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वाकई बेमिसाल थे, कलाम साहब…

अद्भुत, अनुकरणीय, ईमानदार, सहज और सादगी पसंद पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम संपूर्ण देशवासियों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके किस्से, कहानियां और सीख हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

डॉ. कलाम का मीडियाकर्मियों से भी ख़ास लगाव था, हालांकि वे आम नेताओं की तरह बेवजह का मुद्दा बनाकर सुर्खियां बंटोरने में विश्वास नहीं रखते थे और सच कहें तो उन्हें इसकी कोई ज़रूरत भी नहीं थी। उनका कद इतना बड़ा था कि वे जहां भी जाते, जो भी कहते वो अपने आप सुर्खियां बन जाता। कलाम साहब को पत्रकारों से गंभीर और ज्ञानपरख मुद्दों पर बात करना अच्छा लगता था। इसलिए प्रेस कांफ्रेंस या किसी कार्यक्रम के बीच में जो भी वक़्त मिलता, वह उसका उपयोग ज्ञान अर्जन या पत्रकारों को कुछ नया बताने में करते।

आज ही के दिन यानी 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में जन्मे डॉ. अब्दुल कलाम शायद पत्रकारों को भी बच्चा ही समझते थे और जैसे शिक्षक क्लास में उपस्थित विद्यार्थियों को हल्की सी डांट भरी समझाइश देकर चुप कराता है, ठीक वैसे ही वह हंगामा कर रहे पत्रकारों को खामोश होने के लिए कहते। प्रेस कांफ्रेंस शुरू होने से पहले वे कहते ‘बैठ जाओ, सब लोग चुपचाप बैठ जाओ’, और पूरे हॉल में सन्नाटा पसर जाता। यह उनके पद नहीं बल्कि उनकी प्रतिष्ठा का प्रभाव था कि मीडियाकर्मी भी चुपचाप उनकी बात मान लिया करते थे।

एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एक बार अपने कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ में कलाम साहब को याद करते हुए बताया था कि किस तरह प्रेस कॉंफ्रेंस में वह सब पत्रकारों को इस तरह बैठ जाने की हिदायत देते थे जैसे स्कूल में बच्चों को बोला जाता है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के बाद डॉ. कलाम की पहली प्रेस कांफ्रेस का किस्सा ज़्यादातर पत्रकारों को आज भी याद है। प्रेस कांफ्रेस शुरू होते ही जब उनसे एक सवाल पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिए बगैर कहा ‘अगला सवाल’। उपस्थित पत्रकारों को बिल्कुल भी समझ नहीं आया कि आखिर माज़रा क्या है। हालांकि, कुछ ही देर में स्थिति स्पष्ट हो गई। दरअसल, कलाम साहब सारे सवालों को नोट कर रहे थे। पत्रकारों के जोर देने पर इस बारे में उन्होंने कहा, ‘मैंने टीवी पर देखा है, तुम प्रेस वाले एक जैसे सवाल बार बार पूछते हो, इसलिए मैं सारे सवाल नोट कर रहा हूं ताकि सबके जवाब दे सकूं और मुझे कुछ भी दोहराना ना पड़े।’

बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने प्रेस कांफ्रेंस खत्म होने के बाद एक कविता पढ़ी और पत्रकारों से कहा कि वे एक-एक लाइन उनके पीछे-पीछे दोहराएं’। मीडियाकर्मियों के लिए ये एकदम नया अनुभव था, उन्होंने शायद सोचा भी नहीं होगा कि कोई इस तरह उन्हें बचपन की याद दिला देगा, जब शिक्षक के साथ-साथ जवाब दोहराए जाते थे। कलाम साहब का पसंदीदा विषय ‘शिक्षा’ था, और वह इस पर दिन-रात बातें कर सकते थे। उन्हें जब भी अवसर मिलता वह किसी न किसी पत्रकार से शिक्षा पर सवाल-जवाब में मशगूल हो जाते। बीबीसी से जुड़े डेनियल लैक भी उन पत्रकारों में शुमार हैं। उन्होंने लिखा था कि पूर्व राष्ट्रपति कई बार खुद ही उनके दफ्तर फोन करके शिक्षा पर बात करने लग जाते थे। अपने फोन कलाम खुद ही लगाते थे।

वैसे, भारतीय मीडिया को लेकर उनकी कुछ चिंताएं भी थीं। सबसे पहली तो यही कि आखिर मीडिया इतना नेगेटिव क्यों है? 2005 में अमेरिकी मैगज़ीन ‘न्यूयॉर्कर’ में डॉ. कलाम का एक लेख छपा था, जिसमें उनका प्रश्न था कि भारत को अपनी कामयाबी के बारे में बात करने में इतनी शर्म क्यों आती है? अपने लेख में कलाम साहब ने समाजसेवी हनुमप्पा सुदर्शन के आदिवासियों के लिए किए गए कार्यों का हवाला देते हुए लिखा था ‘हमारे देश में सफलता की इतनी बेमिसाल कहानियां हैं लेकिन मीडिया ऐसी कामयाबी की कभी बात नहीं करता’।

पूर्व राष्ट्रपति ने भारतीय मीडिया को इज़राइली मीडिया से सीख लेने की नसीहत भी दी थी। उन्होंने लिखा था ‘इज़राइल में इतने हमले, इतनी त्रासदियां होती हैं लेकिन वहां के मीडिया का सकारात्मक बातों पर भी ध्यान केंद्रित है। वहां एक सुबह मेरे हाथ जो अखबार लगा उसके पहले पन्ने पर एक यहूदी की तस्वीर थी, जिसने अपने रेगिस्तान को खूबसूरत बागान में तब्दील कर दिया था। जबकि मौत, भुखमरी और खून-खराबे जैसी खबरों को पिछले पन्नों में दफनाया हुआ था’।

आज के दौर में जब अधिकांश जनसेवक राजा जैसा व्यवहार करते नहीं थकते, डॉक्टर कलाम ने सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी की अनगिनत मिसाल पेश की हैं। आज उनके जन्मदिन के मौके पर समाचार4मीडिया उन्हें शत् शत् नमन करता है।

साभार- http://www.samachar4media.com/ से