भारत सहित विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक बढ़ा रहे है अपने स्वर्ण भंडार

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी बैंकों में रखे भारत के 100 टन सोने को ब्रिटेन से वापिस भारत में ले आया गया है। यह सोना भारत ने ब्रिटेन के बैंक में रिजर्व के तौर पर रखा था और इस पर भारत प्रतिवर्ष कुछ फीस भी ब्रिटेन के बैंक को अदा करता रहा है।

समस्त देशों के केंद्रीय बैंक अपने यहां सोने के भंडार रखते हैं ताकि इस भंडार के विरुद्ध उस देश में मुद्रा जारी की जा सके (भारत में 308 टन सोने के विरुद्ध रुपए के रूप में मुद्रा जारी की गई है, यह सोने के भंडार भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा हैं) और यदि उस देश की अर्थव्यवस्था में कभी परेशानी खड़ी हो एवं उस देश की मुद्रा का तेजी से अवमूल्यन होने लगे तो इस प्रकार की परेशानियों से बचने के लिए उस देश को अपने स्वर्ण भंडार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचना पड़ सकता है। इस कारण से विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने पास स्वर्ण के भंडार रखते हैं। पूरे विश्व में उपलब्ध स्वर्ण भंडार का 17 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के पास जमा है।

भारतीय रिजर्व बैंक के पास भी 822 टन के स्वर्ण भंडार हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसका 50 प्रतिशत से अधिक भाग, अर्थात लगभग 413.8 टन, भारत के बाहर अन्य केंद्रीय बैंकों विशेष रूप से बैंक आफ इंग्लैंड एवं बैंक आफ इंटर्नैशनल सेटल्मेंट के पास रखा गया है। उक्त वर्णित 308 टन के अतिरिक्त 100.3 टन स्वर्ण भंडार भी भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा है। वर्ष 1947 में भारत के राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही भारत ने अपने स्वर्ण के भंडार बैंक आफ इंग्लैड में रखे हुए हैं। इसके बाद 1990 के दशक में भी भारत ने अपनी आर्थिक परेशानियों के बीच अपने स्वर्ण भंडार को बैक आफ इंग्लैंड में गिरवी रखकर अमेरिकी डॉलर उधार लिए थे।

विभिन्न देशों द्वारा लंदन में स्वर्ण भंडार इसलिए रखे जाते हैं क्योंकि लंदन पूरे विश्व का सबसे बड़ा स्वर्ण बाजार है और यहां स्वर्ण को सुरक्षित रखा जा सकता है। यहां के बैकों द्वारा विभिन्न देशों को स्वर्ण भंडार के विरुद्ध अमेरिकी डॉलर एवं ब्रिटिश पाउंड में आसानी से ऋण प्रदान किया जाता है बल्कि यहां पर स्वर्ण भंडार को आसानी से बेचा भी जा सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण के कई खरीदार यहां आसानी से उपलब्ध रहते हैं। कुल मिलाकर इंग्लैंड स्वर्ण का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा बाजार हैं। लंदन के बाद न्यूयॉर्क को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण का एक बड़ा बाजार माना जाता है।

भारत को इस स्वर्ण भंडार को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिवर्ष फी के रूप में कुछ राशि बैंक आफ इंग्लैंड को अदा करनी होती थी अतः अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 100 टन स्वर्ण भंडार को भारत लाने के बाद इस फी की राशि को अदा करने से भी भारत बच जाएगा। दूसरे अपने यहां स्वर्ण भंडार रखने से भारत के पास सदैव तरलता बनी रहेगी। जब चाहे भारत इस स्वर्ण भंडार का इस्तेमाल स्थानीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हित के लिए कर सकता है।

वर्ष 2009 में भारत ने 200 टन का स्वर्ण भंडार अंतरराष्ट्रीय बाजार में 670 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि अदा कर खरीदा था। 15 वर्ष वर्ष बाद पुनः भारत ने अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करने का निश्चय किया है। स्वर्ण भंडार सहित आज भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गए हैं और यह भारत के लगभग एक वर्ष के आयात के बराबर की राशि है। अतः अब भारत को अपने स्वर्ण भंडार बेचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी इसलिए भी भारत ने ब्रिटेन में स्टोर किए गए अपने स्वर्ण भंडार को भारत में वापिस लाने का निर्णय किया है।

विश्व में आज विभिन्न देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने पास स्वर्ण के भंडार भी बढ़ाते जा रहे हैं। आज पूरे विश्व में अमेरिका के पास सबसे अधिक 8133 मेट्रिक टन स्वर्ण के भंडार है, इस संदर्भ में जर्मनी, 3352 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ दूसरे स्थान पर एवं इटली 2451 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है। फ्रान्स (2437 मेट्रिक टन), रूस (2329 मेट्रिक टन), चीन (2245 मेट्रिक टन), स्विजरलैंड (1040 मेट्रिक टन) एवं जापान (846 मेट्रिक टन) के बाद भारत, 812 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ

विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत ने हाल ही के समय में अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करना प्रारम्भ किया है एवं यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 मेट्रिक टन स्वर्ण भारतीय रुपए में खरीदा था। हाल ही के समय में चीन का केंद्रीय बैंक भारी मात्रा में अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण की खरीद कर रहा है। कुछ अन्य देशों के केंद्रीय बैंक भी अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करने में लगे हैं। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण के दामों में बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई है और यह 2400 अमेरिकी डॉलर प्रति आउंस तक पहुंच गई है।

कई देश संभवत: अपने विदेशी मुद्रा के भंडार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्वर्ण भंडार को अधिक महत्व दे रहे हैं, क्योंकि अमेरिकी डॉलर पर अधिक निर्भरता से कई देशों को आर्थिक नुक्सान झेलना पड़ रहा है। यदि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत हो रहा हो तो उस देश की मुद्रा का अवमूल्यन होने लगता है। इससे उस देश में वस्तुओं का आयात महंगा होने लगता है और उस देश में मुद्रा स्फीति के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। इन विपरीत परिस्थितियों में घिरे देश के लिए स्वर्ण भंडार बचाव का काम करते हैं। इसलिए आज लगभग प्रत्येक देश के केंद्रीय बैंक अपने स्वर्ण भंडार को बढ़ाने के बारे में विचार करते हुए नजर आ रहे हैं।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – [email protected]




वेदों में वर्णित उदात्त भावनाएँ

विश्व-कल्याण:
यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तस्य त्वं प्राणेना प्यायस्व ।
आ वयं प्यासिषीमहि गोभिरश्वै: प्रजया पशुभिर्गृहैर्धनेन ।।
―(अथर्व० ७/८१/५)
भावार्थ―हे परमात्मन् ! जो हमसे वैर-विरोध रखता है और जिससे हम शत्रुता रखते हैं तू उसे भी दीर्घायु प्रदान कर। वह भी फूले-फले और हम भी समृद्धिशाली बनें। हम सब गाय, बैल, घोड़ों, पुत्र, पौत्र, पशु और धन-धान्य से भरपूर हों। सबका कल्याण हो और हमारा भी कल्याण हो।

विश्व-प्रेम:
वेद हमें घृणा करनी नहीं सिखाता। वेद तो कहता है―
उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुन: ।
उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुन: ।।
―(अथर्व० ४/१३/१)
भावार्थ―हे दिव्यगुणयुक्त विद्वान् पुरुषो ! आप नीचे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाओ। हे विद्वानो ! पतित व्यक्तियों को बार-बार उठाओ। हे देवो ! अपराध और पाप करनेवालों को भी ऊपर उठाओ। हे उदार पुरुषो ! जो पापाचरणरत हैं, उन्हें बार-बार उद्बुद्ध करो, उनकी आत्मज्योति को जाग्रत् करो।

यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत: ।
तत्र को मोह: क: शोक एकत्वमनुपश्यत: ।।
―(यजु० ४०/७)
भावार्थ―ब्रह्मज्ञान की अवस्था में जब प्राणीमात्र अपनी आत्मा के तुल्य दीखने लगते हैं तब सबमें समानता देखने वाले आत्मज्ञानी पुरुष को उस अवस्था में कौन-सा मोह और शोक रह जाता है, अर्थात् प्राणिमात्र से प्रेम करनेवाले, प्राणिमात्र को अपने समान समझनेवाले मनुष्य के सब शोक और मोह समाप्त हो जाते हैं।
अद्या मुरीय यदि यातुधानो अस्मि यदि वायुस्ततप पूरुषस्य ।
―(अथर्व० ८/४/१५)
भावार्थ―यदि मैं प्रजा को पीड़ा देनेवाला होऊँ अथवा किसी मनुष्य के जीवन को सन्तप्त करुँ तो आज ही, अभी, इसी समय मर जाऊँ।
यथा भूमिर्मृतमना मृतान्मृतमनस्तरा ।
यथोत मम्रुषो मन एवेर्ष्योर्मृतं मन: ।।
―(अथर्व० ६/१८/२)

भावार्थ―जिस प्रकार यह भूमि जड़ है और मरे हुए मुर्दे से भी अधिक मुर्दा दिल है तथा जैसे मरे हुए मनुष्य का मन मर चुका होता है उसी प्रकार ईर्ष्या, घृणा करनेवाले व्यक्ति का मन भी मर जाता है, अत: किसी से भी घृणा नहीं करनी चाहिए।
ब्रह्म और क्षात्रशक्ति:
यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यञ्चौ चरत: सह ।
तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं यत्र देवा: सहाग्निना ।।
―(यजु० २०/२५)
भावार्थ―जहाँ, जिस राष्ट्र में, जिस लोक में, जिस देश में, जिस स्थान पर, ज्ञान और बल, ब्रह्मशक्ति और क्षात्रशक्ति, ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज संयुक्त होकर साथ-साथ चलते हैं तथा जहाँ देवजन=नागरिक राष्ट्रोन्नति की भावनाओं से भरपूर होते हैं, मैं उस लोक अथवा राष्ट्र को पवित्र और उत्कृष्ट मानता हूँ।

चरित्र-निर्माण:
प्र पदोऽव नेनिग्धि दुश्चरितं यच्चचार शुद्धै: शपैरा क्रमतां प्रजानन् ।
तीर्त्वा तमांसि बहुधा विपश्यन्नजो नाकमा क्रमतां तृतीयम् ।।
―(अथर्व० ९/५/३)
भावार्थ―हे मनुष्य ! तूने जो दुष्ट आचरण किये हैं उन दुष्ट आचरणों को अच्छी प्रकार दो डाल। फिर शुद्ध निर्मल आचरण से ज्ञानवान् होकर आगे बढ़। पुन: अनेक प्रकार के पापों और अन्धकारों को पार करके ध्यान एवं योग-समाधि द्वारा अजन्मा ब्रह्म के दर्शन करता हुआ शोक और मोह आदि से पार होकर परम आनन्दमय मोक्षपद पर आरुढ़ हो।

प्रभु-प्रेम:
महे चन त्वामद्रिव: परा शुल्काय देयाम् ।
न सहस्राय नायुताय वज्रिवो न शताय शतामघ ।।
―(ऋ० ८/१/५)
भावार्थ―हे अविनाशी परमात्मन् ! बड़े-से-बड़े मूल्य व आर्थिकलाभ के लिए भी मैं कभी तेरा परित्याग न करुँ। हे शक्तिशालिन् ! हे ऐश्वर्यों के स्वामिन् ! मैं तुझे सहस्र के लिए भी न त्यागूँ, दस सहस्र के लिए भी न बेचूँ और अपरमित धनराशि के लिए भी तेरा त्याग न करुँ।
सुपथ-गमन:
मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिन: ।
मान्य स्थुर्नो अरातय: ।।
―(अथर्व० १३/१/५९)
भावार्थ―हे इन्द्र ! परमेश्वर ! हम अपने पथ से कभी विचलित न हों। शान्तिदायक श्रेष्ठ कर्मों से हम कभी च्युत न हों। काम, क्रोध आदि शत्रु हमपर कभी आक्रमण न करें।
मधुर-भाषण:
वाचं जुष्टां मधुमतीमवादिषम् ।
―(अथर्व० ५/७/४)
हम अतिप्रिय और मीठी वाणी बोलें।
होतरसि भद्रवाच्याय प्रेषितो मानुष: सूक्तवाकाय सूक्ता ब्रूहि ।
―(यजु० २१/६१)
भावार्थ―हे विद्वन् ! उपदेष्ट: ! तू कल्याणकारी उपदेश के लिए भेजा गया है। तू मननशील मनुष्य बनकर भद्रपुरुषों के लिए उत्तम उपदेश कर।
दिव्य-भावना:
यो न: कश्चिद्रिरिक्षति रक्षस्त्वेन मर्त्य: ।
स्वै: ष एवै रिरिषीष्ट युर्जन: ।।
―(ऋ० ८/१८/१३)
भावार्थ―जो मनुष्य अपने हिंसक स्वभाव के वशीभूत होकर हमें मारना चाहता है वह दु:खदायी जन अपने ही आचरणों से―अपनी टेढ़ी चाल और बुरे स्वभाव से स्वयं ही मर जाता है, फिर मैं किसी को क्यों मारूँ।
पाठकगण ! उपर्युक्त मन्त्रों में कितनी उच्च और उदात्त भावनाएँ हैं। संसार के सारे साहित्य को पढ़ लीजिए, इनसे सुन्दर और मनोरम विचार आपको कहीं नहीं मिलेंगे।

साभार:
‘वैदिक उदात्त भावनाएँ’ (स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती)




16 जून यानि बाजार के फादर्स डे का ‘तर्पण’

बाजार ने अपने लाभ के लिए रिश्तों का बाजार खोल दिया है. अभी माँ के लिए मदर्स डे मनाया भी नहीं था कि पिता को बाजार के हवाले कर ‘फादर्स डे’ ले आया गया. हम भारतीय परिवारों में रिश्तोंंं का गांभीर्य है और मिठास भी लेकिन बाजार इसे सिर्फ बेचना जानता है. लोगों को इस बात की शिकायत है कि कांवेंट शिक्षा ने पिता या बाबूजी को पापा से पॉप्स तक ले आयी है लेकिन यही लोग ‘फादर्स डे’ पर उछल-कूद मचाने से बाज नहीं आते हैं. बाजार बताता है कि पॉप्स का बच्चों की जिंदगी में क्या महत्व है? बाजार बताता है कि पिता के पैसों से पॉप्स के लिए मँहगे उपहार खरीद कर उन्हें खुश करो और ‘फादर्स डे’ सेलिब्रेट करो. आपके पॉप्स कितना खुश होते हैं, ये तो वही जाने लेकिन बाजार जरूर मुस्करा उठता है. लाखों-करोड़ों का व्यापार हो जाता है.

‘फादर्स डे’ सेलिब्रेट करना बाजार ने सिखाया है लेकिन हमारी भारतीय परम्परा ‘फादर्स डे’ ना मनाकर तर्पण करती है. पिता जीते जी बच्चों के लिए आइडियल रहता है तो मृत्यु के पश्चात भी उसका आइकॉन बना रहता है. पिता की मृत्यु का अर्थ परिवार पर मुसीबत का टूट पडऩा है. पिता को मोक्ष प्राप्त हो इसके लिए सनातनकाल से तर्पण का संस्कार किया जाता है. तर्पण का अर्थ है कि आप देव के हो गए और उसी शान के साथ वहां रहें जैसा कि आप अपने परिवार के बीच में थे. तर्पण सेलिब्रेशन का संस्कार नहीं है बल्कि तर्पण आंखों में आने वाले आंसुओं का नाम है. पिता का साया जब बच्चे के सिर से उठता है तो उसकी पीड़़ा वही जान पाता है. पिता के साथ रूठना-मनाना, जिद्द करना उसकी आदत में शुमार होता है. फटी बनियान पहने और फटे जूतों के बीच पिता जीते-जी अपने बच्चों की बेहतरी का सपना बुनता है. खुद के पेट में दो निवाला ना हो लेकिन बच्चों को भूखा देख पिता जीते-जी मरने की अवस्था में आ जाता है.

पिता से यह संस्कार बच्चों को अपरोक्ष रूप से हस्तांतरित हो जाते हैं. पुत्र पिता की छाया होते हैं और बेटियां पिता का गुरूर. दोनों ही मिलकर परिवार को छांह देते हैं और पिता को बारंबार याद करते हैं. आज पिता होते तो क्या होता, आज पिता साथ होते तो वो होता. दीपावली, दशहरे पर पिता की याद सहसा परिवार वालों को भीतर तक रूला देती है. मृत्यु के बाद अनेक संस्कार होते हैं लेकिन भारतीय परिवार इन संस्कारों को जीवन के अंतिम सांस तक पूरा करते हैं. यही कारण है कि साल में एक दिन उनका नाम होता है जिसे हम पितृ मोक्ष कहते हैं. पिता की मोक्ष की कामना के साथ ईश्वर की आराधना और उनके श्रीयश के लिए कामना.

भारतीय पिता को ना पॉप्स कहलाने का शौक है और ना ही ‘फादर्स डे’ मनाने का रिवाका. बाजार अपने लाभ के लिए लोगों का मानस बदल देता है. हमारे समाज से बाबूजी और पिताजी शब्द को जिस तरह विलोपित किया गया और पापा, पॉप्स ने जगह पायी तो बाजार को घुसपैठ करने में आसानी हो गई. बाजार ने तर्पण को ‘फादर्स डे’ में बदल दिया और विभिन्न उपहारों से पॉप्स को खुशी देने के लिए प्रेरित करने लगा. यही हाल माँ से मॉम का भी है. बाजार ने उनके लिए भी दरवाजे खोल दिए हैं. माँ की गोद में सिर रखकर सो जाने का मतलब जीते-जागते स्वर्ग सा सुख पाना है तो जींस पहनी मॉम के पास इसके लिए वक्त कहां? और यहीं से बाजार ने घुसपैठ कर लिया.

भारतीय समाज में सनातनी परम्परा के अनुरूप श्राद्धपक्ष में किसी प्रकार का मंगल कार्य कर सकते हैं और ना ही कोई नयी चीज की खरीददारी. ऐसे में बाजार खामोश हो जाता है और उसे लाखों का नुकसान होता है. बाजार तो बिकने और खरीदने के लिए बना है सो उसने इसका भी रास्ता निकाल लिया. कहा जाने लगा कि श्राद्धपक्ष में अमुक दिन उत्तम होता है और खरीददारी किया जाना चाहिए. बाजार अपनी चाल में कामयाब हो गया और कड़वे दिन में भी बाजार गुलजार होने लगा.

हम अपनी परम्पराओं को तिलांजलि देकर खुद को बाजार के हवाले कर दिया. हम बाजार के इशारों पर नाचने लगे. बड़ी कम्पनियों में मोटी तनख्वाह पर नौकरी कर हम खुद को नई रइसजादों की भीड़ में शामिल कर लिया. अब हमारे लिए रिश्ते, परम्परा और जीवनशैली का मतलब है पैसे खर्च करना. अजीब विडम्बना है कि जिस पिता ने अपने खून-पसीने की कमाई से बच्चों को बड़ा किया, आज वही बच्चे महंगे उपहार देकर एक तरह से पिता को आईना दिखा रहे हैं. बाजार ने इस कमजोरी को पकड़ लिया और हर दिन सेलिब्रेशन का हो गया. आइए हम सब बाजार के ‘फादर्स डे’ का तर्पण करें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवँ कॉलमिस्ट हैं)




श्रीपुरी धाम में देवस्नान पूर्णिमा 22 जून को

कहते हैं कि इस धरती पर तीन ही रत्न हैः जल,अन्न और मीठी वाणी और श्रीजगन्नाथ पुरी धाम के श्रीमंदिर में अपने रत्नसिंहासन पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रह रुप भगवान जगन्नाथ को एक साधारण मानव के रुप में अन्न,जल,मधुर संगीत,साल के 12 महीनों में कुल 13 उत्सव,प्रतिदिन अपनी अभिरुचि के वस्त्रधारण करना,मधुर गीतगोविंद गायन सुनना आदि बहुत प्रिय है। वे प्रतिदिन 56 प्रकार के भोगग्रहण करते हैं।उनको जल भी बहुत प्रिय है इसीलिए वे अपनी रथयात्रा के क्रम कुल 42 दिन जलक्रीड़ा करते हैं।

10मई,2024 को(अक्षयतृतीया के दिन से) वे 21 दिनों के लिए पुरी के नरेन्द्र तालाब में बाहरी चंदन यात्रा किये और अब वे श्रीमंदिर के अंदर के पवित्रतम तथा शीतलतम तालाब में 21 दिवसीय जलक्रीड़ा कर रहे हैं जो ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा अर्थात् आगामी 22 जून,2024 को देवस्नान पूर्णिमा के रुप में श्रीमंदिर के स्नानमण्डप पर पूरी रीति-नीति के साथ संपन्न होगी।देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। उस दिन वे गजानन वेश धारण करते हैं। देश-विदेश के लाखों -करोडों जगन्नाथ भक्त उस दिन उनके जन्मोत्सव के दर्शन करते हैं।

श्रीपुरी धाम के श्रीमंदिर के स्नानमण्डप पर चतुर्धा देवविग्रहों के देवस्नान पूर्णिमा मनाये जाने की बड़ी ही सुदीर्घ परम्परा रही है जो लगभग एक हजार वर्षों की परम्परा मानी जाती है। गौरतलब है कि आगामी 22 जून को श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रहों को भोर में (लगभग साढे चार बजे) पहण्डी विजय कराकर श्रीमंदिर के देव स्नानमण्डप पर लाया जाएगा जहां पर देवी विमलादेवी के कूप से कुल 108 कलश पवित्र तथा शीतल जल लाकर उन्हें महास्नान कराया जाएगा।

35 स्वर्ण कलश जल से जगन्नाथ जी को,33 स्वर्ण कलश जल के बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश जल से सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश जल से सुदर्शन जी को महास्नान कराया जाएगा। भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेव जी अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में पधारकर भगवान जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक के रुप में स्नानमण्डप पर चंदनमिश्रित जल और पुष्प छिड़ककर छेरापंहरा करेंगे। भगवान जगन्नाथ समेत सभी देवविग्रहों को गजानन वेष में सुशोभित किया जाएगा।

गौरतलब है कि देवस्नान मण्डप श्रीमंदिर के सिंह द्वार के समीप ही निर्मित है इसलिए इसलिए चतुर्धा देवविग्रहों को बडदाण्ड से ही समस्त जगन्नाथ भक्त उन्हें मलमलकर महास्नान करते हुए दर्शन करेंगे। गौरतलब है कि एक समय में महाराष्ट्र के एक गाणपत्य भक्त (विनाय भट्ट) देवस्नान पूर्णिमा के दिन पुरी आया और जगन्नाथ भगवान को गजानन वेश में दर्शन की उनसे कामना की और तभी से प्रतिवर्ष देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ ही नहीं समस्त चतुर्धा देवविग्रहों को गजानन वेश में सुशोभितकर उनके दर्शन कराया जाता है।

कहते हैं कि अत्यधिक स्नान करने के चलते देवविग्रह बीमार प़ड़ जाते हैं और तब उन्हें उनके बीमार कक्ष में लाकर 15 दिनों तक उनको एकांतवास कराया ताता है तथा उनका वहां पर आयुर्वेदसम्मत इलाज होता है। उस दौरान श्रीमंदिर का मुख्य कपाट बन्द कर दिया जाएगा। उस दौरान जो भी जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आते हैं वे भगवान जगन्नाथजी के दर्शन ब्रह्मगिरि अवस्थित भगवान अलारनाथ के दर्शन के रुप में करते हैं। ब्रह्मगिरि पुरी से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के खुले वातावरण में अवस्थित है जहां पर भगवान अलारनाथ की काले प्रस्तर की भगवान विष्णु की चार भुजाओंवाली मूर्ति है और जो बहुत ही सुंदर और आकर्षक है।वहां आगत समस्त जगन्नाथ भक्तगण भगवान अलारनाथ के दर्शनकर जगन्नाथ जी के दर्शन का लाभ 15 दिनों तक करते हैं(देवस्नान पूर्णिमा के उपरांत)उठाते हैं।

भगवान अलारनाथ को प्रतिदिन निवेदित किए जानेवाले खीर भोग को समस्त जगन्नाथ भक्त बडे चाव से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। भक्तों की आस्था और विश्वास के जीवंत और साक्षात प्रमाण हैं भगवान जगन्नाथ।पुरी धाम एक धर्मकानन है जो अपने आप में एक धाम भी है,एक तीर्थ भी है और एक श्रेत्र भी है जहां पर भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव और उनके गजानन वेष में दर्शन का समस्त जगन्नाथ भक्तों के जीवन में अति विशिष्ट महत्त्व माना गया है।

आध्यात्मिक महत्त्व के रुप में श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमन चतुर्धा देवविग्रह साक्षात चारों वेदों के जीवंत स्वरुप हैं।जगन्नाथ जी साक्षात ऋग्वेद हैं,बलभद्र जी साक्षात सामवेद हैं,देवी सुभद्रा माता साक्षात यजुर्वेद हैं तथा सुदर्शनजी साक्षात अथर्वेद के जीवंत प्रतीक हैं।महास्नान के उपरांत लगातार 15 दिनों तक आर्युवेदसम्मत इलाज के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह पूरी तरह से स्वस्थ होकर आषाढ शुक्ल प्रतिपदा तिथि को अपने भक्तों को अपने नवयौवन वेष में दर्शन देंगे और उसके अगले दिन आषाढ शुक्ल द्वितीया के दिन अर्थात् 07 जुलाई,2024 को जगत के नाथ श्री श्री जगन्नाथ भगवान अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा करेंगे। वे रथारुढ होकर अपनी मौसी के घर गुण्डीचा मंदिर जाएंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रीपुरी धाम में श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से देवस्नान पूर्णिमा के विराट आयोजन की तैयारी सुचारु रुप से चल रही है।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और ओड़िशा की साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक व धार्मक गतिविधियों पर शोधपूर्ण लेखन करते हैं)




मोदी vs खान मार्केट गैंग

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए तथा तीसरी बार नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लिया। इतनी लंबी चुनाव प्रक्रिया मैं जहां संपूर्ण विपक्ष एकजुट होकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ संविधान बदल देने के नॉरेटिव को गढ़कर भी सत्ता को हथिया पाने में बुरी तरह असफल रही वहीं चुनाव के तुरंत बाद ओपन-एआई संस्था के द्वारा एक आधिकारिक बयान जारी किया गया कि भारत के लोकसभा चुनाव को इजरायल की कंपनियों के द्वारा बड़े स्तर पर नरेंद्र मोदी के विरुद्ध करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करते हुए सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया गया। ऐसे में देश के ख्यातिलब्ध पत्रकार श्री अशोक श्रीवास्तव के द्वारा हाल ही में लिखी गई पुस्तक मोदी v/s खान मार्केट गैंग बेहद प्रासंगिक हो जाती है। प्रकाशित होते ही तेजी से चर्चा में आई इस पुस्तक का विमोचन बीते दिनों डॉ. सुधांशु त्रिवेदी जी द्वारा नई दिल्ली में किया गया।

इस पुस्तक में लेखक ने भारत की संप्रभुता एवं लोकतंत्र को अस्थिर करने के लिए भारत से लेकर वैश्विक स्तर तक फैले भारत विरोधी तत्वों द्वारा चलाए जा रहे नॉरेटिव की जंग के बारे में विस्तार से लिखा है। यह पुस्तक ऐसे लोगों का पर्दाफाश करती है जो अपने निजी एवं राजनीतिक स्वार्थ के कारण पेड वर्कर बनकर भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ रहे हैं। संभव है की इसी खतरे को भांपते हुए स्व. जनरल बिपिन रावत जी ने ढाई मोर्चे के युद्ध की तैयारी का आह्वान किया था। लेखक ने 25 अध्यायों और 295 पन्नों की अपनी इस पुस्तक में खान मार्केट गैंग के षडयंत्रों का बड़ी बेवाकी व तर्कपूर्ण ढंग से पर्दाफाश किया है।

इस पुस्तक के प्रारंभिक अध्यायों में नई दिल्ली से न्यूयॉर्क तक फैले हुए इस खान मार्केट गैंग और उसके द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव को हाईजैक करने के क्रम में संविधान बदलने के नॉरेटिव को गढ़ते हुए गैंग का वर्तमान परिदृश्य बहुत बेहतर ढंग से पुस्तक के प्रारंभ में समझाया है। इससे पाठक देश के प्रधानमंत्री के विरुद्ध छेड़े गए इस नैरेटिव युद्ध को आसानी से समझकर पुस्तक से जुड़ जाता है।

पुस्तक में मोदी के खिलाफ़ लंबे समय से खान मार्केट गैंग के छुटभैया लुटियंस मीडिया द्वारा गढ़े जा रहे तानाशाह के नेरेटिव जो 2014 में प्रारंभ हुआ था उसकी 2024 तक की पूरी यात्रा का सिलसिलेवार वर्णन करते हैं। इंडी एलायंस के द्वारा देश के 14 चुनिंदा पत्रकारों को प्रतिबंधित और बहिष्कृत करने का कुचक्र कैसे इसी खान मार्केट गैंग के द्वारा “नेमिंग एंड शेमिंग” करने हेतु रचा गया, यह घटना इतिहास के उस कालखंड से पाठकों को जोड़ती है जब सरदार पटेल को दूरदर्शन पर कम से कम दिखाने का षड्यंत्र रचा गया था और यह खबर समाचार पत्रों में छपी थी।

अशोक श्रीवास्तव जी ने एक अध्याय में मीडिया संस्थानों पर छापे और अभिव्यक्ति की आजादी पर होने वाले सिलसिलेवार हमले के बारे में विस्तार से लिखते हुए बताते हैं कि कैसे दूरदर्शन को सुनियोजित तरीके से प्रभाव शून्य किया गया और अपने चुनिंदा मीडिया संस्थानों को आगे बढ़ाया गया और मालामाल किया गया। खान मार्केट गैंग को होने वाली विदेशी फंडिंग व मीडिया की आजादी के नाम पर फर्जी इंडेक्स दिखाकर भारत को बदनाम करने के षड्यंत्र के बारे में लेखक ने विस्तार से लिखा है जो देश के द्वारा पढ़ा जाना अत्यंत आवश्यक है।

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद जब खान मार्केट गैंग का लुटियंस से सरकार चलाना बंद हुआ तो बिलबिलाए और शक्तिहीन गैंग ने फैक्ट चेक के नए टूल के साथ इनफॉरमेशन वारफेयर के मोर्चे पर घुसपैठ करने लगे। यह पुस्तक बताती है की कैसे देशभर में मुसलमान को डराने और किसानों के नाम पर देश को तोड़ने के खालिस्तान आंदोलन को हवा देने के पीछे यह खान मार्केट गैंग कम कर रहा है। हाल ही में कंगना रनौत को थप्पड़ मरने वाली घटना के द्वारा इसी किसान आन्दोलन की आड़ में देश में पुनः अशांति फैलाने के कुचक्र इसी खान मार्किट गैंग के टूलकिट का अंग है जिसे परत दर परत इस किताब में उधेडा गया है।

देश के विकास, सेंट्रल विस्टा और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बारे में भी नकारात्मक बातें कर देश के उत्साह को भंग किया जा रहा था। कैसे कश्मीर के मुद्दे पर देश की संप्रभुता पर आघात किया गया और भारत के जन मन में व्याप्त मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के बारे में नफरत फैलाते हुए मंदिर पर सियासत करने के लिए यह गैंग सक्रिय रहा इन सभी बातों को विस्तार से इस पुस्तक में बताया गया है। लेखक ने जॉर्ज सोरोज जैसे भारत विरोधियों, देश-विदेश के बिकाऊ मीडिया एवं फंडिंग पर पलने वाले पत्रकारों, एनजीओ गैंग के तीन तिगाड़ों को बाखूबी एक्सपोज किया है। फैक्ट और तथ्यों के साथ प्रस्तुतीकरण किताब को समृद्ध और सार्थक बनाती है। अशोक श्रीवास्तव जी ने इस पुस्तक हेतु मात्र लेखक का धर्म नहीं निभाया है अपितु अपने पत्रकारिता कौशल से सम्पूर्ण तथ्यों, बिंदुओं, घटनाओं सहित एक पूर्ण दस्तावेज के रूप में देश में हो रहे नरेटिव की जंग का साक्षीभाव से रिपोर्टिंग किया है। यह पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।

पुस्तक: मोदी vs खान मार्केट गैंग

लेखक: अशोक श्रीवास्तव

प्रकाशक: काउंसिल फॉर मीडिया एंड पब्लिक पॉलिसी रिसर्च

मूल्य: INR 399.00/-

समीक्षक: शिवेश प्रताप

मोब: 8750091725




18वें मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सुगम्यता का अहम स्थान

18वें मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 के दौरान फिल्मों के आनंद को समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचाने के एक विशेष प्रयास के तहत, एमआईएफएफ आयोजन स्थल को सभी सिनेप्रेमियों के लिए सुलभ बनाने के उद्देश्य से एनएफडीसी ने सुगम्यता एवं समावेशन को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित एक गैर-लाभकारी संगठन ‘स्वयं’ के साथ साझेदारी की है। इसके अलावा दिव्यांगजन फिल्म्स नाम का एक विशेष पैकेज भी महोत्सव में प्रदर्शित किया जाएगा ताकि दिव्यांग व्यक्ति भी एमआईएफएफ 2024 में फिल्मों का आनंद ले सकें।

संरचनात्मक एवं लॉजिस्टिक संबंधी बदलावों और सुगम्यता संबंधी मानकों के लिए सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों की पहचान के जरिए ‘स्वयं’ के साथ यह साझेदारी एनएफडीसी-एफडी परिसर, जो 18वें एमआईएफएफ का आयोजन स्थल भी है, को दिव्यांगों के अनुकूल बनाने का प्रयास कर रही है। एमआईएफएफ के इतिहास में पहली बार ऐसी पहल हुई है और आयोजन स्थल की सुगम्यता को इतना सर्वोपरि महत्व दिया गया है। इससे फिल्म महोत्सवों के दायरे में एक नया मानक स्थापित हुआ है।

आगामी सप्ताह भर चलने वाले इस कार्यक्रम के लिए सुगम्यता संबंधी साझेदार के रूप में, ‘स्वयं’ ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई प्रयास किए हैं कि एमआईएफएफ 2024 वास्तव में सभी के लिए समावेशी और सुलभ हो। इस संगठन ने एनएफडीसी – फिल्म्स डिवीजन परिसर में महोत्सव स्थल की सुगम्यता का व्यापक आकलन किया, जिससे सार्वभौमिक सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों के अनुरूप सुगम्यता को बढ़ाने हेतु अनुकूल समाधान प्रदान करना संभव हुआ।

पहली बार, संपूर्ण महोत्सव टीम को समावेशिता एवं समानुभूति की संस्कृति सुनिश्चित करने के लिए जागरूक और प्रशिक्षित किया जाएगा। महोत्सव के निदेशक श्री पृथुल कुमार ने कहा, “इस बार हम न केवल यह सुनिश्चित करेंगे कि आयोजन स्थल दिव्यांगजनों के लिए सुलभ हो, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगे कि महोत्सव में संलग्न स्वयंसेवक महोत्सव में आने वाले दिव्यांगजनों को संभालने के लिए उचित रूप से प्रशिक्षित हों।”

प्रतिभागी कम गतिशीलता वाले व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने के लिए सिमुलेशन अभ्यास में संलग्न होंगे, इसके बाद अनुभव और अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए संवादात्मक उपयोगकर्ता समूह चर्चाएं होंगी।

‘स्वयं’ की संस्थापक-अध्यक्ष सुश्री स्मिनु जिंदल ने साझेदारी के प्रति अपना उत्साह व्यक्त करते हुए कहा, “सुगम्यता एक मौलिक अधिकार है और ‘स्वयं’ के सभी सदस्य यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि यह आयोजन स्थल सभी के लिए स्वागतयोग्य हो। एमआईएफएफ 2024 के साथ हमारा सहयोग फिल्म महोत्सव परिदृश्य के भीतर समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।” उन्होंने कहा, “सुगम्यता को प्राथमिकता देकर, हम न केवल कम गतिशीलता वाले व्यक्तियों के लिए अवसर के दरवाजे खोल रहे हैं, बल्कि एक अपेक्षाकृत अधिक समावेशी भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त कर रहे हैं जहां विविधता के सम्मान के साथ उत्सव मनाया जाएगा।”

इस प्रयास को आगे बढ़ाते हुए, 18वें एमआईएफएफ 2024 में कुछ फिल्मों के प्रदर्शन को भी इस तरह से डिजाइन किया गया है जिससे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए फिल्म देखना और उसका आनंद लेना संभव हो सकेगा। 18वें एमआईएफएफ 2024 की पूर्व संध्या पर आयोजित पत्रकार सम्मेलन में महोत्सव के निदेशक श्री पृथुल कुमार ने कहा, “18वां मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव सुलभ फिल्मों का प्रदर्शन करेगा। सुनने में अक्षम दर्शकों के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा एवं बंद शीर्षक वाली फिल्में उपलब्ध होंगी और दृष्टिबाधित लोगों के लिए ऑडियो विवरण वाली फिल्में भी होंगी। इसके अलावा भारतीय सांकेतिक भाषा का उपयोग करते हुए लाइव डांस के साथ एक फिल्म ‘क्रॉस ओवर’ भी होगी।”

दिव्यांगजन फिल्म्स नाम के विशेष पैकेज में चार फिल्मों/एपिसोड का एक गुलदस्ता है जो 19 जून 2024 को 18वें एमआईएफएफ में प्रदर्शित किया जाएगा। ये फिल्में हैं –

मेथिल देविका की ‘द क्रॉसओवर’ (आईएसएल/अंग्रेजी – 21 मिनट)
‘द क्रॉसओवर’ एक लघु फिल्म है जो एक ऐसे नृत्य प्रदर्शन को दर्शाती है जहां नर्तक कथानक को समझाने के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा को मोहिनीअट्टम, केरल का एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप – की सौंदर्यवादी सांकेतिक भाषा के साथ सहजता से एकीकृत करता है।

2. भारतीय सांकेतिक भाषा के साथ ईश की लिटिल कृष्णा (अंग्रेजी)
एपिसोड 3: द हॉरर केव (22 मिनट) और एपिसोड 8: चैलेंज ऑफ द ब्रूट (23 मिनट)

जब भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ वृन्दावन के जंगल में अपनी बचपन की लीलाओं का आनंद ले रहे होते हैं, तब कंस के भड़काने पर अघासुर नाम का राक्षस उन सभी को मारने के इरादे से वहां आता है। इसके अलावा, अरिष्टासुर नाम का एक राक्षस वृन्दावन गांव के निवासियों को आतंकित करता है, जिससे वे कृष्ण से सुरक्षा मांगने के लिए प्रेरित होते हैं। कृष्ण उन राक्षसों का सामना करते हैं और उन्हें सहजता से हरा देते हैं।

श्रीपाद वारखेडकर की जय जगन्नाथ (हिन्दी – 36 मिनट)
जगन नाम के एक बच्चे के रूप में अवतरित हुए भगवान जगन्नाथ और उनके समर्पित अनुयायी बलराम। यह फिल्म उनके साहसिक कारनामों की पड़ताल करता है और इसमें लोककथाओं, पौराणिक कथाओं एवं दोस्ती की कहानियों के मिश्रण का समावेश है।

सुगम्यता के प्रति एमआईएफएफ 2024 की प्रतिबद्धता एक समावेशी वातावरण को बढ़ावा देने के प्रति इसके समर्पण को रेखांकित करती है, जहां हर कोई सिनेमा के उत्सव में पूरी तरह से भाग ले सकता है। ‘स्वयं’ के साथ हाथ मिलाकर, एमआईएफएफ ने अन्य महोत्सवों के लिए एक मिसाल कायम की है और यह प्रदर्शित किया है कि सुगम्यता का लक्ष्य न केवल हासिल करने योग्य है, बल्कि यह सभी दर्शकों के सिनेमा संबंधी अनुभवों को सही मायने में समृद्ध बनाने के लिए आवश्यक भी है।

18वें एमआईएफएफ 2024 के बारे में
दक्षिण एशिया के गैर-फीचर फिल्मों के सबसे पुराने एवं सबसे बड़े फिल्म महोत्सव के रूप में प्रसिद्ध एमआईएफएफ, इस वर्ष वृत्तचित्र, लघु कथा एवं एनीमेशन फिल्मों की कला से संबंधित अपने उत्सव का 18वां सालगिरह मना रहा है। वर्ष 1990 में शुरू और अब भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित होने वाला, एमआईएफएफ दुनिया भर के सिने-प्रेमियों को आकर्षित करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में विकसित हुआ है।

एमआईएफएफ का 18वां संस्करण भी सावधानीपूर्वक चुनी गई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की एक विस्तृत श्रृंखला और पहले डॉक्यूमेंट्री फिल्म बाजार, जिसमें वर्क इन प्रोग्रेस लैब, सह-निर्माण बाजार और व्यूइंग रूम शामिल हैं, जैसे अन्य अत्यधिक विशिष्ट कार्यक्रमों के साथ एक रोमांचकारी अनुभव पेश करने का वादा करता है। वार्नर ब्रदर के एक वरिष्ठ एनिमेटर द्वारा एक विशेष एनीमेशन और वीएफएक्स पाइपलाइन कार्यशाला भी आयोजित की जा रही है। स्थापित और उभरते फिल्म निर्देशकों के बीच सीखने के बहुआयामी आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले पैनल चर्चा, खुले मंच, फायरसाइड चैट और फिल्म उद्योग के शीर्ष विशेषज्ञों द्वारा मास्टरक्लास जैसे विशेष रूप से तैयार किए गए कार्यक्रम भी होंगे। इसके अलावा पत्रकार सम्मेलन और विशिष्ट साक्षात्कार मीडियाकर्मियों को अपने पसंदीदा वृत्तचित्र निर्माताओं व कलाकारों के साथ करीब तथा व्यक्तिगत रूप से जुड़ने का मौका देंगे।

अधिक जानकारी के लिए https://miff.in  पर जायें।




यशवंत कोठारी और उनका व्यंग्य-संसार

राजस्थान के व्यंग्य-लेखकों में एक चर्चित नाम है यशवंत कोठरी। बहुत पहले 1969 और 1972 के बीच प्रभु श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा में मेरे विद्यार्थी रहे। खूब लिखा, खूब छपे और खूब नाम कमाया। जब उन्हें यह मालूम पड़ा कि मैं इन दिनों बैंगलोर में हूँ,तो व्यस्तता के बावजूद मिलने चले आए। बैंगलोर जैसे व्यस्त,कोलाहल-भरे और ट्रैफिक-जामों के लिए कुख्यात महानगर में किसी से मिलना बहुत बड़ी बात है। मगर उन्होंने समय निकाला और अपनी नव-प्रकाशित पुस्तक लेकर मिलने चले आये।अच्छा लगा और लगभग पचास साल पहले की यादें ताज़ा हुईं।नाथद्वारा की बातें,गुरुजनों की बातें, शिष्यों-सहयोगियों की बातें आदि-आदि। यशवंतजी की लगभग बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जितने सम्मान और पुरस्कार इन्हें मिले हैं,उतने ही विनम्र और मृदुभाषी भी हैं। व्यंग्य-लेखन के बारे में यशवंत जी से बात की,तो वे बोले:

“व्यंग्यकार कोई समाज-सुधारक, साधु-संत या महात्मा नहीं होता है। वह जीवन की अनिवार्यता है, आवश्यकता है।राजनीति, विशेषकर पारिवारिक राजनीति में हर व्यक्ति को व्यंग्य की प्रभावोत्पादकता से दो-चार होना पड़ता है। व्यंग्य वह तिलमिलाहट है, जो आपके अंदर तक छेदकर आर-पार निकलने की क्षमता रखता है। व्यंग्य जीवन की आक्रमकता है, सहिष्णुता नहीं। व्यंग्य तो शल्यक्रिया है जो जीवन को बचाने के लिए आवश्यक है। व्यंग्य समीक्षा नहीं, फकत वह तो सहभागिता करता है। जीवन के हर मोड़ पर व्यंग्य आपको अपने साथ खड़ा मिलेगा— ठीक प्रकृति की तरह, जिजीविषा की तरह।“

ऐसे विचारशील और ख्यातिवान शिष्य पर गुरु का गर्वित होना स्वाभाविक है।

डॉ. शिबन कृष्ण रैणा
2/537 Aravali Vihar(Alwar)
Rajasthan 301001
whatsapp No. +918209074186




मायके आई हुई बेटियां

ससुराल से मायके आई लड़कियां
होती हैं एक आस की तरह
साथ में कुछ ले जाए या नहीं
दे कर जाती है बहुत सी कहानियां

ससुराल से मायके आई बहनें
होती हैं सर्दी की उस धूप की तरह
जिसके बिना भी काम चल जाता है
पर आती हैं तो सुकून से भर जाती है

ससुराल से मायके आई हुई बेटियां
होती हैं उस समय के जैसी खुबसूरती
जो बीतता है बहुत जल्दी जल्दी
पर अपनापन बरबस बिखेर जाता है

ससुराल से मायके आई बहुएं
होती हैं उस घर की दहलीज जैसी
जो हर अच्छी बुरी नजर, नसीहत को
छोड़ कर मायके खुद को ढूंढने
आ जाती है खो जाने के डर को
मिटाने के लिए तैयार हो लोट जाती है

© रेणु सिंह राधे
कोटा राजस्थान




श्री अमित गुप्ता ने पश्चिम रेलवे के प्रमुख मुख्‍य इंजीनियर का पदभार ग्रहण किया

श्री अमित गुप्ता ने पश्चिम रेलवे के प्रमुख मुख्य इंजीनियर का पदभार ग्रहण कर लिया है। आप भारतीय रेलवे इंजीनियर्स सेवा (IRSE) 1990 बैच के वरिष्ठ अधिकारी हैं। इससे पहले आप पश्चिम रेलवे में ही चीफ ब्रिज इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे।

श्री गुप्ता ने रेलवे में उप मुख्‍य इंजीनियर/ड्राइंग, चर्चगेट, वरिष्‍ठ मंडल इंजीनियर/साउथ वडोदरा और अजमेर मंडल में कई महत्वपूर्ण और विविध पदों पर कार्य किया है। आपने पूर्व मध्‍य रेलवे के हाजीपुर में मुख्‍य इंजीनियर/रेलवे सेफ्टी वर्क के पद पर कार्य किया है। इसके बाद आप जनरल मैनेजर/यूआई/मुंबई के पद पर कार्यरत थे। बाद में आपने पश्चिम रेलवे में चीफ इंजीनियर, सामान्‍य के साथ-साथ प्लानिंग के पदों पर व्यापक रूप से काम किया।

श्री गुप्ता ने जयपुर के मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। आपने NSEAD, सिंगापुर से एडवांस्‍ड मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया है। आपने जापान में जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) के साथ हाई स्‍पीड ट्रेनिंग भी पूरी की है। आपने वडोदरा के नेशनल एकेडमी ऑफ इंडियन रेलवे (NAIR) में BIMSTEC कंट्री प्रतियोगियों के साथ भी ट्रेनिंग पूरी की। आपने इन सार्वजनिक सुविधाओं के तेज़ गति से निर्माण के लिए फुट ओवर ब्रिज (FOB) और रोड ओवर ब्रिज (ROB) की कई मानक प्रकार की योजनाएँ विकसित की हैं। उत्तर पश्चिम रेलवे (NWR) में सेवा करते हुए आपको उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रतिष्ठित महाप्रबंधक पुरस्कार भी मिल चुका है।

अपनी नौकरी के दायित्वों के अलावा आपने उभरते इंजीनियरिंग छात्रों की मदद करने के लिए बेसिक सिविल इंजीनियरिंग पर चार पुस्तकों का सह-लेखन किया है। आपको खेलों में भी विशेष रुचि है, जिनमें बैडमिंटन, क्रिकेट और तैराकी आदि शामिल हैं।




अयोध्या का रौनाही सनातन और जैनियों का पूज्य स्थान है, जहां रावण ने अयोध्या के राजा अनरण्य को मारा था

अवस्थिति : अयोध्या के 84 कोसी परिक्रमा सीमा में:-

रौनाही गांव(कस्बा) उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की सोहावल तहसील में स्थित एक बड़ा गाँव है, जिसमें वर्तमान समय में कुल 1436 परिवार रहते हैं। यह जिला मुख्यालय से पश्चिम की ओर 20 किमी , अयोध्या धाम से 24 किमी. , सोहावल से 4 किमी और राज्य की राजधानी लखनऊ से 119 किमी दूर स्थित है। यह सनातन हिंदू धर्म के भगवान श्री राम के पूर्वज राजा अनरण्य , राजा रघु , राजा दशरथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और जैन धर्म के 15वे तीरथंकर भगवान धर्मनाथ से किन्ही ना किन्ही रूपों में जुड़ा तीर्थ स्थल है जो वर्तमान समय में प्रचार प्रसार न होने के कारण आम जन मानस की नजरों में ओझल हो चुका है। इसे लोगों की जानकारी में लाने के लिए ये रिसर्च जानकारी साझा करने का प्रयास कर रहा हूं।

जैन धर्म के तीर्थंकर और कल्याणकों का रतनपुरी केंद्र:-
सरयू नदी के तट पर बसा रौनाही गांव जैन धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र है। श्वेतांबर व दिगंबर दोनों समुदायों के 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ प्रभु स्वम और उनके चार कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवल ज्ञान यहीं पर संपन्न हुए थे। गांव में विशालकाय श्वेतांबर जैन मंदिर में राजा संप्रति के काल की 25 सौ वर्ष पुरानी प्रतिमा मौजूद है। यहां श्री धर्मनाथ दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र, रतनपुरी , पो0 रोनाही, जिला- अयोध्या,उ.प्र.में आज भी देखा जा सकता है। यह पौराणिक रतनपुर रोनाही थाना से 3 किमी. अन्दर ग्राम रतनपुरी में स्थित है। यह क्षेत्र लखनऊ फैजाबाद रेल मार्ग सोहावल स्टेशन से 12 किमी0 की दूरी पर है। जैन
मन्दिर के पुजारी चंद्रशेखर तिवारी ने बताते हैं कि श्री सत्यनारायण कथा में वर्णित तीर्थ रतनपुरी यही है। सरयू नदी के निकट बसे इसी गांव का नाम कालांतर में बिगड़ कर रौनाही पड़ गया।

पन्द्रहवें तीर्थंकर : भगवान धर्मनाथ का जन्म स्थान :-
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एक रत्नपुर नाम का नगर था, जिसमें कुरुवंशीय( कही कही इन्हे इच्छाकु वंशीय कहा गया है) काश्यप गोत्रीय महाविभव संपन्न भानु महाराज राज्य करते थे, उनकी रानी का नाम सुप्रभात था। रानी सुप्रभा के गर्भ में वह अहमिन्द्र वैशाख शुक्ल त्रयोदशी के दिन अवतीर्ण हुए और माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन रानी ने भगवान को जन्म दिया। इन्द्र ने धर्मतीर्थ प्रवर्तक भगवान को ‘धर्मनाथ’ के रूप में सम्बोधित किया था।उनकी ऊंचाई 45 धनुष थी। लंबे जीवन काल के बाद, उन्होंने दीक्षा ली और निर्वाण प्राप्त किया। किन्नर यक्ष देव और कंदर्प यक्षिणी देवी क्रमशः उनके शासन देव और शासन देवी हैं।

धर्मनाथ वर्तमान युग (अवसरपिणी) के पंद्रहवें जैन तीर्थंकर थे। जैन मान्यताओं के अनुसार, वे एक सिद्ध बन गए , एक मुक्त आत्मा जिसने अपने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है। राजा भानु, महारानी सुप्रभा और परिवार के अन्य राज सदस्य भगवान धर्मनाथ के जन्म के पूर्व धर्म-कर्म में लगे रहते थे। वहां नित्य हो रहे यज्ञ-हवन, व्रत-उपासना दान-पुण्य आदि के चलते पूरे राज्य में धार्मिक वातावरण निर्मित हो गया था। उसी के फलस्वरूप शिशु के जन्म के बाद उनका नाम धर्मनाथ पड़ गया।धार्मिक वातावरण और राजसी वैभव के बीच धर्मनाथ का लालन-पालन हुआ। युवावस्था में आने पर राजा भानु ने उनका विवाह कर राज्याभिषेक भी कर दिया।

भगवान बनने से पूर्व धर्मनाथ के शासन काल में पूरे राज्य में अधर्म का नामोनिशान तक नहीं था। वे साक्षात धर्म के अवतार थे। लाखों वर्ष तक धर्मपूर्वक शासन करने के पश्चात एक दिन उन्हें उल्कापात देखकर बोध हो गया कि उनका जन्म केवल भोग-विलास के लिए नहीं, बल्कि जनकल्याण के लिए हुआ है। उसी क्षण उन्होंने राजपाठ त्यागने का निर्णय लिया।

अत: अपने पुत्र सुधर्म का राज्याभिषेक करके स्वयं म‍ुनि-दीक्षा लेकर वन विहार कर लिया। एक वर्ष के घोर तप के पश्चात पौष माह की पूर्णिमा के दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ और वे त्रिकालदर्शी तीर्थंकर बन गए। भगवान धर्मनाथ के अनुयायियों की संख्या लगभग 8 लाख थी जिनमें गणधर, शिक्षक, कैवल्य ज्ञानी, मुनि, आर्यिकाएं, श्राविकाएं और श्रावक शामिल थे।

जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- वज्र है। वज्र कठोरता का प्रतीक भी माना गया है, जो हमें यह शिक्षा देता है कि ‍जीवन में हमें कितना भी दुख क्यों ना मिले, फिर भी हमें वज्र के समान कठोर रहकर दुख को सहन करना चाहिए और घोर दुख में भी धर्म के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।मनुष्य रूप में भगवान धर्मनाथ दस लाख वर्ष तक पृथ्वी पर रहें। फिर ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष क‍ी चतुर्थी के दिन सम्मेदशिखरजी पर निर्वाण प्राप्त करके सदा के लिए मुक्त हो गए।

रामजी के पूर्वज राजा अनरण्य का रावण को शाप:-
सनातन धर्म में भगवान रामजी के पूर्वज की लीला स्थली के रूप में इस स्थल को जाना जाता है। राजा अनरण्य इक्ष्वाकु वंश में जन्मे महान राजा थे। अनेक राजा और महाराजाओं को पराजित करता हुआ दशग्रीव रावण इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुँचा जो अयोध्या पर राज्य करते थे। उसने उन्हें द्वन्द युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिये ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ किन्तु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। जब अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा। इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि “तूने अपने व्यंगपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है, इसलिये मैं तुझे शाप देता हूँ कि महाराज इक्ष्वाकु के इसी वंश में जब विष्णु स्वयं अवतार लेंगे तो वही तुम्हारा वध करेंगे।” यह कहते हुए राजा स्वर्ग सिधार गये।

कई पीढ़ियों तक अयोध्या से शत्रुता,रघु ने तोड़ा था रावण का अहंकार :-
रावण को अयोध्या के महाराज अनरण्य ने श्राप दिया था कि उनका वंशधर ही तेरा वध करेगा। इस श्राप के फलस्वरूप रावण अयोध्या के राजाओं का शत्रुओं बन गया। इस श्राप से रावण परेशान था। जब महराज रघु अयोध्या का सिंहासन पर आसीन हुए तब रावण अयोध्या पहुंचा। संयोग ऐसा बना कि रावण जब अयोध्या पहुंचा, तो राजा रघु नगर का निरीक्षण करने गए हुए थे। राजमहल के द्वार पर पहुंचकर रावण ने द्वारपाल द्वारा संदेश भेजा, कि रघु से कहो कि राक्षसराज दशानन आया है और उनसे द्वन्द युद्ध करना चाहता है।

दशानन का संदेश सुनकर महामंत्री द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि राजा रघु, नगर में नहीं हैं आप किसी और समय यहां आएं। पता नहीं क्यों आपको मरने की इतनी जल्दी है। थोड़ी प्रतिक्षा कर लीजिए।

रावण, मंत्री की बात सुनकर चिढ़ गया। उसने कहा कि पृथ्वी पर एक ही चक्रवर्ती सम्राट है और वो मैं हूं। इतना कहकर रावण चला गया।

जब महाराज रघु लौटे तो महामंत्री से रावण आगमन और चुनौती को बताया। राजा रघु ने अपने धनुष पर नारायण अस्त्र का अनुसंधान कर प्रत्यंचा चढ़ा ली और लंका की तरफ तीर छोड़ दिया। उस तीर में से कई लाख तीर और बिखर गए। लंका के कई भवन और वहां के लोग ध्वस्त होने लगे। लंका में त्राहि-त्राहि मच गई।

रावण विद्वान था। उसने पहचान लिया कि किसी ने नारायण शास्त्र का प्रयोग किया है। उसने घोषणा कर दी कि कोई रथ पर न बैठे। कोई किसी प्रकार का अस्त्र-शस्त्र हाथ में न ले। सभी हाथ ऊपर उठाकर कहें कि “हम महाराज रघु की शरण में हैं।”

लंका के शूरवीरों ने रावण की इस आज्ञा का पालन किया। स्वंय रावण ने भी ऐसा ही किया। सभी तीर वापस लौट गए पर लंका का आठवां भाग पूरी तरह नष्ट हो चुका था। इस घटना के बाद रावण, जब तक महाराज रघु जीवित रहे, तब तक उसने अयोध्या की ओर कूच करने का साहस नहीं किया।

राजा अज से रावण का युद्ध :-
राजा अज से रावण का बड़ा युद्ध हुआ। उन्होंने पवन अस्त्र से सेना सहित रावण को लंका पहुंचा दिया। इनका तेज बल देखकर रावण चुपचाप बैठा था। फिर दशरथ का जन्म हुआ और रावण को ब्रह्मा के वरदान की बात याद आई और तप करने के लिए निकल पड़ा। तप के बाद जब ब्रह्मा ने कहा कि वर मांगें, तब रावण ने दशरथ के पुत्र उत्पन्न नहीं होने का वर मांगा, ब्रह्मा ने वर दे दिया, लेकिन रावण मन में बड़ा दुखी हुअा। तब उसने कौशल पुरी जाकर कौशल्या को चुरा लिया और पिटारी समुद्र में राघव मच्छ काे साैंपी। इसके बाद राजा दशरथ के मंत्री सुमंत को वह पिटारी मिली। उसने खोलकर देखा तो उसमें सुंदर कन्या मिली। इसके बाद उसने कन्या से पूरी जानकारी ली और उसे सुमंत उसे कौशलपुर ले आया। जहां राजा अपनी कन्या के खो जाने से दुखी था। सुमंत ने उन्हें बेटी वापिस लौटाई। जब राजा को सुमंत के बारे में दशरथ का मंत्री होना पता चला तो उन्होंने कन्या का विवाह राजा दशरथ से कर दिया।

दशरथ से भी मिली पराजय :-
महाराज रघु के बाद आयोध्या के राजा अज और दशरथ से वह पराजित होता रहा । उस समय आर्य राजाओ और राक्षसो के बीच युद्ध होते थे । राजा दशरथ काशीराज दिवोदास के साथ मिलकर राक्षसराज रावण से युद्ध कर रहे थे । रावण आर्यावर्त/, भारत वर्ष देश पर अपना अधिकार कर वैदिक संस्कृति को समाप्त कर राक्षस संस्कृति को थोपना चाहता था । यही युद्ध का मुख्य कारण था दाशराज युद्ध। इस युद्ध को कुछ इतिहासकार, दसवां देवासुर संग्राम भी कहते हैं।

यह युद्ध दशरथ तथा दिवोदास आदि दस राजाओं ने मिलकर असुरों के नेता शंभर के विरुद्ध लड़ा था। असुर शंभर, राक्षस राज रावण का साढ़ू तथा मय दानव की बड़ी बेटी मायावती का पति था। भयंकर योद्धा होने पर भी युद्ध में यद्यपि शंभर हार कर वीरगति को प्राप्त हुआ, पर दशरथ भी बुरी तरह घायल होकर मूर्छित हुए। उस युद्ध में, रानी कैकई भी उनके साथ थीं। उन्होंने, बड़ी वीरता से युद्ध करते हुए, घायल दशरथ को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाला और उनकी जान बचाई। इसी के पुरस्कार स्वरूप दशरथ ने कैकई को दो वरदान मांगने को बोला, जिनका परिणाम बाद में कुमार भरत को राजगद्दी और श्री रामजी को वनवास हुआ था।

राजा दशरथ के मुकुट बालि से रावण ले गया था :-
अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बालि से हो गया. राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बालि ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी. राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी। अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी. जब बालि एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी।

युद्ध में बालि राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बालि को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बालि को प्राप्त हो जाती थी. अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हार राजा दशरथ की ही होगी।

राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बालि ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए। तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया. उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।

श्री रामजी ने जब बालि को मारकर गिरा दिया. उसके बाद उनका बालि के साथ संवाद होने लगा. प्रभु ने अपना परिचय देकर बालि से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बालि ने बताया- “रावण को मैंने बंदी बनाया था. जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया. प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें. वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।”

जब अंगद श्री रामजी के दूत बनकर रावण की सभा में गए. वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी. रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया।

जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया। अंगद वह मुकुट को लेकर वापस श्री राम दल में भिजवाया था।

राम रावण युद्ध :-
कालांतर में त्रेता युग में इसी महान इक्ष्वाकु वंश में स्वयं श्रीमन् नारायण अयोध्या नरेश दशरथ के घर प्रभु श्री राम के रूप में जन्मे और उन्होंने ही दशानन रावण, उसके सम्पूर्ण कुल और पूरी राक्षस जाति का वध किया। रामायण और राम चरित मानस में इस युद्ध से भारत का हर नागरिक परिचित है।

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)