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नेताओँ की बजाय शहीदों की गाथाएँ दिखाए मीडिया

नेता द्वारा किसी आयोजन के उद्घाटन और फीता काटने,नयी फिल्म के रिलीज़ होने या फिर बलात्कार और चोरी-डकैती के प्रसंगों को बढ़ाचढ़ा कर दिखाने या उनका वर्णन करने से बेहतर है कि मीडिया  देश के लिए शहीद होने वाले जवान के उत्सर्ग का,घोर कठिनाइयों में देश की सीमाओं की रक्षा करने के उसके संकल्प का और देशहित के लिए मर-मिटने  वाले उसके जज्बे को भी ज़रा उसी निष्ठा, निष्पक्षता और जोश के साथ दिखाए. ये जवान हैं तो देश है,ये सुरक्षाकर्मी हैं तो नेता-अभिनेता हैं और ये मर-जीवडे हैं तो ठठा-मसखरी/चुटकलेबाजी से ओतप्रोत ये रंगारंग (बेहूदा) कार्यकम हैं.

सरकार को चाहिए कि वह मीडिया के लिए कुछ ऐसे निर्देश जारी करे जिनमें वीर-जवानों के आत्मोत्सर्ग को केंद्र में रखकर कार्यकमों को बनाने या प्रसारित करने की सलाह दी गयी हो.नयी पीढ़ी में  चरित्र-निर्माण और देशसेवा की भावनाओं को विकसित करने में इस तरह के कार्यक्रम बड़े उपयोगी सिद्ध होंगे.
शिबन कृष्ण रैणा