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दिया है बस पुरातन को नवीन आकार रघुनन्दन ।।

तुम्हारा शुक्रिया रघुवर, बहुत आभार रघुनन्दन ।
हक़ीक़त जानता है अब, सकल संसार रघुनन्दन ।।

मुकदमा बस बहाना था, असल दरपन दिखाना था ।
समझ में आ गया सबको कथा का सार रघुनन्दन ।।

अवध की शान तुमसे थी अवध की शान तुमसे है ।
तभी तो हो रही सर्वत्र जयजयकार रघुनन्दन ।।

सुनो प्राणों से भी प्यारे, अरज करते हैं हम सारे ।
हमारी छोटी सी सेवा करो स्वीकार रघुनन्दन ।।

किया कुछ भी नहीं ऐसा गुमाँ जिसपर किया जाये ।
दिया है बस पुरातन को नवीन आकार रघुनन्दन ।।