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सवाल केजरीवाल का नहीं, आम आदमी के सपनों का है

आम आदमी पार्टी गंभीर संकट से जूझ रही है। देश के आम आदमी को उम्मीदों की नयी रोशनी दिखाते हुए साढ़े चार साल पहले जब पार्टी सामने आयी थी, तो आम आदमी को लगा था कि देश में एक नए वैकल्पिक राजनीति की शुरुआत हो गयी है। और एक ऐसा दल बन गया है, जो देश में पहले से राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय स्तर पर स्थापित उन तमाम राजनीतिक दलों से अलग हटकर काम करेगा, जो आम आदमी की आशाओं, आकांक्षाओं को पूरा करने में नाकाम साबित हो चुके हैं। आम आदमी को यह लगने लगा था कि उनके नाम वाली यह आम आदमी पार्टी उनकी होगी और ऐसी होगी, जो स्वयं भी ईमानदार राजनीति करेगी और देश से भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटा देगी। न कोई घपला-घोटाला होगा, न कोई गुटबाजी और न ही कोई भाई-भतीजावाद।

लेकिन शुरुआत से ही पार्टी में वैचारिक मतभेद उभरने लगे। पहले तो पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने उस गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे से किनारा किया, जिनके बूते वो देश और समाज की राजनीति की निगाहों में आये थे। जिस अन्ना के कारण आंदोलन सफल हुआ था उन्हीं से अलग होकर अरविन्द केजरीवाल ने 2 अक्तूबर, 2012 को शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी आदि के साथ ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) का गठन किया। परंतु केजरीवाल से अन्य नेताओं के मतभेद बढ़ते ही गये। जल्दी ही आपसी आपसी गुटबाजी फिर पनपने लगी। मतभेदों के कारण इस पार्टी से शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, जैसे कई महत्वपूर्ण संस्थापक सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। तब भी शांति भूषण, प्रशांत भूषण व योगेंद्र यादव जैसे पार्टी ने संस्थापक सदस्यों ने उन पर अनेक आरोप लगाए थे।

तमाम विवादों के बावजूद दिल्ली की जनता ने फरवरी 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर-आंखों पर बिठाया। दूसरे राज्यों में भी पार्टी की पैठ तेजी से बनने लगी। पंजाब के लोकसभा चुनावों में 4 सीटें जीत कर पार्टी अन्य राज्यों की तरफ बढ़ने लगी। और दिल्ली की जनता ने तो 2015 के चुनावों में ऐतिहासिक रूप से इस पार्टी को समर्थन दिया। विधानसभा की 70 में से 67 सीटें केजरीवाल की झोली में दिल्ली की जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ डाल दी थी। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल का व्यवहार एक तानाशाह नेता को तौर पर सामने आने लगा। मोदी से लेकर कांग्रेस और मीडिया से लेकर इटेलिजेंसिया सबको केजरीवाल ने खूब गरियाया। पार्टी के भीतर लोकतंत्र खत्म होने के जो आरोप शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे नेता लगा गये थे, उनमें सुधार की बजाय फिर वही समस्याएं सामने आने लगीं और पार्टी में फिर केजरीवाल के खिलाफ आवाजें उठने लगीं।

जल्दी ही आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली इस पार्टी में भी वही सब नजर आने लगा जो दूसरे दलों की पहचान हुआ करता था। अनेक मंत्री-विधायकों पर भ्रष्टाचार से लेकर भाई-भतीजावाद और यौन शोषण से लेकर षडयंत्र के आरोप लगे। पद हथियाने की होड़ से लेकर एक दूसरे को नीचा दिखाने का वही दौर आम जनता ने इन दो सालों में आम आदमी पार्टी में देखा जो पहले अन्य दलों में दिखता था।

केजरीवाल अपनी पार्टी की हर बुराई के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दोषी ठहराते रहे और एक एक कर उनके नेता विधायक किसी न किसी मामले में फंसते चले गये। कपिल मिश्रा के नये आरोप उसी की कड़ी में जुड़ा एक बेहद गंभीर आरोप है। एक दिन पहले तक केजरीवाल की कैबिनेट में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने पार्टी के सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल पर दो करोड़ की रिश्वत लेने के आरोप लगाये हैं।

कपिल मिश्रा के आरोपों से ऐन पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास ने जब पार्टी की चुनावी रणनीति पर सवाल उठाए थे। तो दूसरी ओर विधायक अमानतुल्ला खां ने कुमार विश्वास पर पार्टी हड़पने की कोशिश करने का आरोप लगा दिया था। कुमार विश्वास को राजस्थान का प्रभार देकर और विधायक अमानतुल्ला को निलंबित करके केजरीवाल ने ‘आप’ पर छाया संकट टालने की कोशिश की थी कि एकाएक 6 मई को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कुमार विश्वास के प्रबल समर्थक कपिल मिश्रा को जल संसाधन मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। और उसके बाद पार्टी में भारी बवाल खड़ा हो गया। कपिल मिश्रा ने पार्टी मुखिया व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर दो करोड़ की रिश्वत लेने के आरोप लगा डाले।

अभी हाल ही में केजरीवाल ने पंजाब तथा गोवा के विधानसभा और दिल्ली नगर निगम के चुनाव लड़े थे। लेकिन इनमें आप को हार का सामना करना पड़ा था। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद पार्टी में अनेक नेताओं के इस्तीफों की झड़ी लग गयी। वहीं कई नेताओं ने पार्टी के भीतर केजरीवाल की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए उनके पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफा देने की मांग भी करने लगे। अब उन्हीं केजरीवाल पर दो करोड़ की रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। कपिल मिश्रा की मानें तो उन्होंने 5 मई को टैंकर घोटाले को लेकर भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को पत्र लिख कर टैंकर माफिया के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करने की मांग की थी। 6 मई को उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। और 7 मई को कपिल मिश्रा ने संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से बात करते हुए अपनी ही कैबिनेट के दूसरे मंत्री सत्येंद्र जैन से रिश्वत लेने का अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए कहा है कि ‘मैंने अपनी आंखों से देखा कि सत्येंद्र जैन जी ने केजरीवाल को 2 करोड़ रुपए दिए।

कपिल मिश्रा के आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो जांच के बाद ही पता चल पायेगा। लेकिन इस प्रकरण से केजरीवाल सरकार सवालों के घेरे में आ गयी है। आम आदमी ठगा सा महसूस कर रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि ये क्या हो रहा है। कहा ये भी जा रहा है कि ये आरोप कपिल मिश्रा ने अपनी मां, जो भाजपा की नेता हैं, उनके कहने पर भाजपा में जाने के लिए लगाये हैं। पर आम आदमी तो कनफ्यूज हो ही गया है। उधर डॉ। मनीष रायजादा भी हैं, जो कहते हैं कि पार्टी ने चंदे का हिसाब देना बंद कर दिया है, इसलिए हमने उन्हें चंदा देना बंद कर दिया है। डॉ। मनीष रायजादा अमरीका में अपनी डॉक्टर की प्रैक्टिस छोड़ कर अन्ना आंदोलन के समय केजरीवाल के साथ जुड़ गये थे। और विदेशों से पार्टी को धन दिलाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। पर आज वो भी हाशिये पर हैं और केजरीवाल के खिलाफ चंदा बंद सत्याग्रह करने में जुटे हैं।

अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली की केजरीवाल सरकार बचेगी? या आप पार्टी टूट जाएगी? लेकिन इन सबसे बड़ा सवाल आम आदमी के सपनों का है। क्या देश में नई वैकल्पिक राजनीति का सपना देखने वाले करोड़ों देशवासियों की उम्मीदें टूट जाएंगी? केजरीवाल को इसका जवाब देना ही होगा।

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