सनातन की शुभ मंगल वेला !!चहुँ ओर बजेगा सनातन का डंका !!
अट्ठारहवीं लोकसभा का गठन पूरा हुआ और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने शपथ लेकर अपना काम काज भी आरम्भ कर दिया। यद्यपि लोकसभा में संख्याबल कुछ कम पड़ जाने के कारण भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता व समर्थक कुछ उदास रहे किन्तु उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम की विधान सभाओं ने इस उदासी को उत्सव में बदलने का अवसर दे दिया। उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के चुनाव परिणाम सनातन की मंगल वेला का संकेत हैं।
उड़ीसा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी को 147 सीटों में से 78 सीटों पर विजय मिली और वर्ष 2000 से 2024 तक लगातार मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक जी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। यह उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक विजय है । प्रदेश में भाजपा ने मोहन चरण मांझी, जिनका राज्य में राजनैतिक संघर्ष का लम्बा समय रहा है तथा जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता रहे हैं को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी है। मांझी 1997 से राजनीति सक्रिय हैं, एक मजबूत तेजतर्रार आदिवासी नेता हैं जिनका व्यापक प्रभाव है। मोहन चरण मांझी सरस्वती शिशु मंदिर में अध्यापक भी रहे हैं । माझी की जनसाधरण से जुड़ने की असीम क्षमता ने आदिवासी क्षेत्रों में उन्हें विशेष लोकप्रियता दिलाई है। चार बार के विधायक के रूप मे उन्हें राज्य की शासन प्रणाली की गहरी समझ है और उन्होंने इस क्षेत्र के लिए भाजपा की नीतियों को आकार देने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।भारतीय जनता पार्टी ने मोहन चरण मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर आदिवासी समाज को एक बडा संदेश दिया है । आगामी दिनों में झारखंड में भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं जहां पर भारतीय जनता पार्टी मांझी की लोकप्रियता व प्रभाव का उपयेग कर सकती है ।
मोहन चरण मांझी जी के मुख्यमंत्री बन जाने से ऐसा बहुत कुछ होने वाला है जो सनातन के लिए शुभ संकेत है। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करने के वे तीन द्वार खुलवा दिये हैं जो कोविड काल में बंद कर दिये गये थे । ये बंद द्वार उड़ीसा विधानसभा चुनावों में एक बहुत बड़ा मुद्दा बनकर उभरे थे । अब मंदिर में जाने वाले भक्त चारों द्वार से प्रवेश कर सकते हैं। चारों द्वार खोले जाने के बाद यह प्रश्न उठ रहा है कि रहस्यों से भरे जगन्नाथ मंदिर के इन द्वारों को बंद क्यों किया गया था और इनको खोले जाने से क्या बदलाव आने वाला है ?
जगन्नाथ मंदिर में कुल चार द्वार हैं और ये सभी कभी बंद नहीं रहे, कोविड काल मे इनको बंद कर दिया गया था और श्रद्धालुओं की मांग के बाद भी उसको खोला नहीं जा रहा था। जिस द्वार से अभी भक्तों का प्रवेश था था उसका नाम सिंहद्वार है, जबकि एक द्वार का नाम व्याघ्र द्वार है जो पश्चिम दिशा में है और आकांक्षा का प्रतीक माना जाता है यहां से साधु संत प्रवेश करते हैं। हस्ति द्वार का नाम हाथी पर है और यह उत्तर दिशा में है, हाथी धन की देवी लक्ष्मी का प्रतीक है। इस द्वार के दोनों तरफ हाथी की आकृति बनी हुई है जिन्हें मुगलकाल में क्षतिग्रस्त कर दिया गया। दक्षिण दिशा में अश्व द्वार है। घोड़ा इसका प्रतीक है। इसे विजय का द्वार भी कहा जाता है और योद्धा इस द्वार का उपयोग विजय के लिए करते रहे हैं। जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वार खुल जाने से अब भक्तो को आसानी से दर्शन हो सकेंगे। इअके साथ ही मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी ने जगन्नाथ मंदिर के रखरखाव तथा अन्य कार्यों के लिए 500 करोड़ रुपये का विशेष कोष भी बना दिया है।
हिन्दू धर्म के लोगों के लिए आंध्र प्रदेश से भी अच्छा समाचारआया है कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद तिरुमला में प्रसिद्ध वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन -पूजन किया तथा पूर्ववर्ती जगन सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि जगन सरकार ने तिरुपति देवस्थानम का व्यसायीकरण कर दिया था, सरकार दर्शन के टिकट की ब्लैक मार्केटिंग कर रही थी जिसे अब ठीक किया जाएगा। जगन सरकार में मंदिर के प्रसाद की गुणवत्ता में काफी गिरावट आ गई थी और महंगा भी हो गया था अतः मंदिर के प्रसाद की गुणवत्ता को ठीक करते हुए उसे सस्ता किया जायेगा।चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि पिछली सरकार में मंदिर को जुआ, शराब व मांसाहार का केंद्र बना दिया गया था जो कि अब नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि अब तिरुमला देवस्थानम की सफाई की जाएगी क्योंकि यह मंदिर पूरी तरह से सनातनी हिन्दुओं का है और रहेगा। ज्ञातव्य है कि जगन सरकार में मंदिर का ट्रस्ट ईसाइयों के हाथ में चला गया था ।
उड़ीसा और आंध्र प्रदेश की छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों को यह दृश्य पसंद नही आयेगा क्योंकि वह तो जानते हैं कि आंध्र पदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू सेक्युलर नेता हैं और मुस्लिम आरक्षण के प्रबल समर्थक हैं किंतु यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि वह सनातन विरोधी भी कतई नहीं हैं। अभी आगे आने वाले दिनों में आंध्र और उड़ीसा के मुख्यमंत्री सनातन को कुछ और अच्छे समाचार देंगे। विगत पांच वर्षो में विपक्ष में रहकर आंध्र प्रदेश की तेलुगूदेशम पार्टी ने वहां के मंदिरों व संत समाज की सुरक्षा के लिए काफी कार्य व आंदोलन किया है। उधर उड़ीसा में इस बात की प्रबल संभावना है कि समान नागरिक संहिता व धर्मांतरण पर लगाम लगाने के लिए एक व्यापक कानून आए ।
एक अच्छा समाचार यह भी है कि तेलूगुदेशम पार्टी के नेता राममोहन नायडू मंत्री पद की शपथ लेने के बाद जब अपने कार्यालय पहुंचे तब उन्होंने सबसे पहले 21 बार ॐ श्रीराम लिखा और उसके बाद पहली फाइल पर हस्ताक्षर किये। नायडू को नागरिक उड्डयन मत्री बनाया गया है, उनके पिता एर्नाकुलम से बहुत ही कम आयु में सांसद बने थे राम मोहन नायडू के पिता राम भक्त थे तथा राजनीति में चंद्रबाबू नायडू के बहुत करीबी थे।राम मोहन नायडू एक युवा सांसद हैं और वह चाहते हे कि देश के गरीब नागरिक भी हवाई जहाज में यात्रा कर सकें। तेलुगु देशम पार्टी के सांसद का ॐ श्रीराम लिखना सेक्युलर विचारकों के लिए हैरान करने वाला रहा।
जगन्नाथ मंदिर के सभी द्वार खुलने और तिरुपति देवस्थानम की पवित्रता वापस लाने के प्रयासों से से चारों दिशाओं में सनातन का डंका बजने वाला है।
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं.- 9198571540
18वें एमआईएफएफ में ‘अमृत काल में भारत’ पर लघु फ़िल्म के लिए विशेष पुरस्कार दिया जाएगा
कक्षा से लेकर प्रतियोगी होने तक: एमआईएफएफ 2024 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के तहत 12 छात्र फ़िल्में प्रतिस्पर्धा करेंगी
मुंबई> 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के रूप में सिनेमाई उत्कृष्टता की खोज को एक मंच मिलेगा, जिसमें भारतीय सिनेमा की जीवंत झलक प्रदर्शित की जायेगी। रिकॉर्ड 840 प्रविष्टियों के साथ, महोत्सव सावधानीपूर्वक चयन की गयी 77 फिल्मों का अनावरण करेगा, जो राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग ले रहीं हैं। राष्ट्रीय प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रतिस्पर्धा करने वाली फिल्में 01 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2023 के बीच भारतीय नागरिकों द्वारा भारत में निर्मित की गई हैं।
इस साल 15 से 21 जून के बीच आयोजित किया जा रहा एमआईएफएफ, भारतीय सिनेमा के भविष्य का प्रतीक है। नवोदित निर्देशकों की 30 उल्लेखनीय फिल्मों और 12 छात्र कृतियों ने प्रतियोगियों के बीच अपनी जगह बनायी है। नए दृष्टिकोणों और कहानियों की नयी दृष्टि से मोहित होने के लिए तैयार हो जाइए। आप राष्ट्रीय प्रतियोगिता की फ़िल्मों की पूरी सूची यहाँ देख सकते हैं। https://miff.in/wp-content/uploads/2024/06/National-Competition-MIFF-2024.pdf
राष्ट्रीय प्रतियोगिता के अंतर्गत फ़िल्में तीन श्रेणियों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं:
*राष्ट्रीय वृत्तचित्र प्रतियोगिता: इस खंड में 30 विचारोत्तेजक वृत्तचित्र दिखाए जा रहे हैं।
*राष्ट्रीय प्रतियोगिता: लघु कथा और एनीमेशन: लघु कथा और एनीमेशन शैलियों को शामिल करने वाली 41 फिल्मों के साथ कहानी कहने की शक्ति का अनुभव करें।
*राष्ट्रीय प्रतियोगिता: अमृत काल में भारत: इस विषय पर केन्द्रित व विशेष रूप से निर्मित छह फिल्मों के माध्यम से देश के भविष्य की परिकल्पना करें।
विजेता फिल्मों और फिल्म निर्माताओं (नीचे सूचीबद्ध) के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार, प्रतिष्ठा को और भी बढ़ा देते हैं, जिससे एमआईएफएफ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भागीदारी वास्तव में एक प्रेरणादायक उत्सव बन जाती है।
भारत के रचनाकारों को अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में जागरूक होने की जरुरत
तमिल एनिमेशन फिल्म ‘अयलान’ हिंदी और अन्य भाषाओं में भी आएगी: फिल्म के वीएफएक्स सुपरवाइजर बेजॉय अर्पुथराज
प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक नमन रामचंद्रन ने कहा, भारतीय एनिमेशन पात्रों की परिकल्पना भारत के समृद्ध इतिहास से ली जानी चाहिए
मुंबई। भारत में, रचनाकारों को अपने रचनात्मक उत्पादों को पंजीकृत कराने और उस पर अधिकार अर्जित करने के महत्व को समझने की आवश्यकता है। मनोरंजन क्षेत्र की कानूनी विशेषज्ञ अनामिका झा ने कहा कि किसी रचनात्मक उत्पाद का स्वामी या लेखक होने से, किसी व्यक्ति को उल्लंघन के खिलाफ कानूनी सुरक्षा मिल सकती है।
ग्रीन गोल्ड एनिमेशन प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ राजीव चिलका, जिनके स्टूडियो से ‘छोटा भीम’ की शुरुआत हुई, ने दर्शकों को बच्चों के इस लोकप्रिय पात्र की विकास यात्रा से अवगत कराया। इस पात्र ने इस साल अप्रैल में 16 साल पूरे कर लिए हैं और अभी भी बेहद लोकप्रिय है। राजीव चिलका ने कहा कि इस पात्र के छह स्पिन-ऑफ हो चुके हैं और छोटा भीम से जुड़े उत्पाद पूरे देश में बहुत अच्छी तरह से बिक रहे हैं। उन्होंने बताया, “मैंने शुरुआत में ही इस पात्र को पंजीकृत करा लिया था।” उन्होंने खुलासा किया कि अमेज़ॅन द्वारा छोटा भीम के सभी संस्करण खरीद लेने के बाद, उनकी कंपनी ने नेटफ्लिक्स के लिए ‘शक्तिशाली छोटा भीम’ (माइटी लिटिल भीम) बनाया, जहां इस सीरीज ने चार सीजन में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।
फैंटम एफएक्स के निदेशक बेजॉय अर्पुथराज ने बताया, “अयलान नाम के पात्र के बौद्धिक संपदा का स्वामी बनने की हमारी चाहत के पीछे एक बड़ा कारण यह था कि हमें लगा कि यह विपणन योग्य है और इसका फायदा मिलेगा।” उन्होंने भी इस पर काम शुरू करने से पहले बौद्धिक संपदा अधिकार हासिल कर लिया था। अब जबकि ‘अयलान’ का तेलुगु संस्करण पहले ही आ चुका है, निर्माता इसे हिंदी और अन्य भाषाओं में भी रिलीज करने की योजना बना रहे हैं।
फिल्म समीक्षक नमन रामचंद्रन ने कहा, लोग कोविड के बाद की दुनिया में अधिक स्थानीय मनोरंजन उत्पाद चाहते हैं। अपनी बात को समझाते हुए, उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर एक भारतीय जहां नारकोस देखना पसंद करेगा, वहीं एक मैक्सिकन मिर्ज़ापुर देखना चाहेगा, । इस संदर्भ में, उनका मानना है कि भारतीय एनीमेशन पात्रों की परिकल्पना भारत के समृद्ध इतिहास से ली जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत एक बड़ा बाजार है और निर्माताओं को कंटेंट के लिए विदेशों की ओर देखने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि विचारों की जड़ें स्थानीय स्तर पर गहरी होनी चाहिए। राजीव चिलका ने भी बताया कि, प्रसारक भारतीयकृत कंटेंट की खोज में थे और इस तरह ‘छोटा भीम’ का जन्म हुआ। वर्ष 2008 में यह पहली बार प्रसारित हुआ और तुरंत हिट हो गया।
‘रचनाकारों की वकील’ के नाम से प्रसिद्ध कानूनी विशेषज्ञ अनामिका झा ने परिचर्चा में भाग लेने वाले नवोदित रचनाकारों को यह कहकर सावधान किया कि “’यदि आप किसी पात्र में अपना और आत्मा लगाते हैं, तो आपको उसके बौद्धिक संपदा अधिकारों का स्वामी होना ही चाहिए।” श्री आशीष कुलकर्णी ने दोहराया कि भारत में कई रचनाकारों और कलात्मक लोगों को अपने रचनात्मक उत्पादों के कॉपीराइट के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है।
फिल्म महोत्सव ने “इंस्पायरिंग नैरेटिव्स: इनोवेशन एंड क्रिएटिविटी” पर पैनल चर्चा
मुंबई। 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) ने आज “इंस्पायरिंग नैरेटिव्स: इनोवेशन एंड क्रिएटिविटी” शीर्षक से एक उत्साहपूर्ण पैनल चर्चा का आयोजन किया। इस सत्र में उभरते सामाजिक उद्यमियों ने भाग लिया, जिन्होंने समाज में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के उद्देश्य से अपनी पहल साझा की। चर्चा में इन नवोन्मेषकों की व्यक्तिगत यात्राओं का पता चला, जिसमें बताया गया कि कैसे उन्होंने चुनौतियों का सामना किया, रचनात्मकता को अपनाया और अपने विचारों को जीवन में लाने के लिए बाधाओं को पार किया। लैंगिक मानदंडों को तोड़ने से लेकर सामाजिक बाधाओं को पार करने तक, पैनलिस्टों ने अंतर्दृष्टि और अनुभव साझा किए, दूसरों को अपने जुनून को आगे बढ़ाने और एक स्थायी प्रभाव बनाने के लिए प्रेरित किया।
इन सफलता की कहानियों का उत्सव मनाने और लाखों लोगों को प्रेरित करने के प्रयास में, उनकी जीवन यात्रा को दर्शाने वाली एनिमेशन फिल्में राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) और नेटफ्लिक्स द्वारा ‘आज़ादी की अमृत कहानियां’ श्रृंखला के हिस्से के रूप में को-प्रोड्यूस की जा रही हैं। चर्चा के दौरान इन फिल्मों के ट्रेलर दिखाए गए। प्रधानमंत्री कार्यालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा चुने गए इन नवोन्मेषकों की कहानियां एनएफडीसी और नेटफ्लिक्स के बीच सहयोगी पहल का केंद्र हैं। राज कुमार राव द्वारा कुशलतापूर्वक सुनाई गई एनिमेशन और लाइव-एक्शन को मिलाकर आकर्षक कहानी कहने की तकनीकों के माध्यम से, इन परिवर्तन-निर्माताओं की प्रभावशाली यात्राओं को प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस सीरीज पर प्रकाश डालते हुए भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय में स्ट्रैटजिक एलाएंस की निदेशक डॉ. सपना पोती ने कहा कि ये केवल एनिमेटेड कहानियां नहीं हैं, बल्कि सामाजिक नवोन्मेषकों की गाथाएं हैं जो लाखों लोगों को प्रेरित करेंगी। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नवोन्मेष केवल कुछ नया विकसित करना नहीं है, बल्कि यह टिकाऊ भी होना चाहिए। उन्होंने कहा, “इस सीरीज की प्रत्येक कहानी में स्थिरता है, जिसे बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि पूरे देश के लोग उनकी जीवन यात्रा के बारे में जान सकें। यही कारण है कि सरकार ने उनकी कहानियों को उजागर करने के लिए इस मंच को चुना है।”
पैनल चर्चा को संबोधित करते हुए, मायलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस के प्रबंध निदेशक और सह-संस्थापक हसमुख रावल ने बताया कि अभिनव समाधान लाने का सबसे अच्छा तरीका उन्हें यूजर्स के लिए आसान, सुलभ और सुविधाजनक बनाना है। उन्होंने स्व-उपयोग के लिए अग्रणी कोविड-19 टेस्ट किट कोविसेल्फ़ के पीछे की सफलता की कहानी का उदाहरण दिया।
एंगिरस के सह-संस्थापक और सीटीओ लोकेश पी. गोस्वामी ने अपनी प्रेरक कहानी साझा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक सामाजिक उद्यमी को एक बड़ी सामाजिक समस्या को एक व्यक्तिगत मुद्दे के रूप में देखना चाहिए। उनका मानना है कि जिम्मेदारी की यह भावना नवाचार को बढ़ावा देगी।
अन्य प्रतिभागियों में पूर्वोत्तर भारत के छात्रों के लिए स्थानीय भाषाओं में ई-लर्निंग सेवाएं प्रदान करने के लिए समर्पित कंपनी आहार एडुस्मार प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक अमित घोष, क्रिएटिव एजेंसी द गुड स्टफ स्टूडियो (टीजीएस) की सह-संस्थापक और क्रिएटिव डायरेक्टर मेघना रॉय और एंगिरस की सह-संस्थापक कुंजप्रीत अरोड़ा शामिल थे। उन्होंने चर्चा के दौरान अपने अनुभव और अंतर्दृष्टि साझा की।
सत्र का संचालन आदित्य कुट्टी ने किया, जो वर्तमान में कानूनी निदेशक के रूप में नेटफ्लिक्स में हेड ऑफ लिटिगेशन एंड रेगुलेटरी फंक्शन मुकदमेबाजी और विनियामक कार्य के प्रमुख के तौर पर काम करते हैं।
18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) में पर्यावरण से प्रेरित फिल्में
मुंबई। टिकाऊ जीवनशैली को प्रोत्साहन देने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति नागरिक जिम्मेदारी की भावनोत्पत्ति के प्रयास में, मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) का 18वां संस्करण “मिशन लाइफ” नामक एक विशेष पैकेज प्रस्तुत करेगा। सीएमएस वातावरण द्वारा प्रस्तुत इस संग्रह में पांच विचारपूर्वक चुनी गई फ़िल्में शामिल हैं जो मानवता और पृथ्वी के बीच जटिल व सहजीवी संबंधों को प्रस्तुत करती हैं। ये फ़िल्में ब्रह्मांड के साथ हमारे गहरे संबंध की मार्मिक याद दिलाती हैं और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर ज़ोर देती हैं।
“मिशन लाइफ़”: विशेष पैकेज के अंतर्गत प्रदर्शित की जाने वाली फ़िल्में
1. सेविंग द डार्क
दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी अब आकाशगंगा को नहीं देख सकती। जब हम सितारों को देखने से वंचित हो जाते हैं तो हम क्या खो देते हैं? अत्यधिक और अनुचित प्रकाश व्यवस्था हमारे रात के आसमान को छीन लेती है, हमारी नींद के पैटर्न को बाधित करती है और रात्रि में सक्रिय रहने वाले जीव-जंतुओं को खतरे में डालती है। एलईडी तकनीक में बेहतरी ने कई शहरों को रात के समय के वातावरण को बाधित किए बिना अपनी सड़कों को सुरक्षित रूप से रोशन करने और ऊर्जा बचाने में सक्षम बनाया है। ‘सेविंग द डार्क’ फिल्म रात्रि के आसमान को संरक्षित करने की आवश्यकता और प्रकाश प्रदूषण से निपटने के लिए हम क्या कर सकते हैं, इसे प्रस्तुत करती है।
2. लक्ष्मण-रेखा
फिल्म “लक्ष्मण-रेखा” एक आत्मीय सिनेमाई प्रस्तुति है कि कैसे स्कूल की पढ़ाई छोड़ देने वाले लक्ष्मण सिंह ने एक सूखाग्रस्त गांव को एक स्वैच्छिक समूह के रूप में परिवर्तित कर दिया जिसने भारत में मुख्य रेगिस्तान के 58 गांवों की किस्मत बदल दी। यद्यपि जल की आपूर्ति आज भी अनियमित है तथापि उनका पानी की प्रत्येक बूंद को बचाने के बारे में जागरूकता पैदा करने का मिशन जारी है। लेकिन क्या लोग उसे गंभीरता से स्वीकारते हैं या वे किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं?
3. द क्लाइमेट चैलेंज
हम जलवायु संकट के कगार पर खड़े हैं। जलवायु परिवर्तन की आपदा झेल रहे सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र दुनिया के क्रायोस्फ़ेरिक क्षेत्र (आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय) और महासागर हैं। हाल के वर्षों में आर्कटिक महासागर की बर्फ़ की परत 30 प्रतिशत से अधिक कम हुई है और इस क्षेत्र की बर्फ़ तेज़ी से पिघल रही है। वैज्ञानिक अब इस धरती पर सबसे कठोर परिस्थितियों में नवीनतम तकनीक का उपयोग केवल इन परिघटनाओं पर अनुसंधान करने के लिए कर रहे हैं। द क्लाइमेट चैलेंज फिल्म आपको आर्कटिक, हिमालय और दक्षिणी महासागर की यात्रा पर ले जाती है ताकि आप कुछ जानलेवा स्थितियों को देख सकें हैं और उनके आशय को समझ सकें।
4. द ज्वार बैलड (ज्वार गाथा)
ज्वार की गाथा (द ज्वार बैलड) फिल्म में बाजरा उगाने की पारंपरिक पद्धति के साथ मिलकर बाजरे की देशी किस्में, विविध व्यंजनों का सजीव चित्रण किया गया है। गीतों, अनुष्ठानों, कहानियों के माध्यम से समृद्ध परंपराएं प्रकट होती हैं जबकि किसान शुष्क भूमि में बाजरे की कमी पर दुःख व्यक्त करते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि कृषि फसल की नई किस्में स्वास्थ्य और फसल के लिए जोखिम लेकर आती हैं।
5. पेंग यू साई
पेंग यू साई एक खोजी वृत्तचित्र है जो भारत के महासागरों से जलीय प्रजाति मंटा रे के अवैध व्यापार पर प्रकाश डालता है। इस वृत्तचित्र के माध्यम से, वन्यजीव प्रस्तुतकर्ता मलाइका वाज़ हिंद महासागर में मछली पकड़ने वाले जहाजों से लेकर भारत-म्यांमार सीमा तक और अंत में चीन में हांगकांग और ग्वांगझोउ के वन्यजीव तस्करी केंद्रों में गुप्त रूप से अवैध व्यापार पाइपलाइन को दर्शाती हैं। इसके साथ ही- वह मछुआरों, बिचौलियों, तस्करों, सशस्त्र बलों के कर्मियों और वन्यजीव व्यापार सरगनाओं से मिलती है, और यह समझने की कोशिश करती है कि इन उत्कृष्ट महासागरीय दीर्घकाय जीवों की रक्षा के लिए क्या करना होगा।
फिल्म महोत्सव में सृजन और सफलता की रणनीतियों के लोकतांत्रीकरण पर चर्चा
मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) 2024 में “एडवेंचर से रेवेन्यू तक: कंटेंट क्रिएटर्स के लिए सफलता की रणनीतियां” शीर्षक से एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। चर्चा इस बात पर केंद्रित थी कि कैसे प्लेटफ़ॉर्म ने कंटेंट निर्माण को लोकतांत्रिक बनाया है, जिससे सभी क्षेत्रों के क्रिएटर्स को अपनी कहानियां साझा करने में मदद मिली है। पैनलिस्टों ने प्रामाणिक भारतीय कंटेंट की बढ़ती मांग पर भी प्रकाश डाला और नए कंटेंट क्रिएटर्स के लिए सफलता की रणनीतियों के बारे में जानकारी साझा की।
इस पैनल चर्चा में यूट्यूब की मूवी कंटेंट पार्टनरशिप प्रमुख नम्रता राजकुमार, द वायरल फीवर (टीवीएफ) प्रोडक्शंस के अध्यक्ष विजय कोशी, गोप्रो इंडिया के मार्केटिंग और कम्युनिकेशंस के निदेशक यतीश सुवर्णा, शेफ से फोटोग्राफर बने यश राणे, कश्मीर के एथलीट और एडवेंचर फिल्म निर्माता रिज़ा एली, हैदराबाद के यूट्यूबर साई तेजा ने हिस्सा लिया। इसका संचालन अभिनेता, निर्माता और सीबीएफसी की सदस्य वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने किया।
यूट्यूब पर नए कंटेंट क्रिएटर्स के लिए अवसरों के बारे में बात करते हुए नम्रता राजकुमार ने कहा कि यूट्यूब एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो लघु, दीर्घ और अत्यंत दीर्घ जैसे कई प्रारूपों में कंटेंट बनाने की सुविधा प्रदान करता है।
यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने वास्तव में कंटेंट के सृजन को लोकतांत्रिक बना दिया है क्योंकि वे किसी भी व्यक्ति को कहीं से भी क्रिएटर बनने में सक्षम बनाते हैं। आप यूट्यूब पर गांव से लेकर शहरों तक सफलता की कई कहानियां देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, केरल के एक गांव का एक क्रिएटर जैसा पारिवारिक व्यक्ति है, जिसके 50 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर हैं, हमारे पास किसान, ट्रक ड्राइवर हैं जो हमारे कंटेंट क्रिएटर हैं जिनके पास बड़ी संख्या में फ़ॉलोअर्स हैं। उन्होंने कहा कि हर किसी के पास बताने के लिए एक कहानी है और यूट्यूब इसके लिए सबसे अच्छा प्लेटफ़ॉर्म है।
इस चर्चा में विजय कोशी ने अपने प्रोडक्शन हाउस टीवीएफ की कहानी के बारे में बताया। उन्होंने कहा, टीवीएफ की यात्रा सभी प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउस से ‘खारिज किए जाने’ से शुरू हुई। फिर हमने यूट्यूब को एक प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया और इस पर अपना चैनल बनाया। आज भारत में आइएमबीडी पर सबसे ज़्यादा रेटिंग वाले 11 टीवी शो हैं। उनमें से 7 टीवीएफ द्वारा बनाए गए हैं और उनमें से भी 5 विशेष रूप से यूट्यूब पर संचालित शो हैं। वेब सीरीज़ – पंचायत का ज़िक्र करते हुए, उन्होंने नए क्रिएटर्स से ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अद्वितीय भारतीय कंटेंट बनाने की अपील की।
चर्चा में आगे यश राणे, रिज़ा अली, साई तेजा ने भी चैनल बनाने, वीडियो अपलोड करने और दर्शकों से मिले फीडबैक के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि अगर आपका काम वास्तविक और अनूठा है, तो दर्शकों से आपको सकारात्मक प्रतिक्रिया ज़रूर मिलेगी।
एक देश एक चुनावः कोई इस रिपोर्ट को पढ़े तो सही
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष व भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं)
संघर्ष के दिनों के साथी पुराने मित्र से मिलकर गदगद हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने श्री अनेर सिंह से ढेर सारी बाते की, उनका हालचाल जाना और स्वास्थ्य की जानकारी भी ली। मुख्यमंत्री ने यंत्र लगाने के बाद पूछा आवाज आत हे, सुनात हे। श्री सिंह ने जवाब दिया अब अच्छे से आवाज आ रही है और इसे चलाना भी सीख गया हूं। उन्होंने मुख्यमंत्री को पहले जैसा पाकर अपनी खुशी भी जाहिर की। मुख्यमंत्री ने कहा अपनों से मुलाकात हमेशा सुखद होता है। उन्होंने श्री सिंह से जशपुर आकर मिलने का वादा भी किया।
डॉक्यूमेंट्री फिल्म “माई मर्करी” ms मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का शुभारंभ
मुंबई। डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिक्शन और एनिमेशन फिल्मों के लिए मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के 18वें संस्करण में आज डॉक्यूमेंट्री “माई मर्करी” का बड़े पर्दे पर अंतर्राष्ट्रीय प्रीमियर हुआ। जोएल चेसेलेट द्वारा निर्देशित यह फिल्म उनके भाई, जो दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया के तट पर मर्करी द्वीप पर एक अकेला संरक्षणवादी है, यवेस चेसेलेट के जीवन की एक गहरी व्यक्तिगत और चुनौतीपूर्ण यात्रा प्रस्तुत करती है।
दुनिया के शोरगुल और भागदौड़ से बचने की अपने भाई की इच्छा पर प्रकाश डालते हुए, चेसेलेट कहती हैं “एक द्वीप पर रहने के लिए आपको एक खास तरह के व्यक्तित्व की जरूरत होती है।” 104 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री यवेस चेसेलेट की असाधारण दुनिया जहां समुद्री पक्षी और सील ही उनके एकमात्र साथी हैं, और मर्करी द्वीप में संरक्षण के उनके प्रयासों को दिखाती है। लुप्तप्राय प्रजातियों को द्वीप पर पुनः लाने का उनका साहसी मिशन बलिदान, विजय और मनुष्य और प्रकृति के बीच बने गहरे संबंधों की एक आकर्षक कहानी के रूप में सामने आता है। यह फिल्म लुप्तप्राय समुद्री पक्षियों की संख्या में गिरावट और अन्य वन्यजीवों के अस्तित्व पर सील से खतरे पर प्रकाश डालती है।
एमआईएफएफ का 18वां संस्करण 15 से 21 जून 2024 तक मुंबई के पेडर रोड स्थित राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम-फिल्म्स डिवीजन परिसर में आयोजित किया जा रहा है।
चेसेलेट ने “माई मर्करी” को एक पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक फिल्म बताया है जो मानव की जटिल मानसिकता और प्रकृति के साथ हमारे रोमांचक संबंधों की तलाश करती है। उन्होंने कहा, “द्वीप एक सीमित और चुनौतीपूर्ण स्थान है।” उन्होंने सुझाया कि ऐसा वातावरण मानसिक रूप से थका देने वाला हो सकता है। चेसेलेट ने कहा, “फिल्म दिखाए गए सभी घटनाक्रम सच है।” उन्होंने कहा कि गायब फुटेज के स्थान पर केवल कुछ फुटेज को पुनर्निर्मित किया गया हैं।
फिल्म का केंद्रबिंदु मर्करी द्वीप है जो नायक के लिए एक “आत्मिक स्थान” के रूप में दर्शाया गया है, जो उसके प्रयासों से स्वर्ग में बदल गया है। फिल्म का शीर्षक, माई मर्करी, द्वीप के साथ नायक के इस घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है।
चेसेलेट ने पारिस्थितिकी संतुलन में मानव और गैर-मानवीय अंतर्क्रियाओं के बीच जटिल अंतर्संबंध को रेखांकित किया है। उन्होंने बताया, “मानव को संतुलन से अलग करने पर सील की संख्या में वृद्धि और समुद्री पक्षियों की संख्या में कमी आई है,” साथ ही उन्होंने बताया कि अत्यधिक मछली पकड़ने से भी समस्या बढ़ी है। फिल्म पर्यावरण के मुद्दों पर लोगों से सतही राजनीतिक चिंताओं से आगे बढ़ने का आग्रह करती हुई अधिक जागरूकता और कार्रवाई का आह्वान करती है। उन्होंने कहा, “प्राकृतिक दुनिया का वर्णन करने की भावुकता जरूरी नहीं कि रचनात्मक ही हो। सूक्ष्म और स्थूल दोनों अर्थों में जागरूकता महत्वपूर्ण है।”
फिल्म के संवेदनशील विषय को देखते हुए, चेसेलेट ने उद्योग की सनसनीखेज और हर चीज को जबरदस्ती थोपने की प्रवृत्ति को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “चूंकि यह एक मार्मिक विषय है और नायक मेरा अपना भाई है, इसलिए मुझे सावधानी से आगे बढ़ना होगा।”
माई मर्करी के फोटोग्राफी निदेशक लॉयड रॉस ने सील से निपटने के नायक के तरीकों के कारण फिल्म की विवादास्पद प्रकृति को दोहराया। इसके बावजूद, प्रकृति संरक्षण समुदाय ने फिल्म को मजबूत समर्थन दिया है। रॉस ने द्वीप पर फिल्मांकन की समान ले जाने की चुनौतियों का वर्णन करते हुए कहा कि “द्वीप में प्रवेश करना बहुत कठिन है क्योंकि इसका समुद्र तट सामान्य न होकर चट्टानों से भरा हैं।”
माई मर्करी एक विचारोत्तेजक वृत्तचित्र है, जो न केवल महत्वपूर्ण संरक्षण मुद्दों पर प्रकाश डालता है, बल्कि प्रकृति के साथ गहन मानवीय संबंधों पर भी प्रकाश डालता है।