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पेत्रा केली : गांधीवादी दृष्टिकोण का बलिदानी वैभव

यह तथ्य और गौरवपूर्ण सत्य भी है कि सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का प्रभाव उनके समकालीन और परवर्ती देश-विदेश के अनेक लोगों पर पड़ा। इनमें से कुछ स्वयं इतिहास निर्माता हैं। ऐसे ही प्रभाव से अनुप्रेरित थीं प्रसिद्द यूरोपियन नेत्री और सामजिक कार्यकर्त्री पत्र केली। बापू की अहिंसामूलक नैतिकता की शक्ति पर उन्होंने अपना जीवन तक न्यौछावर कर दिया।

सन 1947 में बवेरिया में एक साधारण रोमन कैथोलिक परिवार में उनका जन्म हुआ था। 1960 में उनका परिवार अमेरिका चला गया। उन्हें गांधीजी की प्रेरणा के साथ-साथ मार्टिन लूथर किंग जूनियर से बहुत कुछ सीखने मिला, जिसके दम पर वे नागरिक अधिकारों के लिए निरंतर लड़ती रहीं।

केली, जर्मन ग्रीन पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं, जिसे उन्होंने गैर-हिंसक पारिस्थितिकी के लिए संघर्ष किया। केली ने अपने दिल के सबसे करीब चार विषयों पर ध्यान केंद्रित किया – शांति और अहिंसा, पारिस्थितिकी, नारीवाद और मानव अधिकार । वह प्रत्येक नागरिक को सविनय अवज्ञा के अधिकार पर विश्वास करती थीं और दुनिया भर में ऐसे कई कार्यों में भाग लेती थीं। उन्होंने सरकार के प्रमुखों से लेकर कार्यकर्ताओं के समूहों तक सभी के ध्यान में उत्पीड़न और हिंसा-पीड़ितों के अधिकारों के लिए अपनी भावुक चिंता व्यक्त की।

केली ने 10 साल की उम्र में अपनी बहन ग्रेस की कैंसर से मौत के बाद, एक यूरोप-व्यापी नागरिक समूह, बच्चों में कैंसर अनुसंधान के समर्थन के लिए एक संघ की स्थापना और अध्यक्षता की। केली की पहली पुस्तक, फाइटिंग फॉर होप, 1984 में प्रकाशित हुई थी। बाद में उन्होंने हिरोशिमा, बचपन के कैंसर और तिब्बत पर किताबें लिखीं।

पेत्रा केली की जीवनीकार सारा पार्किन ने लिखा है – गांधी और मार्टिन लूथर किंग पेत्रा के भगवान् थे। उन्हें मानव अधिकार, महिला उत्थान, पर्यावरण सेना, परमाणु हमले और भेदभाव जैसे मुद्दों पर गांधीवादी अहिंसक संघर्ष के लिए पूरी दुनिया में ख्याति मिली। वह सक्रिय अहिंसा के पक्ष में थीं। गांधी की तरह वह भी सत्य की लड़ाई लड़ती हुईं एक अक्टूबर 1992 को गोली मार दिए जाने पर शहीद हो गयीं। ऐसे उदाहरण गांधीवादी दृष्टिकोण के बलिदानी वैभव के प्रतीक हैं।

स्मरणीय है कि किसी भी कीमत पर हिंसा से इंकार और अहिंसा व शांति के लिए उत्सर्ग की हर तैयारी का स्वीकार गांधी मार्ग का शाश्वत स्वर है। आत्मशुद्धि और ह्रदय की पवित्रता से ही यह बल अर्जित किया जा सकता है। यहाँ समझौतों के लिए कोई जगह नहीं है। यहाँ तो कबीर की मानिंद अपना घर जलाकर दुनिया का दर्द मिटाने के ज़ुनून वालों को ही प्रवेश मिल सकता है। भीतर से मज़बूत बने बगैर गांधी मार्ग में दो डग भरना भी संभव नहीं है। ज़ज़्बे की कड़ी धूप में आत्मबलिदान करके भी पत्थर को पिघला देने की ताकत जहाँ दिखे, समझिए बापू वहां मुस्कुरा रहे हैं । अहिंसा की असीमता में विश्व मानव का भविष्य देखने वाली आँखों में आंखें डालकर आज भी अगर हम देख सकें तो अनगिनत सवालों के ज़वाब मिल सकते हैं ।
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प्राध्यापक एवं शोध निर्देशक
शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर
महाविद्यालय,राजनांदगाँव
मो.9301054300