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रेल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष ने रेल संचालन को लेकर दिए उपयोगी सुझाव

संसद में 26 फरवरी को रेल बजट पेश किया जाएगा। आर्थिक तंगी से गुजरते रेलवे की हालत के मद्देनजर जानकार मान रहे हैं कि इस बार नई ट्रेनों का एलान काफी कम होगा और इनकी संख्या महज 100 तक ही सीमित होगी। इसके अलावा, नए रेलवे प्रोजेक्ट्स के एलान कम हो सकते हैं। बता दें कि हर साल 150 से 180 नई ट्रेनों का एलान होता है। बीते साल ही 160 ट्रेनों की घोषणा की गई थी। इसके अलावा, फंड जुटाने के लिए कंपनियों के नाम पर स्पेशल ट्रेनें मसलन-कोका कोला एक्सप्रेस या हल्दीराम एक्सप्रेस चलाई जा सकती है। रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन विवेक सहाय का भी मानना है कि वर्तमान उपलब्ध संसाधनों के मद्देनजर रेलवे की बेहतरी के लिए इसे री-स्ट्रक्चर करने की जरूरत है। आगे सहाय के लेख में पढ़ें कि वर्तमान में रेलवे के सामने क्या हैं चुनौतियां और कैसे निपट सकती है सरकार।
 
 पूर्वोत्तर में हुआ विस्तार
पूर्वोत्तर में रेलवे का विस्तार हो रहा है। यह भारतीय रेलवे के लिए अच्छा संकेत है। रेलवे के विस्तार के मामले में पिछले डेढ़ दशक में काफी गति आई है। अब मैदानी इलाकों से रेल दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों की ओर रुख कर रही है। लेकिन अब भी यदि भारत के मानचित्र को देखकर विचार किया जाए तो देखने को मिलेगा कि रेलवे यातायात का प्रवाह संतुलित नहीं है। यह गौर करने वाली बात है कि चार प्रमुख महानगरों को जोड़ने वाली लाइनें कुल ट्रैफिक का 16 प्रतिशत से भी कम वहन करती हैं। इन्हीं लाइनों पर रेलवे अधिकांश यात्रियों और माल का परिवहन करती है। हम इन लाइनों का सौ फीसदी उपयोग कर रहे हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए अधिक क्षमता के निर्माण की जरूरत है। उत्तर-पूर्व में भी रेल पहुंच बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। इसके साथ ही, विकास के बीच खाई को पाटने के लिए पार्सल गाड़ियां निजी तौर पर चलाने के लिए अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही हाई स्पीड रेल परियोजनाओं, फ्रेट कॉरिडोर, विद्युतीकरण और सिग्नलिंग प्रणाली में एफडीआई निवेश जैसे निर्णय काफी सहायक हो सकते हैं।
 
निजी क्षेत्र से निवेश लाने की जरूरत
नई पटरियों को बिछाने के अलावा नए प्रोजेक्ट्स में निजी क्षेत्र को जिम्मेदारी सौंपे जाने की जरूरत है। यह निजी भागीदारी करने वालों के हितों को ध्यान में रखे जाने के साथ हो, क्योंकि यदि निवेश करने वाले को यदि नुकसान होगा तो भला वह क्यों आगे आएगा। अगले तीन सालों में निजी क्षेत्र पचास हजार करोड़ से भी ज्यादा लागत के साथ रेलवे स्टेशनों के विकास में सहायता कर सकता है। इसके अलावा, निजी क्षेत्र को इंटरसिटी गाडियां संचालित करने की मंजूरी देने में भी कोई हर्ज नहीं है। इससे रेलवे अपने राजस्व की सुरक्षा करते हुए पहले से तय कुछ रास्तों और समय पर निजी क्षेत्र को उसकी पूंजी से ट्रेन चलाने की मंजूरी देकर क्षमता बढ़ा सकता है। मौजूदा समय डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर आंशिक रूप से जेआईसीए और विश्व बैंक से वित्त पोषित है। इसी तरह के गलियारों को निजी सहभागिता के मॉडल पर खड़ा किया जा सकता है।
 
साभार- दैनिक भास्कर से

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