नाचा मारोहः ‘अल्करहा समय’ में पलायन पर चोट, आत्महत्या के विरुद्ध जगाया भी

रायपुर। छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी के नाचा समारोह में गुरुवार की शाम परमेश्वर साहू की गवईहा लोक नाट्य छत्तीसगढ़ी नाचा पार्टी मोहंदी राजनांदगांव ने परमेश्वर साहू की टीम ने गम्मत ‘अल्करहा समय’ की सधी हुई प्रस्तुति दी। जिसमें गांव से शहर की ओर पलायन, कर्ज में दबे किसान और आत्महत्या जैसे ज्वलंत विषयों को उठाया गया।

इन गंभीर विषयों को हंसी-ठिठोली के रंग में इस रोचक ढंग से पेश किया गया कि संस्कृति विभाग घासीदास संग्रहालय का सभागार खचाखच भरा रहा और बहुत से दर्शकों को खड़े-खड़े ही नाचा देखना पड़ा। शुरुआत में अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने नाचा दल के सभी भागीदारों का सम्मान किया। 13 सितंबर से शुरू हुए इस नाचा समारोह का समापन नौवें दिन गुरुवार को हुआ। वहीं गुरुवार से छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी की दो दिवसीय शिल्प प्रदर्शनी भी शुरू हुई। इस पूरे नौ दिवसीय आयोजन में हीरा मानिक पुरी, ज्ञानदेव सिंह, अजय उमरे, शिव बंजारे और राजेन्द्र सुनगरिया का विशेष योगदान रहा।

‘अल्करहा समय’ नाटक में कहानी छोटे से गांव में रहने वाले गरीब किसान गिरधारी की है। जिसमें गिरधारी गांव के ही जमींदार से कर्ज लिया रहता है। कई साल गुजर जाने के बाद भी गिरधारी कर्ज नहीं चुका पा रहा था। गिरधारी की पत्नी शांति पर जमींदार की नियत खराब होने लगी।

इससे गिरधारी और शांति के बीच झगड़ा शुरू हो गया। जिसके चलते गिरधारी आत्महत्या करने की कोशिश करता है। गांव का एक बुजुर्ग चैतू आकर गिरधारी को मानव जीवन मूल्य समझाता है और उसे आत्महत्या करने से रोक लेता है। इसके बाद गिरधारी गांव छोड़कर शहर जाने की बात करता है। तभी गांव के बुजुर्ग समझाते हैं कि शहर के बजाए गांव में रहे। इससे गिरधारी का मन बदल जाता है और वह गांव में रहकर खेती करता है अपना कर्ज उतारता है।

इस गम्मत का निर्देशन- परमेश्वर बर्रा ने किया। गम्मत के मुख्य पात्रों में बडे जोक्कड-रोशन लाल विश्वकर्मा, छोटे जोक्कड़-परमेश्वर बर्रा,जनानी- खेलन प्रताप यादव,छोटे परी-खोमेश वर्मा,चैतु (मुनीम)- परमेश्वर बर्रा,गिरधारी-रोशन लाल विश्वकर्मा,शांति-खेलन प्रताप यादव और दाऊ-लिकेश्वर साहू शामिल थ। वहीं संगीत पक्ष में पेटी मास्टर-डाकेश्वर रजक,बैंजो मास्टर-टाहल साहू,तबला मास्टर-रूपेन्द्र साहू,नाल मास्टर-रोमनाथ निषाद,झुमका मास्टर-खेमलाल श्रीवास,मंजीरा-ईश्वरी साहू ने योगदान दिया। वेशभूषा संयोजन प्रफुल्ल रजक का रहा।