संविधान तो बदलेगा और उस में लिखा जाएगा कि सरकार जेल से नहीं चलाई जा सकेगी

बहुत हल्ला है इंडिया गठबंधन द्वारा संविधान बदल देने का। कि मोदी सरकार आएगी तो संविधान बदल देगी। आरक्षण हटा देगी। आदि-इत्यादि। तो सच तो यह है कि मोदी क्या किसी सरकार में यह हिम्मत नहीं है कि आरक्षण को हटाए। अगर ऐसा हो गया तो आरक्षण की बैसाखी थामे लोग देश में आग लगा देंगे। और यह आग संभाले नहीं संभलेगी। फिर यह आरक्षण वैसे भी कोढ़ में खाज बराबर ही है। सरकारी नौकरी है ही कितनी ? पढ़ने के लिए आरक्षण की मार से बचने के लिए बच्चे विदेश चले जा रहे हैं। एजूकेशन लोन मिल ही जा रहा है। पढ़-लिख कर बच्चे वहीं नौकरी पा कर सेटल्ड हो जा रहे हैं। बड़े-बड़े पैकेज पर। देश की प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं तो आरक्षण की बला से।

वैसे भी ज़्यादातर नौकरियां और पैसा अब प्राइवेट सेक्टर में ही है। मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में एक बार प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण का पासा फेंका था। सारा कारपोरेट सेक्टर एक साथ आंख दिखा कर खड़ा हो गया था। मनमोहन सिंह ख़ामोश हो गए थे। समझ गए थे कि अभी प्रतिभा देश छोड़ रही है। प्रतिभा पलायन हो रहा है। ब्रेन ड्रेन। कहीं यह बड़े-बड़े उद्योगपति भी पलायन कर गए तो देश कंगाल हो जाएगा। मनमोहन सिंह भी ओ बी सी थे। मोदी भी ओ बी सी हैं। देवगौड़ा भी ओ बी सी। तीन-तीन प्रधान मंत्री ओ बी सी होने के बाद भी आरक्षण की आग को ख़त्म नहीं कर पाए। वह आग जो कभी राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह लगा गए। तो अब आगे भी किस की हिम्मत है भला जो इसे ख़त्म करने की सोचे भी।

पर हां , मोदी सरकार जो भारी बहुमत से आ रही है , संविधान तो बदलेगी। और कस के बदलेगी। समान नागरिक संहिता , जनसंख्या नियंत्रण , एन आर सी जैसी कई बातें हैं। इन सब में थोड़ा समय भी लगेगा। लेकिन अभी-अभी बिलकुल अभी तो पहला संविधान संशोधन यह होगा कि जेल जाने वाले मुख्य मंत्रियों या मंत्रियों को जेल से काम करने की इजाजत नहीं होगी। वर्क फ्रॉम जेल पर विराम लगेगा। जेल जाने पर इस्तीफ़ा देना बाध्यकारी होगा। इस लिए भी कि इस वर्ष और आगे के वर्षों में ऐसे बहुत से लोगों को जेल जाना ही जाना है। ग़ौरतलब है कि पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया , रंजन गोगोई सिर्फ़ शोभा या शुकराना के एवज में राज्य सभा में नहीं उपस्थित किए गए हैं। इन सब मुद्दों पर वह चुपचाप काम कर रहे हैं। बड़ी ख़ामोशी और गंभीरता से। परिणाम बहुत ही शुभ और हैरतंगेज आने वाले हैं।

एक समय था कि एक रेल दुर्घटना के कारण तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफ़ा दे दिया था। 1956 में महबूब नगर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी। इस पर शास्त्री ने इस्तीफा दे दिया। इसे तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया। तीन महीने बाद ही अरियालूर रेल दुर्घटना में 114 लोग मारे गए। लालबहादुर शास्त्री ने फिर इस्तीफा दे दिया। नेहरू ने शास्त्री जी का इस्तीफा स्वीकारते हुए संसद में कहा कि वह इस्तीफा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि यह एक नजीर बने। इसलिए नहीं कि हादसे के लिए किसी भी रूप में शास्त्री जिम्मेदार हैं। अलग बात है कि तब तीस से अधिक सांसदों ने नेहरू से अपील की थी कि शास्त्री का इस्तीफ़ा न स्वीकार किया जाए। बाद में यही लालबहादुर शास्त्री नेहरू के निधन के बाद देश के प्रधान मंत्री बने।

तब नैतिकता और शुचिता की राजनीति थी। बाद के समय में नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मामले में 12 जून, 1975 को अपने फैसले में इंदिरा गांधी के चुनाव को अयोग्य करार दिया था। 12 जून, 1975 को इंदिरा गांधी की अयोग्यता का फ़ैसला आया था। जस्टिस सिन्हा ने अगले 6 सालों तक इंदिरा गांधी को संसद और राज्य विधानमंडल के चुनावों को लड़ने पर रोक लगा दी थी तो क़ायदे से इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था। लेकिन तब सारी नैतिकता और शुचिता बंगाल की खाड़ी में डुबो कर इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया। देश भर में सभी विरोधियों को जेल में ठूंस दिया। यह लंबी कहानी है। फिर भी राजनीति में नैतिकता और शुचिता के अवशेष शेष रहे हैं। पर अरविंद केजरीवाल की राजनीति ने इन अवशेषों को भी नेस्तनाबूद कर दिया है। निरंतर करते जा रहे हैं। ख़ैर !

तो यह हेकड़ी अब और नहीं चलेगी कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। कि संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि जेल से सरकार नहीं चलाई जा सकती। तो पहली व्यवस्था तो यही होगी और कि डंके की चोट पर होगी। संविधान में स्पष्ट रूप से लिखा जाएगा कि जेल से सरकार नहीं चलाई जा सकती। न सरकार , न प्रशासन। एक और क़ानून भी साथ ही साथ बनेगा जिस की मोदी चर्चा भी कर रहे हैं कि जिन लोगों के पास से भ्रष्टाचार का धन या ज़मीन , संपत्ति भ्रष्टाचार के तहत मिलेगी , उसे संबंधित व्यक्ति को वापस भी की जाएगी। जिस से कि धन या ज़मीन ली गई है। जैसे पश्चिम बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला। बिहार का ज़मीन के बदले रेल की नौकरी। और केरल का कोऑपरेटिव बैंक घोटाला। इन मामलों का उल्लेख भी किया है , मोदी ने।

आप को क्या लगता है यह सोनिया गांधी , राहुल , रावर्ट वाड्रा आदि ज़मानत का अमर फल खा कर आजीवन बचे रहेंगे ? अब आने वाले दिनों में या तो अदालतों से क्लीन चिट पा जाएंगे या दोषी साबित हो कर जेल जाएंगे। ज़मानत की अंत्याक्षरी ज़्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली। और भी ऐसे कई भ्रष्टाचारी , ज़मानतधारी नेताओं के साथ भी यही सुलूक़ होगा। वह चाहे किसी पार्टी के हों। भाजपा के ही क्यों न हों। अदालतें फास्ट काम करें , ऐसे मामलों पर , ऐसा भी कुछ क़ानून बन सकता है।

भ्रष्टाचार पर केंद्र सरकार की ज़ीरो टालरेंस की नीति है ही , बस भ्रष्टाचार वाली संपत्ति की वसूली के दिन आए समझिए। जगह-जगह छापे जैसे हो रहे हैं , आगे और बढ़ेंगे। 2013 – 2014 में अच्छे दिन आने वाले हैं वाला नारा याद कीजिए। और यह सब बिना अदालतों को सुधारे संभव नहीं है। पैसा ले कर , प्रभाव में आ कर अदालतें कैसे खुदा बन कर क्या से क्या कर जाती हैं , सब के सामने है। तो अदालतों के , ख़ास कर सुप्रीम कोर्ट के कुछ मामलों में हाथ काटने की भी क़वायद संभव है। जैसे कि अभी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप समाप्त किया गया है। आहिस्ता-आहिस्ता कॉलेजियम सिस्टम का कलेजा भी चीरा जा सकता है। न्याय लक्ष्मी की दासी बन कर न रहे , इस का इंतज़ाम अब बहुत ज़रूरी हो चला है। लक्ष्मी से संचालित होने वाली न्याय व्यवस्था पर लगाम बहुत ज़रूरी हो चला है।

कुछ और क़ानूनों में एकरूपता लाए जाने की क़वायद हो सकती है। उदाहरण के लिए सुप्रीम कोर्ट आए दिन जिस तरह न्यायिक अराजकता की मिसाल पेश करने के लिए अभ्यस्त हो गई है। हो सकता है , उस पर भी लगाम लगाने के लिए कोई क़ानून बने। न्यायिक सक्रियता और उस में समाई अराजकता की अनेक मिसालें हैं। मसलन आतंकियों के लिए आधी रात अदालत खोलने की क़वायद लोग भूल गए हैं क्या ? सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिज्ञ लोगों की , बड़े-बड़े उद्योगपतियों , व्यापारियों और अपराधियों की जिस तरह खड़े-खड़े ज़मानत हो जाती है , राहत मिल जाती है , सामान्य लोगों , साधारण और ग़रीब आदमी को ऐसी ज़मानत और राहत क्यों नहीं मिलती।

ताज़ा मिसाल है , अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम ज़मानत। इस बाबत भी कोई क़ानून बनाने की तरफ संसद बढ़ सकती है। आप देखिए कि पी एम एल एक्ट में ही अरविंद केजरीवाल भी ग़िरफ़्तार हुए हैं , हेमंत सोरेन भी। केजरीवाल को अगर अंतरिम ज़मानत दी सुप्रीम कोर्ट ने तो आख़िर किस बिना पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ज़मानत देने से इंकार कर दिया ? वह एक शेर याद आता है :
जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा ना दे के अदालत बिगाड़ देती है।

तो भ्रष्टाचार को ले कर नरेंद्र मोदी की सरकार बहुत सख़्त होने वाली है। बहुत सख़्त क़ानून बनाने वाली है। ताकि भ्रष्टाचार की नाव में क़दम रखते समय आदमी सौ बार कांप-कांप जाए। भ्रष्टाचार देश का सब से बड़ा दीमक है। इस दीमक को समूल नष्ट किए बिना देश और समाज किसी सूरत तरक़्क़ी नहीं कर सकता। नज़ीर के तौर पर आप उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को देख लीजिए। योगी राज में न सिर्फ़ माफिया मिट्टी में मिल चुके हैं , उन की अरबों रुपए की संपत्तियां भी गरीबों के हाथ में जा रही हैं। उन की कब्जाई ज़मीनों को सरकार ज़ब्त कर रही है और गरीबों के लिए आवास बना कर उन्हें गरीबों को दे रही है। पूरी निष्पक्षता के साथ।

याद कीजिए एक समय कुंडा के गुंडा राजा भैया की कई संपत्तियां मायावती सरकार ने ज़ब्त की थीं। मुलायम सरकार आई तो सब राजा भैया को वापस मिल गईं। भाजपा भी आंख मूंदे रही। बल्कि मदद करती रही भाजपा भी। तो क्या फ़ायदा हुआ ? ऐसे अनेक मामले हैं।

आप गौर कीजिए कि उत्तर प्रदेश में एक समय हर साल कुछ नए माफ़िया पैदा हो जाते थे। आतंकियों से कहीं ज़्यादा आतंक इन माफियाओं का हुआ करता था। किसी ठेके के लिए टेंडर होता था , टेंडर खुलते ही या खुलने के पहले भी गोली , बंदूक़ , हत्या का मंज़र आम था। जाने कितने माफिया , जाने कितने सिंडिकेट , जाने कितनी हत्या। कोई हिसाब ही नहीं था। माफ़िया खुल्ल्मखुल्ला ए के सैतालिस लिए घूमते थे। और तो और मुख़्तार अंसारी जैसे हत्यारे लखनऊ की जेल से थोड़ी देर के लिए निकल कर उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक से मिलने उन के आफिस पहुंच जाते थे। कभी कोई तबादला , कभी कोई और काम करवाने के लिए। जेल से ही फोन भी आम था। ठेका , हत्या जैसे शग़ल था उस का। पुलिस महानिदेशक मतलब प्रदेश का सब से बड़ा पुलिस अफ़सर। लखनऊ जेल में वह ताज़ी मछली खाने के लिए तालाब खुदवा लेता था। गाज़ीपुर जेल में जब वह था तब गाज़ीपुर के डी एम , एस पी उस के साथ बैडमिंटन खेलने जाते थे। समाजवादी बयार थी यह।

याद कीजिए जेल में रहते हुए ही मुख़्तार ने फ़ोन पर ही विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की न सिर्फ़ प्लानिंग की बल्कि उस का आंखों देखा हाल भी सुनाता रहा था। यह सब आन रिकार्ड है। पुलिस अफसरों , जेल अफसरों का तबादला , हत्या आदि उस के लिए सिगरेट की राख झाड़ने जैसा ही था। नौकरी भी खा जाता था। कई उदाहरण हैं। अतीक़ अहमद के भी एक से एक खूंखार किस्से हैं। अतीक़ और मुख़्तार जैसे अपराधी मुलायम सिंह जैसे धरती पुत्र को डिक्टेट करते थे। डी पी यादव जैसे लोग तो मंत्री भी बने। जैसे कभी बिहार में शहाबुद्दीन और महतो जैसे अपराधी लालू यादव को डिक्टेट करते थे , फोन पर , जेल से ही।

याद कीजिए अटल बिहारी वाजपेयी ने जब स्वर्णिम चतुर्भुज योजना शुरू की थी। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नै, कोलकाता, अहमदाबाद, बेंगलुरु, भुवनेश्वर, जयपुर, कानपुर, पुणे, सूरत, गुंटुर, विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम को इस के जरिए जोड़ना था। तब इस के काम में लगे इंडियन इंजीनियरिंग सेवा के इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की बिहार के गया में ठेकेदारी के चक्कर में हत्या कर दी गई थी। उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग निर्माण में भ्रष्टाचार को उजागर किया था। 27 नवंबर , 2003 को एक माफिया ने उनकी हत्या कर दी थी। वे कोडरमा में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में परियोजना निदेशक थे। अटल जी ने सत्येंद्र दुबे की हत्या को बड़ी गंभीरता से लिया। उस ठेकेदार को गिरफ़्तार कर जेल भिजवाया।

पर अब ?

आज की तारीख में किसी ठेकेदार या माफिया की हिम्मत नहीं है कि देश भर में बन रहे सड़कों के संजाल में , भ्रष्टाचार में कूदने की सोच भी सके। एक पैसे के भ्रष्टाचार का कोई आरोप भी नहीं। इस सड़क क्रांति के नायक नितिन गडकरी तो बारंबार चुनौती भी देते रहते हैं कि कोई मुझ पर एक चाय पिलाने की रिश्वत भी देने की नहीं सोच सकता।

उत्तर प्रदेश में भी नए माफ़िया पैदा होना तो छोड़िए पुराने माफ़िया भी जाने किस चूहे के बिल में समा गए हैं। एक से एक दंगाई तौक़ीर रज़ा की नफ़रती आवाज़ उलटे बांस बरेली हो गई है। 2024 का पूरा चुनाव बीतने को है , मौलाना तौक़ीर रज़ा की एक तक़रीर भी नहीं आई है। जो कि हर चुनाव में होती थी। नफ़रत में डूबी हुई। तो जैसे ऐसे-ऐसे लोगों की सिटी-पिट्टी गुम हुई है , भ्रष्टाचारियों की भी गुम होगी। आप सोचिए कि केंद्र सरकार द्वारा देश में विकास के चौतरफा काम हो रहे हैं। चांद से ले कर कश्मीर तक विकास की जगमग रौशनी सब के सामने है। गरीबों के लिए लोक कल्याणकारी योजनाएं सिर चढ़ कर बोल रही हैं। कोरोना काल में लोग कोरोना से भले मरे पर भूख से कोई एक नहीं मरा। वैक्सीन , आक्सीजन आदि की व्यवस्थाएं चटपट हुईं। दुनिया में कहीं भी कोई भारतीय फंसे , उसे सकुशल निकाल कर लाना , आसान नहीं होता। पर युद्ध क्षेत्र हो या कोई अन्य आपदा। सभी सकुशल वापस होते हैं। बिना किसी भेदभाव के।

सड़क , रेल , हवाई अड्डा , मेडिकल कालेज और जाने क्या-क्या ! केंद्र सरकार द्वारा अरबों-खरबों रुपए के ज़्यादातर काम टेंडर के मार्फत ठेके पर ही हो रहे हैं। कहीं भ्रष्टाचार , कहीं गोली-बंदूक़ , हत्या , अपहरण क्यों नहीं हो रहा ? दूसरी तरफ वहीँ दिल्ली में एक से एक शीश महल घोटाला , शराब घोटाला और न जाने कौन-कौन से घोटाले सामने आ रहे हैं। प्रदूषित यमुना ही नहीं है , बहुत सारा प्रदूषण दिल्ली प्रदेश सरकार के सिस्टम में समा गया है।

मुख्य मंत्री आवास में उन्हीं की पार्टी की एम पी स्वाति मालीवाल , उन्हीं के पी ए बिभव कुमार से पिट जाती है। पूरी पार्टी बिभव कुमार के पीछे खड़ी हो जाती है। पूरे कुतर्क के साथ। राहुल गांधी , अरविंद केजरीवाल , अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव टाइप के लोगों को अपने कमीनेपन और धूर्तई पर बहुत नाज़ है। इन लोगों को बड़ी ख़ुशफ़हमी है कि इन से बड़ा कमीना और धूर्त कोई और नहीं। यह लोग नहीं जानते कि नरेंद्र मोदी इन सब से बड़ा कमीना और धूर्त है। बतर्ज़ लोहा , लोहे को काटता है। दिल थाम कर बैठिए। मोदी का तीसरा कार्यकाल शुरू होते ही पंजाब की मान सरकार भी आप को भ्रष्टाचार और अराजकता के मामले में अरविंद केजरीवाल सरकार के कान काटने वाले अनेक प्रसंग ले कर बस उपस्थित ही होना चाहती है। पश्चिम बंगाल में भी भ्रष्टाचार के नित नए अंदाज़ खुलेंगे। बिहार के पुराने गुल भी गुलगुला बन कर छनेंगे।

ऐसे अनेक मामले हैं। अनेक नए काम हैं। नरेंद्र मोदी कहते ही रहते हैं कि यह दस साल तो ट्रेलर था। अब बहुत बड़े-बड़े काम होंगे। तय मानिए मोदी यह सच ही कहते हैं। विकास की यह गंगा मोदी ही बहा सकते हैं। भागीरथी अपनी जनता के लिए बड़ी तपस्या कर गंगा को लाए थे धरती पर। भागीरथी की तरह ही मोदी विकास की गंगा लाए हैं भारत में। मेरा तो स्पष्ट मानना है कि नरेंद्र मोदी को 2014 की जगह अगर और दस बरस पहले ही प्रधान मंत्री पद देश की जनता ने सौंप दिया होता तो देश की यह तस्वीर और चमकदार , और संपन्न , और विकसित दिखती। अभी भी बहुत कुछ नहीं बिगड़ा है।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अगर देश और दस बरस और रह गया तो जैसा कि लगता भी है , देश विकसित देशों में अवश्य शुमार हो जाएगा। 2047 के लक्ष्य से पहले ही। बाक़ी राफेल से लगायत इलेक्टोरल बांड और वैक्सीन आदि-इत्यादि का गाना गाने वालों पर तरस खाइए। कांग्रेस और वामपंथियों की गोद में बैठ कर गोदी मीडिया का भजन गाने वाले छुद्र जनों के गायन का भी मज़ा लीजिए। उन को भी जीने-खाने दीजिए। उन का यह लोकतांत्रिक अधिकार भी , उन से मत छीनिए। आनंद लीजिए। निर्मल आनंद !

क्यों कि जो आदमी कश्मीर का कोढ़ 370 हटा सकता है , कश्मीर को फिर से ज़न्नत बना सकता है। देश को आतंक मुक्त बना सकता है। अयोध्या में सकुशल राम मंदिर बनवा सकता है। विकास की चांदनी में देश को नहला सकता है , वह कुछ भी कर सकता है। बस महंगाई , भ्रष्टाचार और विकराल बेरोजगारी के उन्मूलन का इंतज़ार है। एक समय राजनीतिक पार्टियों का नारा होता था हर हाथ को काम , हर खेत को पानी। हर खेत को पानी तो सुलभ हो गया है। हर हाथ को काम शेष है। यह एक बड़ी चुनौती है। इस से निपटे बिना देश विकसित देश की पंक्ति में कभी खड़ा नहीं हो सकता।

साभार-https://sarokarnama.blogspot.com/ से