1

ऑनलाइन खोजी खबरें भारी पड़ रही है परंपरागत मीडिया पर

द क्विंट, स्वराज्य, द वायर और स्क्रॉलडॉटइन, ये खबरों की कुछ नई लॉन्च हुई वेबसाइट हैं जो न्यूजलॉन्ड्री और द न्यूज मिनट को टक्कर दे रही हैं। इन वेबसाइटों में से ज्यादातर की उम्र अभी तीन साल से भी कम है। ये वेबसाइट मुख् यधारा के समाचार पत्रों और टेलीविजन चैनलों मसलन, टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिंदू, दैनिक जागरण और एनडीटीवी आदि की वेबसाइटों के अलावा हैं। इनके अलावा इंडिया टुडे समूह के डेली ओ और राजस्थान पत्रिका समूह के कैच न्यूज जैसे विशिष्ट ब्रांड तो हैं ही।
इनमें से अधिकांश वेबसाइटों के पास संवाददाताओं की कोई बहुत बड़ी तादाद नहीं है। मोबाइल को प्राथमिकता देने वाली वेबसाइट द क्विंट के पास 80 पत्रकार हैं जो राजनीति, खेल और मनोरंजन की खबरें देते हैं। इनके काम करने का तरीका काफी हद तक किसी समाचार पत्र अथवा चैनल की तरह ही है। इसकी शुरुआत इस वर्ष की शुरुआत में नेटवर्क 18 के संस्थापक राघव बहल और उनकी पत्नी रितु कपूर ने की थी। उन्होंने इसकी शुरुआत 707 करोड़ रुपये की उस राशि से की जो उन्हें नेटवर्क 18 समूह छोडऩे के एवज में मिली थी।
इन वेबसाइटों के दर्शकों और पाठकों में से आधे से अधिक युवा हैं और वे मोबाइल फोन और सोशल मीडिया की मदद से ही उन तक पहुंचते हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे केवल सतही चीजें पढऩा पसंद करते हैं। तमाम बोर्ड सदस्यों, संस्थापकों और संपादकों आदि से बातचीत करके मैं इस नतीजे पर पहुंची कि पाठकों को जोडऩे वाले बढिय़ा गुणवत्ता वाले आलेखों को पढऩे वाले बहुत अच्छी संख्या में हैं।
क्या ये वेबसाइट भारतीय मीडिया की अंदरूनी बहस में बदलाव की क्षमता रखती हैं? उससे भी अहम बात, क्या ये प्रयोग समाचार जगत के कारोबार मे ध्वस्त बिजनेस मॉडल में सुधार ला पाएंगे? टेलीविजन समाचार उद्योग के गिरते मानकों की इकलौती और सबसे बड़ी वजह संदिग्ध निवेशकों का प्रवेश है। प्रशिक्षण की कमी, बेरुख मीडिया मालिक, आक्रामक विज्ञापक और नैतिकता से समझौते आदि समाचार उद्योग की दिक्कतों की कुछ और वजहें हैं।
वैश्विक स्तर पर स्वामित्व का ढांचा किसी भी ऐसे समाचार ब्रांड के लिए अत्यंत अहम है जो गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता करना चाहता है और जिसके संपादकीय हित सुरक्षित हैं। द गार्जियन और बीबीसी ऐसे ही ब्रांड हैं। कुछ नए आने वाले माध्यम इनके साथ प्रयोग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए द वायर का संचालन सेक्शन 8 नामक गैर लाभकारी कंपनी करती है। द वायर के सह-संस्थापक संपादक सिद्घार्थ वरदराजन कहते हैं, ‘हम पारंपरिक मीडिया निवेशकों से दूर रहना चाहते थे और साथ ही उस बोझ से भी जो उनके साथ आता है।’ स्क्रॉलडॉटइन मुनाफे के लिए काम करती है लेकिन उसमें ओमिडयार नेटवर्क ने निवेश किया है जो खुद को परोपकारी निवेश फर्म बताती है।
न्यूजनॉमिक्स के प्रेसिडेंट केन डॉक्टर प्रिंट पत्रकारिता के उद्योग पर लंबे समय से निगाहें जमाए हुए हैं और वह इस बात पर भी लगातार ध्यान दिए हुए हैं कि पिछले दो दशक में कैसे वह डिजिटल दुनिया में रूपांतरित हुआ है। मैंने उनसे पूछा कि मूल सामग्री देने वाली वेबसाइटों मसलन क्वाट्र्ज आदि ने अमेरिकी समाचार जगत पर क्या असर डाला? डॉक्टर कहते हैं कि इन वेबसाइटों मसलन क्वाट्र्ज और बिजनेस इनसाइडर आदि को राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों में अपनी अलग जगह हासिल हुई है। उन दोनों ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को अपने हित के लिए इस्तेमाल किया है। यानी एक बार उत्पादन के बाद असीमित वितरण। अपने दर्शकों/पाठकों के विश्लेषण में वे उन्हें विज्ञापकों के मुताबिक अलग-अलग बांट सकते हैं। उन्होंने फॉच्र्यून 100 विज्ञापकों को अपने साथ जोड़ा है। द हफिंगटन पोस्ट, वॉक्स, बजफीड और वाइस आदि ने कुछ हद तक उस सफलता का अनुकरण किया है।
हालांकि डॉक्टर इस बात को लेकर बहुत सुस्पष्टï नहीं हैं कि वे ऐसा कारोबारी मॉडल तैयार कर पाने में सक्षम हैं या नहीं जो गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता कर सके। उन्होंने आगे कहा, ‘ज्यादातर तो ऐसी पत्रकारिता योगात्मक है। पारंपरिक मानकों के हिसाब से देखा जाए तो इसमें से सबकुछ उच्च गुणवत्ता वाला करार दिए जाने लायक नहीं है। बल्कि कई नई वेबसाइटें तमाम समाचार पत्रों के दर्शन को ही आगे बढ़ा रही हैं। इनमें तमाम महत्त्वपूर्ण और सामाजिक खबरों के अलावा पालतू पशुओं पर आलेख और वीडियो आदि रहते हैं। लेकिन कुलमिलाकर देखा जाए तो राष्टï्रीय गुणवत्ता वाली पत्रकारिता समृद्घ है।’

मनोरंजन कारोबार से मिले सबक पर आगे बढ़ा जाए तो उच्च गुणवत्ता वाली पत्रकारिता के लिए स्थायी ऑनलाइन कारोबार तभी संभव है जबकि उसके लिए भुगतान किया जाए या फिर कारोबार के किसी अन्य हिस्से में सब्सिडी दी जाए। नेटफ्लिक्स हाउस ऑफ काड्र्स में करोड़ों डॉलर का निवेश कर सकती है क्योंकि वह एक ऐसी स्ट्रीमिंग सेवा है जिसके लिए पैसे चुकाने होते हैं। गेम ऑफ थ्रोन्स इसलिए संभव हो सका क्योंकि एचबीओ अमेरिका में हर माह अपने दर्शकों से 15 डॉलर या इससे अधिक की राशि लेता है। खबरों की बात करें तो फाइनैंशियल टाइम्स और द न्यूयॉर्क टाइम्स कुछ ऐसे ब्रांड हैं जो डिजिटल राजस्व के क्षेत्र में भी प्रगति कर रहे हैं।
भारत में अधिकांश समाचार वेबसाइटों पर एक पेज बनाकर या बैनर की मदद से अनुदान या सबस्क्रिप्शन की मांग की गई है ताकि वे खबरों को विज्ञापन अथवा विज्ञापनदाता के हस्तक्षेप से मुक्त रख सकें। लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो मूल सामग्री मुहैया कराने वाली वेबसाइटें देश के समाचार ग्राहकों के लिए एक बढिय़ा नया विकल्प ही हैं। एक नया और स्थायित्व भरा माहौल बनाने की उनकी क्षमता को विकसित होने में अभी वक्त लगेगा।