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राजनीति बैक चैनलों से चलती है !

मुंबई। मुंबई प्रेस क्लब में मुलाक़ात हुई सरोश जाईवाला से , जो अपनी पुस्तक ऑनर बॉउंड के लोकार्पण के लिए मुंबई आए हुए हैं .

सरोश की एक विधिवेत्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अलग पहचान है , उनकी सालिसिटर फ़र्म जाईवाला एंड कम्पनी लन्दन के सबसे महँगे इलाक़े चान्सरी लेन में अवस्थित है. सरोश मध्यस्थता और पंचाट निर्णय जैसे क्षेत्रों में निपुण हैं , वे भारत , चीन , ब्रिटेन , ईरान , रूस वेनुनजुएला आदि देशों की सरकारों के विधिवेत्ता के रूप में कार्य करते रहे हैं . यहाँ यह बताना रोचक रहेगा कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रह चुके टोनी ब्लेयर राजनीति में आने से पूर्व सरोश की विधि फ़र्म में काम करते थे.

ऑनर बॉउंड पुस्तक अन्य बातों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैक चैनल राजनीतिक दांव पेचों का भी खुलासा करती हैं .

पुस्तक में जाईवाला ने ज़िक्र किया है कि उनकी फ़र्म पहली ब्रिटिश सालिसिटर फ़र्म थी जिसका कार्यालय चीन सरकार ने खोलने की इजाज़त दी थी . बीजिंग स्थित उनके कार्यालय में ही हाँग काँग के भविष्य को लेकर चीन और ब्रिटेन की सरकारों के बीच बैक चैनल यानी गोपनीय तरीक़े से बातचीत हुई थी. दलाई लामा को भी चीन की सरकार के साथ बैक चैनल बातचीत सरोश के आफ़िस में ही सम्पन्न हुई थी .

लन्दन में बतौर सालिसिटर सरोश ने चालीस वर्ष पहले शुरुआत की थी . उनके शिखर पर चढ़ने , वहाँ से फिसलने और वापस वहाँ पहुँचने की कहानी किसी बालीवुड स्क्रिप्ट से कम नहीं है , इसमें बड़े बड़े देशों के राज्याध्यक्षों , रूसी धन कुबेरों, अमिताभ बच्चन, संयुक्त राष्ट्र संघ के महा सचिव बान की मून , पी वी नरसिम्हाराव , सोनिया गांधी , बेनजीर भुट्टो से लेकर कनाडा का माफिया तक शामिल रहे हैं . सरोश से यह पूछने पर कि इसके शुरुआत किस तरह हुई , सरोश बताते हैं कि १९७२ में गवर्न्मेंट लॉ कालेज से पढ़ने के बाद लन्दन की तरफ़ रुख़ किया , कुछ दिनों तक सहायक के रूप में काम करने के बाद १९८२ में अपनी सालिसिटर कम्पनी शुरू कर दी , भारतीय उच्चायुक्त सय्यद मोहम्मद को यह पता चला कि लन्दन में पहली बार किसी भारतीय ने सालिसिटर कम्पनी शुरू की है उन्होंने खुद सरोश को बुला कर काम दिया , पहले निजी क्लाइंट गोदरेज थे.

सरोश बताते हैं कि पहले इंग्लैंड की सरकार में कोई सोच भी नहीं सकता था कि दीपावली जैसे भारतीय त्योहार पर आधिकारिक पार्टी आयोजित की जाय , प्रधान मंत्री जान मेजर ने सरोश के कहने पर १०, डाउनिंग स्ट्रीट के अपने कार्यालय में आधिकारिक पार्टी रखी , जो केवल भारतीय ही नहीं दक्षिणी एशियाई देशों के साथ संवाद का सिलसिला बन गई .
पुस्तक में यह भी ज़िक्र है की जब सरोश ने अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन का बोफ़ोर्स वाला केस लिया तो तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कुलदीप नैय्यर नाराज़ हो गए . उन्होंने सरोश की फ़र्म को भारत सरकार के केस देने पर रोक लगा दी , शीर्ष पर पहुँच चुके सरोश के लिए यह बड़ा झटका था . अपनी पत्नी फ़्रेया , जो उनकी फ़र्म में पार्टनर भी थीं , से तलाक़ के कारण भी उनके निजी और व्यावसायिक जीवन में उथल पुथल आयी , यही नहीं एक ब्रिटिश मंत्री को रिश्वत देने के आरोप पर भी फ़र्म की प्रतिष्ठा पर आँच आयी . हालाँकि यह आरोप बाद में पूरी तरह से बेबुनियाद साबित हुआ.

ब्रिटिश न्याय व्यवस्था के बारे में सरोश का कहना है कि वह कानून के हिसाब से चलती है , पैसे से न्याय वहाँ ख़रीदना सम्भव नहीं है . हाँ , यदि कानूनी आधार पर अपना पक्ष रखें तो निर्णय आपके पक्ष में जाएगा .

सरोश के व्यक्तिगत सम्बन्ध विश्व पटल पर बड़े से बड़े राजनीतिज्ञों से रहे हैं , लेकिन वे उन सभी में सबसे ज़्यादा प्रभावित बेनजीर भुट्टो से रहे .

जन्म से सरोश पारसी हैं लेकिन गीता में उनका बहुत विश्वास है . यही नहीं वे बहाई पंथ से भी एक प्रकार से जुड़े हुए हैं ख़ास तौर से ईश्वर , सर्व धर्म सम्भाव और मानव जाति की एकता के बारे में पंथ के प्रवर्तक बहाउल्लाह के विचारों से वे बेहद प्रभावित हैं.

हारपर कालिंस द्वारा प्रकाशित honour Bound सरोश द्वारा अंतर राष्ट्रीय राजनीति के दाव पेंचों को भी बड़े रोचक तरीक़े से उदघाटित करती है.

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