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कामुमक आसाराम की कोई तिकड़म अदालत में काम नहीं आई

विवादास्पद कथावाचक आसाराम को उत्तर प्रदेश की एक नाबालिग से बलात्कार के मामले में जोधपुर की एक अदालत ने दोषी करार दिया है। इससे पहले आसाराम ने इस मामले में खुद को बचाने के लिए हर तिकड़म आजमाया था। यहां तक की आसाराम ने जांच अधिकारियों के सामने खुद को नपुंसक तक कह दिया था। शिष्या से बलात्कार के मामले में पकड़े जाने के बाद साल 2013 में आसाराम जोधपुर पुलिस के शिकंजे में थे। उस वक्त मामले की जांच काफी तेजी से चल रही थी। तब ही आसाराम ने सितंबर के महीने में खुद को बचाने के लिए बड़ा दांव चला। आसाराम ने जांच अधिकारियों से कहा कि वो तो नपुंसक हैं और वो बलात्कार कर ही नहीं सकते।

लेकिन 72 साल के आसाराम के इस दावे की पोल ‘पोटंसी टेस्ट’ (मर्दानगी जांच) में खुल गई। असल में नामर्द होने का जो ढोंगे आसाराम ने रचा वो उन्हीं के गले की हड्डी बन गया। उस वक्त जोधपुर पुलिस कमिश्नर बिजू जॉर्ज जोसेफ ने आसाराम के इस दावे की जांच के लिए चिकित्सकों की एक टीम को राजस्थान के पुलिस हेडक्वार्टर में बुलाया। मुख्यालय में ही आसाराम का ‘पोटंसी टेस्ट’ किया गया। जांच के बाद पुलिस ने बतलाया कि इस टेस्ट से साबित हो गया है कि आसाराम 16 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के लायक हैं। पोटंसी टेस्ट के पॉजीटिव पाए जाने के बाद इस केस में आसाराम की मुश्किलें और भी बढ़ गईं।

दूसरी बार हुआ पोटंसी टेस्ट: अक्टूबर के महीने में आसाराम का दूसरा पोटेंसी टेस्ट किया गया है। इससे पहले आसाराम जांच में पुलिस अधिकारियों को सहयोग नहीं कर रहा था। आसाराम को उस दौरान अहमदाबाद सिविल अस्पताल भी ले जाया गया था, लेकिन डॉक्टरों ने जब आसाराम से स्पर्म की मांग की तो उसने बीमारी का बहाना बनाकर स्पर्म देने से इनकार कर दिया था। लेकिन जल्दी ही आसाराम का दूसरा ‘पोटंसी टेस्ट’ किया गया। इस बार के पोटंसी टेस्ट में भी रिपोर्ट पॉजीटिव ही पाया गया। उस वक्त संयुक्त पुलिस महानिदेशक जेके भट्ट ने कहा था कि दूसरी बार भी आसाराम का ‘पोटंसी टेस्ट’ पॉजीटिव पाया गया है।

बच्ची को बालिग साबित करने की कोशिश भी की:बलात्कारी आसाराम ने खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए कानून की आंखों में खूब धूल झोंकने की कोशिश की। यहां तक की उसके गुर्गों ने पीड़ित बच्ची को बालिग तक साबित करने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी। साल 2014 में आसाराम की तरफ से जोधपुर पुलिस को बच्ची का एक जन्म प्रमाण पत्र सौंपा गया। लेकिन पीड़ित बच्ची के पिता ने इस जन्म प्रमाण पत्र को फर्जी बताया। बाद में खुलासा हुआ कि आसाराम के गुर्गों ने नगरपालिका परिषद और उस स्कूल के प्रिंसिपल पर फर्जी जन्म पत्र बनवाने का दबाव डाला था जहां बच्ची ने 5वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। इसके बाद भी आसाराम ने अदालत में कई फर्जी सर्टिफिकेट दिखाकर नाबालिग बच्ची को बालिग साबित करने की नाकामयाब कोशिशें की। बहराहल तमाम तिकड़मबाजियों के बीच आखिरकार जीत इंसाफ की हुई और इस मामले में आसाराम को कोर्ट ने दोषी मान लिया।