महाभारत : विदेशों में प्रचार प्रसार ..

भारतीय साहित्य की यह विशेषता रही है कि भारत के बाहर भी उसे भारत के जितना ही मान सम्मान मिला है। संस्कृत के अनेक ग्रन्थों ने विदेशों की यात्राएं की हैं जिनमें से एक है वेदव्यास कृत महाभारत .. महाभारत विदेशों में अनेक प्रकार से लोकप्रिय हुआ। कहीं उसके अंशो का अनुवाद किया गया तो उस पर नाट्य मंचन भी पेश किए गए जिनके कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं –
1..जवाई नरेश जयबम के शासनकाल में उन्हीं के राजकवि पेनूलू ने महाभारत का अनुवाद ‘ बरत युद्ध ( भारत युद्ध ) के नाम से जावा की प्राचीन भाषा में किया साथ ही साथ उस देश में महाभारत के गद्य को रूपांतरित करके नाट्य मंचन भी होने लगा।
2. मलय देश के साहित्य में भी महाभारत को स्थान मिला। उस देश में ‘ हिकायत पांडव लिम’ के नाम से महाभारत का अनुवाद किया गया।
3. संग सत्यवान के नाम से मलय देश में सावित्री सत्यवान की कथा को अनुवादित किया गया जोकि महाभारत के वनपर्व का एक उपाख्यान है।
4.जर्मन विद्वान ‘ होल्ट्ज्मान् ‘ ने महाभारत का अध्ययन करने के पश्चात उस पर एक आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखा जो ‘ द् महाभारत उंड सेन टेल ‘ के नाम से प्रकाशित हुआ।
5.डेनमार्क के डॉ सोयेन ने भी महाभारत का अनेक वर्षों तक अध्ययन करके उस ग्रन्थ में आने वाले नामों की एक बृहद वर्ण अनुक्रमणिका ( index ) तैयार की जिसका प्रकाशन सन् 1925 में हुआ ।
6. मुगलों के शासनकाल में भी महाभारत का जादू कम नहीं हुआ। मुगल सम्राट अकबर ने महाभारत का अनुवाद ‘ रज्मनामा ‘ के नाम से फारसी भाषा में कराया। यह अनुवाद अब्दुल कादिर बदायूनी , नकीब खां द्वारा किया गया।
7. चार्ल्स विल्किन्स ( Charles Wilkins) ने महाभारत का अध्ययन करते हुए श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद अंग्रेजी में किया जो ‘ Dialogues of Kreeshna arjun ‘ के नाम से सन् 1785 में लंदन से प्रकाशित हुआ। बाद में इसी अंग्रेजी अनुवाद के आधार पर गीता फ्रेंच और जर्मन में भी अनुवाद हुआ।
8. दक्षिण पूर्व एशिया के कंबोडिया देश के अंगकोरवाट नामक एक मंदिर में महाभारत से सम्बंधित प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं जिसके पत्थरों को तराश कर उन पर महाभारत के पात्रो को चित्रित किया गया है।
9. चम्पा देश के भूतकालीन राजा प्रकाशधर्म ने अपने समय में एक अभिलेख उत्कीर्ण कराया था जिसमें महाभारत के अनुशासन पर्व के कथानक का अनुगुंजन है।
10. इंडोनेशिया देश में महाभारत के एक पात्र कुंती को वहाँ देवी कुंती के नाम से संबोधित किया जाता है।
महाभारत-संस्कृत श्लोक व हिन्दी अनुवाद। 
महाभारत में से अनावश्यक, असम्भव, असभ्य और काल्पनिक मिलावट को हटा कर आदर्श स्वरूप में प्रकाशित किया है। लगभग 16000 श्लोकों में मूल कथा को संरक्षित रखा है।
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गौहत्या ही राष्ट्र हत्या है

महान् देशभक्त , महान् गोभक्त , महर्षि दयानन्द  सरस्वती भारत के उन सन्तों एवं महर्षियों में अग्रगण्य थे  जिन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार एवं गोरक्षा के प्रचार – प्रसार में ही अपना महान् बलिदान दे दिया था। भारत का यह महर्षि उस समय सामाजिक सुधार के कार्यक्षेत्र में अवतीर्ण  हुआ था जब १८५७ में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के स्फुलिंग फूट – फूटकर देश के चारों कोनों में व्याप्त हो रहे थे। सबसे पहले स्वराज्य के मन्त्रदाता इस महर्षि ने संगठित रूप से गोहत्या बंदी की आवाज उठाई थी ।

इसके प्रमाण के रूप में डॉ फर्रुखसियर ने जो उसी  ईस्वी शताब्दी आरम्भिक दशक में भारत भ्रमण पर आया था , उसने भारत से वापिस जाकर एक पुस्तक लिखी थी| जिसका नाम है- “ दी रिलीजस मूवमेंट इन इण्डिया ” इस पुस्तक में उसने लिखा- “ भारत में एक आग सुलगने लगी है जो पता नहीं किस दिन ज्वालाओं का रूप धारण  कर ले और उसमें अंग्रेजी राज्य जलकर भस्म हो जाये। ” इस आग को सुलगाने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम ही उसने लिखा है। उसने महर्ज़ि के सम्बन्ध में लिखा- ” इस व्यक्त ने १८५७ के संग्राम के बाद एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ” गोकरुणानिधि ” है। उसमें दयानन्द ने एक स्थल पर लिखा है- ” जो सुखकारक पशुओं के गले छुरों से काटकर अपना पेट भरकर संसार की हानि करते हैं क्या संसार में उनसे अधिक कोई विश्वासघाती औरअ अनुपकारी दुःख देने वाले पापी जन होंगे। ” उस महर्षि ने वहां पर फिर लिखा- ” गो आदि। पशुओं के नाश होने से राजा और प्रजा का नाश हो जाता है।
” इस प्रकार १८५७ के स्वातन्त्र्य संग्राम में जहां विदेशी शासन को उतार फैंकने की प्रबल भावना महर्षि ने पैदा की थी , उसी गोरक्षा की भावना के कारण ही १८५७ में गाय की चर्बी लगे कारतूसों को सिपाहियों ने अपने हाथ से छूना भी पसंद न किया था। मंगलपाण्डे ने इसी बगावत के कारण मेजर ह्यूसन को गोली से उडा दिया था। मंगल पाण्डे को भी अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। रानी विक्टोरिया ने जो इस बगावत के बाद घोषणा की थी कि उसमें गोवध रोकने की भी की गई थी। इस गोवध बंदी की घोषणा की महर्षि ने अपनी पुस्तक में की है। राजस्थान के पोलिटिक्ल एजेंट कर्नल ब्रुक्स जब रिटायर्ड होकर इंग्लैण्ड जाने लगे तो उनकी विदाई सभा में भी महर्षि ने कर्नल ब्रुक्स से कहा था- ” हमारी ओर से रानी विक्टोरिया को जाकर यह कह देना कि अंग्रेजी शासन के मस्तक पर लगे गोवध के कलंक से भारतीय बहुत असंतुष्ट हैं।
  ” गोकरुणानिधि पुस्तक लिखते समय महर्षि इतने द्रवित एवं अश्रुपूर्ण आंखों से परमात्मा की ओर अपनी लेखनी उठाकर बोल उठे- “ हे परमेश्वर ! तू क्यों इन पशुओं पर जो कि बिना अपराध मारे जाते हैं दया नहीं करता ? क्या इन पर तेरी प्रीति नहीं है ? क्या इनके लिए तेरी न्यायसभा बंद हो गई है ? क्यों उनकी पीड़ा छुड़ाने पर तू ध्यान नहीं देता ? और उनकी पुकार क्यों नहीं सुनता ?
 इससे प्रतीत होता है कि महर्षि को गोहत्या होने से पर्याप्त आन्तरिक कष्ट था। गोकरुणानिधि पृथक् पुस्तक लिखने के बाद सत्यार्थप्रकाश के दसवें समुल्लास में उन्होंने इस समस्या को फिर उठाया है। गाय के होने वाले लाभों से सबसे सुव्यवस्थित आंकड़े जितने महर्षि ने देकर उस समय भारतीयों का ध्यान आकृष्ट किया था। इसके साथ ही उन्होंने भारत में सबसे पहले गोशाला रिवाड़ी में आपके ही हाथों से स्थापित कर रचनात्मक कार्यक्रम दिया था। जहां महर्षि ने गोवध बंदी की ध्वनि ऊंचे स्वर से गुजारित की वहां साथ ही साथ “ गोकृष्यादि रक्षिणी सभा की भी स्थापना की थी। कृषि करने वाले किसानों के विषय में भी महर्षि ने ऐलान किया- ” राजाओं के राजा किसान आदि परिश्रम करने वाले होते हैं। ” की उन्नति का मार्ग किसानों के खेतों से ही गुजरता है।
 वैसे तो महर्षि प्राणिमात्र की हत्या के विरोधी थे , परन्तु गाय के आर्थिक , नैतिक , सांस्कृतिक रूप के कारण वह गाय को प्रमुखता देते थे। पीछे वेदों के अर्थों का अनर्थ जिन लोगों ने किया और यज्ञों ने गोमांस डालने का विधान वेदों से किया और गोमेध ‘ जैसे यज्ञों में गौओं की हत्या का विधान किया , महर्षि ने वेदों का भाष्य करते समय उन सबका खण्डन किया। वेदों का सच्चा स्वरूप प्रकट किया।
भारतीय स्वाधीनता का शंखनाद करते समय महर्षि ने राजस्थान के क्षत्रिय राजाओं को गोहत्या के प्रश्न पर धिक्कारते हुए कहा था- ” आप कैसे क्षत्रिय हैं ? जब सात समुद्र पार से आकर विदेशी अंग्रेजों ने भारत भूमि पर गोहत्या आरम्भ कर दी फिर आप का यह क्षत्रियापन किस दिन काम आएगा ? तुम क्षत्रिी के रहते हुए भारत माता की छाती पर गाय का खून बहे यह कितने दुःख की बात है। ” गोरक्षा के लिये इतना करते – करते उन्होंने आपने जीवन के चलते – चलते उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया वह भी गोहत्या के ही विरोध में था।
ब्रिटिश पार्लियामेंट के नाम पर गाय जैसी सर्वोपाकारी पशु के लिए एक बहुत ही गंभीर और गोरक्षा की युक्तियों से भरी हुई चिट्ठी लिखकर राजा महाराजाओं से लेकर भारत की निर्धन जनता से स्वयं घूम – घूमकर स्थान – स्थान पर जाकर करोड़ों हस्ताक्षर महर्षि ने करवाए। पार्लियामेंट में उनके द्वारा भेजी गई करोड़ों व्यक्तियों की उस आन्तरिक पुकार की क्या प्रतिक्रिया रही इसके परिणाम महर्षि जान भी न पाए थे कि उन्हें विष दे दिया गया। गोरक्षा की वेदि पर महर्षि का बलिदान हो गया। महर्षि के संसार से विदा होने के बाद फिर होना ही क्या था ? हुआ भी उल्टा ही। सन् १८८३ में अलीगढ़ के मुहम्मदन कॉलेज के प्रिंसिपल मिस्टर बेक थे। उसने मुसलमानों को उभाकर गोहत्या चालू रहे , इसके हस्ताक्षर कराने आरंभ कर दिए। उसने यह काम दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठ कर कराए। उसने गोहत्या बंदी के विरोध में मुस्लिमों को तैयार किया। यह अंग्रेजों की कूटनीति का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
 महर्षि के बाद उनके द्वारा स्थापित शक्तिशाली संगठन आर्यसमाज ने भी गोहत्या बंदी के कार्यक्रम को बराबर चालू रखा। आर्यसमाज का आन्दोलन जिस उग्रता के साथ आगे बढ़ता जा रहा था , सारे देश की सहानुभूति आर्यसमाज को प्राप्त होती जा रही थी। ब्रिटिश सरकार चिन्तित हो उठी , उसने स्थान – स्थान पर हिन्दू – मुस्लिम दंगे करवाकर आर्यसमाज को बदनाम करने की कोशिश की। १८९३ में उत्तर प्रदेश के बलिया में गाय के प्रश्न पर भयंकर दंगा करवाया गया।
अनेकों स्थानों पर गौ के कारण दंगे करवाए जाते रहे। उधर आर्यसमाज के धुआंधार प्रचार से सांस्कृतिक मनोवृत्ति के कारण तिलक , गोखले , मालवीय आदि कांग्रेसी नेता भी गोवध पर रोक चाहते थे।
 तिलक जी ने तो १९१९ में अपने एक भाषण में कहा था कि स्वराज्य मिलते ही ५ मिनट में ही गोहत्या बंद कर देंगे। मालवीय जी तो गोसम्मेलनों में रो ही पड़ते थे। गांधी जी पहले तो गोहत्या के विरोध में थे , गाय के सम्बन्ध में भी उनका दृष्टिकोण गोहत्या बंदी का ही था। किन्तु जैसे वे हले हिन्दी के पक्ष में थे , बाद में हिन्दुस्तानी के पक्ष में हो गये। इसी प्रकार आद में राजनीति के कारण वे गोहत्या के पक्ष में हो गए उन्होंने कलकत्ता में २२ अगस्त १९४७ को कहा था कि अगर गोरक्षा के प्रश्न को आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो उस हालत में दूधन न देने वाले , कम दूध देने वाले गाएं , बूढ़े और बेकार जानवर बिना किसी बात के सोचे मार डालने चाहिएं। इस बेरहम आर्थिक व्यवस्था की भारत में कोई जगह नहीं है।
 गांधी जी का यह भी कहना था कि भारत में मुसलमान भी रहते हैं , उनकी इच्छा के विरुद्ध गोहत्या कैसे बंद की जा सकती है। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ही तो गांधी जी पाकिस्तान निर्माण का समर्थन करते रहे। पाकिस्तान निर्माण करवाकर उसे ५५ करोड़ रुपये भी दे दिए थे।
अब रही बात महात्मा गांधी जी के परम् सहयोगी प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू की बात – सरकार ने गोहत्या बंदी के विषय में जानकारी के लिए सर दातार की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की थी कि लोकसभा में २ अप्रैल , १९५५ को दातार कमेटी की सिफारिशों पर विचार हो रहा था। नेहरू जी ने उसमें अपने विचार बहुत ही क्रोध एवं आवेश में आकर रखते हुए कहा था  want to make it perfectly clear at the outset that the Govt . are entirely oppesed to this bill . I do not agree and I am prepared to resign from the Prime ministership but I will not give into this kind of अर्थात् मैं आरम्भ से ही यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकार इस गोरक्षा विधेयक के सर्वथा विरुद्ध है। मैं सदन को कहूंगा कि इस विधेयक को बिल्कुल रद्द कर दें। यह राज्य सरकारों का विषय है। मैं उनसे भी कहूंगा कि वे इसे बिल्कुल पास न करें। मैं इससे सहमत नहीं हूं। मैं इसके विरुद्ध प्रधानमन्त्री पद से भी त्यागपत्र देने के लिए उद्यत हूँ। मैं गोरक्षा विधेयक के सामने झुडूंगा नहीं।
 ” कांग्रेसी राज में फिर गोहत्या कैसे बंद हो सकती थी। प्रधानमंत्री नेहरू ही इसके मुख्य कारण थे। वेद हमारे मनुष्य जीवन के लिए परम धर्म माने गए हैं।
गायों के लिए वेद का आदेश है- “ माताए रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाम मतस्य नाभिः। ” ( ऋ०८-१०१-१५ )
प्रस्तुत मन्त्र में न केवल उसे माता कहा गया है अपितु उसे पुत्री और बहन भी कहा गया है। अर्थात् जो हमारे भावनात्मक और पवित्र पारिवारिक सम्बन्ध माता , पुत्री और बहन के साथ है वे ही इस गौ के साथ हैं। वैदिक संस्कृति में गोहत्यारों के लिए दण्ड व्यवस्था है। अथर्ववेद १-१६-४ में कहा गया है-
“ यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम्।
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसीऽचीरहा।। ”
अर्थात् जो हमारे गाय , घोड़े और मनुष्यों का विनाश करता है , उसे हमें सीसे की गोली से मार देना चाहिए। गोहत्यारों के लिए जन तक भारत में यह गोली से उड़ा देने की व्यवस्था रही , तब तक गोडल्या नहीं होती थी। बस , अन्न तो सरकार के एक नियम बना देना चाहिए कि यदि कोई हत्या करता है तो उसे मृत्युदण्ड होना चाहिए। ऋग्वेद १०-८७-१६ में लिखा है योऽघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च।  इसमें गोहत्यारों के सिरों को कुल्हाड़े से काटने का आदेश दिया गया है।
आज देश में लगभग ३६ हजार कत्लखाने हैं। जहां बड़ी सत्रा में सार भर में लाखों पशुओं का कत्ल होता है। देखिये – एक बूचड़खाना हैदराबाद के निकट अलकबीर नाम का है जिसका निर्माण ७५ करोड़ रुपयों की लागत से हुआ है। यह नाम जान बूझकर उसके हिन्दू मालिक एवं एन.आर.आई ने चुना है , क्योंकि उसके इस प्लांट का सारा माल मिडिल ईस्ट मलेशिया के मुस्लिम देशों और ईसाई फिलीपीन को भेजा जाता है। इस कत्लखाने से ७५ करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यहां पर मारी गई गाय – भैंस के हरेक हिस्से का इस्तेमाल होता है। इसकी लैदर – चमड़े की इण्डस्ट्री द्वारा चमड़े के अन्य उत्पादन तथा हड्डियों से खाद तैयार किए जाते हैं। एक बहुत बड़ा कत्लगाह बम्बई के निकट देवनार में भी है। इसमें कत्ल किए गए पशुओं की संख्या २६४१७६८ है। कत्ल किए गए पशुधन का मूल्य १७९४८७९ ००० रुपये है।
ऐसे २३६ हजार से अधिक कत्लखाने व ३००-३०० एकड़ भूमि में फैले इस अलकबीर जैसे २४ से भी अधिक यान्त्रिक कत्लखानों द्वारा होने वाले नुकसान का हिसाब जोड़ा जाये तो देश में एक भी पशु कहां बचेगा ? देखिये चन्द्रगुप्त के समय भारत की जसख्या १९ करोड़ थी , गायों की संख्या ३६ करोड़ थी। अकबर के समय भारत की जनसंख्या २० करोड थी और गौओं की संख्या २८ करोड़ थी। कहां तक गिनें जाएं। गाय तो अब करोड़ों में नहीं , लाखों की संख्या में ही बच रही है। सब जगह छोड़ देने पर मारी – मारी फिरती हैं। कोई भी नहीं पूछता और अधिक क्या लिखें। महर्षि दयानन्द की गोपालन की आज्ञानुसार आज भी सभी गुरुकुलों में गोओं का पालन बड़ी श्रद्धा हो रहा है।
गुरुकुल कुरुक्षेत्र में अनेकों गाय गोशाला में हैं जो मन – मन दूध देने ली हैं। उनकी सेवा में गुरुकुल के आचार्य देवव्रत जी अधिकारी बड़े तन – मन धन से करते हैं। आर्ष गुरुकुल कालवा के आचार्य श्री बलदेव जी ने भी एक बड़ी भारी गोशाला गांव धडौली में चालू की है जिसमें ३ हजार के लगभग गाएं बहुत ही अच्छी हैं। गुरुकुल झज्जर में भी बहुत ही हैं। इस प्रकार सभी गुरुकुलों के साथ गोशालाएं भी होती हैं। हरयाणा में तो सभी गुरुकुलों में गोशालाएं हैं। हरयाणा में जहां प्रत्येक घर में गाय होती थी , आज उनके यहां भी गोपालन का रिवाज छूटता जा रहा है। बैलों वाले ‘ हल ‘ समाप्त होते जा रहे हैं। इसलिए साल भर में दुधारू गाएं एक लाख , नब्बे हजार बछड़ों का मांस डिब्बों में बंद करके अरब आदि मुस्लिम देशों में पैट्रोल मंगवाने के लिए भेजा जा रहा है। गाय का दूध – घी – छाछ तो अब दुर्बलभ होते जा रहे हैं।
 हरयाणा में तो एक छोटा पाकिस्तान बना हुआ है। जहां रात्रि के समय हजारों गायों का कत्ल होता है। इसे ‘ मेवात ‘ कहा जाता है। ट्रकों में भरकर मांस व हड्डियां कानपुर आदि में भेजी जाती हैं। यह सब काम रात्रि के समय खेतों में किया जाता है।
प्राचीनकाल में राजे – महाराजे भी गोपालन करते थे। जनता भी गाय पालती थी। आज सब कुछ समाप्त हो गया है। हिन्दी के कवि कुसुमाकर ने गोपालन के लाभों के बारे में कितना अच्छा लिखा —
चाहते हो भव – व्याधियों से निज मानस का कल – कंज हरा हो ,
दूध – दही की बहे सरिता फिर गान गोपाल का मोद भरा हो।
नन्दिनी नन्दन में विचरे शुचि शक्ति का स्रोत सदा उभरा हो ,
घाम ललाम वही कुसुमाकर गाय को चाट रहा बछड़ा हो।।



संस्कृति,साहित्य एवं मीडिया फोरम का गठन

कोटा। पत्रकारिता,कला, परंपरा आदि के संवर्धन के लिए लेखन, व्याख्यान,साक्षात्कार, संगोष्ठी, काव्य गोष्ठी, सम्मान आदि कार्यक्रमों के आयोजन के उद्देश्य से “संस्कृति,  साहित्य एवं मीडिया फोरम ” का गठन किया गया है। यह विशुद्ध रूप से सामाजिक सरोकारों पर आधारित होगा।
  संयोजक डॉ.प्रभात कुमार सिंघल ने बताया कि फोरम में मनोचिकित्सक डॉ.एम.एल. अग्रवाल, भारतीय सूचना सेवा के पूर्व  प्रचार निदेशक किशन रत्नानी, जन संपर्क विभाग के पूर्व सहायक निदेशक घनश्याम वर्मा, इतिहासविद फिरोज अहमद, संभागीय अधीक्षक, राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय डॉ.दीपक कुमार श्रीवास्तव, एडवोकेट अख्तर खान ‘अकेला,साहित्यकार जितेंद्र ‘ निर्मोही ‘ ,रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘, विजय जोशी, डॉ. कृष्णा कुमारी, डॉ.संगीता देव, डॉ. शशि जैन, स्नेह लता शर्मा,  पत्रकार सुनील माथुर, के.एल.जैन, हेमंत शर्मा सदस्य होंगे।
उन्होंने बताया कि सेवा काल के दौरान किसी भी विशिष्ट व्यक्ति से चर्चा आदि कार्यक्रमों के किए अनौपचारिक ” मीडिया फोरम” संचालित कर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए थे। अनुभव के आधार पर इस फोरम का गठन किया गया है।



हैहय राजा ने राजा बाहु को भगाया, ऋषि और्व ने राजा सगर को जन्माया

इच्छाकू राजाओं मे वंशानुक्रम :-

श्री विष्णु पुराण चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो के अनुसार अयोध्या के राजा त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चंद्र थे। उनके पुत्र थे रोहिताश्व , उनके पुत्र हरित ; उनके पुत्र कुञ्कु थे, जिसके विजय और सुदेव नाम के दो पुत्र थे ।  विजय का पुत्र रुरुक था, और  रुरुक का पुत्र वृक था , वृक का पुत्र सुबाहु बाहु या बाहुक था।

श्रीमद् भागवत पुराण से इस क्रम से वंशावली मिलती है —  “हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा  → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुक आदि आदि।”

हैहय वंश के राजाओ पर एक दृष्टि :-

हैहय वंश में बुध, पुरूरवा, नहुष, ययाति, यदु, हैहय, कृतवीर्य, सहस्रार्जुन, कृष्ण और पाण्डव जैसे धर्मवीर, शक्तिशाली, प्रतापी और दानी राजा हुए हैं| हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, सहस्राजित का पौत्र तथा यदु का प्रपौत्र था। पुराणों में हैहय वंश का इतिहास चंद्रदेव की तेईसवी पीढ़ी में उत्पन्न वीतिहोत्र के समय तक पाया जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा की बारहवी पीढ़ी में हैहय का जन्म हुआ। हरिवंश पुराण के अनुसार ग्यारहवी पीढ़ी में हैहय तीन भाई थे जिनमें हैहय सबसे छोटे भाई थे।
पुराणों में इस वंश की पाँच शाखाएँ कही गई हैं —ताल- जंघ, वीतिहोत्र, आवंत्य, तुंडिकेर और जात ।

हैहयों ने शकों के साथ साथ भारत के अनेक देशों के जीता था ।विक्रम संवत् ५५० और ७९० के बीच हैहयों का राज्य चेदि देश और गुजरात में रहा। इस वंश का कार्तवीर्य अर्जुन प्रसिद्ध राजा था , जिसने रावण को हराया था। इसकी राजधानी वर्तमान मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती थी। त्रिपुरी के कलचुरी वंश को हैहय वंश भी कहा जाता है। बाहु नामक सूर्यवंश के राजा और सगर के पिता को हैहयों और तालजंधों ने परास्त कर देश से निष्कासित कर दिया था।
(महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 57.)

अयोध्या के राजा थे बाहु/असित :-

राजा बाहु नाम से मिलती जुलती थोड़ा इतर असित की वंशावली भी मिलती है। असित सूर्यवंश के राजा थे, भरत के पुत्र और राम के पूर्वज थे। सगर के पिता का नाम असित था। वे अत्यंत पराक्रमी थे। हैहय, तालजंघ, शूर और शशबिन्दु नामक राजा उनके शत्रु थे। बाहु इक्ष्वाकु वंश के एक राजा  वृक (भरत) से पैदा हुए थे। सुबाहु ( जैन नाम जीतशत्रु) नामक यही इक्ष्वाकु राजा और उसकी रानी यादवी ( जैन नाम विजया देवी) ने अयोध्या से भागकर और्व ऋषि के आश्रम में शरण ली , जब अयोध्या पर हैहय राजा ने कब्ज़ा कर लिया था।

पिता वृक (भरत) के समय से ही युवराज बाहु (असित) का दबदबा:-

वृक एक चक्रवर्ती सम्राट थे । उसने अपने पुरोहितों की मदद से अश्वमेध यज्ञ कराया। अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी युवराज बाहु निभा रहे थे। उस समय अयोध्या के पड़ोस में मगध में  शक्तिसेन का राज्य था। वह अयोध्या नरेश वृक की अधीनता स्वीकार नही करना चाहता था। उनकी ही प्रेरणा या आदेश से शक्तिसेन की बीरांगना पुत्री युवरानी सुशीला ने यज्ञ का अश्व पकड़ लिया था। युवराज बाहु ने पहले अश्वसेन से अश्व लौटाने के लिए सन्देश वाहक के माध्यम से सन्देश भिजवाया । इसे शक्तिसेन अस्वीकार कर दिया।  युवराज बाहु और शक्तिसेन के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमे अयोध्या का युवराज विजई हुआ। शक्तिसेन शरणागत हुआ।उसे अभय दान मिला।उसने अपनी पुत्री का विवाह युवराज बाहु से करके राजा वृक का अश्व लौटा दिया और यज्ञ पूर्ण हुआ। बाहु की प्रथम पत्नी नंदनी निसंतान थी। उसने भी युवराज बाहु को युवरानी सुशीला से विवाह करने की अनुमति प्रदान किया था।
(ये कथानक रामानंद सागर के “जय गंगा मैया” धारावाहिक के दृश्यों पर आधारित है।)

धर्म परायण राजा बाहु :-

प्रारम्भ में राजा बाहु धर्म परायण था। वह प्रजा का हित और परोपकार के धर्म को निभाता भी था, परन्तु समय के साथ साथ उसमे भोग विलास की प्रवृत्ति बलवती होती गई। वह अधर्म में लिप्त रहने लगा , इसलिए उसे हैहय , तालजंघ , शक , यवन , कंबोज , पारद और पहलवों ने गद्दी से उतार दिया था । उसी समय में भृगुवंशी ब्राह्मण ने भी क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था ।

हैहय राजा ने अयोध्या के इच्छाकु राजा बाहु को भगाया :-

राजा बाहु के शत्रुओं ने उनका राज्य और उनकी सारी संपत्ति छीन ली। परेशान होकर वह अपनी पत्नियों के साथ घर छोड़कर हिमालय के जंगल में चला गया।
नंदनी और सुशीला दोनों पत्नियां इस समय गर्भवती थीं। राजकीय और धार्मिक कार्यों में नंदनी को प्रथम पत्नी होने के कारण प्रमुखता दी जाती थी। इसे छोटी रानी सहन नही कर पाती थी। छोटी रानी कालिंदी(सुशीला)  एक दासी के बहकावे में आकर  पटरानी के गर्भ रोकने की इच्छा जब यादवी अपनी गर्भावस्था के सातवें महीने में थीं, तब
उन्हें जहर दे दिया, जिसके कारण वह सात साल तक गर्भवती रहीं। जिसके प्रभाव से उसका गर्भ सात वर्ष तक गर्भाशय ही में रहा । इस दीर्घ अवधि में राजा बाहु और नंदनी बहुत ही परेशान रहने लगे थे। अन्त में, बाहु वृद्धवस्था के कारण और्व मुनि के आश्रम के समीप अपना शरीर त्याग स्वर्ग सिधार गए।

आत्मदाह ( सती ) की तैयारी को ऋषि और्व ने रोका :-

बाहु की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने परंपरा के अनुसार उनकी चिता पर आत्मदाह करने का फैसला किया , लेकिन भार्गव वंश के ऋषि और्व को जब यह पता चला तो उन्होंने उन्हें यह बताकर सती होने से रोक दिया कि वह रानी गर्भवती हैं। कुछ महीनों के बाद, उनको एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम और्व ने सगर रखा , जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘जहर वाला’,।
(www.wisdomlib.org (2019-01-28). “ऑर्वा की कहानी” . www.wisdomlib.org . 2022-11-02 को लिया गया .)

उस समय पटरानी ने चिता बनाकर उस पर पति का शव स्थापित कर उसके साथ सती होने का निश्चय किया था। ऋषि और्व, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी चीजों को जानते थे। वे अपने आश्रम से बाहर आए और उसे आत्महत्या करने से मना करते हुए कहा, “अयि साध्वि ! रुको! रुको! तू ऐसे दुस्साहस का उद्योग न कर । इस व्यर्थ दुराग्रह को छोड़ !  यह अधर्म है।तेरे उदर में सम्पूर्ण भूमण्डल का स्वामी, अत्यन्त बली पराक्रमशील, अनेक यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला और एक बहादुर राजकुमार, अपने शत्रुओं का नाश करने वाला,कई राज्यों और विश्व का चक्रवती राजा हैं। वह अनेक यज्ञों की हवन करने वाला होगा, ऐसा दुस्साहस पूर्ण कार्य करने की मत सोचो!”

च्यवन आश्रम पर अदभुत बालक का जन्म :-   

ऐसा कहे जाने पर वह अनुमरण ( सति होने ) के आग्रह से विरत हो गयी ।  ऋषि के आदेशों का पालन करते हुए, उसने अपना इरादा त्याग दिया। अपना आशीर्वाद देते हुए भगवान् और्व रानी को अपने आश्रम पर ले आये । कुछ समय बाद वहाँ एक बहुत तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। वह अपने शरीर में विष के साथ पैदा हुआ । ऋषि द्वारा भविष्यवाणी के अनुसार, सागर का जन्म उसके शरीर में जहर के साथ हुआ। उसके साथ ही उसकी माँ को दिया गया विष भी बाहर निकाल दिया गया; और और्व ने जन्म के समय आवश्यक समारोह करने के बाद, उसे इस कारण से सगर (सा, ‘साथ’ और गर , ‘विष’ से) नामकरण दिया गया।

संस्कार और शिक्षा:-

भगवान् और्व ने उसके जातकर्म आदि संस्कार कर उसका नाम ‘ सगर’ रखा तथा उसका उपनयन संस्कार कराया।
उस पवित्र ऋषि ने अपने वर्ग की रीति के साथ उसका अभिषेक मनाया। और्व ने ही उसे वेद, शस्त्रों का उपयोग सिखाया एवं उसे  भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों विशेष रूप से अग्नि के जिन्हें भार्गव के नाम के पर रखा गया ।

ऋषि और्व ने उसे तालजंघा , यवन , शक , हैहय और बर्बरों के जीवन लेने से रोका । लेकिन उसने उन्हें अपना बाह्य रूप बदलने पर मजबूर कर दिया।  उन्हें विकृत कर दिया – उनमें से कुछ को सिर मुंडाने को कहा, कुछ को मूंछ और दाढ़ी बढ़ाने को कहा, कुछ को अपने बाल खुले रखने को कहा, कुछ को अपना सिर आधा मुंडाने को कहा। बाद में तालजंघों का वध परशुराम जी ने किया था। सगर ने और्व की सलाह के अनुसार अश्वमेध यज्ञ किया।

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)




मुस्लिम आतंकी संगठनों पर कठोर कार्यवाही और कांग्रेस की प्रतिक्रिया

देश में जब जब मुस्लिम आतंकी संगठनों पर कठोर कार्यवाही करने की बात होती है, तब-तब मुस्लिम वोटों पर आश्रित कांग्रेस के नेता अपने कुंठित चेहरे लेकर कुतर्कों के साथ उनके बचाव में खड़े हो जाते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण 2017 में देखने को मिला जब एनआईए ने इस संगठन पर हिंसक आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के साथ-साथ, मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करने का आरोप लगाया था।
एनआईए की रिपोर्ट में पीएफआई पर हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने, युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने, और अन्य कट्टरपंथी संगठनों को वित्तीय पोषण करने का भी आरोप था।  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
 इन सभी आरोपों के आधार पर गृह मंत्रालय ने 2022 में पीएफआई को प्रतिबंधित कर दिया था। इस प्रतिबंध पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आरएसएस को भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए। जयराम रमेश का यह बयान साफ तौर पर कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति का प्रतीक था।
जयराम रमेश का यह बयान इस बात को भी इंगित करता है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी, जो वायनाड (केरल) से दो बार सांसद बने हैं, वहां जमीनी स्तर पर कांग्रेस का जनाधार बेहद कमजोर है। ऐसा लगता है राहुल गांधी की जीत पीएफआई के सहयोग से ही संभव हुई है, इसलिए कांग्रेस के नेता जैसे जयराम रमेश, पीएफआई जैसे कट्टरपंथी संगठनों का बचाव करने में संकोच नहीं करते।
विगत मंगलवार 11 जून 2024 को मुंबई उच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित पीएफआई के तीन सदस्यों को जमानत देने से इमकर कर दिया। उच्च न्यायालय द्वारा इंकार करने का आधार यह था कि पीएफआई ने “भारत को 2047 तक इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी” और आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को आतंकित करने का प्रयास किया था। मुंबई उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने  यह स्पष्ट कर दिया है कि अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रेस के ये नेता ऐसी हरकतों से बाज नहीं आएंगे ओर साथ ही कांग्रेस के जयराम रमेश जैसे दरबारियों को समुचित जवाब दिया है।
इसके अलावा, पीएफआई के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के कई प्रमाण भी सामने आए हैं। उदाहरणस्वरूप,  1.केरल पुलिस ने  2013 में पीएफआई के कुछ सदस्यों को हथियारों के साथ गिरफ्तार किया था, जिनका उद्देश्य आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना था।
2. सन   2020 में, दिल्ली दंगों के दौरान भी पीएफआई के सदस्यों की सक्रिय भूमिका सामने आई थी। इससे स्पष्ट होता है कि पीएफआई एक गंभीर आतंकी खतरा है, जिसे समय रहते रोका जाना आवश्यक है।
यह समय की मांग है कि देश के सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुट हों और कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्यवाही का समर्थन करें। किन्तु कांग्रेस के नेताओं द्वारा पीएफआई का बचाव करना न केवल उनकी वोट बैंक की राजनीति को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेते।
मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद और कट्टरपंथ को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब यह कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के लिए समर्पित हों और ऐसे संगठनों का समर्थन करने से बचें जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं।
मनमोहन पुरोहित
शिक्षाविद एवम लेखक



हजारों वृक्ष लगाकर बिरजू जी ने कायम की मिसाल

जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय कैंपस में पांच हजार की तनख्वाह लेने वाले कर्मचारी बिरजू जी द्वारा लगाए गए 2714 पौधे बने वृक्ष और बेमिसाल हरित क्रांति का उदाहरण।
राजस्थान विश्वविद्यालय में एक छोटी सी ₹5 हजार की मासिक तनख्वाह पाने वाले, दीनहीन अवस्था में रहने वाले एक संविदा कर्मी बिरजू जी ने अपनी स्वेच्छा एवं कड़ी मेहनत से छोटे-छोटे लगभग 2714 पौधों को अपने बच्चों की तरह साज सवार कर वृक्ष बनाने का जो अद्भुत कार्य किया है, वह पौधरोपण के नाम पर बरसात के मौसम में एक दो पौधों को हाथ में लेकर अखबारों में सुर्खियां बटोरने वाले एनजीओ व ऐसे ही अन्य लोगों के लिए एक अद्भुत मिसाल है। इस बिरजू को ना अपनी फोटो छपवाने का शौक है न हीं किसी की प्रशंसा या पुरस्कार की अपेक्षा है।
विश्वविद्यालय द्वारा हरियाली और पौधे लगाने का प्रशिक्षण यहां के कुछ कर्मचारियों को दिलवाया गया था, बिरजू भी यह प्रशिक्षण लेने वाला एक संविदा कर्मी था।
इस हरित क्रांति के छिपे हुए समर्पित कर्मठ बिरजू ने सर्वप्रथम विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स बोर्ड के नजदीक सुनसान पड़े 50 बीघा से अधिक क्षेत्र के दो मैदानों को अपने कुछ साथियों के साथ दिन रात कड़ी मेहनत कर साफ किया, वह इन मैदानों व अन्य परिसर के क्षेत्रों में इन पौधों को लगाकर, इन्हें नियमित रूप से पानी, खाद व कीटनाशक दवाइयों का समय पर छिड़काव कर अपने बच्चों की तरह पालना शुरू किया, आज इन 5 हजार पौधों में से 2714 पौधे, वृक्षों के रूप में विकसित हो गए हैं। इनमें तरह तरह के फल भी आने लगे हैं, कितने मेट्रिक टन ऑक्सीजन बिरजू के इस कार्य से विश्वविद्यालय को मिल रही है इसका अंदाज लगाना मुश्किल है।
साभार- https://www.facebook.com/profile.php?id=100067916572481 से



कश्मीरी रामायण रामावतारचरित

भक्तिरस से परिपूर्ण कश्मीरी रामायण “रामावतारचरित” का परिमार्जित सचित्र-पेपर-बैक संस्करण अपने नए रूप-कलेवर और व्याख्या के साथ अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।कश्मीरी की इस लोकप्रिय रामायण का हिन्दी में अनुवाद किया है प्रसिद्ध अनुवादक डॉ़ शिबन कृष्ण रैणा ने। कश्मीरी पंडितों के कश्मीर(कश्यप-भूमि) से विस्थापन/निर्वासन ने इस समुदाय की बहुमूल्य साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत/धरोहर को जो क्षति पहुंचायी है, वह सर्वविदित है।
कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ का यह पेपरबैक-संस्करण इस संपदा को अक्षुण्ण रखने का एक विनम्र प्रयास है।कश्मीरियत के रंग में सराबोर यह रामायण हर दृष्टि से पाठनीय है। :रामावतारचरित’ का एक अनुवादित अंश देखिए: “गोरव गंअडमच छि वथ,बोज़ कन दार, छु क्या रोजुऩ, छु बोजुऩ रामावतार। ति बोज़नअ सत्य वोंदस आनंद आसी, यि कथ रठ याद, ईशर व्याद कासी। ति जाऩख पानु दयगत क्या चेह़ हावी, कत्युक ओसुख चे,कोत-कोत वातनावी।” (गुरुओं ने एक सत्पथ तैयार किया है,इसे तू कान लगाकर सुन। यहां कुछ भी नहीं रहेगा, बस, रहेगी रामवतार की कथा। इसे सुनकर हृदय आनंदित हो जाएगा,यह बात तू याद रख।
इसे सुनकर ईश्वर तेरी सारी व्याधियां दूर करेंगे और तू स्वयं जान जाएगा कि प्रभु-कृपा/दैवगति तुझे कहां से कहाँ पहुंचाये गी!) इस रामायण की दो पृष्ठ की सुन्दर प्रस्तावना परम विद्वान डॉ. कर्णसिंह जी ने लिखी है और शुभकामना-सन्देश भारतीय सांस्कृतिक संबंध के पूर्व महानिदेशक और वर्तमान में आयर लैंड में भारत के राजदूत माननीय श्री अखिलेश मिश्रजी ने भेजा है। रामभक्तों और रामकाव्य-अध्येताओं के लिये यह कालजयी रचना अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।

यह सुन्दर रामायण समेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।

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रजोत्सव के उपलक्ष्य में हिन्दी कविता पाठ आयोजित

भुवनेश्वर। स्थानीय उत्कल अनुज हिंदी पुस्तकालय में  ओडिशा के लोकप्रिय कृषि पर्व तीन दिवसीय रज पर्व के अंतिम दिवस पर स्वरचित कविता पाठ का आयोजन हुआ। आयोजन की मुख्य अतिथि नमिता दास,जनसेविका का स्वागत सुभाष चन्द्र भुरा ने दुपट्टा एवं पुस्तकालय का स्मृति चिह्न भेंटकर किया। आरंभ जानकारी अशोक पाण्डेय ने दी। उन्होंने रज के सामाजिक और धार्मिक महत्त्व को बताने के साथ-साथ जगन्नाथ जी के जन्मोत्सव देवस्नान पूर्णिमा की भी जानकारी दी।
 मुख्य अतिथि नमिता दास ने बताया कि वे वाचनालय आकर बहुत खुश हैं जहां के प्रत्येक सदस्य के दिल में आत्मीय प्रेम है और‌ वे सभी को खुश देखना चाहते हैं। गौरतलब है कि नमिता दास का परिवार अनन्य जगन्नाथ भक्त परिवार है जहां पर पूरे विधि-विधान के साथ देवस्नान पूर्णिमा अनुष्ठित होती है। अपने जन्मदिन पर जो वस्त्र चतुर्धा देवविग्रह धारण करते हैं वह नमिता दास के घर वाले भी जगन्नाथ जी को देवस्नान पूर्णिमा के दिन गजानंद वेष में पहनाते हैं। नमिता दास ने यह भी बताया कि वे जेनरल इंस्योरेंस से संबंधित सभी विवादित मामलों की सही वकालत कर इंस्योरेंस क्लेम दिलवाती हैं।
आयोजित कविता पाठ में मुरारीलाल लढानिया,मनीष पाण्डेय, रामकिशोर शर्मा,निशिथ बोस, सुधीर कुमार सुमन, आशीष कुमार साह ‘विद्यार्थी’, विद्युत प्रभा गनतायत ‘प्रभा’, विक्रमादित्य सिंह, किशन खण्डेलवाल, कविता गुप्ता तथा नरेंद्र कुमार जैन आदि ने अपनी अपनी कविताओं का वाचन किया।
मंच संचालन किशन खण्डेलवाल ने किया।



कोई मत जाना कुफरी!

एक पोस्ट की हेडिंग थी कुछ दिन पहले।
उस समय तो मेरे पास सब लिखने का समय नही था किंतु आज विस्तार पूर्वक बताना बनता है ताकि कोई भी घुमक्कड़ इस तरह की लूट में नहीं फंसे।
माना लोग घूमने जाते है तो खर्चा होता है कहीं कम,कहीं ज्यादा। आखिर कुछ जगह पर लोग कमाते भी केवल पर्यटन से हैं किंतु आटे में नमक जितना फ्रॉड चल जाता है किंतु कुफरी में नमक में आटा मिलाया जाता है जिससे घूमने का जायका बिगड़ता ही नहीं अपितु पेट मतलब मूड खराब हो जाता है।
तो शुरुआत करते हैं शिमला से दो दिन शिमला में बिताने के बाद लगा आस पास का एरिया भी घूमा जाए तो लोगों ने कुफरी का सुझाव दिया।
शायद मेरी गलती ये हो गई कि कुफरी गर्मियों में आ गई किंतु अगर सर्दियां होती तो भी ये लूट मुझे ऐसे ही परेशान करती।
तो भाई 1200 से 1500 के बीच आपको टैक्सी मिलेंगी जो आपको 5 या 6 प्वाइंट पूरे करवाएगी। उसमें टैक्सी वाले आपको ये बिलकुल नहीं बताएंगे कि आगे सभी प्वाइंट पर टिकिट लगता है केवल ग्रीन वैली को छोड़कर जो रोड़ पर ही है बस हरा भरा सा क्षेत्र है और टिकिट भी 100, 200 की नहीं, 1500 से 2500 तक की होगी।
तो अब बढ़ते हैं आगे…
टैक्सी वाले ने हमें एडवेंचर पार्क पर रोक दिया और बोला घूम लो हमें पता चला कि टिकिट के ही 6000 होते हैं तो सोचा छोड़ो क्या एडवेंचर करना क्योंकि इस तरह के एडवेंचर अमूमन हर शहर में बने हुए हैं।
फिर टैक्सी वाले ने गाड़ी रोकी दूसरे पार्क में जहां घोड़े ले जाते हैं…. हमको लगा कुछ खास जगह होगी जो घोड़े ले जा रहे हैं तो बस 1500 की पीपी टिकिट कटवा ली और तीन गधे घोड़ों का इन्तजार करने लगे।
अपनी मूर्खता के लिए यही लाइन ठीक लगी।
अब 20मिनिट के इंतज़ार के बाद घोड़े हमें लेकर गए और एक से डेढ़ km चलने के बाद हमें उतार दिया।
चारों तरफ़ रेत मिट्टी उड़ रही थी, अब यहां से पैदल चलकर जाना था तो याक तक पहुंचे और 50 rs प्रति व्यक्ति के हिसाब से याक पर बैठकर फ़ोटो खिंचा ली।
अब आगे छोले टिक्की, डोसा मोमोज की दुकानें पीले तंबू में लगा रखी थी ये था यहां का बाजार और रेत मिट्टी निरंतर उड़ रही थी।
आगे जाकर एक पिकअप गाड़ी से या मोटी चार पहियों वाली बाइक से आपको आगे जाना था एप्पल गार्डन देखने।
पिकअप गाड़ी 100 rs और मोटी बाइक 400rs ले रही थी ये गाडियां इतनी धूल उड़ा रही थी की रेत का बवंडर बन रहा था। अब जितना भी सज संवर कर गए थें मिट्टी की एक इंच मोटी परत जम गई थी। हमने पैदल जाना ज्यादा सही समझा बस इतनी ही समझदारी दिखा पाए।
एप्पल गार्डन में ना दिखने वाले दो चार एप्पल ऐसे दिखे जैसे नासा वाले नया ग्रह ढूंढते हैं।
अब पूरे एप्पल गार्डन में घूमते से पहले ही टांगों ने जवाब दे दिया क्योंकि पूरा रास्ता ऊबड़ खाबड़ था कपड़े जुते और शकल का सहारा रेगिस्तान बन चुका था।
बस एक चीज़ जो अच्छी थी महासु देवता का मंदिर, उस पर भी ताला जड़ा था जो सदियों से बंद पड़ा था।
आगे जाने की हिम्मत जुटाई तो पता चला दूर टॉवर के नीचे एडवेंचर गेम हो रहे हैं वहीं जाना है।
एक मन हुआ वापस चलें पर 1500 pp का अभी एक rs वसूल नही हुआ था तो चल दिए टावर की दिशा में एक km के बाद टावर मिला और वहां zip लाइन मिली जो करनी थी… मगर लाइन इतनी लंबी की लगता था चांद तक जा रही है।
दो घंटे इंतज़ार के बाद नंबर आया तो थकान और डर के मारे वीडियो नही बना पाई… सब गुड गोबर हो गया ।
अब बेटे को zip लाइन करवाने से मना कर दिया कि इसके लिए कोई ट्रेनर जायेगा जो 250 rs अलग से लेगा… मुंह से निकला तेरी….. कुछ हद तक हम अपने मेवाती स्वरूप में आ चुके थे।
फैशन की बैंड बज चुकी थी…
बाद में बेटे को एक छोटा गेम करवाया और जेल के कैदी की तरह वहां से भागे…. अब किसी तरह रुम हाथ आ जाए और आराम करें।
मगर अभी पैदल वापस घोड़ों तक जाना था और फिर घोड़े पर बैठकर टैक्सी तक, टैक्सी से शिमला तक और शिमला में 50सीढियां चढकर अपने रुम तक और ताला खोलकर बिस्तर तक…. सीधा नर्क का रास्ता नज़र आ रहा था।
जैसे तैसे घोड़ों तक पहुंचे और 20 मिनिट इंतज़ार के बाद घोड़े लेकर गए,,, घोड़े किनारे किनारे चल रहे थे तो जान हलक में अटकी पड़ी थी।
यहां एक बात सोचने की है वहां केवल घोड़ों को ले जाया जा सकता है तो अंदर गाडियां कहा से पहुंच गई?
इसका मतलब गाड़ियों के लिए कोई और भी रास्ता होगा जो ये लोग छुपा कर रखते हैं और पर्यटकों को जबरदस्ती घोड़ों से भेजते हैं एक से दो km का ट्रैक तो व्यक्ति पैदल भी जा सकता है जैसे अंदर जा ही रहा था।
तो इस तरह हम नर्क से बाहर आए और टैक्सी में आकर बैठ गए।
तभी टैक्सी वाले ने पूछा… कुफरी zoo चलोगे?
हम दोनों के मुंह से निकला नहीं…
सीधे शिमला चलो होटल उतार देना।
अब कुछ आराम था गाड़ी चल रही थी और हम आपनी बेवकूफी पर निराश हो रहे थे।…
एक बार फिर
कोई मत जाना कुफरी दोस्तों…
साभार- https://www.facebook.com/geetasingh.azad से



रायपुर में हुई डीकार्बनाइजेशन इंडिया अलायंस की शुरुआत, वर्ष 2070 तक नेट-जीरो प्राप्ति का लक्ष्‍य निर्धारित

रायपुर, 14 जून 2024

डीकार्बनाइजेशन इंडिया अलायंस (डीआईए) एक कार्योन्‍मुख और महत्‍वाकांक्षी परियोजना है। इसका लक्ष्‍य भारत को कम कार्बन उत्‍सर्जन वाली अर्थव्‍यवस्‍था बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ाना है। डीआईए की शुरुआत 14 जून को छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में की गयी। आने वाले महीनों में डीआईए को भारत के 10 शहरों में स्‍थापित किया जाएगा। इसके माध्‍यम से वर्ष 2070 तक भारत को ‘नेट-जीरो’ अर्थव्‍यवस्‍था बनाने के लक्ष्‍य के प्रति समर्पित उद्योग जगत के अग्रणी लोगों को एकजुट करने पर ध्‍यान केन्द्रित किया जाएगा।

डीआईए दरअसल सोसाइटी ऑफ इंजीनियर्स एण्‍ड मैनेजर्स (एसईईएम) की एक पहल है। सोशल इम्‍पैक्‍ट एडवाइजर्स (असर) और इंडिया ब्‍लॉकचेन अलायंस (आईबीए) की मदद से उठाये गये इस कदम के माध्‍यम से निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों, एमएसएमई, सेवा प्रदाताओं, शैक्षणिक एवं वित्‍तीय संस्‍थानों, सिविल सोसाइटी संगठनों और सरकारी विभागों सहित विभिन्‍न हितधारकों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जाएगी ताकि भारत के डीकार्बनाइजेशन के प्रयासों को गति मिले। एक स्‍वैच्छिक नेटवर्क के नेतृत्‍व वाली यह पहल एक मंच की तरह काम करेगी। इससे उन इंजीनियरों को मदद मिलेगी जो उद्योगों में बदलाव को लागू करने के मोर्चे पर सबसे आगे खड़े होकर काम कर रहे हैं। साथ ही इससे उन लोगों को भी सहायता मिलेगी जो ऐसे उत्‍पाद और सेवाएं तैयार कर सकते हैं जिनसे डीकार्बनाईजेशन को बढ़ावा मिलता हो।

रायपुर में आयोजित उद्घाटन कार्यक्रम में राज्‍य के वाणिज्‍य एवं उद्योग विभाग के सचिव आईएएस श्री अंकित आनंद, छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (क्रेडा) के मुख्‍य अधिशासी अधिकारी (सीईओ) श्री राजेश सिंह राणा, ग्‍लोबल ग्रीन ग्रोथ इनीशियेटिव के क्षेत्रीय प्रमुख श्री सौम्‍य गरनाइक और क्रेडा के अधीक्षण अभियंता श्री राजीव ज्ञानी सहित अनेक गणमान्‍य अतिथियों ने भाग लिया।

डीआईए का संचालन शुरू होने के बाद ऊर्जा सम्‍बन्‍धी समाधानों को आकार देने और उन्‍हें लागू करने के काम से जुड़े हितधारकों के साथ तालमेल करके उन्‍हें अपेक्षित परिणाम प्राप्‍त करने में सक्षम बनाने के लिये काम किया जाएगा। डीआईए का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा करना और अपने कार्बन उत्‍सर्जन में कटौती करने के लिये तत्‍पर प्रतिष्‍ठानों की जरूरतों को पूरा करने के लिये प्रयासों को व्‍यवस्थित करना है। इसके माध्‍यम से उन समाधानों को बल मिलेगा जो भारत को वर्ष 2070 तक अपने नेट-जीरो के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में मदद करेंगे।

रायपुर-धनबाद और रायपुर- विशाखापट्टनम आर्थिक गलियारों को जोड़ने वाले राज्‍य छत्‍तीसगढ़ में औद्योगिकीकरण बहुत तेज गति से हो रहा है। राज्‍य में आकांक्षात्‍मक जिलों को जोड़ा जा रहा है जो पिछले कई दशकों से आर्थिक रूप से पिछड़े और कमजोर हैं। रायपुर में डीआईए की सफलतापूर्वक स्‍थापना से 80 हजार से ज्‍यादा कुटीर, लघु एवं मध्‍यम उद्योगों (एमएसएमई) को मदद मिलेगी। डीआईए के माध्‍यम से-

● एमएसएमई को अपने कार्बन उत्‍सर्जन में कमी लाने में मदद की जाएगी। उन्‍हें ऐसी सेवाओं को चुनने में सहायता की जाएगी जिनसे ऊर्जा ऑडिट, प्रणालियों और प्रक्रियाओं में सुधार के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा उपायों से मिलने वाले परिणामों को अधिकतम किया जा सकता है। इसके अलावा एमएसएमई को औद्योगिक उत्‍सर्जन की तीव्रता से जुड़े लक्ष्‍यों को लेकर सार्थक विचार-विमर्श से जोड़ा जाएगा।

प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण : ऑडिटर्स, सम्‍बन्धित क्षेत्रों के विशेषज्ञों, उद्योगों, उद्यमियों तथा अन्‍य लोगों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये जाएंगे। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी व्यक्तियों की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना तथा कौशल विकास और रोजगार के अवसर प्रदान करना होगा।

प्रमाणन एवं पुरस्‍कार : कम कार्बन उत्‍सर्जन वाले विकास के लिये ऊर्जा दक्षता और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से विनिर्माणकर्ताओं, वेंडर्स, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, अभियंताओं और ऊर्जा ऑडिटर्स के लिये डीआईए प्रमाणपत्र उपलब्‍ध कराये जाएंगे।

● डीआईए नयी प्रौद्योगिकी विकसित करने वालों और उसके उपयोगकर्ताओं के बीच एक सेतु और एक नेटवर्किंग प्‍लेटफार्म की तरह काम करेगा। यह प्रौद्योगिकी प्रदाताओं और उद्योगों के बीच विचारों, नवाचारों और सबसे अच्‍छी पद्धतियों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है, जिससे डीकार्बनाइजेशन के लिए अत्याधुनिक समाधानों को अपनाना संभव होगा।

अनुसंधान एवं पक्षसमर्थन (एडवोकेसी) : डीआईए का उद्देश्‍य ऊर्जा दक्षता की पैठ जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देकर, राज्‍य तथा राष्‍ट्रीय स्‍तरों पर योजनाओं को लागू करके, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, स्‍वच्‍छ प्रौद्योगिकियों और रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों को अपनाकर और ग्रीनहाउस गैसों में कमी के अनुमान और लेखे-जोखे के माध्‍यम से नीति सम्‍बन्‍धी प्रभावी ढांचे तैयार करने और व्यापक प्रणालीगत बदलावों के लिए पक्षसमर्थन करने के उद्देश्‍य से नीति निर्धारकों को सार्थक सूचनाएं देने का है।

सफल व्‍यक्तियों और संस्‍थाओं का विवरण तैयार करना (प्रोफाइलिंग) : नेटवर्क के अंदर सफलता की कहानियों के रणनीतिक संचार में मदद करना और इस मुद्दे पर जागरूकता पैदा करना।

बायोफ्यूल्‍स अथॉरिटी ऑफ छत्‍तीसगढ़ के सीईओ सुमित सरकार ने डीआईए की वेबसाइट का लोकार्पण और 10 नगरों में डीकार्बनाइजेशन के अभियान की शुरूआत करने के बाद कहा, ‘‘छत्‍तीसगढ़ एक व्‍यापक औद्योगिक नीति बनाने का लक्ष्‍य लेकर चल रहा है। इस नीति में ग्रीन हाइड्रोजन और विभिन्‍न प्रकार के बायोफ्यूल्‍स के प्रयोग पर जोर दिया गया है ताकि डीकार्बनाइजेशन के प्रयासों को मजबूती दी जा सके। 10 शहरों में आयोजित होने वाले डीआईए कार्यक्रम की शुरुआत जलवायु परिवर्तन से निपटने के हमारे सामूहिक प्रयास में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करता है।’’

एसईईएम के महासचिव जी. कृष्‍णकुमार ने डीआईए के महत्‍व पर प्रकाश डालते हुए कहा, रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में लोगों की भागीदारी और उत्साह छत्तीसगढ़ के उन उद्यमियों की पर्यावरण के प्रति चेतना का प्रमाण है, जो नेट-जीरो परिदृश्य को व्यापक रूप से अपना रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए उद्योगों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों की मदद करने के डीआईए के विजन से नेट-जीरो की दिशा में राज्य की प्रगति में तेजी आएगी।

असर सोशल इम्‍पैक्‍ट एडवाइजर्स की सीईओ विनुता गोपाल ने कहा, ‘‘प्रदूषणकारी तत्‍वों के उत्‍सर्जन में कमी लाने और उसे टालने के लिये जरूरी कदम उठाना इस दशक में बेहद महत्‍वपूर्ण हो गया है। असल काम तब शुरू होता है जब ऊर्जा दक्षता, बिजली सम्‍बन्‍धी सुरक्षा और उद्योगों में साफ ऊर्जा में रूपांतरण के तंत्र को जमीन पर उतारने के लिये वास्‍तविक कदम उठाये जाते हैं। डीआईए एक ऐसी पहल है जिसका उद्देश्‍य इस रूपांतरण के उत्‍प्रेरक की भूमिका निभाना है। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम सिर्फ बातें करने के बजाय सार्थक काम भी करें। इन दिनों पड़ रही भीषण गर्मी हमें एहसास करा रही है कि हमारे के लिये एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन के इस गम्‍भीर संकट से निपटना कितना जरूरी है।’’

रायपुर में समन्‍वय और नवाचार का मंच तैयार करने के बाद डीआईए को बेंगलूरू, कोच्चि, कोलकाता, चेन्‍नई, संगरूर, हैदराबाद, अहमदाबाद और इंदौर में भी शुरू किया जाएगा।