन्दू स्त्रियाँ जबरन उठा ले जाना अपना हक समझता था। अनगिन हिन्दू रखैलियाँ अलग से रख सकता था। पर कोई हिन्दू लड़का किसी मुस्लिम लड़की से विवाह नहीं कर सकता था, चाहे वह हिन्दू से धर्मांतरित हुई मुस्लिम ही क्यों न हो। किसी मुस्लिम स्त्री से हिन्दू के प्रेम करने की सजा मौत थी। ऐसा कुछ ब्रिटिश राज में न था। वे भारतीय स्त्रियों पर हाथ नहीं डालते थे। ब्रिटिश स्त्रियों से भारतीयों पुरुषों का विवाह भी होता था।

अतः भारत के मुसलमान शासक किसी हाल में देशी नहीं माने जा सकते। उन के वंशजों का यहीं रह जाना, या धर्मांतरित कराए गए मुसलमानों की दलीलें कुछ साबित नहीं करती। जैसे तर्क जावेद अख्तर मुगलों के लिए देते हैं, वही तर्क भारतीय ईसाई भी दे सकते है। ब्रिटिशों को विदेशी शासक कहने पर आपत्ति कर सकते हैं।

भारत में मुस्लिम शासन अंधकार का युग था या खुशहाली का, इस का उत्तर इस पर निर्भर करेगा कि किस दृष्टि से देखा जा रहा है। इस्लामी नजरिए से वह जरूर शानदार जमाना था। एक ऐसे बड़े देश पर इस्लामी राज जो वैभव में अतुलनीय था। इस्लाम को इस का भारी गर्व था कि 1. लगातार जिहाद में लाखों काफिरों को जहन्नुम भेजा गया, 2. मूर्तिपूजा के हजारों मंदिर खत्म और खराब किए गए, 3. हजारों ब्राह्मणों, भिक्षुओं को मार डाला गया, और बहुतों को गो-मांस खिलाया गया, 4. भारी मात्रा में बहुमूल्य रत्नों की लूट हुई और उसे प्रोफेट द्वारा बताए नियम से मुसलमानों में बाँटा गया, 5. लाखों-लाख पुरुषों, स्त्रियों, और बच्चों को पकड़ कर दूर देशों में गुलाम, रखैलों के रूप में बेचा गया, 6. बड़ी आबादी पर सत्ता कायम कर उसे दासता में रखा गया, और 7. तलवार के जोर से इस्लामी किताबों का दबदबा बनाया गया।

यह सही है कि मुस्लिम शासकों ने अपने लिए विलासिता पूर्ण महल बनवाए। अनेक मस्जिदें, मरकज, मदरसे भी बनवाए। मिल्लत की ताकत बनाने को असंख्य मुल्लों को संरक्षण दिया। अपने और अपनी चुनी हुई बीवियों के लिए बगीचों से घिरी, हीरे-जवाहर से जड़ी बड़ी-बड़ी कब्रें बनवाई। अनेक खानकाह व दरगाहें बनवाईँ, और उन्हें धन दिया। उस में सूफी रहते, गाते, और भाषण देते। यह सभी इमारतें अनेक इतिहास पुस्तकों में वर्णित हैं। उन की तस्वीरें रोज पर्यटकों द्वारा खींची जाती हैं। वे ऐसी छाप छोड़ती हैं कि मुस्लिम शासन में भारत चमक-दमक वाली जगह थी।

उस वैभव में कुछ कलाएं, कारीगरी, पोशाक, केश-विन्यास, कलात्मक हस्तलेख और सजी पांडुलिपियाँ, फारसी पद्य-गद्य, कुरान व हदीस पर अरबी व्याख्याएं, दरबारी संगीत और नृत्य, तथा संतों-सूफियों के संवाद जोड़ दें। मुगल विरासत की ऐसी प्रदर्शनी में इन सब को इकट्ठे देख जरूर छाप पड़ेगी कि तब भारत खुशहाली का काल था। मगर किस की खुशहाली? जहाँ तक काफिरों (हिन्दुओं) की बात है तो वह घोर अंधकार का लंबा युग था। वह तभी खत्म हुआ जब 18वीं सदी में मराठों, जाटों, सिखों ने इस्लामी साम्राज्यवाद की कमर तोड़ दी।

मुस्लिम शासन में हिन्दुओं के हाल का वर्णन मशहूर ‘तारीखे-वसाफ’ के लेखक शराफउद्दीन शिराजी ने इन शब्दों में किया है, ‘‘बुतपरस्ती को झुकाने और देवमूर्तियों को तोड़ने के लिए मजहबी सुरूर की रौ ऊँची फड़कती थी… इस्लाम के लिए मुहम्मदी फौजों ने उस नापाक जमीन पर बाएं-दाएं, बिना कोई मुरव्वत कत्ल करना शुरू किया। खून के फव्वारे छूटने लगे। उन्होंने इस पैमाने पर सोना-चाँदी लूटी जिस की कल्पना नहीं हो सकती। भारी मात्रा में जवाहरात और तरह-तरह के कपड़े भी।… उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में सुंदर और छरहरी लड़कियों, लड़कों और बच्चों को कब्जे में लिया, जिस का कलम वर्णन नहीं कर सकती।… संक्षेप में, मुहम्मदी फौजों ने देश को बिलकुल उजाड़ दिया और वहाँ के बाशिंदों की जिन्दगी तबाह कर दी, शहरों को लूटा, और उन के बच्चों पर कब्जा किया। अनेक मंदिर उजाड़ हो गए, देवमूर्तियाँ तोड़ डाली गईं और पैरों के नीचे रौंदी गईं, जिन में सब से बड़ा था सोमनाथ। उस के टुकड़े दिल्ली लाए गए और जामा-मस्जिद के रास्ते में उसे बिछा दिया गया ताकि लोग याद रखें और इस शानदार जीत का जिक्र करें … सारी दुनिया के मालिक, अल्लाह की शान बनी रहे।’’

पर यह सब छिपा कर ताजमहल और फतेहपुर सीकरी की परेड से हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश होती है। भारत में इस्लामी ताकत व खुशहाली उसी अनुपात में बढ़ी जिस अनुपात में हिन्दुओं की दुर्गति, तबाही और मौत हुई। यह जले पर नमक छिड़कने समान है। या तो जावेद अख्तर को कम्युनिस्ट पार्टी स्कूल में सुने हुए से आगे कुछ इतिहास मालूम नहीं, या फिर वे तकिया (कपट) कर रहे हैं।

सभार https://www.nayaindia.com/ से