कायम रहेगा योगी राज

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबंध में दिए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान के पश्चात प्रदेश में सियासी पारा बढ़ गया है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने लखनऊ में पुनः दावा किया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमित शाह को पीएम बनाने के लिए पिछले डेढ़-दो वर्षों से लगे हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज सिंह चौहान, वसुन्धरा राजे सिंधिया, देवेंद्र फडणवीस, रमन सिंह और मनोहर लाल खट्टर को पहले ही हटा दिया है। अब अमित शाह के प्रधानमंत्री बनने की राह में केवल योगी आदित्यनाथ ही अंतिम कांटा बचे हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले वर्ष 17 सितंबर को जैसे ही 75 वर्ष के हो जाएंगे, वे प्रधानमंत्री पद छोड़कर अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देंगे। इसके पश्चात दो से तीन महीने में योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल के इस बयान की प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है या चर्चा में रहने के लिए यह राजनीतिक जुमला मात्र है।

वास्तव में अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि उनका यह बयान असत्य एवं भ्रामक है। वे इस प्रकार के बयान देकर एक ओर तालियां बटोरना चाहते हैं तो दूसरी ओर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना रहे हैं।

यद्यपि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को कड़े शब्दों में उत्तर दे दिया है। उन्होंने बांदा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- “केजरीवाल की बु्द्धि जेल जाने के बाद फिर गई है। अन्ना हजारे के सपनों पर पानी फेरने वाले केजरीवाल अब मेरा नाम लेकर बातें कर रहे हैं। अन्ना ने जिस कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन किया था, केजरीवाल ने उसे ही अपने गले का हार बना लिया है। जेल जाकर उन्हें पता चल गया है कि अब वह कभी जेल के बाहर नहीं आने वाले हैं।“

इस बयानबाजी के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेतों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि योगी आदित्यनाथ अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे। उन्होंने कहा – “आने वाले पांच सालों में मोदी-योगी पूर्वांचल की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने वाले हैं।” सियासी गलियारे में इस बयान को अरविंद केजरीवाल के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। इस प्रकार श्री नरेंद्र मोदी ने केजरीवाल के बयान को भ्रामक एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

इससे पूर्व गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे तथा वर्ष 2029 के पश्चात् भी वे भाजपा का नेतृत्व करते रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष की आयु के पश्चात् भी अपने पद पर बने रहेंगे। इस प्रकार अमित शाह ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि उनका प्रधानमंत्री बनने का अभी कोई विचार नहीं है। इसके अतिरिक्त पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 75 वर्ष के पश्चात् सेवानिवृति वाली बात पार्टी के संविधान में नहीं है। इस प्रकार की बातें केवल दुष्प्रचार के लिए बोली जा रही हैं। इसमें दो मत नहीं कि भाजपा का संगठन अत्यंत सुदृढ़ है। इसलिए अरविंद केजरीवाल की भ्रामक बयानबाजी से पार्टी को कोई हानि नहीं होगी।

वास्तव में प्रधानमंत्री भली भांति जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में सराहनीय विकास कार्य किए हैं। उनके मुख्यमंत्री काल में प्रदेश ने दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की है। प्रदेश की जनता भी उनके विकास एवं जनहित के कार्यों से अति प्रसन्न एवं संतुष्ट है, तभी उसने उन्हें द्वितीय बार भी मुख्यमंत्री चुना।

सर्विदित है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। इसीलिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहता है। अपने उत्कृष्ट कार्यों एवं सुशासन के कारण उन्होंने दो बार भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई है। भारतीय जनता पार्टी ने भी योगी आदित्यनाथ के कार्यों को सराहा तथा उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंप दी।

लोकसभा चुनाव 2024 पाचवें चरण तक आते आते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 49 दिनों में कुल 111 जनसभाएं सहित 144 जनसभाएं किए है । इसके अलावा योगी अबतक आठ राज्यों में भी चुनाव प्रचार कर चूकें है । मुख्यमंत्री ने 27 मार्च को मथुरा में प्रबुद्ध सम्मेलन कर प्रदेश की चुनावी कमान संभाल ली थी। 27 मार्च से 19 मई तक कुल 50 दिनों में मुख्यमंत्री लगातार चुनाव प्रचार में लगे हुये है। अब तक उन्होने 15 प्रबुद्ध सम्मेलन और 12 रोड सो किया है। योगी की जनसभाओं में अपार भीड़ उनको सुनने के लिए प्रचण्ड गर्मी में भी जुट रही है ।

इसमें दो मत नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश ने लगभग सभी क्षेत्रों में प्रशंसनीय उन्नति की है। प्रदेश में कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं पर्यावरण आदि क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए गए हैं। मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता दी जा रही है। सरकार ने अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की है। जिन परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं है उन्हें भी आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त योगी सरकार निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दे रही है।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ पार्टी के चाल, चरित्र एवं चेहरे के अनुसार प्रदेश में हिंदुत्व की छवि को और सुदृढ़ करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उनके कार्य इस बात को सिद्ध करते हैं। चाहे प्राचीन नगरों के नाम परिवर्तित करना हो या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण करना हो। उनके सभी कार्य इसका साक्षात प्रमाण हैं। उनकी देखरेख में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा है।

योगी सरकार राज्य के धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थलों के विकास एवं सौन्दर्यीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। योगी सरकार ने बौद्ध सर्किट में श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर तथा रामायण सर्किट में चित्रकूट एवं श्रृंगवेरपुर में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया है। इसी प्रकार बृज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, नैमि षारण्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, विन्ध्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, शुक्र धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट तीर्थ विकास परिषद एवं देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया, ताकि यहां के विकास कार्य सुचारू रूप से हो सकें

सरकार तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। योगी सरकार तीर्थ यात्रियों को कई सुविधाएं प्रदान कर रही है। इसके अंतर्गत कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों की अनुदान राशि 50 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रति यात्री की गई है। इसी प्रकार सिंधु दर्शन के लिए अनुदान राशि 20 हजार रुपये की गई।

योगी सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यथासंभव प्रयास कर रही है। इसके अंतर्गत गोरखपुर के रामगढ़ ताल में वाटर स्पोर्ट्स, पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं चंदौली में देवदारी राजदारी वाटरफॉल का विकास किया गया। स्पिरिचुअल सर्किट के अंतर्गत गोरखपुर, देवीपाटन, डुमरियागंज में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। जेवर, दादरी, नोएडा, खुर्जा एवं बांदा में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। आगरा में शाहजहां पार्क एवं महताब बाग-कछपुरा का कार्य एवं वृन्दावन में बांके बिहारी जी मंदिर क्षेत्र में पर्यटन का विकास किया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व एवं पीलीभीत टाइगर रिजर्व स्थलों का विकास किया गया है। सरकार ने महाभारत सर्किट के अंतर्गत महाभारत से संबंधित स्थलों का विकास करवाया है। शक्तिपीठ सर्किट एवं आध्यात्मिक सर्किट से संबंधित स्थलों का भी विकास करवाया गया है। विपक्षी सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाते रहते हैं, परन्तु सत्य यही है कि भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के समान रूप से विकास कार्य करवा रही है। जैन एवं सूफी सर्किट के अंतर्गत आगरा एवं फतेहपुर सीकरी में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया जाना इस बात का प्रमाण है।

योगी सरकार द्वारा अयोध्या में दीपोत्सव, मथुरा में कृष्णोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव, वाराणसी में शिवरात्रि एवं देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी इसकी चर्चा हो रही है। इसके साथ-साथ सरकार कला एवं साहित्य को भी प्रोत्साहित कर रही है। राज्य में साहित्यकारों एवं कलाकारों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ के शासन में प्रदेश ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पृथक पहचान बनाई है। लगभग सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। आज देश में उत्तर प्रदेश मॉडल की चर्चा की जा रही है। ये सब योगी आदित्यनाथ के प्रयास से ही संभव हो सका है।

 

लेखक – एसोसिएट प्रोफेसर लखनऊ विश्वविध्यालय में है ।




भ्रष्ट नेता और दल्ले वकीलों में राज्य सभा की जुगलबंदी

भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जैसे ख़ुराक़ बन गई है बड़े और दल्ले वकीलों को राज्य सभा में भेजना। इस लिए भी कि खग जाने खग ही की भाषा। अपराधी राजनेताओं ख़ास कर भ्रष्टाचार में चौतरफा घिरे राजनीतिज्ञों की कमज़ोरी रही है कि किसी न किसी बड़े वकील की शरण में रहने का। भारी फीस के अलावा गुरुदक्षिणा में राज्य सभा सदस्यता से नवाजने का। सोचिए कि आधा घंटा के लिए पचास लाख से एक करोड़ रुपए तक की फीस है , ऐसे वकीलों की। जाहिर है जजों का हिस्सा अलग से देना होता है। जजों और मुअक्किलों के बीच यह वकील ही दलाल बनते हैं। तभी तो आधी रात भी यह सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेने की क्षमता रखते हैं। भले ही वह किसी आतंकी का ही मामला क्यों न हो। अभी तुरंत-तुरंत का मामला देख लें। अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ही को ई डी ने एक ही एक्ट पी एम एल ए में गिरफ्तार किया है। चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी है। ठीक इसी ज़मानत के बाद , इसी आधार पर हेमंत सोरेन भी सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मांगने पहुंचे। पर उन्हें ज़मानत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया।
क्यों ?

इसलिए कि अभिषेक मनु सिंघवी उनके वकील नहीं थे। या कहिए कि हेमंत सोरेन का वकील अभिषेक मनु सिंघवी की तरह सुप्रीम कोर्ट में सेटिंग नहीं कर पाया।
याद कीजिए कि मायावती जब गले तक भ्रष्टाचार में धंस गईं तो उन्हों ने सतीशचंद्र मिश्रा को पकड़ा। सतीश मिश्रा ने जैसे अघोषित ठेका ले लिया कि वह किसी सूरत मायावती को जेल नहीं जाने देंगे। मायावती ने बहुत पहले सतीश चंद्र मिश्रा को न सिर्फ़ राज्य सभा भेजा , लगातार भेजती रहीं। पार्टी में भी सतीश मिश्रा को ससम्मान रखा हुआ है। जाने कितने लोग आए और गए पर सतीश मिश्रा को कोई सूत भर भी नहीं हिला सका। आज तक सतीश मिश्रा और मायावती की बांडिंग बनी हुई है। इन दोनों के फेवीकोल में फ़र्क़ नहीं पड़ा। मायावती के ही रास्ते चलते हुए लालू प्रसाद यादव ने राम जेठमलानी को राज्य सभा में अपनी पार्टी से भेजा। पर जेठमलानी लालू को जेल जाने से नहीं बचा सके। फिर जेठमलानी दिवंगत हो गए। अब तो लालू सज़ायाफ्ता हैं। जेल आते-जाते रहते हैं। स्वास्थ्य के आधार पर पेरोल और ज़मानत का खेल खेलते रहते हैं।

मुलायम सिंह यादव ने भी जेल जाने से बचने के लिए वर्तमान में भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया के पिता वीरेंद्र भाटिया को राज्य सभा में भेजा था। वीरेंद्र भाटिया ने भी मुलायम को जेल जाने से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जेल जाने से बचने के लिए मुलायम सिर्फ़ वकील के भरोसे ही नहीं रहे। मुलायम पहले कांग्रेस के आगे फिर भाजपा के आगे भी दंडवत रहे मुलायम। अपनी ज़ुबान पर भी लगाम लगाए रखा। जब कि लालू की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम रही है। जैसे कि इन दिनों अरविंद केजरीवाल की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम है। अटल जी एक समय कहा करते थे , चुप रहना भी एक कला है। जो लालू या केजरीवाल जैसे लोग नहीं जानते और भुगत जाते हैं।

ख़ैर , अब अखिलेश यादव ने भी पुराने कांग्रेसी कपिल सिब्बल को सपा की तरफ से राज्य सभा में बैठा रखा है ताकि जेल की नौबत न आए। जानने वाले जानते हैं कि कपिल सिब्बल वकालत कम , अपनी दलाली के लिए कुख्यात रहे हैं। अभी-अभी वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए हैं। राम मंदिर मामले को अपनी दलाली और कुतर्क के मार्फ़त ही सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल लटकाए रखने के लिए परिचित हैं।

इसी तरह पवन खेड़ा जैसों अराजक को खड़े-खड़े अभिषेक मनु सिंघवी ने एफ आई आर होने के बाद कुल दो घंटे में ही सीधे सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत दिलवा दिया। कांग्रेस में चिदंबरम , सलमान खुर्शीद , अभिषेक मनु सिंधवी समेत अनेक वकीलों की फ़ौज सर्वदा से रही है। रहेगी। सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा की हिफाजत के लिए। ग़ौरतलब है कि यह तीनों भी ज़मानत पर बाहर हैं।

अलग बात है कि भाजपा में जेल जाने वालों की सूची ऐसी नहीं रही फिर भी अरुण जेटली , सुषमा स्वराज , रविशंकर जैसे अनेक वकीलों की फ़ौज भाजपा ने बनाए रखी। हर छोटी-बड़ी पार्टी के पास इसी तरह वकीलों का फ़ौज-फाटा बना रहता है। वकील पार्टियों को दूहते हैं , पार्टियां इन को। ज़िक्र ज़रूरी है कि रविशंकर ही वह वकील थे जिस ने पटना हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ते हुए चारा घोटाले में सज़ा दिलवाई थी।

अयोध्या में राम मंदिर का मुकदमा भी रविशंकर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जीता था। सकारात्मक , नकारात्मक बहुत से ऐसे उदाहरण हैं। जैसे कि हरीश साल्वे भी एक वकील हैं जो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सिर्फ़ एक रुपए की फीस पर कूलभूषण जाधव का मुकदमा लड़ कर जीत लिया था और वह एक रुपया भी नहीं लिया। पर यही हरीश साल्वे सलमान ख़ान जैसे हत्यारे को आनन-फानन मुंबई हाईकोर्ट से ज़मानत दिलवा देते हैं। याद कीजिए मुंबई में हिट एंड रन केस। सड़क की फुटपाथ थके-हारे पर सोए मज़दूरों को शराबी सलमान ख़ान ने अपनी कार से कुचल कर मार दिया था। पर सलमान ख़ान पैसे वाला अभिनेता है। मुंह मांगा पैसा खर्च कर बच जाता है। समय बीत जाने के बाद भी देर शाम तक कोर्ट बैठी रही सलमान ख़ान को ज़मानत देने के लिए। इधर लोवर कोर्ट ने सज़ा घोषित की उधर हाथोहाथ मुंबई हाईकोर्ट ने ज़मानत दी।
तो अनायास ?

बहरहाल अब भ्रष्टाचार के ढेर सारे कुएं खोद लेने के बाद अरविंद केजरीवाल को भी किसी ऐसे वकील की दरकार पड़ गई है जो उन्हें जेल आदि संकटों से मुक्ति दिलाने का ठेका ले ले। सोमनाथ भारती जैसे छुटभैए वकील बेअसर साबित हुए हैं। अभिषेक मनु सिंघवी में केजरीवाल को अपनी ज़रुरत पूरी होती दिख रही है। अभिषेक मनु सिंघवी राज्य सभा में रह चुके हैं। एक बार मुख मैथुन का लाभ लेते हुए एक महिला वकील को जस्टिस बनाने का वायदा करते हुए कैमरे में कैप्चर हो गए तो दुकान फीकी पड़ गई। उस समय वह आलरेडी राज्य सभा में थे भी। बहुतों को जस्टिस बनवा चुके थे। बाद में भी बनवाते रहे पर सार्वजनिक रूप से उस वीडियो के बाद राज्य सभा का फिर रिनुवल नहीं हुआ। कांग्रेस की राजनीति में भी साइडलाइन कर दिए गए। पर कांग्रेस के प्रति निष्ठां बनी रही। अलग बात है यूट्यूब से उस मुख मैथुन वाले वीडियो को सुप्रीम कोर्ट से आदेश दिलवा कर हटवा दिया।

अभिषेक मनु सिंघवी के पिता लक्ष्मीमल्ल सिंघवी भी बड़े वकील रहे थे। वह राज्य सभा में भी रहे। उन की बड़ी प्रतिष्ठा रही है। एक भी दाग नहीं लगा कभी उन पर। दिल्ली के साऊथ एक्सटेंशन में उन के घर पर मेरी उन से अच्छी मुलाक़ात भी रही है। कई बार। लेखकों , पत्रकारों को भी बहुत पसंद करते थे। ख़ुद भी लेखक थे। सरल और विनम्र व्यक्ति थे। अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने पिता से क़ानूनी दांव पेंच तो सीख लिया पर शुचिता और नैतिकता बिसार गए हैं। प्रतिष्ठा गंवा दी है।

अभी हिमाचल में कांग्रेस विधायकों की पर्याप्त संख्या होने के बाद भी भाजपा के दांव में फंस कर राज्य सभा की सीट जीतते-जीतते हार गए। वह कहते हैं न कि क़िस्मत अगर ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है। अभिषेक मनु सिंघवी के साथ भी लगभग यही हो गया। सो भाजपा से वह खार खाए बैठे ही थे कि केजरीवाल शराब घोटाले की जद में आ गए। अभिषेक मनु सिंघवी ने यह अवसर बढ़ कर दोनों हाथ से लपक लिया। बीच चुनाव में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम ज़मानत दिलवा कर उन्हों ने भाजपा से अपना हिसाब न सिर्फ़ हिसाब बराबर कर लिया बल्कि राज्य सभा में जाने का सौदा भी केजरीवाल से कर लिया। सुप्रीम कोर्ट का वकील वैसे ही तो नहीं , अरविंद केजरीवाल के लिए लोवर कोर्ट में बहस करने पहुंच जाता है।

यह आसान नहीं था। एक समय ऐसे ही कन्हैया कुमार के लिए कपिल सिब्बल पैरवी के लिए पहुंच गए थे। अलग बात है कुछ वकीलों ने कन्हैया कुमार को इस तरह घेर कर मारा कि उन की पेंट ख़राब हो गई। मामला ही ऐसा था। भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा कन्हैया कुमार ने जे एन यू में लगाया था। कन्हैया कुमार अभी फिर माला पहन कर थप्पड़ खा गए हैं। केजरीवाल की तरह।

अरविंद केजरीवाल ने अभिषेक मनु सिंघवी को राज्य सभा भेजने में थोड़ी नहीं ज़्यादा हड़बड़ी दिखा दिया। सामंती ऐंठ दिखा दी। स्वाति मालीवाल अभी ताज़ा-ताज़ा राज्य सभा सदस्य बनी हैं। रिपीट तो संजय सिंह भी हुए हैं। पर केजरीवाल को राजनीतिक रूप से सब से ग़रीब , कमज़ोर और अनुपयोगी स्वाति मालीवाल ही लगीं। इस लिए उन्हें ही शिकार बनाया। सुनीता केजरीवाल को सौतिया डाह था ही , सामंती रवैया दिखाते हुए स्वाति मालीवाल को डिक्टेशन दे दिया गया। आप जिस को लेडी सिंघम कहते रहे हों उसे कीड़े-मकोड़े की तरह ट्रीट करेंगे तो एक बार तो कीड़ा-मकोड़ा भी तन कर खड़ा हो जाएगा , अपने अपमान से आजिज आ कर। फिर यह तो स्वाति मालीवाल ठहरी। राज्य सभा की सदस्य ठहरी। राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ठहरी।

स्वाति का एक नाम तारा है और एक नक्षत्र का भी नाम भी स्वाति है। जाने कौन भारी पड़ा अरविंद केजरीवाल पर कि आए थे हरिभजन को , ओटन लगे कपास वाली दुर्गति हो गई। टेकेन ग्रांटेड ले लिया स्वाति मालीवाल को केजरीवाल ने। अपने दरबार की बांदी मान बैठे। अभ्यस्त थे वह इस के। एक से एक कद्दावर प्रशांत भूषण , योगेंद्र यादव , कुमार विश्वास , आशुतोष , आनंद कुमार आदि-इत्यादि तो छोड़िए , गुरु अन्ना हजारे तक को निपटा चुके थे अपनी अराजक शैली में। तो यह स्वाति मालीवाल क्या चीज़ थी। पर यहीं केजरीवाल गच्चा खा गए। उन की अराजकता की खेती स्वाति मालिवाल नीलगाय बन कर एक रात में चर गई। उन को पता ही नहीं चला। सुबह हुई तो पता चला भी पर सामंती अकड़ और अहंकार में अपने पालतू बिभव कुमार को ले कर लखनऊ आ गए।

स्वाति मालीवाल भड़क गई इस बिंदु पर। अभिषेक मनु सिंघवी और केजरीवाल की खिचड़ी जल गई। केजरीवाल चुनाव प्रचार तो छोड़िए , अब पूरी पार्टी को जेल भेजने के लिए आंदोलनरत हो गए हैं। बिभव की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हो गए। क्यों कि बिभव उन के तमाम राज जानता है और स्वाति मालीवाल सिर्फ़ बिस्तर के राज।

बिलकुल अभी 2 जून को जेल तो खैर केजरीवाल जाएंगे ही पर अभिषेक मनु सिंघवी भी राज्य सभा ज़रूर जाएंगे। क्यों कि अभिषेक मनु सिंघवी की ज़रूरत अब केजरीवाल को लंबे समय तक पड़नी है। और नियमित पड़नी है। पैसा तो बहुत है केजरीवाल के पास अभिषेक मनु सिंघवी को देने के लिए। करोड़ो रुपए दे रहे हैं। देते रहेंगे। पर अभिषेक मनु सिंघवी का ईगो मसाज करने के लिए उन्हें राज्य सभा का सम्मान कहिए , ख़ुराक़ कहिए देनी ही है। अब देखना है कि केजरीवाल किस को बलि का बकरा बनने के लिए चुनते हैं। और कि वह भी आसानी से इस्तीफ़ा दे कर अभिषेक मनु सिंघवी के लिए सीट छोड़ता है कि नहीं। आम आदमी पार्टी के राज्य सभा में पर्याप्त सदस्य हैं।

राज्य सभा सदस्य होना वैसे तो सभी पार्टियों में सर्वदा से महत्वपूर्ण रहा है। आम आदमी पार्टी में तो बहुत ही ज़्यादा। कुमार विश्वास और आशुतोष गुप्ता का तो आम आदमी पार्टी से मोहभंग हुआ ही इस एक राज्य सभा की सदस्यता ख़ातिर। हालां कि यह दोनों ही आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ कर हार चुके थे और चाहते थे कि राज्य सभा मिले। पर केजरीवाल ने दोनों की ठेंगा दिखा दिया। आशुतोष तो अभी भी आम आदमी पार्टी के लिए के ख़िलाफ़ कभी खुल कर नहीं बोलते। भाजपा विरोध और सेक्यूलरिज्म की आड़ में अकसर कोर्निश बजाते रहते हैं। आम आदमी पार्टी से अपने प्यार का इज़हार जताते रहते हैं। लेकिन कुमार विश्वास जब भी कभी अवसर मिलता है अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्रशांत भूषण , आनंद कुमार , योगेंद्र यादव जैसे लोगों को भी चूहे की तरह कुतर कर रख दिया।

याद कीजिए कि पीटने को तो प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण भी कई बार पिटे हैं। अपने ही चैंबर में पिटे हैं। आम आदमी पार्टी में रहते हुए हैं। पर उन के लिए पक्ष या विपक्ष में कोई इस तरह नहीं खड़ा हुआ। पिटे बड़े वकील राम जेठमलानी भी थे। चंद्रशेखर के लोगों ने पीटा था। चंद्रशेखर के घर पर ही पीटा था। स्पष्ट है कि चंद्रशेखर की शह पर पीटे गए थे। पर चंद्रशेखर से जब इस जेठमलानी की पिटाई के बाबत पूछा गया तो वह बोले , मुझे इस बारे में नहीं मालूम। पर अगर जेठमलानी जी की पिटाई अगर हुई है तो यह निंदनीय है। मैं इस की निंदा करता हूं। तब जब कि जेठमलानी चंद्रशेखर के घर धरना देने पहुंचे थे कि वह प्रधान मंत्री पद की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लें। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने हफ़्ता भर बीत जाने के बाद भी एक बार भी अपने ही शीश महल में स्वाति मालीवाल की पिटाई की निंदा नहीं की है। उलटे स्वाति मालीवाल की पिटाई करने वाले बिभव कुमार के पक्ष में आंदोलनरत हो गए हैं।
यह कौन सी संसदीय परंपरा है भला ! तब जब कि राज्य सभा को उच्च सदन का दर्जा दिया गया है। स्वाति मालीवाल उसी राज्य सभा की सदस्य हैं। यह कहां आ गए हैं हम ?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवँ राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ में रहते हैं)
 
(साभार https://sarokarnama.blogspot.com/ से)



आम चुनावों में राष्ट्रीय विमर्श अब बहस का विषय ही नहीं

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आम चुनाव के चार चरण समाप्त हो चुके हैं। आज पांचवे चरण का मतदान जारी है। लोकतंत्र में मतदान मौलिक अधिकार है। यह नागरिकों को चुनाव का अवसर देता है कि कौन सरकार में आए? सरकार कैसी हो? और उन पर कौन शासन करे? यह सत्ता के दावेदारों की विचारधारा, रीति, नीति और दृष्टिकोण को भी जांचने और इच्छानुसार मतदान करने का अवसर होता है। मतदान केवल अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व भी है। मतदान से नागरिकों की राजनैतिक इच्छा प्रकट होती है। मतदाताओं के पक्ष को समझा जाता है। चुनाव में मतदाता के सामने भिन्न-भिन्न विचार वाले दल आश्वासन देते हैं। मतदाता उपलब्ध विचारों और वायदों में अपने सपनों वाली सरकार बनाने के लिए वोट देते हैं। मताधिकार मूल्यवान है। मताधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय उद्घोषणा (1948) के द्वारा इसे संरक्षण दिया गया है।

सभी लोकतांत्रिक देशों में चुनाव के समय मुद्दा और विचार आधारित विमर्श चलते हैं। इसीलिए चुनाव महत्वपूर्ण लोकतंत्री उत्सव हैं। अमेरिकी संविधान में चुनाव तंत्र का उल्लेख नहीं है। अमेरिका में संघीय चुनाव कराने के लिए चुनाव नियम हैं। वे अमेरिकी कांग्रेस को चुनाव कराने की शक्ति देते हैं। अमेरिका में स्त्रियों को 1920 तक मताधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीक में मताधिकार केवल पुरुषों तक सीमित रहा है। ब्रिटेन में इसका धीरे-धीरे विकास हुआ। 1918 में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ। भारत में 1950 के पहले से ही 21 वर्ष के ऊपर के सभी नागरिकों को मताधिकार था। बाद में मतदान की पात्रता की आयु 18 वर्ष की गई।

चुनाव राष्ट्रीय विमर्श के खूबसूरत अवसर होते हैं। बहस और विमर्श, वाद-विवाद और संवाद भारत की प्राचीन परम्परा है। प्राचीन काल में भी सभा और समितियां विमर्श का केन्द्र थीं। सम्प्रति पूरा देश सभा या संसद जैसा है। यहां प्रत्येक मतदाता अपनी इच्छा वाले देश और समाज के लिए सजग है।

राष्ट्रीय चिन्ता के सभी विषयों पर राष्ट्रीय विमर्श की आवश्यकता है। लेकिन वर्तमान चुनाव में बुनियादी सवालों पर राष्ट्रीय विमर्श का अभाव है। राष्ट्र सर्वोपरिता, राष्ट्रीय एकता और अखंडता, संविधान के प्रति निष्ठा व भारत की विश्व प्रतिष्ठा जैसे विषय आधारभूत हैं। यह विषय किसी न किसी रूप में हमेशा राष्ट्रीय विमर्श में रहते हैं। लेकिन वर्तमान चुनाव में पृष्ठभूमि में चले गए हैं। हम भारत के लोग संस्कृति के कारण दुनिया के प्राचीनतम राष्ट्र हैं। यहाँ विविधता और बहुलता सतह पर है। लेकिन इन सबको एक सूत्र में बांधे रखने वाली सांस्कृतिक एकता चुनावी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र से भिन्न कोई भी अस्मिता अलगाववाद की प्रेरक होती है। साम्प्रदायिकता की चर्चा बहुधा होती रहती है। दल समूह एक दूसरे पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया करते हैं। लेकिन साम्प्रदायिकता की परिभाषा नदारद है। चुनावी विमर्श में साम्प्रदायिकता के निराकार और साकार खतरे पर विमर्श होना चाहिए था।

सेकुलर विदेशी विचार है। राजनीति में बहुधा इसका दुरुपयोग होता है। व्यावहारिक अर्थ में यह अल्पसंख्यकवाद का पर्याय है। छद्म सेकुलरवाद भी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र के समग्र विकास में प्रशासनिक सेवाओं की मुख्य भूमिका है। वे सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। प्रशासनिक सुधारों पर अनेक आयोग बन चुके हैं। लेकिन प्रशासन की गुणवत्ता प्रश्नवाचक रहती है। इसी तरह अर्थनीति सबसे महत्वपूर्ण विषय है। यह राष्ट्रीय समृद्धि की संवाहक होती है। महाभारत में नारद ने युधिष्ठिर से पूछा, ”क्या आप अर्थ चिन्तन करते हैं-चिन्तयसि अर्थम्?” अर्थनीति पर सतत् राष्ट्रीय विमर्श अनिवार्य है।

राष्ट्र का आत्मविश्वास होता है राष्ट्रीय विमर्श। भूमण्डलीय ताप में वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय समस्या है लेकिन उसका सम्बंध भारत से भी है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना दायित्व निभाया है। लेकिन भूमण्डलीय ताप चुनाव विमर्श से बाहर है। जल और जीवन पर्यायवाची हैं। जल प्रदूषण राष्ट्रीय स्वास्थ्य का सबसे बड़ा शत्रु है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 400 से अधिक जिलों का जल गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुका है। भूजल में शीशा, आर्सेनिक, फ्लोराइड और क्रोमियम जैसे जानलेवा रसायन पाए गए हैं। हर साल लगभग ढाई करोड़ लोग जल प्रदूषण की बीमारियों का शिकार होते हैं। बच्चे विकलांग होते हैं। औद्योगिक इकाइयों का विषैला पानी और कचरे भूगर्भ जल में मिलते हैं। बोतल बंद ब्रांडेड पानी और भी खतरनाक है। जल में उपस्थित रसायन बोतल की प्लास्टिक से रासायनिक क्रिया करते हैं और जल जानलेवा हो जाता है। वायु प्रदूषण से भारत भी पीड़ित है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी धूल भरी वायु लोगों के श्वसन तंत्र पर आक्रामक रहती है। ऐसे चिन्ताजनक मुद्दे भी चुनावी विमर्श में नहीं हैं।

कृषि भारत की आजीविका है और किसानों के लिए व्यवसाय भी है। ऋषि और कृषि भारतीय श्रम साधना के शीर्ष पर रहे हैं। चिकित्सा महत्वपूर्ण विषय है। जन स्वास्थ्य और आनंद साथ-साथ रहते हैं। राष्ट्रीय पौरुष का सम्बंध जन स्वास्थ्य से है। स्वस्थ जीवन के लिए उत्तम परिस्थितियां पाना मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) है। रूग्ण लोग राष्ट्रीय उत्पादन में भागीदार नहीं हो सकते। उत्पादन की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र का सक्रिय मानव संसाधन है। अन्य योजनाएं टाली जा सकती हैं। लेकिन चिकित्सा और स्वास्थ्य नहीं। निजी अस्पताल महंगे हैं। राष्ट्रीय संवेदना का अभाव है। गरीबों को 5 लाख तक की चिकित्सा उपलब्ध कराने में ‘आयुष्मान भारत‘ योजना की प्रशंसा होती है। इस दिशा में काफी काम हुआ है। लेकिन जन स्वास्थ्य और कृषि भी राष्ट्रीय विमर्श में नहीं हैं।

नवयुवकों में इंजीनियरिंग सहित अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है। यह राष्ट्रीय चिन्ता का विषय है। ऐसे विषय सरकार के अलावा सामाजिक उत्तरदायित्व से सम्बंधित हैं। भारतीय इतिहास का विरुपण पिछले 10-15 वर्षों से चर्चा का विषय है। इस इतिहास में वास्तविक तथ्य नहीं हैं। आर्य आक्रमण का सिद्धांत झूठा है। दुर्भाग्य से यह चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है। समान नागरिक संहिता संविधान का नीति निदेशक तत्व है। पीछे कई बरस से यह राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। लेकिन चुनावी विमर्श का मुद्दा नहीं है।

सारा काम सरकारें ही नहीं कर सकती। सामाजिक दायित्व बोध भी जरूरी है। सड़क, पानी, बिजली आदि के सवालों पर अनेक गाँवों में मतदान के बहिष्कार की घटनाएं हुई हैं। इसलिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श जरूरी है। संवैधानिक लोकतंत्र में अनेक संस्थाएं हैं। भारतीय लोकतंत्र अति प्राचीन है। जब भारत में लोकतंत्र फल-फूल रहा था तब प्लेटो जैसे विद्वान लोकतंत्री मूल्यों पर चिन्तन कर रहे थे।

प्लेटो ने लिखा है कि, ‘‘जनतंत्र का अविर्भाव तब होता है जब गरीब विरोधियों से शक्तिशाली हो जाते हैं। जनतंत्र शासन का आकर्षक रूप है। उसमें विविधता और अव्यवस्था होती है। यह समान और असमान को समान भाव से एक तरह की समानता प्रदान करता है।‘‘ (दि डायलॉग्स ऑफ प्लेटो, खण्ड 2-रिपब्लिक) प्लेटो के अनुसार जनतंत्र में अव्यवस्था है। भारतीय लोकतंत्र के लिए भी अव्यवस्था की बात कही जा सकती है। इसके लिए भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श जरूरी है। संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका में ही सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के साथ प्रतिबद्धता व्यक्त की है। व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखण्डता सुनिश्चित करने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया है। चुनाव इन सब पर चर्चा और विमर्श का महत्वपूर्ण अवसर है।

(लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता एवँ उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)




मुंबई की प्रसिध्द् ‘नेचुरल्स’ आइसक्रीम के संस्थापक रघुनंदन कामथ का निधन

‘नेचुरल्स’(Naturals) आइसक्रीम के  संस्थापक रघुनंदन कामथ का निधन हो गया है। उन्होंने 17 मई को मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 70 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं।

मैंगलोर के रहने वाले कामथ ने वर्ष 1984 में मुंबई के जुहू में एक ही स्टोर से ‘नेचुरल’ आइसक्रीम की शुरुआत की और इसे पूरे भारत में तमाम स्टोर के साथ एक बड़े ब्रैंड में बदल दिया।

कामथ को ‘आइसक्रीम मैन ऑफ इंडिया’ (Ice Cream Man of India) के रूप में भी जाना जाता था। उनका जन्म मैंगलोर में एक फल विक्रेता के घर हुआ था।

मैंगलोर से मुंबई तक की उनकी उल्लेखनीय यात्रा 14 साल की उम्र में शुरू हुई, जब उन्होंने एक रेस्तरां में काम करना शुरू किया। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह एक विश्व स्तरीय आइसक्रीम ब्रैंड बनाने में कामयाब रहे।




छत्तीसगढ़ की योगा टीम ने नेपाल में जीता गोल्ड मैडल

रायपुर। इंडो-नेपाल योगा कॉम्पीटीशन में गोल्ड मैडल हासिल करने वाली छत्तीसगढ़ की योग टीम ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से उनके निवास कार्यालय में सौजन्य मुलाकात की। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि योग टीम के गोल्ड मैडल हासिल करना छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का विषय है, उन्होने टीम के सदस्यों को अपनी बधाई और शुभकामनाएं दी।

खेल एवं युवा कल्याण मंत्री श्री टंक राम वर्मा ने भी छत्तीसगढ़ की योग टीम की प्रदर्शन की सराहना करते हुए बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। गौरतलब है कि इस महीने के 9 से 12 मई को नेपाल में आयोजित हुए इंडो-नेपाल योगा कॉम्पीटीशन में छत्तीसगढ़ के 10 सदस्यीय टीम ने हिस्सा लिया था। इस प्रतियोगीता में टीम को गोल्ड मैडल से नवाजा गया है। इस टीम के कोच ज्योति दीपक कुंभारे हैं। योगा टीम में दिव्या जैन, प्रीत साव, पुष्पा साव, धमेश, छाया जैन, हेमलता, हर्षा, क्षमता शामिल हैं।



एक अफवाह ने एक जाने माने अभिनेता का कैरियर चौपट कर दिया

धर्मेन्द्र के साथ अपना करियर शुरू करने वाले एक सफल अभिनेता की कैंसर की बीमारी की झूठी अफवाह ने उसका पूरा कैरियर चौपट कर दिया।

अगर वो अफवाह ना फैली होती तो शायद आज वो भी धर्मेन्द्र और मुमताज़ की तरह फिल्म इंडस्ट्री में एक जाना-पहचाना नाम होते। इनका नाम है “शैलेश कुमार” 21 अप्रैल 2017 को जोधपुर में गुमनामी में इनका निधन हो गया। ये जोधपुर के ही रहने वाले थे ।और 21 जनवरी 1939 को जोधपुर में ही इनका जन्म भी हुआ था।

किसी ज़माने में ये शैलेश कुमार के नाम से जाने जाते थे, लेकिन इनका वास्तविक नाम शंभुनाथ पुरोहित था,पहले वो आम लोगों की तरह मुंबई घूमने के लिए ही आए थे। जब मुंबई आए तो दोस्तों के साथ एक फिल्म की शूटिंग देखने के लिए एक स्टूडियो में चले गए। स्टूडियो में किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी ..दरअसल वहां बहरूपिया नामक एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी। जब वो फ़िल्म की शूटिंग देख रहे थे तो उनपर उस फिल्म के प्रोड्यूसर साहब की नज़र पड़ गई.. (SONY KE KISSE)..उस फिल्म के प्रोड्यूसर का नाम था रती भाई.. पहले पहले हीरो के लिए कोई फ़ोटो सेशन या पोर्ट फोलियो नही हुआ करते थे बस डायरेक्टर या प्रोड्यूसर की एक नज़र ही xray का काम करती थी…

वैसे ही भीड़ में खड़े शैलेश पर रती भाई की नज़र पड़ी तो वो इनकी पर्सनैलिटी से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने शैलेश को पास बुलाया और शैलेश को फिल्मों में काम करने का ऑफर दे दिया। उन्होंने शैलेश से कहा था के,”तुम फिल्मों में काम करोगे..यकायक शैलेश की तरफ़ आये ऐसे सवाल को वो हज़म नहीं कर सके और
उस वक्त तो शैलेश जी ने रति भाई को मना कर दिया उन्हें जवाब दे दिया। दोस्तो उस वख्त वो बिल्कुल अनाड़ी थे वो कुछ नहीं जानते थे और उन्हें बिल्कुल नहीं पता था कि फिल्मों में काम कैसे किया जाता है। और कुछ दिन वहीं रुक कर वे वापस अपने शहर जोधपुर लौट गए। लेकिन रह रह कर रती भाई की वो बात उनसे हुई मुलाकात उनके दिमाग पर छप गई और उन्हें बेचैन कर रही थी। एक्टिंग का बीज और उस सुनहरे शहर का वो टूर उन्हें याद आ रहा था और अब ऐक्टिंग करने का बीज भी उनके मन-मस्तिष्क में रोपित हो गया था..

एक दिन उन्होंने तय किया कि उन्हें मुंबई वापस जाना चाहिए और फिल्मों में हीरो बनना चाहिए । इससे पहले के वे मुंबई के लिए निकलते, उससे पहले ही घरवालों ने उनकी शादी कर दी। लेकिन मन तो शैलेश साहब का वहीं बम्बई में बस गया था.. और एक्टर बनने का उनका फैसला भी अडिग था।

वैसे तो शैलेश साहब एक अच्छे खासे और अमीर परिवार से थे। लेकिन कहते हैं के वो अपने पिता से पैसे नहीं मांगते थे। तो उन्होंने एक युगत लड़ाई और अभी अभी उनकी शादी हुई थी और उन्हें शादी में जो बतौर तोहफे में एक सोने की चेन ससुराल वालों की तरफ से मिली थी। उन्होंने उस चेन को 75 रुपए में बेचा और आ गए बम्बई। बम्बई आते ही उनकी पहली मुलाकात धर्मेंद्र जी से हुई। उन दिनों धर्मेंद्र भी फिल्में पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे ..वो साल था 1960 और साल 1960 में ही उन्हें पहला मौका भी मिल गयाष उनकी पहली फ़िल्म आई नई मां जिसमें शैलेश जी को पहली दफा अभिनय करने का मौका मिला। फ़िल्म में उनका रोल काफी छोटा था। लेकिन शैलेश ने अपना काम पूरी ईमानदारी से कियाऔर अपनी पहचान भी बना ली।

इसके बाद साल 1961 में आई उनकी फ़िल्म भाभी की चूड़ियां एक ऐसी फिल्म थी जिसने शैलेश कुमार को अपनी पहचान दिलवाई। फिल्म में शैलेश के इलावा बलराज साहनी साहब और मीना कुमारी भी मुख्य भूमिकाओं में थे। शैलेश ने उस फिल्म में मीना कुमारी के देवर का किरदार उस फिल्म में निभाया था। अब शैलेश साहब की गाड़ी तो चल पड़ी थी और इसके बाद शैलेश जी को काम भी खूब मिलता रहा ।

1968 में शैलेश जी के फिल्मी सफ़र में कुछ बदलाव हुए उसके बाद उन्हों ने एक्ट्रेस मुमताज़ के साथ फ़िल्म की जिसका नाम था गोल्डन आई: सीक्रेट एजेंट 077 …इस फिल्म का एक गाना भी काफी मशहूर हुआ था, शायद अपने सुना हो उस गाने के बोल थे “हाय मैं मर जाऊं”। ये फिल्म एक जेम्स बॉन्ड टाइप फ़िल्म थी और एक बी-ग्रेड फिल्म थी। शैलेश साहब ने वो फ़िल्म तो कीऔर वक्त के साथ मुमताज़ तो टॉप की एक्ट्रेस भी बन चुकी थी। और इनके करियर के शुरुआती साथी धर्मेंद्र भी स्टार बन चुके थे। लेकिन शैलेश साहब को कभी भी वो कामयाबी वैसी ख्याति नहीं मिल सकी जिसका ख्वाब उन्होंने देखा था ।

फिर शैलेश जी ने अपनी पत्नी पुष्पा को भी मुंबई ही बुलवा लिया था। कहा जाता है कि जब शैलेश ने 30 की उम्र में डबल जोश के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया तो उन्हें थायरॉइड की बीमारी ने अपना शिकार बना लिया। थाइरोइड का इलाज रेडिएशन थैरिपी के ज़रिए ही होता था। और रेडिएशन थैरिपी मिलती थी सिर्फ टाटा अस्पताल में। लेकिन टाटा अस्पताल मशहूर था कैंसर के मरीज़ों का इलाज करने के लिए। इसलिए जब शैलेश साहब अपना इलाज करवा रहे थे तो किसी ने शैलेश जी को टाटा अस्पताल में आते जाते देखा तो उसकी वजह से उसने इंडस्ट्री में अफवाह उड़ा दी कि शैलेश जी को तो कैंसर हो गया है। उस अफवाह ने शैलेश के करियर में एक विलेन की भूमिका निभाई.. और उस अफवाह का इनके करियर पर बहुत बुरा असर पड़ा।

कुछ दिनों में ही थायरॉइड की बीमारी तो ठीक हो गई। लेकिन शैलेश जी को काम मिलना बंद हो गया। जिसे कुछ दिन पहले धड़ल्ले से काम मिल रहा था.. अब वो बेकार होने लगे थे..उन्होंने खूब हाथ-पैर मारे ..लोगों को समझाया भी लेकिन सब कुछ व्यर्थ रहा। किसी ने भी उन्हें कोई काम नहीं दिया। मायूस होकर अपनी पत्नी के साथ विचार विमश किया और आखिरकार साल 1978 में शैलेश जी अपने परिवार को लेकर अपने घर अपने गृहनगर जोधपुर वापस लौट गए। और फिर अपने अंतिम समय तक अपने आखिरी वक्त तक जोधपुर में ही रहे।

काजल फिल्म में उनपर फ़िल्माया गया गीत मेरे भैया मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन… आज भी राखी और भाईदूज बपर सबसे ज्यादा सुना जाता है।
साभार-https://www.facebook.com/profile.php?id=61555561193787 से




कश्मीर की महान नायिका रानी दिद्दा की शौर्य गाथा

प्राचीन संस्कृत कवि कल्हण ने कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासक दिद्दा का उल्लेख किया है।राजतरंगिणी,कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है।

‘राजतरंगिणी’ का शाब्दिक अर्थ है – राजाओं की नदी,जिसका भावार्थ है – ‘राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह’ यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होकर 1154 A.D. तक का है।

महान नायिका रानी_दिद्दा / दित्या देवी (958 ई.-1003 ई.)

26 वर्ष की उम्र में दिद्दा की शादी क्षेमगुप्त से हुई। क्षेमगुप्त कश्मीर के महाराज पर्वगुप्त के बेटे थे। 950 ई. में क्षेमगुप्त कश्मीर के राजा बने, लेकिन कल्हड़ के अनुसार वो एक कमजोर राजा थे जिनका मन अधिकतर जुए और शिकार में लगा रहता था। इसी के चलते दिद्दा को राज काज का काम संभालना पड़ा और धीरे धीरे वो इतनी ताकतवर हो गयीं कि महाराजा के नाम के आगे महारानी का नाम लिया जाने लगा। यहां तक कि शाही मुहरें और सिक्के भी दिद्दा क्षेम के नाम से छपने लगे।

958 के आसपास महाराज क्षेमगुप्त चल बसे और परंपरा अनुसार दिद्दा से सती होने के लिए कहा गया। लेकिन दिद्दा ने ना सिर्फ इससे इंकार किया बल्कि अपने बेटे अभिन्यु को गद्दी पर बिठाकर राजमाता बन गईं और शासन चलाने लगी। लोग इससे हरगिज खुश न थे। स्थानीय सरदारों ने कहा, एक औरत हम पर शासन कैसे कर सकती है।उसका वचन नहीं चल सकता। दिद्दा ने जवाब दिया, मेरा वचन ही है मेरा शासन और सरदारों का विद्रोह बुरी तरह कुचल दिया गया। 972 ई. में महराजा अभिन्यु भी चल बसे लेकिन दिद्दा का शासन चलता रहा।

उन्होंने अपने पोते भीमगुप्त को गद्दी पर बिठाया और राजकाज चलाती रहीं।
रानी दिद्दा का राज्य कश्यपमेरु (कश्मीर) से लेकर मध्य एशिया तक फैला हुआ था।

साम्राज्ञी दिद्दा का शस्त्र प्रशिक्षण :-

सम्राज्ञी दिद्दा ने शस्त्र प्रशिक्षण में महारथ प्राप्त की थी। चारों दिशाओं में ऐसी वीर नारी और कोई नहीं थी। भगवा ध्वज का परचम अश्शूर राज्य तक लहराया था।

महारानी दिद्दा नियुद्ध_कला में निपुण थीं , यह एक प्राचीन भारतीय युद्ध कला (मार्शल आर्ट) है।

▪नियुद्ध का शाब्दिक अर्थ है ‘बिना हथियार के युद्ध’ अर्थात् स्वयं निःशस्त्र रहते हुये आक्रमण तथा संरक्षण करने की कला।
▪यन्त्र-मुक्ता कला – अस्त्र-शस्त्र के उपकरण जैसे घनुष और बाण चलने की कला।
▪पाणि-मुक्ता कला – हाथ से फैंके जाने वाले अस्त्र जैसे कि भाला।
▪मुक्ता-मुक्ता कला – हाथ में पकड कर किन्तु अस्त्र की तरह प्रहार करने वाले शस्त्र जैसे कि बर्छी, त्रिशूल आदि।
▪हस्त-शस्त्र कला – हाथ में पकड कर आघात करने वाले हथियार जैसे तलवार, गदा आदि।
▪ऐसी 52 युद्ध कलाओं का प्रशिक्षण लेकर गुरुकुल से योद्धा बनकर निकली योद्धा दिद्धा ने भविष्यकाल में सम्राज्ञी दिद्दा बन कर भगवा ध्वज का परचम मध्य एशिया तक लहराकर भारतवर्ष एवं सनातन धर्म की गौरवमयी एवं स्वर्णिम इतिहास रच डाला था।

देशद्रोहियों को मौत की सजा :-
दिद्दा ने देशभक्त एवं योग्य लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करके देशद्रोहियों एवं अक्षम प्रशासनिक अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया।

इस शक्तिशाली रानी ने अनेक गद्दार लोगों को उम्रकैद तथा मृत्युदंड तक दिए। कश्यपमेरु(कश्मीर) राज्य की सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक था। दिद्दा को जहां वामपंथी इतिहासकारों ने निष्ठुर-निर्दयी कहा, वहीं इस रानी को न केवल भारतीय राष्ट्रभक्त एवं विदेशी इतिहासकारों द्वारा कुशल एवं शौर्यशाली प्रशासिका भी कहा गया। रानी दूरदर्शी थी अपने राज्य को अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए अन्दर पल रहे आस्तीन के सांपो का सर कुचलना सबसे ज्यादा आवश्यक लगा। उन्हें पता था बाहर से आक्रमण होते नहीं हैं करवाए जाते हैं। जैसे शरीर के किसी हिस्से में घाव हो जाये तो उसका अंदरूनी इलाज सबसे ज्यादा आवश्यक होता अंदरूनी कीटाणु मरेंगे तभी बहार का घाव सूखेगा ठीक उसी तरह देश के अंदर के गद्दारों का जब तक अंत नहीं होता तब तक देश की सीमा सुरक्षित नहीं हो सकती देश को बाहरी आक्रमण झेलने पड़ेंगे।

बाल्कन के कृम_साम्राज्य के शासक बोरिस_द्वितीय ने सन् 969 ई. में कश्मीर पर आक्रमण किया था(जिसे आज बल्ख नाम से जाना जाता है)। किसी समय वह सम्राज्ञी दिद्दा के राज्य का हिस्सा हुआ करता था। महारानी दिद्दा केवल कुशल शासिका ही नहीं एक कुशल रणनीतिज्ञ भी थी। दिद्दा एक कुशल सेना संचालिका होने के नाते सोचा ना जा सके ऐसा युद्धव्यूह की रचना और यवन शासक बोरिस की शक्तिशाली सेना बल ने आधे घंटे के अन्दर घुटने टेक दिए।

जहाँ कायर बोरिस बारह हज़ार सैनिकों की आड़ लेकर लड़ रहा था वही सम्राज्ञी दिद्दा स्वयं मोर्चा सँभालते हुए सेनाबल के आगे खड़ी थी। बोरिस सर्प_व्यूह का प्रहार झेल नहीं पाया और प्राचीन भारतीय युद्ध व्यूह की रचना यवनों की समझ के बाहर थी।

रानी दिद्दा के आगे बचे सैनिकों के साथ हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर दिया एवं बाल्कन , बुल्गारिया की साम्राज्य पर रानी दिद्दा ने केसरिया परचम लहराकर भारतीय इतिहास में स्वर्णिम इतिहास का एक और पृष्ठ जोड़ दिया था।

सन 972 ई. में यारोपोल्क_प्रथम को हरा कर रूस साम्राज्य की एक चौथाई हिस्से पर सम्राज्ञी दिद्दा ने अपना अधिपत्य स्थापित किया था। इस विदुषी अवतरित नारी की रणकौशलता को देख पराजित रूसी राजा ने स्वयं अपने किताब दक्षिण एशिया नारी (South Asian Women)किताब में साम्राज्ञी दिद्दा बुद्धि एवं शक्ति की वर्णन करते हुये कहा है कि:-
भारतभूमि की मिट्टी की वंदना करने की बात लिखी गई है,भारत की मिट्टी विश्वभर में सबसे चमत्कारी मिट्टी हैं जहाँ नर नारी दोनों पराक्रमी होते हैं और भी सम्राज्ञी दिद्दा के बारे में उल्लेखनीय वर्णन किया हैं और आगे लिखता हैं उनकी(यारोपोल्क प्रथम)हार के पीछे यह कारण था की उसका युद्ध(सम्राज्ञी दिद्दा)एक कुशल रणनीतिज्ञ एवं एक बुद्धिमती, पराक्रमी अद्भुत सैन्यसंचालिका से हुई थी इसलिए उसके पास एक ही रास्ता था मृत्यु या आत्मसमर्पण जिसमे से यारोपोल्क प्रथम ने आत्मसमर्पण करना उचित समझा था।

दिद्दा ने नारी शिक्षा एवं उत्थान के अनेकों प्रकल्प शुरू करवाए। कई विकास योजनाएं प्रारंभ हुईं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक योग्य लोगों को निर्माण कार्यों में दायित्व दिए गए। एक बड़ी योजना के अधीन कई नगर एवं गांव बसाए गए।

दिद्दा ने मठ/मंदिरों के निर्माण में भी पूरी रुचि ली। श्रीनगर (कश्मीर) में आज भी एक मोहल्ला ‘दिद्दामर्ग’ के नाम से जाना जाता है यहीं पर एक विशाल सार्वजनिक भवन दिद्दा मठ के नाम से बनवाया गया। इस विशाल मठ के खंडहर आज भी मौजूद हैं। पराक्रमी उत्पलवंश के एक अति यशस्वी सरदार सिंहराज की पुत्री दिद्दा ने एक शक्तिशाली कूटनीतिज्ञ के रूप में पचास वर्षों तक अपना वर्चस्व बनाए रखा।उत्पलवंश के ख्याति प्राप्त राजाओं ने कश्मीर के इतिहास में अपना गौरवशाली स्थान अपने शौर्य से बनाया है। स्थानीय लोग आज भी लोक कथाओं में दिद्दा की हिम्मत और कुशलता का गुणगान करते हैं।

जब महारानी दिद्दा वृद्धावस्था में पहुंचीं तो उसने अपने भाई उदयराज के युवा पुत्र संग्रामराज का स्वयं अपने हाथों से राज्याभिषेक कर दिया। आगे चलकर इसी सम्राट संग्रामराज ने काबुल राजवंश के अंतिम हिन्दू सम्राट राजा त्रिलोचनपाल के साथ मिलकर ईरान,तुर्किस्तान और भारत के कुछ हिस्सों में भयानक अत्याचार व लूटमार करने वाले क्रूर मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी को पुंछ (जम्मू-कश्मीर) के लोहरकोट किले के निकटवर्ती जंगलों में दो बार पराजित किया था।

दिद्दा भारत के इतिहास के उन महत्वपूर्ण चरित्रों में से है , जिन्होंने षड्यंत्रों और हत्याओं की राजनीति एवं आक्रमणकारी पर निरंतर विजय प्राप्त की। इस वीरवती साम्राज्ञी ने विद्रोहों एवं कठिनाइयों से ग्रस्त कश्मीर राज्य को अपने साहस और योग्यता से संगठित रखा।

 

(लेखक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)
साभार-https://www.facebook.com/SHIVANAND1MISHRA से



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्यभारत प्रांत का शिक्षा वर्ग इटारसी में प्रारंभ

इटारसी में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में 324 कार्यकर्ता एवं राजगढ़ में 332 कार्यकर्ता हुए हैं शामिल, 15 दिन चलेगा प्रशिक्षण

भोपाल, 19 मई। राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के मध्यभारत प्रांत के तरुण व्यवसायी कार्यकर्ताओं एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थी कार्यकर्ताओं के लिए संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन इटारसी एवं राजगढ़ में किया जा रहा है। दोनों ही स्थानों पर संघ शिक्षा वर्ग 18 मई से प्रारंभ हो गए हैं, जिनका औपचारिक उद्घाटन 19 मई को किया गया। इटारसी के संघ शिक्षा वर्ग का उद्घाटन वर्गाधिकारी श्री घनश्याम रघुवंशी, वर्ग कार्यवाह श्री कदम सिंह मीणा और प्रांत कार्यवाह श्री हेमंत सेठिया ने किया। वहीं, राजगढ़ के वर्ग का उद्घाटन वर्गाधिकारी श्री सुनील पाठक, वर्ग कार्यवाह श्री राघवेन्द्र त्रिपाठी और वर्ग पालक श्री विक्रम सिंह ने किया। संघ शिक्षा वर्ग में शामिल शिक्षार्थियों को शारीरिक, बौद्धिक, योग, सेवा, प्रबंधन और संघ कार्य का प्रशिक्षण प्राप्त होगा। संघ का कार्य व्यक्ति निर्माण का कार्य है। 15 दिन के इस वर्ग में युवा कठोर अनुशासित दिनचर्या का पालन करते हुए अपने व्यक्तित्व को मजबूत करेंगे।

इटारसी के धुरपन ग्राम में स्थित सेवा भारती के छात्रावास आयोजित संघ शिक्षा वर्ग के उद्घाटन में वर्ग कार्यवाह श्री घनश्याम रघुवंशी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से प्रतिवर्ष अपने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन किया जाता है। संघ शिक्षा वर्ग में हमें मन की साधना, स्व-अनुशासन, त्यागपूर्ण जीवन, सामूहिक जीवन के सामंजस्य को सीखते हुए विविध प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त करना है। यहाँ हमें सामूहिक जीवन को व्यापक संदर्भ में समझने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि वर्ग में हमें स्वयं के लिए कठोर अनुशासन का पालन करना है और अपनी सुविधा से पहले सह-शिक्षार्थियों की सुविधा का ध्यान रखना है।

राजगढ़ में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग के उद्घाटन में वर्ग कार्यवाह श्री राघवेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग एक साधना है। मन:पूर्वक यह साधना पूर्ण करने से कार्यकर्ता का विकास होता है और उसके भीतर संगठन कार्य का कौशल बढ़ता है। उन्होंने बताया कि संघ शिक्षा वर्ग में शामिल हुए युवा संघ कार्य का प्रशिक्षण तो प्राप्त करेंगे ही, इसके साथ ही उन्हें शारीरिक, बौद्धिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। सेवा और प्रबंधन के कार्य का प्रशिक्षण भी विशेषतौर से दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि संघ के स्वयंसेवक देशभर में डेढ़ लाख से अधिक सेवा कार्यों का संचालन करते हैं। आपात स्थिति में राहत कार्यों में भी संघ के स्वयंसेवक आगे आकर कार्य करते हैं।

संघ की रचना के 31 जिलों के कुल 656 स्वयंसेवक दोनों स्थानों पर आयोजित संघ शिक्षा वर्गों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इनमें इटारसी में 324 स्वयंसेवक शामिल हुए हैं और राजगढ़ में 332 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया है। उल्लेखनीय है कि जिन स्वयंसेवकों ने पूर्व में 7 दिन का प्राथमिक वर्ग का प्रशिक्षण प्राप्त किया होता है और वे संघ के कार्य में सक्रिय रहते हैं, उनमें से ही चयनित कार्यकर्ताओं को संघ शिक्षा वर्ग में भेजा जाता है।




चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई में नाटक का मंचन

यह एक स्तब्ध कर देने वाला अनुभव था। एक स्त्री को स्त्री होने के नाते समाज में किन-किन हादसों से गुज़रना पड़ता है इस त्रासद दास्तान को #उसके_साथ नाटक के ज़रिए रंगकर्मी आलोक शुक्ला और रूमा रजनी ने अपने असरदार अभिनय से साकार किया। एक तरफ़ आलोक शुक्ला ने विविध पात्रों को उनके विशिष्ट अंदाज़ में पेश किया तो दूसरी तरफ़ रूमा रजनी ने स्त्री की व्यथा कथा और उस पर हो रहे अत्याचार को बहुत मार्मिकता के साथ अभिव्यक्त किया।

रविवार 19 मई 2024 को मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव में आयोजित चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के साप्ताहिक आयोजन में दिल्ली की #प्रासंगिक रंग संस्था की ओर से रंगकर्मी आलोक शुक्ला के निर्देशन में ‘उसके साथ’ नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक को दर्शकों ने भरपूर सराहा। नाटक के मंचन के बाद कथाकार सूरज प्रकाश ने पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि इस नाटक में कई सत्य घटनाओं के अक्स दिखाई पड़ते हैं और ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं।

#धरोहर के अंतर्गत पंजाबी के सुप्रसिद्ध कवि #सुरजीत_पातर की कविताओं का पाठ कवयित्री इला जोशी ने किया। भोपाल से पधारे सहायक पुलिस आयुक्त एवं ओजस्वी कवि चौधरी मदन मोहन सिंह समर के सान्निध्य में आयोजित काव्य संध्या में कई लब्ध प्रतिष्ठित कवियों ने कविता पाठ किया। इनमें विभा रानी, दीप्ति मिश्र, मधु अरोड़ा और सुभाष काबरा जैसे कई प्रतिष्ठित रचनाकार शामिल थे। अभिनेता सतीश दत्ता के गायन से कार्यक्रम का समापन हुआ।

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हमारे धर्म से जुड़ेंगे उतने हम स्वयं से व भारत से जुड़ेंगे

भोपाल, भोपाल के सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय में चल रहे दुर्गावाहिनी शौर्य प्रशिक्षण वर्ग के प्राकट्य कार्यक्रम में प्रांत से आई शिक्षार्थी बहिनों ने सात दिन के प्रशिक्षण का भव्य प्रदर्शन किया। मंच पर विश्व हिंदू परिषद के प्रांत कार्याध्यक्ष के एल शर्मा जी ने कहा सनातन धर्म पर हजारों वर्षों के आघात के बाद भी खड़ा हुआ है । मुख्य अतिथि के रूप में सेज यूनिवर्सिटी की निदेशक शिवानी अग्रवाल ने बहिनों को अभिवादन करते हुए दुर्गावाहिनी के वर्ग को उपयोगी बताते हुए कहा कि भारत की मातृशक्ति को सशक्तिकरण की आवश्यकता नहीं स्वतः ही शक्ति स्वरूपा है।

पूर्व पुलिस अकादमी के निदेशक डॉ महेंद्र शुक्ल जी विशेष अतिथि रहे अपने वक्तव्य में उन्होंने सभी बालिकाओं को नमन करते हुए मातृशक्ति को पुरुष की अनुगामी कहा । प्रांत संगठन मंत्री सुरेंद्र सिंह जी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला संघ चालक की उपस्थित रहे। वर्ग प्रमुख सत्यकीर्ति राने ने वर्ग का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुर्गावाहिनी राष्ट्र को सशक्त, स्वाभिमानी, संस्कारी पीढ़ी तैयार करने का काम करेगी।

शारीरिक प्रदर्शन का संचालन वर्ग की मुख्य शिक्षिका सुश्री आकांक्षा, सत्र का संचालन बौद्धिक प्रमुख अदिति तिवारी जी ने आभार प्रांत सह संयोजिका भावना गौर ने किया । मनचासीन अतिथियों का स्वागत मातृशक्ति की सम्मी हरीश, ज्योति वर्मा, कांता कुशवाह, भानु साहू ने की। प्रशिक्षण में शिक्षिका क्रमशः ज्योति कुशवाह, सोनाली नागले, रोशनी आर्य, शिल्पा महाते, शिवानी कुशवाह, मोनिका धाकड़ तनु श्री संस्कृति रजक सहित व्यवस्था प्रमुख ज्योति वर्मा दीदी रश्मि कुशवाह दीदी विभाग मंत्री राजेश साहू जी, सह मंत्री, यतेंद्र जादौन , मनीष कारा कमलेश जी नीरज प्रजापति जी सहित शहर के वरिष्ठ गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।