स्मृतियों की असाधारण संवेदना

विशिष्ट लेखक पंकज सुबीर का लघु खण्ड काव्य ‘देह-गाथा’ अभी हाल ही में शिवना प्रकाशन से प्रकाशित होकर आया है। इस लघु खण्ड काव्य के लिए अनीता दुबे ने रेखा चित्र तैयार किए हैं। एक नज़र में यह खण्ड काव्य किसी काम सूत्र-सा प्रतीत हुआ, सोचा था कुछ दिन मौन रहकर आराम करूँगी और इस क़िताब को पूरी तरह दिमाग़ ख़ाली कर सबसे अंत में पढ़ूँगी। एक बार पढ़ना शुरू किया था, दिमाग़ में मची खलबली और व्यस्तता ने इसे यूँ ही पढ़ने की अनुमति नहीं दी।

वैसे पंकज सुबीर की क़िताबों को मैं हवाई सफ़र, यात्राओं या एकांत में अपनी दुनिया में सिमट कर पढ़ना पसंद करती हूँ। उनका लेखन दुनिया और पाठक के बीच एक रेखा खींच कर अपनी ओर खींच लेता है। दिल और दिमाग़ दोनों के तारतम्य को एक सार में रखना पड़ता है उनकी रचनाएँ पढ़ने के लिए ! गंभीर लेखक पंकज सुबीर की काव्य पुस्तक ‘देह गाथा’ सूर्य की पहली किरण है, जो भोर में सूर्य के चमकने से पहले सिंदूरी छटा बिखेरती दिन के आगमन की रोमांचित दस्तक देती है, युवावस्था के सूरज के उदय से पहले की कोमल भोर की किरण समान है।

यह काव्य पुस्तक एक ही साँस में तरन्नुम-सी बजती, लहरों पर डोलती, झीने-झीने मन में डोलती समुंदर के उस गहरे रहस्य को परत दर परत खोलती है, जिसे हर युवा मन उस ज़माने में सात सौ तालों में बंद कर चाबी खुद से भी छिपा लिया करता था- “है अतीत का धुँधला-दर्पण, उसमें धूमिल-सा प्रतिबिम्बन, सदियों से ठिठका सुधियों में, जीवन का वह प्रथम-प्रभञ्जन”, “अब जो सोचूँ तो लगता है, कितनी सदियों बात पुरानी। बीत चुकी है वर्षों पहले, किन्तु नवल अनुराग-कहानी। एक प्रतीक्षारत-अलाव को, जब था मिला प्रथमत: ईंधन।।”

प्रथम स्पर्श शायद भूलें लेकिन प्रथम बार जब सम्पूर्ण सृष्टि का द्वार खुल जाता है, पहले एहसास का मादक पहला गहरा अनुभव जिसे देहों ने भोगा, उस चरम को जो सृष्टि का सत्य है हर जीव के लिए। जिससे प्रेम उपजता है, नव अंश की ऊर्जा जन्म लेती है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की पंक्तियाँ , “अंत और अनन्त के तम-गहन-जीवन घेर, मौन मधु हो जाए, भाषा मूकता की आड़ में, मन सरलता की बाढ़ में जल-बिन्दु सा बह जाए, सरल अति स्वछन्द”, मौन की उसी अनंत कसमसाती नदी को, जहाँ जटिल सरल हो जाता है और सरल अति जटिल, पंकज सुबीर ने बड़े चाव से बहा कर गहन मंथन किया है।

“तभी मौन की सार्थकता का, मिला हृदय को प्रथम ज्ञान था।” यह उनका मौन प्रचंड गुंजन है, “चेष्टाएँ थीं मूक-मूक-सी, शब्दहीन-सा था आंदोलन” कामदेव के इस सम्मोहन को शब्दों में उतार पाना बहुत टेढ़ी खीर होती है। देहों का गणित चरित्रों के गणित से गहरा जुड़ा है, भारत जैसे देश में जहाँ ‘कामसूत्र’ की रचना की गई हो, खजुराहो जैसे मंदिर का निर्माण किया गया है, वहाँ आज भी इस विषय पर पहेलियों में बात की जाती है।

यह सही है वक्त के साथ आते सामाजिक, मानसिक और आर्थिक बदलाव ने वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है, समाज, सोच, रहन-सहन, पहनावे, जीवन शैली, मीडिया, सिनेमा में बहुत खुलापन आ गया है जिससे अश्लीलता और फूहड़पन सहज सामाजिक जीवन में व्याप्त हो गया है। यहाँ कहना बहुत उचित होगा पंकज सुबीर की लेखनी ने अश्लीलता के ढोंग से उनकी काव्य रचना को साफ़ बचाकर, नीरसता और दूरी बनाकर एक बहुत उच्च स्तर के कलात्मक काव्य की रचना की है। चित्रकार अनीता दुबे ने इस काव्य के हर चित्र का चित्रांकन उसी कुशलता से उसी स्तर का किया है। इस काव्य के हर शब्द के दर्पण को चित्रों में सुवासित कर सार्थक किया है। जैसे प्रेम के लिए परस्पर दो की अनिवार्यता और पूरकता होती है, जिसकी कल्पना एक दूसरे के बिना अधूरी है।

“मर्यादा की सीमा से कुछ, बाहर हम आये थे चल कर, कायाएँ कुसुमित होती थीं, एक नवल साँचे में ढल कर, प्रलय बीतने पर होना था, नवल-सृष्टि का फिर से सर्जन।” एक यायावर मन से सारे बाँधों और बंधनों को तोड़ कर प्रथम अनुभव के सौंदर्य को बेझिझक, बेबाकी से अपने मनोभावों को प्रकट कर पंकज जी ने उत्सव मनाया है। उस उत्सव की तरंगों में आह्लादित सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों का समन्वय पंकज सुबीर को तृप्त करता है। इस साहित्यिक कला कृति में रूहानी लयबद्धत्ता है, समसामयिक से परे यह याद दिलाती है उस काल की जब ध्वनियों की पुनरावृत्ति में बहकर पाठक कंठस्थ कर लेता था काव्य को। एक ही भाव में पूरा काव्य रचा गया है।

यहाँ कई बिंबों, प्रतिबिंबों के माध्यम से भावनाओं का आवेग बहता है। प्रकृति की छाँव में अंबर से धरा तक अति कोमल मनोभावों का स्फोट है, “नीलगगन की ऊँचाई में, उड़ते हुए युगल पल्लव थे, क्षण-क्षण में होता था जैसे, सृजन शिल्प का और विखण्डन।” आधुनिक युग से उस युग तक सेतु का काम करते हैं। स्मृतियों के असाधारण संवेदन को भीतर दबा-छिपा, लेखक हृदय भीतर दबोच न सका और स्मृतियों का एक ज्वालामुखी उद्भूत हुआ है, जिसके शक्तिशाली लावा से लेखन ने स्वयं को तृप्त किया है, “जैसे असंतृप्त-आत्माएँ, शक्तिशाली होतीं मावस को। भीषण-तड़ित गगन में कौंधी, और हुआ मेघों में घर्षण।”

पंकज सुबीर का भीतरी संघर्ष चलता है और लेखक स्वयं के अन्वेषण से अचंभित है, “बोधि -वृक्ष की छाया ने फिर, योगी को निर्वाण दिया था। सब विस्मृत करना होता है, करने प्रणय-कर्म निर्वाहन।” लेखक अपनी स्मृतियों से प्रेयसी की तरह अनुराग करता है, “संज्ञा शून्य अवस्था में तब, केवल शेष रहा अवलोकन। कस्तूरी-मृग के जैसे ही, खोज अभी तक है सुगंध की।” आह्लादित है यह ज्वार भावनाओं और रेखाचित्रों का, जैसे एक नई ऊर्जा ने जन्म लिया हो ! विज्ञान के नियमों अनुसार ऊर्जा न उत्पन्न की जा सकती है, न नष्ट की जा सकती है, उसे एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। जब ऊर्जा के दोनों रूप एक जैसे हों तदुपरांत दोनों ऊर्जाओं का समन्वय हो, तब नई ऊर्जा जन्म लेती है, जैसे इस काव्य ने जन्म लिया है। “उन्मादित गजराज वहाँ जब, रौंद रहा था पुष्पलताएँ। मेघ हुई यूँ उन्मत जैसे, सुरापान कर आया श्रावण”।

देहों की ऊर्जा से उपजे मन के भावों को पंकज जी ने कभी निश्छल पानी की तरह बहाया है, कभी पतंग की तरह स्वच्छंद खुले आकाश में उड़ाया है, कभी मदमस्त, इठलाती, बेकाबू हवा-सा झुमाया है, कहीं तपती धरा में पड़ती शीतल जल की बूँदों-सा झमझमाया है। नव युवा मन के हर भाव कली को शनैः-शनैः खिलाकर सुंदर पुष्पों में व्याख्या दी है। अनीता दुबे के कला बोध से ओतप्रोत रेखा चित्र हर शब्द के सम्मुख सहज ही कवि की गहन आतुरता को ऊष्मा का प्रेम प्रदान करते हैं। इन रेखा चित्रों ने ‘देह-गाथा’ काव्य को पूर्ण से सम्पूर्णता प्रदान की है। पंकज सुबीर ने अंत:प्रेरणा से प्रकृति के उजले आँचल की छाँव में मन के उष्ण भावों को पनाह दी है, प्रकृति का दामन थामा है। प्रकृति यहाँ चुपचाप अपना काम करती है बोलकर नहीं, हृदय की मिट्टी में उर्वर बनकर।

आनंद पाने की कुंजी है, पंकज जी ने जितना कहा है, उससे अधिक अनकहा महसूस कराया है। यही विशिष्टता है उनके लेखन की। सृष्टि की सुन्दर रचना, प्रेम के कोमल भाव और देहों का उल्लास इस विरले काव्य में ख़ूबसूरती से रचे-बसे हैं। जब बाल्य काल और किशोरावस्था से निकल जीवन युवावस्था की प्रथम देहरी पर क़दम रखता है।

देह-गाथा (लघु खण्ड काव्य )
लेखक – पंकज सुबीर, चित्रांकन- अनीता दुबे
समीक्षक – रेखा भाटिया
प्रकाशक- शिवना प्रकाशन, पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, बस स्टैंड के सामने, सीहोर, मप्र 466001
दूरभाष – 07562405545, ईमेल – [email protected]
वर्ष – 2024, मूल्य- 250 रुपये, पृष्ठ – 108

 

संपर्क रेखा भाटिया – 9305 लिंडन ट्री लेन, शार्लेट, नॉर्थ कैरोलाइना, यू एस ए-28277
मोबाइल- 704-975-4898, ईमेल- [email protected]



बैटल ऑफ़ छुरियाँ” चैप्टर १ में कई खास बातें

मुंबई, 12 जून 2024: बंदूक, कुल्हाड़ी और हथियारों से लैस डाकू और गैंगस्टर, भयभीत करने वाले चेहरों और घटनाओं से विस्मित करने वाले विज़ुअल से भरा “बैटल ऑफ़ छुरियाँ” चैप्टर १ का टीज़र रिलीज़ किया गया हैं । रिवेंज ड्रामा और गैंगस्टर यूनीवर्स बॉलीवुड फिल्म मेकर्स का बहुत पसंदीदा जॉनर रहा हैं पिछले कुछ समय से दक्षिण भारत की फिल्मों रिवेंज ड्रामा बहुत बड़े स्तर पर देखा गया हैं लेकिन “बैटल ऑफ़ छुरियाँ” चैप्टर १ का एनाउन्समेंट टीजर देखकर यह कहा जा सकता हैं कि यह अब तक का बॉलीवुड फ़िल्म का सबसे प्रोमिसिंग टीज़र है कुछ विज़ुअल्स ऐसे हैं दर्शक पहली बार पर्दे पर देख रहे हैं।

टीज़र के पहले दृश्य में एक बिखरे बालों एक गैंगस्टर संभवत गिटार बजाता नज़र आता हैं और कुछ सेकंड में उसके पीछे से बंदूक लहराते हुए एक रहस्यमय किरदार बाहर आता हैं यह कुछ स्त्री और कुछ पुरुष जैसा दिखता हैं आधे पुरुष चेहरे वाले किरदार में क्रूरता और आतंक के भाव है टीज़र के अगले हिस्से में कुछ औरतों का गैंग बंदूक लहराते हुए दिखाई पड़ता हैं। कुछ गैंगस्टर गानों पर झूमते दिखाई पड़ते तो एक दृश्य में दो अलग अलग गैगस्टर का टशन देख सकते हैं।

टीज़र के इस हिस्से में चौकाने वाला दृश्य दिखाई देता जब कुछ औरतें जंगल के एक बड़े पेड़ के नीचे किसी धार्मिक या तांत्रिक क्रिया करती हुई दिखती हैं और अगले दृश्य में एक लाश को कंधे देती भगवा कपड़ों में चेहरे पर गुलाल लगाकर जंगल में चलती औरतों का समूह भय का माहौल बनाता हैं। कवि दिनकर की कविता “जब नाश मनुज पर छाता हैं“ की पंक्तियों के बीच में हर हर महादेव का घोष गूंजता हैं क़रीब तीन मिनट का सशक्त टीज़र के ज़बर्ज़स्त प्रभाव के साथ कई सवाल के खड़े करता हैं। ७० के दशक की कहानी पर आधारित यह एक क्लासिक रिवेंज ड्रामा हैं या फिर गैंगस्टर ड्रामा हैं। फ़िल्म के टीज़र ने काफी उत्सुकता बढ़ा दी हैं।

रवि सिंह बताते हैं “अभी इस टीज़र के ज़रिए हम दर्शकों को “बैटल ऑफ़ छुरियाँ” के मुख्य प्लॉट से कनेक्ट कर रहे हैं। हमारी फ़िल्म हीरो और विलेन की कोई फार्मूला बॉलीवुड फ़िल्म नहीं हैं एक ऐसी कहानी है जो दर्शक पहली बार बड़े पर्दे देखेंगे। “बैटल ऑफ़ छुरियाँ चैप्टर 1” में कई किरदार है और इन किरदारों के कई शेड्स हैं ।इस गैंगस्टर रिवेंज ड्रामा में तकरीबन 40 मुख्य कलाकार हैं और 200 से अधिक कलाकार महत्वपूर्ण भूमिका में नज़र आयेंगे।

रमना अवतार फिल्म्स के बैनर तले निर्मित “बैटल ऑफ़ छुरियाँ (चैप्टर 1 )” का लेखन और निर्देशन रवि सिंह ने किया हैं फ़िल्म के निर्माता अंजलि गौर सिंह और अमित सिंह हैं फ़िल्म मेकर्स ने इसकी एनाउसमेंट एक विशेष रणनीति के साथ की हैं फ़िल्म के किरदारों का नाम रिवील नहीं किया टीज़र में सुब्रत दत्ता, प्रीतम सिंह प्यारे, नवीन कालीरावना, मुमताज सरकार, जैमिन ठक्कर, अंकुर अरमाम, श्रद्धा तिवारी, अभिमन्यु तिवारी, मो. गिलानी पाशा, जयमीन ठक्कर, कार्तिक कौशिक, श्रद्धा तिवारी, पूर्णिमा शर्मा, मुरारी कुमार, शिवम सिंह, विकास मिश्रा, जावेद उमर, उत्तम नायक, श्याम कुमार, शिवम सिंह, विक्की राजवीर, रितेश रमन, अतुल शाश्वत, रोबन कुमार, ब्रिजेश करणवाल , जय प्रकाश झा, आदर्श भारद्वाज, उग्रेश ठाकुर, सचिन प्रभाकर, मार्शल त्यागी, शालिनी कश्यप, जीतेन्द्र मल्होत्रा, दीपक यादव को देख सकते हैं। कई और भी चेहरे हैं जिन्हें हम ओटीटी और फिल्मों में देखा हैं । फ़िल्म अगले साल 2025 में प्रदर्शित होगी।

Teaser Link : https://youtu.be/dtpL1RR4JRc?si=332WsNs0eLwahFcQ

Media Relation
Ashwani Shukla
Altair Media




योगी जी ने भी एक बड़ा रिकार्ड बनाया है… 7 वर्ष से लगातार मुख्य मंत्री बने रह कर

दिल्ली का जश्न हो गया , अब एक जश्न लखनऊ में भी होना चाहिए। क्यों कि उत्तर प्रदेश में 7 वर्ष से लगातार मुख्य मंत्री बने रह कर योगी आदित्य नाथ ने एक बड़ा रिकार्ड बना दिया है। इस से ज़्यादा समय तक अभी तक उत्तर प्रदेश में लगातार कोई और मुख्य मंत्री नहीं रह पाया है। जो सूरतेहाल है वह बताता है कि योगी इस रिकार्ड को तोड़ते हुए दस साल लगातार मुख्य मंत्री बने रहने का रिकार्ड भी बना सकते हैं। या फिर मोदी को फॉलो करते हुए तीसरे कार्यकाल में भी मुख्य मंत्री बने रह सकते हैं। जो भी हो योगी के इस रिकार्ड की भी चर्चा होनी चाहिए। तब और जब नेहरू के बाद मोदी के तीसरी बार लगातार प्रधान मंत्री बनने की बड़ी चर्चा है। योगी ने लगातार सर्वाधिक 7 वर्ष, 83 दिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बने रहने का रिकार्ड बना लिया है। 19 मार्च 2017 से 25 मार्च 2022 तक बतौर विधान परिषद सदस्य और फिर गोरखपुर शहर से बतौर विधायक 25 मार्च 2022 से लगातार मुख्य मंत्री बने हुए हैं।

सवाल है कि आगे भी बने रहेंगे योगी ?
यह सवाल इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में तमाम राजनीतिज्ञों की तरह योगी अभिनेता नहीं हैं। उन के जो भीतर है , वही बाहर है। वह कुछ छुपाते नहीं। बेधड़क बोल देते हैं। फ़िल्टर नहीं रखते। कि क्या कहना है , क्या नहीं कहना है। वह जानते हैं कि जो है , वही कहना है। योगी मुखौटा भी नहीं पहनते। अभी लोकसभा के सेंट्रल हाल में जब नरेंद्र मोदी को एन डी ए का नेता चुना गया तब लगभग सभी के चेहरे पर चमक थी। दर्प था। सभी मुस्कुराते हुए , सीना ताने हुए बैठे थे। इकलौते योगी ही थे जिन का चेहरा कुम्हलाया हुआ था। अवसाद था उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सीट नहीं ला पाने का। चेहरे पर चमक का गुलाल नहीं , सीटें गंवाने का मलाल था। चेहरा बुझा-बुझा सा। अंग-अंग कुम्हलाया हुआ था। अभिनय नहीं , आह थी। चुनाव में झुलस जाने की आंच में चेहरा तप रहा था। यह किसी योगी से ही संभव था। ऐसे जैसे तमाम अभिनेताओं के बीच एक आदमी बैठा था। ऐसे जैसे आग में सोना तप रहा था।

राजनीति में दुःख का ऐसा कोलाज , ऐसा कोई कोना अब दुर्लभ है। बहुत दुर्लभ।
गौरतलब है कि बीते लोकसभा चुनाव में मोदी और योगी की जोड़ी बड़ी मशहूर रही है। उत्तर प्रदेश में हिट नहीं हुई यह अलग बात है। तो भी योगी ने उत्तर प्रदेश में क़ानून का राज स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। माफियाओं का अहंकार , गुरुर और उन का जाल तोड़ा है। अयोध्या , काशी की गरिमा को गर्व और गुमान दिया है। उत्तर प्रदेश में विकास की गंगा बहाई है।

इन सारी बातों के आलोक में राजनीति के इस रंगमंच पर उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्य मंत्री योगी द्वारा बनाए गए इस लगातार 7 वर्ष के रिकार्ड का ज़िक्र किसी इत्र की तरह होना चाहिए। इस रिकार्ड की सुगंध दूर-दूर तक जानी चाहिए।
आइए जायज़ा लेते हैं उत्तर प्रदेश के अन्य मुख्य मंत्रियों के कार्यकाल और उन के रिकार्ड का। योगी के पहले अधिकतम दिन वाला संपूर्णानंद के नाम 5 वर्ष 345 दिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनने का रिकार्ड दर्ज है। वाराणसी से विधायक रहे संपूर्णानंद 10 अप्रैल 1957 से 7 दिसंबर 1960 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे थे। तीसरे नंबर पर अखिलेश यादव का नाम दर्ज है जो 15 मार्च 2012 से 19 मार्च 2017 तक यानी 5 वर्ष, 4 दिन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे बतौर विधान परिषद सदस्य। संपूर्णानंद से पहले यह रिकार्ड गोविंद बल्लभ पंत के नाम दर्ज है। बरेली से विधायक रहे गोविंद वल्लभ पंत पहले 26 जनवरी 1950 से 20 मई 1952 और फिर 20 मई 1952 से 28 दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे थे।

इस तरह कुल 4 वर्ष, 336 दिन गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के लगातार मुख्य मंत्री रहे थे। 13 मई 2007 से 15 मार्च 2012 तक बतौर विधान परिषद सदस्य मायावती भी 4 वर्ष, 307 दिन मुख्य मंत्री रहीं। इस के पहले 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक मायावती 1 वर्ष, 118 दिन मुख्य मंत्री रही थीं। इस के पहले 1995 में 137 दिन और 1997 में 184 दिन मायावती मुख्य मंत्री रहीं।

सब से कम 20 दिन मुख्य मंत्री रहने का रिकार्ड सी बी गुप्ता के नाम दर्ज है। 14 मार्च 1967से 3 अप्रैल 1967 तक। इस के पहले सी बी गुप्ता 2 वर्ष, 299 दिन तक मुख्य मंत्री रह चुके थे। 7 दिसंबर 1960 से 14 मार्च 1962 और 14 मार्च 1962 से 2 अक्टूबर 1963 तक। 26 फरवरी 1969 से 18 फरवरी 1970 तक 357 दिन तक भी सी बी गुप्ता मुख्य मंत्री रहे। चरण सिंह एक बार 328 दिन और दूसरी बार 225 दिन मुख्य मंत्री रहे।

कमलापति त्रिपाठी 2 वर्ष 70 दिन और हेमवती नंदन बहुगुणा 2 वर्ष 22 दिन मुख्य मंत्री रहे। नारायण दत्त तिवारी तीन बार मुख्य मंत्री रहे और एक वर्ष कुछ दिन पूरा होते न होते हटा दिए जाते रहे। राम नरेश यादव 1 वर्ष 250 दिन , बनारसी दास 354 दिन और विश्वनाथ प्रताप सिंह 2 वर्ष 40 दिन मुख्य मंत्री रहे। श्रीपति मिश्र 2 वर्ष 15 दिन और वीर बहादुर सिंह 2 वर्ष 275 दिन मुख्य मंत्री रहे। मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्य मंत्री रहे। दो बार एक साल कुछ दिन तो तीसरी बार 3 वर्ष 257 दिन।

कल्याण सिंह भी दो बार मुख्य मंत्री रहे हैं। अतरौली से विधायक रह कर 24 जून 1991 से 6 दिसंबर 1992 तक एक वर्ष 165 दिन और दूसरी बार 21 सितम्बर 1997 से 12 नवंबर 1999 तक 2 वर्ष, 52 दिन जब कि रामप्रकाश गुप्त 12 नवंबर 1999 से 28 अक्टूबर 2000 351 दिन मुख्य मंत्री रहे। राजनाथ सिंह 28 अक्टूबर 2000 से 8 मार्च 2002 तक यानी 1 वर्ष, 131 दिन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे।

प्राण जाए पर वचन न जाए फ़िल्म में एस एच बिहारी का लिखा एक गीत है जिसे आशा भोसले ने ओ पी नैय्यर के संगीत में गया है : चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया ! उत्तर प्रदेश के तमाम मुख्य मंत्री या तो केंद्र द्वारा कठपुतली बनाने , बर्खास्त होने या फिर परिस्थितिवश , साझा सरकार होने के कारण अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर सके थे। इंदिरा गांधी , राजीव गांधी ने कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों को भी ताश की तरह फेंटा ही , अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कल्याण सिंह को राजनाथ सिंह की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया।

कल्याण सिंह को हटा कर पहले रामप्रकाश गुप्ता को मुख्य मंत्री बनाया फिर अंतत : राजनाथ सिंह को मुख्य मंत्री बना दिया। कल्याण सिंह को चैन से नहीं रहने दिया। कई बार योगी के चैन में भी खलल पड़ते देखा गया है। वह तो योगी हैं कि सारी बाधाओं को जाग मछेंदर , गोरख आया के बल पर सारी बलाएं टाल देते रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी अपने रिकार्ड के साथ योगी के रिकार्ड को भी बनते रहने देते हैं या फिर अपने पूर्ववर्तियों की तरह योगी को यह गाना गाना देने के लिए मज़बूर कर देते हैं : चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया !

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और विभिन्न विषयों पर इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है)

साभार-https://sarokarnama.blogspot.com/ से




तीसरी बार मोदी सरकार !!!

स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद प्रधनमंत्री मोदी लगातार तीसरी बार गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनकर कीर्तिमान स्थापित करने में सफल हो गये हैं। नौ जून को उन्होंने 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल के साथ, औपचारिक रूप से शपथ ले ली है। अगली सुबह ही उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर कार्यभार संभाल लिया और किसान सम्मान निधि की फाइल पर हस्ताक्षर किए । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शपथ ग्रहण का सीधा प्रभाव असर शेयर बाजार पर दिखाई दिया जो नयी ऊचाईयों तक पहुंच गया। ये प्रमाण है कि भारत के विकास के लिए सहयोग करने वाले निवेशकों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर पूरा विश्वास है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नये मंत्रिमंडल में उनके अपने तथा भारतीय जनता पार्टी के विचारों का स्पष्ट समन्वय दिख रहा है। मंत्रिपरिषद में एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना भी परिलक्षित हो रही है। मोदी मंत्रिपिरषद में अनुभवी चेहरों के साथ युवा तथा पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे राजनेताओं को भी स्थान मिला है।मोदी मंत्रिपरिषद में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी मंत्री बनाकर उनका कद बढ़ाया गया है।

जिन राज्यों में भाजपा को अच्छे परिणाम प्राप्त मिले हैं जैसे कि मध्य प्रदेश वहां से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कद बढ़ाया गया है जबकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी को मंत्री बनाकर एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है। मंत्रिमंडल में उन राज्यों को भी पर्याप्त जगह देकर साधने का प्रयास किया गया है जहां पर वर्ष के आखिरी माह में या फिर 2025 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल गठन से यह नहीं लग रहा है कि भाजपा नेतृत्व पर सहयोगी दलों का किसी प्रकार का दबाव था जबकि सोशल तथा मुख्यधारा मीडिया में इस तरह की अफवाहों का बाजार लगातार गर्म रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी चतुराई के साथ मंत्रिपरिषद का गठन किया है और उसमें सभी को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया है। दक्षिण में तमिलनाडु से एक भी जीत न मिलने के बावजूद तीन मंत्री बनाकर तमिल मतदाता को साधने का भरपूर प्रयास किया गया है। 24 राज्यों से 72 मंत्री बनाये गये हैं जिसमें सबसे अधिक, उत्तर प्रदेश से 11 मंत्री हैं । यद्यपि भाजपा को पूर्ण बहुमत के पार जाने से रोकने में उत्तर प्रदेश ने ही बाधा डाली है तथापि प्रधानमंत्री ने उप्र की जनता को अकेला नहीं छोड़ा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 72 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में ओबीसी, एससी, एसटीऔर अल्पसंख्यक समाज के 47 मंत्री बनाये गये हैं। यहां पर यह ध्यान देने कि बात है कि अल्पसंख्यक समाज से कोई मुस्लिम नहीं अपितु ईसाई, सिख और बौद्ध समाज से मंत्री बनाइ गए हैं। इन मंत्रियों की संख्य 45 है। ओबीसी समाज के रिकार्ड 27 मंत्री हैं। मोदी मंत्रिपरिषद में समाज के हर वर्ग तक अपनी पहुंच बनाकर रखने के उद्देश्य से अत्यंत पिछड़ा वर्ग से भी दो मंत्री बनाये गये हैं। 10 एससी व 5 एसटी समुदाय के लोगों को मंत्री बनाकर सबका साथ – सबका विकास के नारे को धरातल पर उतारते हुए सामाजिक न्याय की पूरी गारंटी देने का स्पष्ट व सकारात्मक संदेश दे दिया है ।

मोदी मंत्रिपरिषद में नारी सशक्तीकरण की भावना को प्रबल करने के लिए सात महिलाओं को भी स्थान मिला है किंतु यह 33 प्रतिशत आरक्षण वाले कानून से बहुत कम है। जातीय समीकरणों को साधने के लिए इस बार मोदी मंत्रिमंडल में आठ ब्राह्मण ,तीन राजपूत सहित भूमिहार, यादव, जाट, कुर्मी, मराठा, वोक्कालिंगा समुदाय से तथा दो मंत्री सिख समुदाय से भी है जिसमें जाट, पंजाबी खत्री हैं । इअके अतिरिक्त निषाद, लोध जाति सहित महादलित व बंगाल के प्रभावशाली मतुआ समाज के साथ अहीर, गुर्जर, खटिक व बनिया से भी एक- एक नेता को मंत्री बनाकर समाज को बांधने प्रयास किया गया है।

यह मोदी सरकार का सबसे बड़ा मंत्रिपरिषद है, 2014 में मोदी मंत्रिमंडल में केवल 45 मंत्री ही थे जबकि 2019 में 58 मंत्री बनाये गये थे तब भारतीय जनता पार्टी को अकेला बहुमत प्राप्त था जबकि इस बार भाजपा अकेले दम पर बहुमत से दूर रह गयी है और उसे सरकार चलाने के लिए कदम- कदम पर सहयोगी दलों की ओर मुंह ताकना पड़ेगा इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्तमान सरकार कांटो भरा ताज है क्योकि भाजपा को अकेले दम पर पूर्ण बहूमत नहीं प्राप्त हुआ है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सभी संबोधनों में अपनी वर्तमान सरकार को गठबंधन की सरकार कहकर संबोधित कर रहे हैं। सहयोगी दलो के नेता अग्निवीर योजना की समीक्षा पर बल दे रहे हैं जबकि बिहार व आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग बहुत पुरानी चली आ रही है।

विपक्ष अब गठबंधन सरकार को डगमगाने के लिए जातीय जनगणना कराने पर बल देगा और बार -बार नितीश कुमार जैसे सहयोगियों पर दबाब बनाने का प्रयास करेगा। संसद में विपक्ष मजबूत है और लगातार सरकार को घेरने का प्रयास करेगा। जब 2014 व 2019 में भाजपा को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत प्राप्त था तब भी कांग्रेस व विपक्ष ने किस प्रकार से संसद को बार बार ठप रखा यह देश की जनता ने अच्छी तरह से देखा है। एक बार फिर अपनी हार स्वीकार करने से कतरा रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 4 जून को चुनाव परिणाम घोषित होने के समय शेयर बाजार में मची उथल -पुथल की जेपीसी की जांच कराने की मांग कर दी है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी संसदीय दल की बैठक में पहले ही संकेत कर चुकी हैं कि अब संसद पहले की तरह नहीं चलने वाली जिस तरह से यह लोग दस साल से चला रहे थे।

यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद नये मंत्रियों को सन्देश दिया है कि अब तुरंत काम पर जुट जाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नवनिर्वाचित सांसदों से साफ कहा कि संयमित रहें और ऐसा कोई काम न करें कि जिसका नकारात्मक असर हो। प्रधनमंत्री का कहना है कि देश अभी महत्वपूर्ण पड़ाव पर है। अगले पांच साल के कामकाज तय करेंगे कि भारत कितनी जल्दी विकसित राष्ट्र बनेगा। इसके लिए दिन रात एक करना पड़ेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए भगवान शिव की तरह विषपान करते हुए राष्ट्र प्रथम की भावना के अनुरूप तथा वर्तमान समय में राष्ट्र हित में जितने भी कार्य चल रहे हैं वह चलते रहें और देश गलत हाथों में न चले जाये इसलिए गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगर पांच वर्ष तक गठबंधन सरकार चलाते हुए भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प लिया है और जनता को गारंटी दी है तो वह अपनी गारंटी को पूरा करना भी जानते हैं।




बना रसिया इश्क है “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना”

विजय विनीत की प्रकाशित कहानी संग्रह “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” (2024, सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली से प्रकाशित) उनके बनारसिया होने का प्रमाण है। बनारस से यूं तो मेरा भी लगाव है। जब मैं प्राणी विज्ञान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से शोध कर रहा था उस समय छः मास वाराणसी में मेरा प्रवास था। पारिवारिक कारणों से मैं छः मास से ज्यादा वाराणसी रह नहीं पाया और मेरा शोध कार्य अपूर्ण रह गया।

मैंने पुनः बाद में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर से नए रूप से अपना शोध कार्य पूर्ण किया। मात्र छः मास के प्रवास में ही मैंने बनारस को जो देखा, जैसा देखा वैसा ही विजय विनीत जी ने भी अनुभव किया। मैं तो छः मास के प्रवास को लिख नहीं पाया पर विजय विनीत ने उसे कलम से लिखकर यह बता दिया कि बनारस के लोग ऐसे ही बना रसिया नहीं होते। वो जब इश्क करते हैं तो इश्क में डूब कर इश्क करतें हैं। बनारस में जो इश्क है न, वो बस इश्क है। बनारस तो बस बना रस ही है जो इसमें जितना डूबा वो उतना ही तर गया। ये शहर ही मुहब्बत का है। यहां हर गली, घाट और घाट की सीढ़ियों पर सब जगह बस इश्क ही इश्क है। इसकी रूमानी में इश्क भरा पड़ा है। ये शहर है या मोहब्बत या मोहब्बत का ही शहर है। यह तय करना सबके बस की बात नहीं। यह इश्क ए बनारस है। आइए और यहां इसके इश्क की तासीर में मिल जाइए।

भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपने त्रिशूल पर संभाले भगवान भोले नाथ की नगरी बनारस अपने आप में इस धरा की सबसे अद्भुत भूमि है। यहां अर्ध चंद्राकार के रूप में मां गंगा का स्वरूप भगवान भोले नाथ के जटा पर चांद का प्रतीक है। यहां काशी के कोतवाल काल भैरव और बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं। यहां चौबीस घंटे हर- हर महादेव की गूंज होती रहती है। आप पूरी दुनियां घूम आइए, आप उतना नहीं सीख पाएंगे, जितना आप मात्र बनारस घूम कर सीख पाएंगे। बनारस पर कृपा महादेव की है। बनारस पर कृपा मां गंगा की है। महादेव के त्रिशूल पर विराजमान काशी वरुणा और अस्सी के बीच की वो काशी है जो बनारस के इश्क में सराबोर है।

बनारस का रस अपने आप में अनोखा है। बनारस सबको अपना बना लेता है। बनारस में सब गुरु हैं और सब चेला। यहां की बोली “का गुरु, का हालचाल हव” से शुरू होती है और मीठी गाली बक…के पर खत्म होती है। यहां सब एक-दूसरे को मीठी गाली देते भी हैं और गाली सुनते भी हैं। दो बनारसी आपस में बात करें और एक-दूसरे को मिठास भरी गाली न दें, ऐसा हो ही नहीं सकता। एक पुरातन कहावत है कि “सुबहे बनारस, शामें अवध”, अर्थात सुबह बनारस की सबसे हसीन होती है। बनारस से इश्क के लगाव के कारण अब इस कहावत को बदलने की जरूरत है और अब इस कहावत को अगर “सुबहे बनारस, शामें बनारस” कहा जाए तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि बनारस की सुबह भी अच्छी है और बनारस की शाम तो इश्क में डूबी हुई और भी अच्छी है।

बनारस एक ऐसा शहर है जो सोता नहीं है। यह चौबीस घंटे जागता है। बनारस लघु भारत है। यदि आपको कम समय में भारत को समझना है तो आप बनारस आ जाइए, भारत समझ में आ जाएगा। बनारस के इश्क में एक प्रकार का तिलिस्म है जो हर मोड़ पर नए इश्क के साथ उमड़ता-घुमड़ता है।

यह एक आम अवधारणा है कि लखनऊ तहजीब में अव्वल है तो यह भी एक अवधारणा है कि बनारस शहर नहीं, एक पूरी शख्सियत है। तहजीब संस्कार से जुड़ा हुआ है और सख्शियत में इंसानियत। अर्थात यह कह सकते हैं कि बनारस जीता-जागता, चलता-फिरता, इश्क की दुकान है। यहां इश्क रोज पनपता है, इश्क रोज जिया जाता है और एक जुनूनी इश्क आत्मा से परमात्मा का मिलन यहां के घाटों पर रोज हजारों की संख्या में अपने इश्क को परमात्मा रूपी अदृश्य शक्ति में विलीन होकर संतृप्त भी होता है।

विजय विनीत उस शहर से लिख रहे हैं जिस शहर के रहने वाले कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी विश्व स्तर पर ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं। यूं तो प्रेमचंद का साहित्य अतुलनीय है, पर विजय विनीत का लेखन कहानीकार के नजरिए से दोनों में एक समतुल्यता को प्राप्त करता है। विजय विनीत अपनी लिखी हर कहानी में एक पात्र हैं तो प्रेमचंद अपनी लिखी कहानी “गुल्ली डंडा” में एक लेखक के रूप में पात्र हैं। यह संयोग ही कहा जाएगा कि इतने दिनों बाद आखिर यह संजोग कैसे बन रहा है? आमतौर पर कहानी लेखन में कहानीकार काल्पनिक चरित्र को गढ़ता है और उसी से समाज में साहित्य को स्थापित करता है, पर विजय विनीत हर कहानी में खुद प्रेमचंद की कहानी “गुल्ली डंडा” की तरह एक पात्र हैं। यहां यह कहना समीचीन होगा कि प्रेमचंद के लेखन का इश्क विजय विनीत के लेखन का इश्क बनारसिया है और बनारसिया बना रहेगा।

विजय विनीत का इश्क यूं तो पत्रकारिता है, फोटोग्राफी है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया है। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के मूल निवासी विजय विनीत बनारस पढ़ने के लिए आए और बनारसिया होकर रह गए। एक समीक्षक की नजर में मुझे विजय विनीत की कहानी संग्रह “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” उनका जिया हुआ यथार्थ है। उनके द्वारा लिखी गई इस पुस्तक को संस्मरण साहित्य, यात्रा साहित्य, आत्मकथा साहित्य की श्रेणी में रखना ज्यादा मुफीद है।

विजय विनीत जी का इश्क एक अलग तरह का बनारसिया इश्क है। विजय विनीत का इश्क रूमानी इश्क है। उनका इश्क मर्यादित है। उनकी हर कहानी नए शहर से शुरू होती है और समाज की विसंगति को सामने लाकर समाधान ढूंढती हुई आगे बढ़ती है।

लेखक अपने लेखन में खुलापन भी चाहता है पर अपने नैतिक मूल्यों को भी बनाए रखना चाहता है। वह अवसर की तलाश में भी है और संस्कार के दबाव में भी है। हर कहानी में लेखक खुद एक पात्र है, इसलिए अपने लिए नायिका का चयन अपनी इच्छानुसार गढ़ लेता है और अपनी इच्छानुसार नायिका से व्यवहार भी करा लेता है। शब्दों के बाजीगर विजय विनीत जी इश्क तो खूब करते हैं, पर शादीशुदा होने के नाते डरते भी बहुत हैं। इश्क में पड़ा आशिक और कर भी क्या सकता है?

एकतरफा इश्क कभी परवान नहीं चढ़ पाता। इश्क या तो होता है या नहीं होता। इश्क बीच का विषय है ही नहीं। जिस तरह एक सिक्के के दोनों तरफ बिना प्रिंट के सिक्के का कोई मतलब नहीं है, ठीक उसी तरह इश्क भी दोनों तरफ से होता है। एकतरफा इश्क जब तक इजहार के माध्यम से बाहर नहीं आएगा, तब तक उसका कोई मतलब नहीं। इश्क परवान तभी चढ़ता है जब इश्क की आग बराबर दोनों तरफ लगी हो। इश्क किया नहीं जाता, इश्क हो जाता है। भारतीय संस्कृति में इश्क करने का अधिकार शादीशुदा पुरुष को अपनी पत्नी से है और पत्नी को अपने पति से है। शादीशुदा पुरुष को दूसरी महिला में अपनी बहन और शादीशुदा महिला को दूसरे पुरुष में अपने भाई का आभास होना इंसानियत है।

इस तरह कहा जा सकता है कि विजय विनीत की कहानी की नायिकाएं जीवन के यथार्थ से ली गई नायिकाएं हैं। वे जब-जब, जिस-जिस शहर में रहें, वहां पत्रकारिता के दौरान जो-जो उन्हें मिला, उन्हीं में वे इश्क ढूंढते नजर आते हैं। उनका इश्क व्यवसाय से भी जुड़ा इश्क है। कहानी में किसी के बहन की शादी का जिक्र है, तो किसी के पति को कैंसर से जूझना है, तो कोई मजबूरी में कोठे पर पहुंच गई है, तो कोई नाव वाली है, और विवाहोत्तर संबंध में आ रही दरार का भी इश्क है जो सर्वदा समाज में हो रहा है। विजय विनीत जी का कथा संसार यथार्थ का संसार है, नैतिकता का संसार है। वह हमेशा इश्क में तो हैं पर सलीके से, अनुशासन के साथ इश्क को जीते हुए लोगों की हर संभव मदद करते नजर आते हैं।

विजय विनीत जी को इस कहानी संग्रह के सफल प्रकाशन के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

संपर्क 
शिक्षा संकाय, श्री गांधी पी जी कॉलेज मालटारी, आजमगढ़ 
9415082614




हॉलीवुड अभिनेता क्लेटन नॉरक्रॉस ने भारतीय आध्यात्मिक वेब सीरीज टू ग्रेट मास्टर्स की प्रशंसा की

मुंबई : हॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता क्लेटन नॉरक्रॉस, जिन्हें अमेरिकी धारावाहिक “द बोल्ड एंड द ब्यूटीफुल” में उनकी शानदार भूमिका के लिए जाना जाता है, ने हाल ही में रिलीज़ हुई आध्यात्मिक वेब सीरीज़ ‘टू ग्रेट मास्टर्स’ की बहुत प्रशंसा की है. MX प्लेयर पर उपलब्ध यह सीरीज़ आध्यात्मिकता के क्षेत्र में दो महान हस्तियों, स्वामी विवेकानंद और परमहंस योगानंद की गहन शिक्षाओं पर आधारित है.

क्लेटन नॉरक्रॉस ने हाल ही में क्लासिक ABBA म्यूज़िकल “MAMMA MIA” के राष्ट्रीय इतालवी नाट्य दौरे में मुख्य भूमिका निभाई. इसके अलावा, उनकी नवीनतम एक्शन फ़िल्म, “लास्ट रिज़ॉर्ट” अब अमेज़न प्राइम पर उपलब्ध है. वर्तमान में हॉलीवुड में वापस आकर, क्लेटन कई आगामी प्रस्तुतियों में व्यस्त हैं. हिट धारावाहिक “द बोल्ड एंड द ब्यूटीफुल” में थॉर्न फ़ॉरेस्टर की भूमिका निभाना उनकी ब्रेकआउट भूमिका थी.

जूनी फ़िल्म्स और अप्रोच एंटरटेनमेंट द्वारा गो स्पिरिचुअल इंडिया के सहयोग से निर्मित, ‘टू ग्रेट मास्टर्स’ इन आध्यात्मिक दिग्गजों के कालातीत ज्ञान और दर्शन की खोज करती है. अनुराग शर्मा द्वारा निर्देशित और सोनू त्यागी द्वारा सह-निर्मित यह सीरीज अमृत गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक “टू ग्रेट मास्टर्स” पर आधारित है.
इस सीरीज में अनुभवी अभिनेता राकेश बेदी कथावाचक की भूमिका में हैं, साथ ही अनुराग शर्मा, दीप शर्मा, पावली कश्यप और दुर्गा कंबोज भी प्रमुख भूमिकाओं में हैं. बेदी का चित्रण कहानी में गहराई और प्रामाणिकता जोड़ता है, जो दर्शकों को आत्म-खोज और आंतरिक परिवर्तन की यात्रा पर ले जाता है.

क्लेटन नॉरक्रॉस, जिनकी आध्यात्मिकता और माइंडफुलनेस में गहरी व्यक्तिगत रुचि है, सीरीज से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने टिप्पणी की, “‘टू ग्रेट मास्टर्स’ की आध्यात्मिक गहराई और प्रामाणिकता वास्तव में उल्लेखनीय है. यह विवेकानंद और योगानंद की शिक्षाओं के सार को खूबसूरती से पकड़ता है, जो उन्हें आज के दर्शकों के लिए सुलभ और प्रासंगिक बनाता है.”

सीरीज के लिए नॉरक्रॉस की सराहना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि वह खुद आध्यात्मिकता की यात्रा पर हैं. हाल ही में भारत की अपनी यात्रा के दौरान, जहाँ वे अप्रोच एंटरटेनमेंट और गो स्पिरिचुअल इंडिया के प्रमुख सोनू त्यागी से मिले, नॉरक्रॉस ने आध्यात्मिक खोज की शुरुआत की, जो उन्हें मुंबई की चहल-पहल भरी सड़कों से लेकर ऋषिकेश के शांत परिदृश्यों तक ले गई.

भारतीय मनोरंजन उद्योग और आध्यात्मिकता के दूरदर्शी, सोनू त्यागी ने इस सीरीज को जीवंत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पुरस्कार विजेता लेखक, निर्देशक और निर्माता के रूप में अपने काम के लिए जाने जाने वाले, सोनू त्यागी की आध्यात्मिक साहित्य की गहरी समझ और उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सीरीज के निर्माण में महत्वपूर्ण रही है.

सीरीज पर बात करते हुए, सोनू त्यागी ने कहा, “‘टू ग्रेट मास्टर्स’ के साथ हमारा लक्ष्य इन महान गुरुओं की गहन आध्यात्मिक शिक्षाओं और समकालीन डिजिटल दुनिया के बीच एक पुल बनाना था. हम इसे दुनिया भर के दर्शकों के साथ जुड़ते हुए देखकर रोमांचित हैं, जिसमें क्लेटन नॉरक्रॉस जैसे सम्मानित व्यक्ति भी शामिल हैं.”

नॉरक्रॉस द्वारा इस सीरीज का समर्थन वैश्विक दर्शकों पर इसके प्रभाव को रेखांकित करता है, जो आध्यात्मिक ज्ञान की सार्वभौमिक अपील को उजागर करता है. उन्होंने साझा किया, “‘टू ग्रेट मास्टर्स’ देखना एक परिवर्तनकारी अनुभव था. इसने न केवल इन अविश्वसनीय आध्यात्मिक नेताओं के बारे में मेरी समझ को गहरा किया, बल्कि मुझे अपने आध्यात्मिक मार्ग की और आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित किया.”

जूनी फिल्म्स, अप्रोच एंटरटेनमेंट और गो स्पिरिचुअल इंडिया के बीच सहयोग आध्यात्मिक ज्ञान को व्यापक दर्शकों तक पहुँचाने के साझा दृष्टिकोण का प्रमाण है. अपनी रिलीज़ के बाद से, ‘टू ग्रेट मास्टर्स’ को अत्यधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, इसकी गहराई, प्रामाणिकता और समकालीन दर्शकों के लिए गहन आध्यात्मिक शिक्षाओं को सुलभ बनाने की क्षमता के लिए इसकी प्रशंसा की गई है.

सोनू त्यागी एक पुरस्कार विजेता लेखक, निर्देशक और निर्माता हैं. उनके पास मनोविज्ञान में डिग्री है और उनके पास विज्ञापन, पत्रकारिता और फिल्म निर्माण में पेशेवर योग्यताएँ हैं. अप्रोच एंटरटेनमेंट ग्रुप को लॉन्च करने से पहले, उन्होंने भारत की शीर्ष विज्ञापन एजेंसियों और मीडिया हाउस के साथ काम करने का व्यापक अनुभव प्राप्त किया. त्यागी अपनी सिनेमाई विशेषज्ञता को आध्यात्मिकता के प्रति अपने जुनून के साथ मिलाते हुए, कंटेंट निर्माण की सीमाओं को आगे बढ़ाना हैं. उनके प्रयासों का उद्देश्य आध्यात्मिकता में रुचि जगाना और दर्शकों को इन शिक्षाओं में गहराई से उतरने के लिए प्रोत्साहित करना है.

भारतीय फिल्म उद्योग में अपने काम के अलावा, सोनू त्यागी अपने धर्मार्थ संगठन, “गो स्पिरिचुअल इंडिया” के माध्यम से समुदाय में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं, जो आध्यात्मिक जागरूकता, समग्र कल्याण और दैनिक जीवन में माइंडफुलनेस के महत्व को बढ़ावा देता है. विभिन्न पहलों, कार्यशालाओं और आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से, गो स्पिरिचुअल इंडिया का उद्देश्य व्यक्तियों को अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने और खुद के गहरे पहलुओं की खोज करने के लिए प्रेरित करना है.

एप्रोच एंटरटेनमेंट मुंबई स्थित अवार्ड विनिंग सेलिब्रिटी मैनेजमेंट, फिल्म प्रोडक्शंस, विज्ञापन और कॉर्पोरेट फिल्म प्रोडक्शंस , फिल्म मार्केटिंग, इवेंट्स और एंटरटेनमेंट मार्केटिंग कंपनी है। इस ग्रुप की अन्य इकाई एप्रोच कम्युनिकेशंस एक प्रमुख पीआर और इंटीग्रेटेड कम्युनिकेशन्स एजेंसी के रूप में काम करती है जो कॉर्पोरेट, हेल्थकेयर, मनोरंजन, वित्त, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों जैसे विविध क्षेत्रों की सेवा करती है. मुंबई, नई दिल्ली, गुरुग्राम, गोवा, कोलकाता, देहरादून, चंडीगढ़, हैदराबाद और जालंधर में तेजी से फैलती उपस्थिति के साथ, एप्रोच एंटरटेनमेंट ग्रुप मनोरंजन, मीडिया और संचार के क्षेत्र में सबसे आगे है. इसके अतिरिक्त, समूह के पास एक विशेष बॉलीवुड न्यूज़वायर और सामग्री प्रसार इकाई है जिसे अप्रोच बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है.

गो स्पिरिचुअल इंडिया एक गैर लाभकारी संस्था है जो की विश्व भर में भारतीय आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए कार्य करती है। संस्था आध्यात्मिकता , आध्यात्मिक जागरूकता , आध्यात्मिक पर्यटन , सामाजिक कार्यो , इवेंट्स , मीडिया , आर्गेनिक , मानसिक स्वास्थ्य जैसे छेत्रों में कार्य करती है। संस्था ने हल ही में एक न्यूज़ मैगज़ीन पोर्टल और डिजिटल प्लेटफार्म भी लांच किया है जिससे की भारतीय आध्यात्मिकता को पुरे विश्व में पहुंचाया जा सके। संस्था इसी के साथ बहुत से सामाजिक सेवा का भी कार्य करती है जैसे भोजन दान, कम्बल दान और मानसिक स्वास्थ्य व आत्महत्या रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान।




भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी !

भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी ! समय बता रहा है कि त्रेता की इस आधुनिक और चुनावी अयोध्या में लगी आग शायद द्वापर का अर्जुन ही बुझाए। ऐसे जैसे कभी शर-शैया पर लेटे गंगा पुत्र भीष्म की प्यास तीर मार कर अर्जुन ने ही बुझाई थी। दरअसल आज सेंट्रल हाल से एक बड़ी ख़बर यह मिली है कि अठारहवीं लोकसभा को प्रधानमंत्री के रूप में अभिमन्यु नहीं अर्जुन मिला है। कौरवों के सारे चक्रव्यूह तोड़ कर लोकतंत्र में गहरी आस्था जगाने के लिए। देश के चौतरफा विकास ख़ातिर यह अर्जुन कुछ भी करने के लिए बेक़रार दिखता है। वह अर्जुन जो कृष्ण नीति से चलता है। तीसरी अर्थव्यवस्था जैसी बहुत बड़े-बड़े काम करने का अब भी दम भरता है।
मोदी ने अपने भाषण में इंडिया गठबंधन पर जैसे मिसाइल पर मिसाइल दागे। तेजाबी मिसाइल। आंकड़ों के आइने में कांग्रेस को उतार कर किसी धोबी की तरह पीट-पीट कर धोया। ऐसे जैसे सर्जिकल स्ट्राइक हो। कांग्रेस अभी तक निरुत्तर है। सहयोगी दलों को एड्रेस करते हुए मंत्री आदि मामलों में भी न झुकने का संकेत देते हुए मोदी ने स्पष्ट बता दिया है कि कामकाज और सरकार तो वह अपनी शर्तों पर ही चलाएंगे।
पर क्या सचमुच ?
लगता तो है। क्यों कि जो धुंध कल तक एन डी ए के सहयोगी दलों की तरफ से छाई थी , तात्कालिक रूप से यह धुंध अब छंटी हुई दिखती है। और तो और इंडिया गठबंधन में रहते हुए भाजपा और नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत में लंगड़ी मारने वाले नीतीश कुमार ने मंच पर अपने उदबोधन के बाद अनायास और अचानक नरेंद्र मोदी के पांव छू कर न सिर्फ़ इस लंगड़ी मारने का प्रायश्चित किया है बल्कि यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि अब वह और पलटी नहीं मारेंगे। अलग बात है कि लोग भूल गए हैं कि नीतीश पहले भी मोदी को बैठे-बैठे प्रणाम कर चुके हैं। आज खड़े हो कर कर दिया। भावुकता में, सम्मान में हो जाता है ऐसा भी। इस बात को तिल का ताड़ बनाना ठीक नहीं। मोदी के पांव तो आज चिराग़ पासवान ने भी छुए। और भी कुछ लोगों ने। सब के सब विनयवत रहे। यहां तक कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तो आज मोदी को दही-चीनी खिलाया अपने हाथ से राष्ट्रपति भवन में। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी मोदी को मिठाई खिलाते दिखे आज।
बहरहाल , आप पूछ सकते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा की हाहाकारी जीत में लंगड़ी कैसे मारी है ?
याद कीजिए जातीय जनगणना की क़वायद। शुरुआत नीतीश कुमार ने ही बिहार से की थी। बिहार विधान सभा से इस जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास करवाया। जातीय जनगणना करवाई। आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए। पर इसी बिना पर बिहार में 75 प्रतिशत आरक्षण भी लागू कर दिया। इसी दौरान विधान सभा में लड़का-लड़की के शादी के बाद वाला अश्लील बयान भी नीतीश का आया था। दरअसल यह जातीय जनगणना का दांव नीतीश कुमार ने बहुत सोच समझ कर चला था। भाजपा ने जो बड़ी मेहनत से मंडल-कमंडल का वोट बैंक 2014 और 2019 में एक किया था और चौतरफा लाभ लिया था। 303 सीट इसी बल पर लाई थी भाजपा। मंडल-कमंडल का वोट एक करना मतलब अगड़ा-पिछड़ा वोट बैंक एक कर हिंदू वोट बैंक खड़ा करना। इसी हिंदू वोट बैंक के चक्कर में मुस्लिम वोट बैंक ध्वस्त हो गया था।
तो जातीय जनगणना एक ऐसा दाँव था जिस ने अगड़े-पिछड़े वोट बैंक को तितर-बितर कर दिया। आप याद कीजिए अखिलेश यादव और कांग्रेस पोषित यू ट्यूबर अजित अंजुम को। जो बीते विधान सभा चुनाव में अकसर गांव-कस्बे में कुछ औरतों को घेरते और पूछते रहते थे कि किस जाति से हो ? संयोग से वह औरतें कहतीं हिंदू। बहुत कुरेदने पर भी वह औरतें जाति नहीं बताती थीं। अजित अंजुम निराश हो जाते थे। एक समय रवीश कुमार भी कौन जाति हो का सवाल लिए घूमते रहते थे। तो रणनीति बनी जातीय जनगणना की। प्रयोगशाला बना बिहार। जो पहले ही से जातीय दुर्गंध से बदबू मारता है।
लालू , नीतीश की बिहार की सारी राजनीति ही जातीय नफ़रत और घृणा की ताक़त पर है। नक्सल कांग्रेसी बन चुके राहुल और यादवी राजनीति के सूरमा अखिलेश यादव ने इस लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का बिगुल बजा दिया। आंख में धूल झोंकने के लिए नाम दिया पी डी ए। अपने को चाणक्य बताने वाले , सोशल इंजीनियरिंग के अलंबरदार अमित शाह पी डी ए के जाल में कब फंस गए , जान ही नहीं पाए। गरीबों के लिए लोक कल्याणकारी योजना चलाने वाली केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने इस जातीय जनगणना के खेल को भी समय रहते समझा नहीं। मंडल-कमंडल के वोट इस जातीय जनगणना के व्यूह में कब तार-तार हो गए , चाणक्य लोग जान ही नहीं पाए। अयोध्या , चित्रकूट हाथ से निकल गया। अमेठी , रायबरेली , सुलतानपुर समेत आधा उत्तर प्रदेश निकल गया। बनारस जैसे-तैसे जाते-जाते बचा है।
जातीय जनगणना की हवा में आग यह लगाई गई कि भाजपा संविधान बदल कर आरक्षण ख़त्म कर देगी। और उत्तर प्रदेश की ज़्यादातर सीटें निकल गईं भाजपा के हाथ से तो यह वही रसायन है। वही केमेस्ट्री है। उत्तर प्रदेश ही नहीं , बिहार , महाराष्ट्र , बंगाल हर कहीं यह केमेस्ट्री काम आई और 400 की लालसा लिए भाजपा और सहयोगी दल औंधे मुंह गिरे। मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , हिमाचल जैसे प्रदेशों में जाने कैसे मंडल-कमंडल साथ रह गए तो भाजपा की जैसे-तैसे लाज बच गई।
नीतीश कुमार एन डी ए में न आए होते तो भाजपा का जाने क्या हाल हुआ होता। याद कीजिए इस बाबत अमित शाह का एक डाक्टर्ड वीडियो भी कांग्रेसियों ने जारी किया था। भाजपा ने क़ानूनी एफ आई आर , कुछ गिरफ्तारी आदि से इतिश्री कर ली। लेकिन आरक्षण ख़त्म करने की आग सुलगती रह गई , भीतर-भीतर। भाजपा ज़मीन पर गई नहीं। गांव-गांव यह वीडियो फ़ैल चुका था। एल आई यू भी सोई रही। मीडिया भी। असल में आरक्षण ऐसी बीमारी है जिस के आगे राम , कृष्ण , शंकर सब फ़ालतू हैं। राम नहीं आरक्षण चाहिए। कान नहीं , कौआ चाहिए। जैसे मुसलमान को देश नहीं इस्लाम चाहिए , दलित और पिछड़ों को राम , कृष्ण , शंकर नहीं , आरक्षण चाहिए। बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब आप मुफ्त अनाज रोकने की हैसियत में नहीं हैं। गैस भी आप को देना है , शौचालय भी और पक्का मकान भी। एक बार रोक कर देखिए , आग लग जाएगी देश में।
क्यों कि जैसे कभी नक्सली वामपंथी होते थे , अब नक्सल कांग्रेसी हो चले हैं। समूची कांग्रेस की जुबान अब नक्सली हो गई है। जुबान ही नहीं , सारी गतिविधियां भी। राहुल ही नहीं , सारे प्रवक्ता भी। आप अवसर तो दीजिए। यह दोनों मिल कर आग लगाने को तैयार बैठे हैं। राहुल की कुतर्की आक्रामक शैली , और गाली-गलौज की भाषा , कांग्रेस की भाषा नहीं है। नक्सलियों की भाषा है। कांग्रेसियों को बड़ी शिकायत रहती है कि नरेंद्र मोदी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते। हां , राहुल गांधी जब तब प्रेस कांफ्रेंस करते रहते हैं। किसी असहमत प्रश्न पर फौरन भड़कते हैं। कहते हैं यह तो भाजपा का सवाल है। और उस रिपोर्टर पर आक्रामक हो जाते हैं। ताज़ा मसला आज तक की मौसमी सिंह का है। मौसमी सिंह राहुल गांधी की प्रिय रिपोर्टर रही हैं। सालों से। कुछ पत्रकार उन्हें कांग्रेस की गोद में बैठी पत्रकार का तंज भी कसते रहे हैं , बतर्ज़ गोदी मीडिया।
ख़ैर जातीय जनगणना ने भाजपा की अयोध्या में जो आग लगाई है। अगर इस आग को समय रहते नहीं बुझाया भाजपा ने तो 2027 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में साफ़ हो जाएगी।
जो भी हो आज की तारीख़ में सारा राजनीतिक मंज़र मोदी के पक्ष में है। नीतीश ही नहीं , नायडू समेत सभी सहयोगी दल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक सुर से साथ खड़े दिखते हैं। समर्पित भाव में। नीतीश ने अपने उदबोधन में यहां तक कह दिया कि अगली बार जब आइएगा तो जो कुछ लोग इधर-उधर जीत गए हैं , वह सब भी हार जाएंगे। नीतीश का इशारा तेजस्वी की तरफ था। नीतीश तो और दो क़दम आगे जा कर बोल रहे हैं कि जल्दी काम शुरू कीजिए। यानी तेजस्वी को जेल भेजिए।
नीतीश कुमार का सहसा नरेंद्र मोदी का पाँव छूना बताता है कि लालू और तेजस्वी से बिहार में वह बहुत आजिज हैं। नरेंद्र मोदी की राजनीतिक छांव की उन्हें बहुत ज़रूरत है। मोदी को नीतीश की ज़रूरत कम , नीतीश को मोदी की ज़रूरत ज़्यादा है। जो भी हो नीतीश और नायडू समेत सभी सहयोगी दल अब इंडिया गठबंधन के खिलाफ न सिर्फ एकजुट हैं बल्कि फ़ायर के मूड में हैं। देखिए कि यह मंज़र कब तक बना रहता है।
क्यों कि समय तो सर्वदा बदलता रहता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता। सब कुछ बदलता रहता है। पर राजनीति इतनी तेज़ बदलती है कि कई बार लगने लगता है कि घड़ी की सूई कहीं पीछे तो नहीं रह गई इस राजनीति से। राजनीति और वह भी नरेंद्र मोदी की राजनीति। मोदी निरंतर कपड़े बदलते रहते हैं। एक-एक दिन में आधा दर्जन बार कपड़े बदल लेते हैं। एक समय मनमोहन सरकार में गृह मंत्री शिवराज पाटिल भी निरंतर कपड़े बदलने के लिए जाने गए थे। पर मोदी उन से बहुत आगे हैं। फिर वह कपड़े से ज़्यादा अपना गोल बदलते रहते हैं।
एक पुराना क़िस्सा याद आता है।
एक कुम्हार अपने चाक पर घड़ा बना रहा था। अचानक मिट्टी बोली , कुम्हार , कुम्हार यह क्या कर रहे हो ? कुम्हार हैरत में पड़ गया। बोला , माफ़ करना हमारा ध्यान बदल गया था। मिट्टी बोली , तुम्हारा तो सिर्फ़ ध्यान बदल गया था , हमारी तो दुनिया बदल गई। घड़ा बनना था , सुराही बन गई।
राजनीति की दुनिया भी कई बार ऐसे ही बदल जाती है। मतदाताओं का ज़रा सा ध्यान बदलते ही देश घड़े की जगह सुराही या सुराही की जगह घड़ा बन जाता है। क्यों कि लोगों को आरक्षण और इस्लाम चाहिए होता है। जाति और भ्रष्टाचार चाहिए होता है। देश नहीं। देश का विकास नहीं। निजी स्वार्थ सर्वोपरि है मतदाता का भी। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति का यह अर्जुन भाजपा की अयोध्या में लगी आग बुझा पाता है कि ख़ुद इस में झुलस जाता है।



वो चेहरे, जो भाजपा की हार के सूत्रधार बने

हिंदू आतंकवाद के आर्किटेक्ट की हार, बहुत कुछ कहती है!

हिंदू आतंकवाद के आर्किटेक्ट और इसके प्रचार, दोनों इस बार भाजपा की टिकट से चुनाव हार गये। यूपीए कार्यकाल में जब पी.चिदंबरम और सुशील शिंदे गृहमंत्री थे, उस समय आर.के.सिंह गृहसचिव थे। संघ आतंकवाद जिसे तब भगवा और हिंदू आतंकवाद के रूप में प्रचारित किया गया था, उसके मुख्य आर्किटेक्ट आर.के.सिंह (Pic-1) ही थे। इन्होंने समझौता, अजमेर, माले गांव आदि ब्लास्ट में NIA द्वारा चार्जशीटेड 10 संघ प्रचारकों और स्वयंसेवकों का नाम मीडिया में जारी किया था, जो किसी न किसी बम धमाके में अभियुक्त थे।

तत्कालीन गृहमंत्री सुशील शिंदे ने जब कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में कहा था कि भाजपा-संघ के शिविरों में आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जाता है, तो इसे मीडिया ने हिंदू आतंकवाद लिखते हुए प्रचारित किया था। फिर शिंदे मीडिया में यह कहने आए कि उनके बयान को गलत कोट किया जा रहा है। उन्होंने संघ के शिविरों में आतंकवादी प्रशिक्षण की बात की, न कि हिंदू आतंकवाद कहा। फिर कांग्रेस के नेता जनार्दन द्विवेदी ने भी इस पर बयान दिया था कि आतंकवाद को भगवा से हमने नहीं जोड़ा है। आतंकवाद का एक ही रंग है, और वह काला है।

मीडिया ने ज्यों ही इसे छापा, त्यों ही तत्कालीन गृहसचिव आर के सिंह सामने आए और उन्होंने संघ के 10 स्वयंसेवकों और प्रचारकों के नाम की सूची जारी कर दिया था और दावा किया कि इन आतंकवादियों के संबंध संघ से हैं।(Pic-2, Pic-3) । उन्होंने इस मुद्दे को ठंडा नहीं पड़ने दिया। साक्ष्य के साथ पहली बार पब्लिक फोरम में संघ को आतंकवादी आर. के.सिंह ने ही साबित किया था, इसीलिए उन्हें इसका आर्किटेक्ट माना जाता है।

ताज्जुब की बात यह है कि इसके बाद यह सेवानिवृत्त हुए और तुरंत भाजपा ने इन्हें शामिल कर लोकसभा का टिकट दे दिया। भाजपा की टिकट पर 2014 और 2019 में न केवल यह सांसद बने, बल्कि मोदी के गुड बुक में रहने के कारण राज्य मंत्री से केबिनेट मंत्री तक का सफर इन्होंने तय किया‌। ऐसा लगा जैसे संघ को आतंकवादी साबित करने का ईनाम इन्हें संघ-भाजपा की ओर से दिया गया, क्योंकि यही वह ‘ट्रिगर प्वाइंट’ था, जहां से देश भर के हिंदुओं के अंदर कांग्रेस के प्रति गुस्सा भरा और उन्होंने भाजपा के पक्ष में मतदान किया।

यदि थोड़ा पीछे चलें तो यही मोडस ओपरेंडी भाजपा के विकास की कहानी में भी देखने को मिलती है और वहां भी आर.के.सिंह ही भाजपा के सहायक साबित हुए!

1990 में लालकृष्ण आडवाणी को रथयात्रा के दौरान समस्तीपुर में गिरफ्तार करने वाले अधिकारी आर.के.सिंह ही थे। इस गिरफ्तारी के बाद भाजपा उत्तरोत्तर बढ़ती चली गई। जब NDA की सरकार आई तो आडवाणी गृहमंत्री बने। उन्होंने भी आर.के.सिंह को खुद को गिरफ्तार कर भाजपा को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने के लिए अवार्ड दिया! आडवाणी ने उन्हें गृहमंत्रालय में संयुक्त सचिव का पद दिया, जिस पर सिंह 1999-2004 तक रहे।

2004 में बिहार में NDA की पहली नीतीश कुमार सरकार बनी (2004-2009) तो आर.के.सिंह को नीतीश सरकार में सड़क निर्माण विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में नियुक्त किया गया‌। लालू राज में बिहार की सड़कें खास्ताहाल थी। जाने से पहले वाजपेई सरकार ने बिहार की सड़क को बेहतर बनाने के लिए जिस अधिकारी पर भरोसा किया वह यही आर.के.सिंह थे!

इस बार 2024 में आर के सिंह तीसरी बार आरा से चुनाव जीतने में सफल नहीं हुए। लेकिन संघ-भाजपा को बदनाम कर सत्ता दिलाने में इनकी जो हमेशा भूमिका रही है, उसका ईनाम इन्हें मोदी सरकार में लगातार 10 साल मिला और संभव है इस बार भी मिल जाए!

दूसरे हैं कृपाशंकर सिंह, जो पूर्व में कांग्रेस के नेता था और जिन्होंने 26/11 RSS की साजिश नामक पुस्तक दिग्विजय सिंह के साथ मिलकर लांच की थी । इस बार भाजपा ने उन्हें अपने कार्यकर्ताओं पर वरीयता देते हुए जौनपुर से टिकट दिया था। भाजपा में ज्वाइनिंग के बाद कृपाशंकर सीधे पीएम मोदी से मिले (Pic-5, 6), जिसके बाद यह कयास लगाया गया कि मोदी के कहने पर ही इन्हें भाजपा में एंट्री मिली है। कृपाशंकर सिंह जौनपुर से करीब 1 लाख वोटों से हार गये। उधर हिन्दू आतंकवाद के प्रचारक कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी मप्र के राजगढ़ सीट से हार गये। दिग्विजय सिंह का भी संघ और भाजपा से बहुत पुराना याराना है। इसके काफी साक्ष्य पब्लिक फोरम में मौजूद है।

हिंदू आतंकवाद के दो अन्य साजिशकर्ता भी अभी भाजपा की छतरी के नीचे हैं। एक हैं, यूपीए के समय गृहराज्य मंत्री रहे और कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह, जिन्होंने 2022 भाजपा ज्वाइन कर ली । दूसरे हैं, कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम। आरोप के मुताबिक ये दोनों अजमेर बम ब्लास्ट में संघ प्रमुख मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार का नाम शामिल कराने के लिए दिग्विजय सिंह के साथ ब्लास्ट के आरोपी भावेश पटेल से प्रमोद कृष्णम के उसी आश्रम में मिले, जिसके पुधरुद्धारित रूप का हाल-फिलहाल पीएम नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था भावेश पटेल ने NIA अदालत में पत्र लिखकर इसका खुलासा किया था।

आज आचार्य प्रमोद कृष्णम और आरपीए सिंह दोनों भाजपा के बल्लेबाज हैं! इनके द्वारा भी भाजपा-संघ के विरुद्ध साजिश व फाल्स नरेशन का लाभ भाजपा को सत्ता प्राप्ति में हुई, शायद इसलिए भाजपा ने इन्हें भी पुरस्कृत किया है!

ऐसे विकटों को सनातनधर्मी हिंदुओं ने पहचान कर गिराना आरंभ कर दिया है। आर.के.सिंह और कृपाशंकर सिंह की हार इसका उदाहरण है।

साभार- https://www.facebook.com/sdeo76 से




अमरीकी एजेंसियों को चकमा देकर वो दो लाख डॉलर लेकर उड़ते प्लेन से कूद गया

अमेरिका में एक शख्स ने प्लेन हाइजैक कर लिया. और बदले में दो लाख डॉलर की डिमांड की. अमेरिका ने उसकी मांग मान ली. पैसै भी दे दिए. उसके बाद हाइजैकर प्लेन से बाहर कूद गया. इसके बाद शुरू हुई उसकी तलाश जो आज भी जारी है. क्या कैसे हुआ? सब जानिए

काला सूटकेस लिए एक शख्स प्लेन में चढ़ता है. और बिना एक भी शब्द बोले, प्लेन हाईजैक कर लेता है. उसकी मांग – दो लाख डॉलर, वरना वो प्लेन को बम से उड़ा देगा. सरकार हरकत में आती है. प्लेन को उतारा जाता है और लोगों की जान बचाने के लिए पैसे पहुंचा दिए जाते हैं. हालांकि एक और चीज थी, जो हाईजैकर ने मांगी थी – पैराशूट. प्लेन एक बार फिर टेक ऑफ करता है. हाईजैकर पायलट से कहता है, प्लेन को मेक्सिको ले चलो. पायलट कहता है – फ्यूल कम है. रिफ्यूलिंग के लिए एक बार फिर उतरना होगा. हाईजैकर मान जाता है. लेकिन इससे पहले कि प्लेन ईंधन भरने के लिए लैंड करता. बीच हवा में प्लेन का दरवाजा खुलता है. पैराशूट बांधकर हाईजैकर बीच हवा में प्लेन से छलांग लगा देता है. और गायब हो जाता है. लगभग 50 साल की तहकीकात के बाद दुनिया के सबसे ताकतवर देश की एजेंसी के पास सिर्फ एक नाम बचता है – DB कूपर.

हाइजैकिंग की अनसुलझी कहानी
आज हम आपको सुनाएंगे कहानी अमेरिकी इतिहास की इकलौती हाईजैकिंग की, जो आज तक सुलझ नहीं पाई. कहानी शुरू होती है 24 नवंबर, 1971 की तारीख से. अमेरिका के पोर्टलैंड शहर के एयरपोर्ट पर एक आदमी आता है. और काउंटर से सिएटल जाने वाली फ्लाइट का टिकट लेता है. और अपना नाम बताता है डैन कूपर. 40 की उम्र. काले बाल, भूरी आंखें, एक भूरा सूट, सफ़ेद शर्ट, काले रंग की एक पतली सी टाई, एक रेनकोट और भूरे जूते- ये उस आदमी का हुलिया था. हाथ में एक काला सूटकेस लिए वो जाकर सीधे अपनी सीट पर बैठ जाता है. टेक ऑफ करते ही वो फ्लाइट अटेंडेंट से एक ड्रिंक मंगाता है. एक बर्बन और 7 अप की एक बोतल. ड्रिंक पीने के बाद, वो आंख मूंद कर बैठ जाता है. और फ्लाइट अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाती है. फ्लाइट में क्रू और यात्रियों को मिलाकर कुल 42 लोग सवार थे.

दोपहर 2 बजकर पचास मिनट पर टेक ऑफ के कुछ देर बाद डैन कूपर ने एक बार फिर फ्लाइट अटेंडेंट को बुलाया. और उसे एक कागज़ थमाया. एयर होस्टेस ने कागज़ खोला उसमें लिखा था मेरे पास बॉम्ब है. मैं चाहता हूं, तुम मेरे पास बैठ जाओ.

एयर होस्टेस जैसे ही कूपर के बगल में बैठी. कूपर ने अपना सूटकेस खोलकर दिखाया. उसमें लाल रंग के दो सिलेंडर, कुछ तार और बटन थे. दिखने में बम जैसा ही लग रहा था. इससे पहले आप सोचें कि कूपर ये सब लेकर प्लेन के कैसे चढ़ गया. तो ये उस दौर की बात है. जब प्लेन की हवाई यात्रा के लिए इतनी कड़ी चेकिंग नहीं होती थी. अमेरिका में भी नहीं.

बहरहाल कूपर ने अपना सूटकेस बंद किया. और एयर होस्टेस को अपनी कुछ मांगे बताई. उसकी मांग थी – दो लाख डॉलर और चार पैराशूट. पैसों के मामले में उसकी खास शर्त थी कि सारा पैसा 20 डॉलर के बिल में होने चाहिए.

एयर होस्टेस ने ये बात जाकर प्लेन के पायलट को बताई. पायलट नहीं चाहता था कि कोई पैनिक करे इसलिए बाकी यात्रियों की इसकी कोई खबर नहीं दी. एयर होस्टेस को कूपर ने पैसे मंगाने का पूरा प्लान भी बताया. जो कुछ इस प्रकार था,

प्लेन अपने गंतव्य सिएटल पर उतरेगा, वहां एक फ्यूल ट्रक प्लेन को रिफ्यूल करेगा. एयर होस्टेस बाहर जाकर पैसे और पैराशूट अंदर ले आएगी. इसके बाद यात्रियों को उतार दिया जाएगा. और प्लेन एक बार फिर टेक ऑफ करेगा.

कूपर की ये मांग पायलट ने ATC तक पहुंचाई. और वहां से ये मामला गया FBI के पास. दोबारा बता दें, ये वो अमेरिका नहीं था, जो आतंकियों से नेगोशिएट नहीं करता. तब FBI ने यात्रियों की जान बचाने के लिए कूपर को पैसे भी भिजवाए. और पैराशूट भी. जैसे कूपर की मांग थी. पूरा पैसा 20 डॉलर के बिल में था. और हर नोट का सीरियल नंबर L से शुरू होता था. पैसे देने से पहले FBI ने सारे नंबर नोट करके रख लिए. ताकि नोटों की शिनाख्त कर बाद में हाईजैकर को पकड़ा जा सके.

ये पैसा जैसे ही कूपर तक पंहुचा, वो सभी यात्रियों को छोड़ने के लिए राजी हो गया. यात्री विमान से उतर गए. हालांकि उन्हें अभी इस बात का इल्म नहीं था कि हाईजैकिंग हुई है. ये बात उन्हें प्लेन से उतरने के बाद पता चली. वहीं दूसरी तरफ कूपर ने यात्रियों को छोड़ने के बाद पायलट से कहा कि वो प्लेन को एक बार फिर टेक ऑफ करे. अबकी बार उसके साथ फ्लाइट में सिर्फ क्रू मेंबर थे. टेक ऑफ के बाद कूपर ने पायलट से प्लेन को मेक्सिको ले जाने को कहा. पायलट ने उसे जवाब दिया कि प्लेन में इतना फ्यूल नहीं है. पायलट ने उसे समझाया कि बीच में एक बार रिफ्यूलिंग के लिए उतरना होगा. कूपर मान गया. पायलट उम्मीद में था कि रीफ्यूलिंग के लिए उतरते वक्त कूपर को शायद पकड़ लिया जाए. लेकिन कूपर का असली प्लान क्या था, इस बात से कूपर के अलावा सभी अनजान थे.

प्लेन के उड़ान भरने के कुछ ही मिनट का वक्त बीता था कि कूपर ने एयर होस्टेस को एक बार फिर बुलाया. और उससे कहा कि वो प्लेन से उतरने वाली सीढ़ी खोल दे. एयर होस्टेस ने समझाया कि दरवाजा खोलते ही सब लोग हवा के प्रेशर से बाहर खींच लिए जाएंगे. लेकिन कूपर अपनी मांग पर अड़ा रहा. एयर होस्टेस ने कहा कि वो खुद को एक सीट से बांधना चाहती है. ताकि वो प्लेन के बाहर न चले जाए. तब कूपर ने कुछ सोचा और उससे कॉकपिट के अंदर जाने को कहा. इसके बाद उसने खुद प्लेन का दरवाजा खोला. और पैराशूट बांधकर प्लेन से बाहर कूद गया. प्लेन का पूरा क्रू इस बात से अनजान था. उन्होंने कूपर को आवाज देकर एक दो बार पूछने की कोशिश भी की. लेकिन कोई जवाब नहीं आया. पायलट ने प्लेन को रेनो नाम की जगह पर लैंड कराया. जैसे ही प्लेन लैंड हुआ. सुरक्षा फोर्सेस ने उसे घेर लिया. वो प्लेन के अंदर घुसे और उसकी पूरी चेकिंग की. लेकिन कूपर गायब था. साफ़ था कि कूपर बीच फ्लाइट, पैराशूट पहनकर प्लेन से कूद गया था. लेकिन वो गया कहां, और वो था कौन? ये सवाल अब जांच एजेंसियों के सामने थे.

हाईजैकर ने अपना नाम डैन कूपर बताया था. लेकिन ये ही उसकी असली पहचान थी या नहीं, ये भी पक्का नहीं है. कूपर के फिंगरप्रिंट से भी उसकी पहचान नहीं हो पाई. पुलिस ने यात्रियों और क्रू से बातचीत कर उसका हुलिया पता करने की कोशिश की. कुछ संदिग्ध लोगों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ किए जाने वाले लोगों में एक का नाम DB कूपर था. DB कूपर असली अभियुक्त नहीं था. पुलिस ने जल्द ही उसे शक के घेरे से भी हटा दिया. लेकिन जब तक ये होता, ये मामला हाई प्रोफ़ाइल बन चुका था. प्रेस में इस केस से जुडी ख़बरें छपीं. और इसी सिलसिले में DB कूपर का नाम भी प्रेस में आ गया. DB कूपर डैन कूपर नहीं था. लेकिन प्रेस ने उसका नाम इतना उछाला. कि यहां से आगे ये केस DB कूपर केस के नाम से ही फेमस हो गया. आज भी ये अमेरिकी इतिहास का एक बहुत ही फेमस केस है. जिसे सब DB कूपर केस के नाम से जानते हैं.

बहरहाल मीडिया की कारस्तानियों से आगे बढ़ते हुए जानते हैं, इस केस में आगे हुआ क्या? कई लोगों से पूछताछ के बाद भी जब कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने कूपर के जम्प करने का एरिया पहचान कर 50 किलोमीटर के एरिया में खोज शुरू कर दी. कई दिनों तक खोज चलती रही. लेकिन कूपर का कुछ अता-पता नहीं चला. उसके पैराशूट का भी कहीं कोई निशान नहीं था.

कूपर को पकड़ने के लिए FBI ने एक सिमुलेशन भी करके देखा. एक 91 किलो का बक्सा हवा से फेंका गया. ठीक वैसे ही जैसे कूपर कूदा था. हालांकि इससे भी कोई मदद नहीं मिली. FBI ने सारे तरीके आजमाए. उसके स्केच बनाकर जारी किए, लेकिन कोई तरकीब काम नहीं आई.

अंत में FBI के पास सिर्फ एक उम्मीद बची थी. वो पैसे जो फिरौती के रूप में कूपर को दिए थे. उन रुपयों के सीरियल नंबर का पूरा लेखा जोखा FBI के पास था. कहीं भी उन्हें खर्च किया जाता, FBI को तुरंत पता चल जाता. FBI ने ये नंबर पब्लिक में भी जारी कर दिए. लेकिन कभी, कहीं इन पैसों के खर्च होने की बात सामने नहीं आई?

फिर ये पैसे गए कहां?
कूपर के गायब होने के मामले को 9 साल बीत गए. मामला प्लेन हाईजैकिंग का था. इसलिए FBI ने जांच जारी रखी. लेकिन सब मानकर चल रहे थे कि कूपर की मौत हो गई होगी. जिस एरिया में वो कूदा, वहां घने जंगल थे. और गवाहों के अनुसार उसके पास स्काई डाइविंग के लिए सही कपड़े और औजार नहीं थे. इस बात की बहुत संभावना थी कि कूपर की मौत हो गई.

लेकिन फिर साल 1980 में FBI को ऐसा सुराग मिला, जिसने इस केस में एक बार फिर जान फूंक दी. फरवरी की एक सुबह आठ साल का ब्रायन एक नदी के पास खेल रहा था. जब अचानक उसे रेत के नीचे नोटों की तीन गड्डियां दिखाई दीं. ब्रायन ने ये बात अपने पिता को बताई. मामला पुलिस और वहां से FBI के पास पहुंचा. पता चला कि ये वही नोट थे, वो डैन कूपर को दिए गए थे. नोट फटे गले थे लेकिन गड्डियां ज्यों की त्यों थी. और उन्हें खोला तक नहीं गया था. ये पैसे कोलंबिया नाम की नदी के किनारे मिले थे. इसलिए थियोरी बनी कि कूपर जहां कूदा वहां से बहते हुए ये पैसे ब्रायन के पास तक पहुंचे होंगे.

लेकिन फिर थोड़ी और तहकीकात के बाद पता चला कि कोलंबिया नदी का बहाव उल्टी तरफ था. यानी जहां कूपर कूदा, वहां से पैसे ब्रायन तक पहुंचने के लिए उन्हें उल्टी दिशा में बहना होता. जो कि संभव ही नहीं था.

कूपर का केस लगातार उलझता रहा. पुलिस ने सैकड़ों संदिग्धों से पूछताछ की. लेकिन डैन कूपर की पहचान नहीं हुई. हां कुछ नकली डैन कूपर जरूर पैदा हो गए. डैन कूपर हाईजैकिंग के अगले ही साल अमेरिका में 31 हाईजैकिंग हुईं. इनमें 15 मामले ऐसे थे, जिनमें हाईजैकर ने डैन कूपर की माफिक अपने लिए पैराशूट मांगे थे. ये सभी लोग पकड़े गए, लेकिन डैन कूपर नहीं पकड़ा गया.

डैन कूपर का क्या हुआ?
FBI ने कुल 45 साल तक इस मामले की तहकीकात की. लेकिन डैन कूपर कौन था, और वो गया कहां, इसका पता कभी नहीं चल पाया. साल 2016 में FBI ने ये केस ठंडे बस्ते में डाल दिया. बची तो सिर्फ कुछ थियोरीज़. मसलन FBI ने कूपर की एक प्रोफ़ाइल बनाई थी. जिसके अनुसार संभवतः वो मिलिट्री में काम कर चुका था. इसलिए स्काई डाइविंग से अच्छी तरह परिचित था. प्लेन से कूदने से पहले एयर होस्टेस ने उससे पूछा था,

क्या तुम्हें इस प्लेन कंपनी से बदला लेना है
तब कूपर ने जवाब दिया, इस कंपनी से नहीं

कूपर के जवाब से पता चलता है कि वो बहुत लम्बे समय से इस हाईजैकिंग की प्लानिंग कर रहा था. अब सवाल है कि क्या कूपर मर गया था? ये भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता. FBI रिपोर्ट के अनुसार जहां कूपर कूदा था. उसी दिन उस जगह से कुछ दूर किसी शख्स ने एक दुकान लूटी थी. चश्मदीदों के अनुसार हालांकि वो शख्स कूपर वाली घटना के कुछ घंटे के बाद ही दुकान में आया था. खाने का कुछ सामान, और मरहम पट्टी- सिर्फ यही चीजें वो लेकर गया था. क्या ये डैन कूपर था? इस बारे में भरोसे से कुछ नहीं कहा जा सकता.

लेकिन कूपर की कहानी ऐसी कतरने सालों से जमा होती रही हैं. अमैच्योर जासूस सालों से कूपर को ढूंढ रहे हैं. इनमें से एक शख्स ने कूपर की टाई के परीक्षण से पता लगाया कि उसमें टाइटेनियम के अवशेष थे. जिसका मतलब था वो मनुफैक्रिंग के क्षेत्र में काम करता था. लगभग हर साल कोई न कोई ये दावा करता है कि DB कूपर की पहचान खुल गई है. पर असलियत यही है कि DB कूपर कौन था, ये अमेरिकी इतिहास की एक अबूझ पहेली है. जिसे शायद कभी न सुलझाया जा सकेगा. इस केस के बारे में और जानना चाहते हैं तो, नेटफ्लिक्स की एक मिनी सीरीज रेकमेंड करते हैं आपको. जिसका नाम है- DB cooper where are you. आप चाहें तो देख सकते हैं.

साभार- https://www.thelallantop.com/ से




चित्रनगरी संवाद मंच में महाबली नाटक का मंचन

महाबली अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास से कहा- जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं इसी तरह एक मुल्क में दो महाबली नहीं रह सकते। इसलिए मैं महाबली के क़रीब जाता हूं और उन्हें ख़ुद में समाहित कर लेता हूं। यह दृश्य है असग़र वजाहत लिखित ‘महाबली’ नाटक का। इस नाटक को रंगकर्मी विजय कुमार के निर्देशन में रविवार 9 जून 2024 को केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव के मृणालताई हाल में चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की ओर से मंचित किया गया। नाटक को दर्शकों ने बहुत पसंद किया और सराहा।

बनारस के संस्कृत के प्रकांड पंडितों ने तुलसीदास का ज़बरदस्त विरोध किया था क्योंकि कि वे प्रभु राम की कथा को लोक भाषा अवधी में लिख रहे थे। ऐसे कुछ दृश्यों के साथ शुरू हुआ यह नाटक एक ऐसे ख़ूबसूरत मुक़ाम पर पहुंचता है जहां अपने दरबारियों के विरोध के बावजूद महाबली अकबर सोने के सिक्कों पर प्रभु राम और माता सीता की तस्वीर अंकित करवाते हैं और उसका नाम ‘रामटका’ रखते हैं। जब अकबर और तुलसीदास की मुलाक़ात होती है तो यह साबित हो जाता है कि लोकभाषा में राम कथा लिखने वाला लोककवि भी महाबली है और उसका दर्जा महाबली बादशाह से ऊंचा है। नाटक इस तथ्य को रेखांकित करता है कि एक स्वाभिमानी रचनाकार के मन में धन दौलत और सत्तासुख के लिए कोई लोभ-लालच नहीं होता।

सभी कलाकारों का अभिनय असरदार था। तुलसी दास (विजय कुमार), अकबर (कृष्णा जैसवाल), अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना (प्रताप बत्रा), टोडर मल (प्रशांत रावत) के साथी कलाकार थे – रागिनी कश्यप, अस्मा ख़ान, राहुल कुमार, सचिन, आशुतोष खरे, अश्वनी, अथर्व, मल्हार, पुष्पेन्द्र शुक्ला, कुन्दन, प्रसून और जितेंद्र नाथ।
नाटक के मंचन के बाद उस पर खुली चर्चा हुई। इसमें कथाकार सूरज प्रकाश, चित्रकार जैन कमल, पत्रकार विवेक अग्रवाल, शायरा लता हया, शायर गुलशन मदान तथा कुछ और गणमान्य लोगों की सहभागिता रही। मराठी भाषी लेखक सुबोध मोरे, अशोक राजवाड़े, रंगकर्मी सचिन सुशील और रंगकर्मी गोकुल राठौर ने अपनी मौजूदगी से आयोजन की गरिमा बढ़ाई।

शुरूआत में ‘धरोहर’ के अंतर्गत लेखक विवेक अग्रवाल ने बाबा नागार्जुन की दो चर्चित कविताओं का पाठ किया। काव्य पाठ के सत्र में चुनिंदा कवियों ने विविधरंगी कविताएँ पेश कीं।

साभार- https://www.facebook.com/csmanchs से