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नदियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी और संवेदनशीलता

संसार की सबसे पवित्र नदी गंगा नदी है।भारतवासियों का नदियों से सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध है। इसी उपादेयता के कारण भारत नदियों का देश कहा जाता है। नदियां फसल को उपजाने में सहयोग करते हैं, बल्कि सभ्यताओं के उन्नयन में बड़ी भूमिका निभाते हैं। मनुष्य नदियों को देवी के रूप में पूजते हैं। इन्हीं पवित्र नदियों के किनारे ऋषि और मुनियों ने तप करके भारतीय ज्ञान परंपरा में सहयोग किया है ।वर्तमान में प्रत्येक बड़ा नगर नदियों के किनारे बसा है। नदियां अपने किनारे स्थित गांव और नगरों की जल सिंचाई और नौकायन की आवश्यकता को पूर्ति करती हैं। नदियों के किनारे आवासीय लोग नौकरी ,व्यापार और पर्यटन के विकास हेतु स्थानीय आर्थिक विकास संकुल को विकसित करते हैं। नदियां भारतीय सांस्कृतिक विरासत के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

समकालीन में भारत की नदियां संकट के दौर से गुजर रही है। नदियों के समक्ष प्रदूषण, अतिक्रमण और दबावित आबादी और अनियोजित विकास की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, वही नदियों में निरंतर घट रही पानी की मात्रा भी दुख: दायक है। गांव, कस्बा और शहरों के घरेलू गंदे पानी और नालों से संबंध कचरे का जल नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है ।नदियां हमारे देश की धमनियां है। इन धमनियों में प्रदूषण जल का प्रवाह होगा तो शरीर रूपी नदी रोगारूजनित हो जाएगी।

इन समस्याओं, दुखदाई कारणों और नदियों के भविष्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर “गंगा समग्र” संगठन कार्य कर रहा है। गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री आदरणीय रामाशीष जी के ऊर्जावान नेतृत्व के योग और गंगा समग्र के कार्यकर्ताओं के सकारात्मक प्रयास और मेहनत से नदियों को प्रदूषण मुक्त, पानी की अभिरलता और निर्मलता पर कार्य हो रहा है। आदरणीय रामाशीष जी के नेतृत्व में नदियों के प्रति देश में एक नूतन चेतना का जागरण हुआ है, जिसके चलते संगठन, नागरिक समाज और समाज नदियों के बेहतरी के लिए कार्य कर रहे हैं।

नदियों के प्रति संगठन और समाज की जागरूकता से गंदे पानी को उपचारित करके इस पानी को कृषि कार्यों और उद्योगों में प्रयोग करने का सुझाव, संकल्प और कार्यान्वयन के लिए प्रयास हो रहा है। देश के जिन नदियों का स्वरूप नालों का हो चुका है, उनको नदियों के स्वरूप में बदलने पर कार्य किया जा रहा है। राष्ट्रीय संगठन मंत्री के विचारों, संतत्व व्यक्तित्व और समाजोपयोगी दृष्टिकोण से आम लोग नदियों के प्रदूषण से निजात के लिए चिंता कर रहे है एवं नदियों के प्रति मित्रवत व्यवहार कर रहे हैं। प्रत्येक भारतवासी का व्यवहार नदियों के प्रति समादर का होगा तभी नदियां प्रदूषण मुक्त और गंदगी मुक्त हो सकती हैं। वर्ष 2017 से नदियों के प्रति विवेकी संचेतना अवश्य पैदा हुई है जिसके चलते नागरिक समाज और स्वयंसेवी संगठन अपने स्तर पर प्रयासरत हैं जिसका फल भी सकारात्मक दिखाई दे रहा है।

(लेखक गंगा समग्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख हैं)