1

रेिबेरो साहब चर्च नहीं, गरीब और आदिवासी है चर्च के निशाने पर

मुम्बई के पुलिस आयुक्त रहे जूलियो रिबेरो ने हाल ही में एक लेख में लिखा कि एक भारतीय ईसाई के रूप में उन्हें लगता है वे हिटलिस्ट में हैं। मैं श्री रिबेरो की भावनाओं का आदर करता हूं, हालांकि जैसा कि विश्लेषणों से पता चलता है, उनकी ये भावनाएं तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। इस बात के पक्ष में कोई प्रमाण नहीं है कि भारत में ईसाई होने के कारण कोई हिटलिस्ट में हो।

लेकिन, एक हिटलिस्ट जरूर है, पर उसमें रिबेरो का नाम नहीं है, दुर्भाग्यवश मेरा नाम उसमें है। उसी तरह जिस तरह भारत और दुनिया के सभी गैर ईसाइयों के नाम इसमें हैं। यह हिटलिस्ट बहुत सुनियोजित तरीके से बनाई गई है और उसमें बड़े पैमाने पर पैसा और राज्य के संसाधन लगे हुए हैं। इस वर्णन पर गौर कीजिए। आप जानते हैं महाराष्ट्र के सुनार लोगों को, भारत में सोने-चांदी की हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने वाले? ये मूर्तियां भारत और विश्व के हिन्दू श्रद्धालुओं पर 'शैतान के प्रभाव' का सबसे बड़ा केंद्र हैं। ये 'सुनार ईसा मसीह के गोस्पेल को अपनाएंगे तो उसका विश्वभर के हिन्दुओं पर असर पड़ेगा'। जैसा कि एक ईसाई कार्यकर्ता ने कहा कि जब हम सुनारों के पास गोस्पेल लेकर पहुंचेंगे तो हम पाएंगे कि हिन्दू धर्म ढह रहा है। प्रार्थना कीजिए गोस्पेल सुनार संस्कृति में बहे, वैसे ही जैसे पिघली हुई चांदी सांचों में बहती है।

तो उद्देश्य स्पष्ट है और वह है हिन्दू धर्म का ढहना। और हिन्दू निशाने पर हैं। यह उद्धरण किसी अतिवादी समूह से नहीं लिया गया है वरन् इंटरनेशनल मिशन बोर्ड के अधिकृत पन्नों से लिया गया है, जो सदर्न बैप्टिस्ट कंवेंशन की इवेंजेलिज्म शाखा है।

आप पूछेंगे, सदर्न बैप्टिस्ट कंवेंशन क्या है? सदर्न बैप्टिस्ट कंवेंशन 1845 में अमरीका में मिशन बोर्ड बनाने के लिए बना था । वह दावा करता है कि उसके 1 करोड़ 60 लाख सदस्य हैं और वह 48 बैप्टिस्ट कालेज और विश्वविद्यालय चलाता है। अमरीका के कई राष्ट्रपति उसके सदस्य रहे हैं। सदस्यों से उसे प्रतिवर्ष 9 अरब का आर्थिक अनुदान मिलता है। जार्ज बुश पिछले चार वषार्ें से उसकी वार्षिक बैठकों को संबोधित करते आ रहे हैं। लेकिन यह केवल रिपब्लिकनों का संगठन नहीं है। जिम्मी कार्टर और बिल क्लिंटन जैसे डैमोक्रेट भी बैप्टिस्ट हैं।

आप इससे भी संतुष्ट नहीं हुए हों तो मैं आपका परिचय जोशुआ प्रोजेक्ट से करा देता हूं। वहां पूरी की पूरी हिटलिस्ट है। इसका एक ध्येय मानचित्र है, जिसमें लाल रंग उन लोगों या स्थानों के लिए है जिन तक अभी पहुंचा नहीं गया है। वे सबसे बड़ी हिटलिस्ट में शामिल हैं। इसमें भारत का रंग सबसे गहरा लाल है।

इस प्रोजेक्ट पर काफी समय से काम हो रहा है। इसमें बड़े पैमाने पर संसाधन झोंके गए हैं। विश्व ईसाई मिशनरी की पूरी राजस्व मशीनरी है; इसके अलावा बड़ी तादाद में सरकारी और गैर सरकारी लोगों का पैसा शामिल है। वैश्विक कन्वर्जन की हिटलिस्ट के लिए प्रतिवर्ष 50 अरब डालर खर्च हो रहे हैं। यह सुपारी देने की तरह है। चर्च ने हजारों समूहों को अपना निशाना बनाया हुआ है। उनके लिए चर्च की टीम, मिशनरी, संसाधन, धन, मीडिया सहायता, उनकी भाषा में बाइबिल, 877 भाषाओं में उपलब्ध जीसस फिल्म का अनुदित संस्करण है। इतना लंबा-चौड़ा इंतजाम है कि कोई कॉर्पोरेट  बहुराष्ट्रीय निगम भी इतने बड़े पैमाने पर अपना मार्केटिंग अभियान नहीं चला सकता।

 

@sankrant लेखक हैं और उनका ब्लॉग है sankrant.org

साभार- http://www.rediff.com/ से 

चर्च पर हमलों के संदर्भ में आम भारतीयों के विचार फेसबुक पर
चर्च पर जितने भी हमले हुए हैं उन सभी में षड्यंत्र की बू आती है। हमलों के पीछे मकसद मौजूदा केन्द्र सरकार की छवि को विश्व स्तर पर धूमिल करना है। -कमलेश कुमार 

जब से केन्द्र में मोदी सरकार बनी है तब से मिशनरियों को एक आघात सा लगा है। उनको लग गया है कि जिस प्रकार से वे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में अपनी गतिविधियां संचालित करते थे अब नहीं कर पाएंगे। इसलिए वे जानबूझकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दिलवा रहे हैं जिनसे नरेन्द्र मोदी की छवि ईसाई विरोधी बन जाये। -अम्बा शंकर वाजपेयी

दिल्ली के चर्च में चोरी की घटना को हमला कहना, ऐसा रायता बिखेरना जैसे देश के ईसाई समाप्त होने की कगार पर हों। ऐसे षड्यंत्र करना मिशनरियों से सीखें। -प्रशान्त पाठक 

मीठा जहर बांटकर मिशनरियां देश को तोड़ रही हैं। देश में कुछ चर्चों  में हुईं छिटपुट चोरी जैसी घटनाओं पर रोने के नाटक किए जा रहे हैं। पर फंसना नहीं इनके चक्कर में। एक बार फंसे तो समझो गए…। -पंकज वर्मा 

जिन चर्च हमलों पर मिशनरियां रो रहे हैं वह तो नाटक है। ये इसलिए रो रहे हैं क्योंकि अब कन्वर्जन पर सरकार ने नजरें जो तिरछी कर ली हैं। पहले तो ये सरकार की गोद में ही खेला करते थे और अंधाधुंध कन्वर्जन करते थे, लेकिन अब इनको गोद से उतार फेंक दिया तो रोना स्वाभाविक ही है। -आनन्द