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रेडियो की प्रासंगिकता हर दौर में बनी रहेगी

8 जून ,1926 को इंडिया स्टेट ब्रॉडकास्टिंग( आईएसबी) को बदलकर ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) किया गया था। इसका पहला प्रसारण मुंबई और कोलकाता में दो निजी ट्रांसमीटर के माध्यम से किया गया था, रेडियो में सबकुछ ध्वनि,स्वर और शब्दों के संयोजन से होता हैं। इन्हीं सब उपादेयता के कारण रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता हैं। अन्य माध्यमों की तुलना में रेडियो का प्रयोग समाज और नागरिक समाज में सुलभ होता हैं। रेडियो घटनाओं का सटीक विवरण देता हैं। यह समाचार का सबसे तेज माध्यम हैं। समसामयिक घटनाओं को आम जन तक पहुंचाने का सबसे सटीक माध्यम रेडियों है। समाचार प्राप्ति के अन्य माध्यमों की तुलना में रेडियो सर्वाधिक सरल माध्यम हैं।

वर्तमान में आकाशवाणी के पास 223 रेडियो स्टेशन और रेडियो की पहुंच 99.1% भारतीयों तक हैं। रेडियो का उपयोग मनोरंजन, प्रचार एवं शिक्षा के लिए किया जाता हैं। इसके उपादेयता से सामान्य जनता देश- विदेश की घटनाओं को सुन सकती हैं। समाचार के माध्यम से जनता उस मुद्दे पर अपनी एक सुसंगित राय बनाती है ,जिसको लोकतंत्र में “जनमत”कहा जाता हैं। ईश्वर की आवाज माना जाता है, क्योंकि इसके माध्यम से सरकार ,शासन एवं व्यवस्था पर जनता राय बनाती हैं।शैक्षिक कार्यक्रमों के जरिए रेडियो से छात्रों को साहित्य की विभिन्न विधाओं से परिचित कराया जाता हैं।रेडियो के सृजनात्मक व सकारात्मक उपादेयता से छात्रों में रुचि पैदा की जाती है। जनसंचार के लिए सबसे उपयोगी माध्यम रेडियों हैं। टेलीविजन ,अखबारों और मोबाइल फोन की तुलना में रेडियो अभी शीर्ष स्थान पर हैं; क्योंकि ग्रामीण परिवेश में यह सबको आसानी से उपलब्ध होता हैं। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार ,वैश्विक स्तर पर 44,000 रेडियो स्टेशन हैं, जो 5अरब लोगों तक समाचार प्रसारित करते हैं, जो दुनिया की 70% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

रेडियो एक ऐसा श्रव्य माध्यम है जिसे श्रोता अपना काम करते हुए भी सुन सकते हैं ।इसके कारण उसको दोहरी उपादेयता प्राप्त होती हैं। रेडियो पर युवा,किसान कामकाजी महिलाएं और बच्चे आदि के लिए दिन से लेकर रात तक विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं, यही कारण है कि वर्तमान में रेडियो की प्रासंगिकता बनी हुई हैं। रेडियो की प्रासंगिकता/ उपादेयता यह है कि लोग रेडियो की सूचना/ खबर को विश्वसनीय मानते हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)