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रामायण हमें वैज्ञानिक जाँच के लिए प्रोत्साहित करता है: मनोज श्रीवास्तव

‘राम चरित मानस में विज्ञान और संचार’ पर एमसीयू में एक दिवसीय संगोष्ठी

भोपाल। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ विजय भटकर ने शनिवार को कहा कि वैदिक संस्कृति शाश्वत है और अभी भी जीवित और प्रासंगिक है जबकि अन्य संस्कृतियां और सभ्यताएं लुप्त हो गई हैं। अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर परिसर में रामायण संस्कृति और इसकी गाथा को दर्शाया जाएगा। डॉ भटकर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, विज्ञान भारती और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की भोपाल इकाई के विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित “रामचरितमानस में विज्ञान और संचार””विषय पर एक दिवसीय वेब राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अपर मुख्य सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि संदेह पहला बिंदु है जहां विज्ञान शुरू होता है और इस तरह से रामायण में कई स्थानों पर संदेह को देखा जा सकता है, संदेह ही वैज्ञानिक प्रमाणिकता के लिए प्रोत्साहित करता है। विभिन्न वैज्ञानिकों को क्वांटम भौतिकी से लेकर अन्य क्षेत्रों में उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक सिद्धांतों को भी यदि काव्य के माध्यम से संप्रेषित किया जाए तो यह अधिक प्रभावी होता है जैसा कि रामायण में है। रामचरितमानस में दिए गए वैज्ञानिक स्वभाव पर शोध किया जाना चाहिए जिससे नई नए तथ्य सामने आ सकते हैं। संगोष्ठी में कुलपति प्रो. एस.पी. गौतम ने कहा कि रामायण में उद्धृत ‘माया’ ‘इल्यूजन’ न होकर ऊर्जा का स्रोत है और इसे तुलसीदास ने समझाया है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमसीयू के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि भारतीय दर्श और साहित्य और विज्ञान के संदर्भ में व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए, क्योंकि इस विषय के कई पहलुओं की खोज और व्याख्या नहीं की गई है। रामायण हमें स्टोरी टेलिंग के साथ ही संप्रेषक की विश्वसनीयता का महत्व भी बताती है। विज्ञान भारती के अध्यक्ष श्री अमोघ गुप्ता ने कहा कि रामायण में दिए गए सामाजिक पहलुओं पर तो शोध किया गया है, लेकिन इस महाकाव्य में विद्यमान वैज्ञानिक सूत्रों पर भी शोध होना चाहिए। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. राकेश कुमार पांडेय ने कार्यक्रम का संचालन किया, कुलसचिव डॉ. अविनाश वाजपेयी ने आभार व्यक्त किया।