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ऐसे थे महर्षि रमण

रमण महर्षि बहुत कुशल धनुर्धर भी थे। एक सुबह उन्होंने अपने एक शिष्य को अपनी धनुर्विद्या देखने के लिए बुलाया। शिष्य यह सब पहले ही कई बार देख चुका था, पर वह गुरु की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता था। वे समीप ही जंगल में एक विशाल वृक्ष के पास गए। रमण महर्षि के पास एक फूल था, जिसे उन्होंने पेड़ की एक शाखा पर रख दिया। फिर उन्होंने अपने बस्ते से अपना नायाब धनुष, बाण और एक कढ़ाई किया हुआ सुंदर रूमाल निकाला। वह फूल से सौ कदम दूर आकर खड़े हो गए और उन्होंने शिष्य से कहा कि वह रूमाल से उनकी आँखें ढंककर भली-भांति बंद कर दे। शिष्य ने ऐसा ही किया। रमण महर्षि ने शिष्य से पूछा- “तुमने मुझे धनुर्विद्या की महान कला का अभ्यास करते कितने बार देखा है?” “मैं तो यह सब रोज़ ही देखता हूँ।” शिष्य ने कहा। फिर शिष्य ने रमण महर्षि से कहा- “आप तो तीन सौ कदम दूर से ही फूल पर निशाना लगा सकते हैं।” रूमाल से अपनी आँखें ढंके हुए महर्षि रमण ने अपने पैरों को धरती पर जमाया। उन्होंने पूरी शक्ति से धनुष की प्रत्यंचा को खींचा और तीर छोड़ दिया। हवा को चीरता हुआ तीर फूल से बहुत दूर, यहाँ तक कि पेड़ से भी नहीं टकराया और लक्ष्य से बहुत दूर जा गिरा। “तीर लक्ष्य पर लग गया न?” अपनी आँखें खोलते हुए महर्षि रमण ने पूछा। शिष्य ने उत्तर दिया- “नहीं, वह तो लक्ष्य के पास भी नहीं लगा। मुझे लगा कि आप इसके द्वारा संकल्प की शक्ति या अपनी पराशक्तियों का प्रदर्शन करने वाले थे।” महर्षि ने कहा- “मैंने तुम्हें संकल्प शक्ति का सबसे महत्वपूर्ण पाठ ही तो पढाया है। तुम जिस भी वस्तु की इच्छा करो, अपना पूरा ध्यान उसी पर लगाओ। कोई भी उस लक्ष्य को नहीं वेध सकता, जो दिखाई ही न देता हो।”

महर्षि रमण के आश्रम में जानवर और पक्षी भी निर्भय होकर रहते थे। रमण महर्षि इन पक्षियों और जानवरों को मनुष्यों की तरह संबोधित करते थे। महर्षि और ये पशु-पक्षी एक दूसरे से बहुत घुल मिल गए थे। यूरोप के एक लेखक पाल ब्रंटन ने महर्षि की ख्याति के बारे में सुना तो वे उत्सुकतावश महर्षि से मिलने के लिए आश्रम पहुँचे। वहाँ उनके साथ जो घटना घटी, उसने उनकी आंखें खोल दी। वे रात को एक मचान पर सोने की तैयारी कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि मचान पर एक जहरीला साँप चढ़ रहा है। उन्हें लगा कि आज उनकी मृत्यु निश्चित है। तभी रमण महर्षि का एक सेवक वहाँ आया औऱ साँप से आदमी की तरह बोला- “ठहरो बेटा”। साँप एक आज्ञाकारी बालक की तरह जहाँ का तहाँ रुक गया और फिर पहाड़ों की तरफ़ गया और गायब हो गया। यह अद्भुत घटना थी। पाल ब्रंटन के लिए यह चकित करने वाली घटना थी। उन्होंने आश्रम के सेवक से पूछा- “आखिर तुमने यह चमत्कार कैसे किया?” सेवक ने कहा- “यह मैंने नहीं, रमण महर्षि ने चमत्कार किया। उनका कहना है कि जीव- जंतु किसी से भी अगर हम गहरे प्यार से बोलेंगे तो वह जरूर सुनेगा।”