आर्थिक विकास के दृष्टि से वित्तीय वर्ष 2023-24 भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ

हाल ही में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए विकास से सम्बंधित आंकड़े जारी किये गए है। इसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत की आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत की रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक एवं वैश्विक स्तर पर कार्यरत विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान लगाते हुए कहा था कि यह 7 प्रतिशत के आसपास रहेगी। परंतु, वित्तीय 2023-24 के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर इन अनुमानों से कहीं अधिक रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में भी भारत की आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत रही है जो पिछले वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में 6.1 प्रतिशत रही थी। पूरे विश्व में प्रथम 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक विकास दर भारत की आर्थिक विकास दर के कहीं आसपास भी नहीं रही है।

अमेरिका की आर्थिक विकास दर 2.3 प्रतिशत, चीन की आर्थिक विकास दर 5.2 प्रतिशत, जर्मनी की आर्थिक विकास दर तो ऋणात्मक 0.3 प्रतिशत रही है। जापान की आर्थिक विकास दर 1.92 प्रतिशत, ब्रिटेन की 0.1 प्रतिशत, फ्रान्स की 0.9 प्रतिशत, ब्राजील की 2.91 प्रतिशत, इटली की 0.9 प्रतिशत एवं कनाडा की 1 प्रतिशत रही है, वहीं भारत की आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रही है। 8 प्रतिशत से अधिक की विकास दर को देखते हुए अब तो ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2027 तक जर्मनी एवं जापान की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था निश्चित ही बन जाएगा।

विनिर्माण, खनन, भवन निर्माण एवं सेवा क्षेत्र, यह चार क्षेत्र ऐसे हैं जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद को तेजी से आगे बढ़ाने में अपना विशेष योगदान देते हुए नजर आ रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते ही सम्भव हो पा रहा है।

वास्तविक सकल मान अभिवृद्धि के आधार पर, वित्तीय वर्ष 2023-24 की चतुर्थ तिमाही में विनिर्माण के क्षेत्र में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 की इसी अवधि में केवल 0.9 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी थी। इसी प्रकार, खनन के क्षेत्र में भी इस वर्ष की चतुर्थ तिमाही में वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 2.9 प्रतिशत की रही थी। भवन निर्माण के क्षेत्र में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 7.4 प्रतिशत की रही थी। नागरिक प्रशासन, सुरक्षा एवं अन्य सेवाओं के क्षेत्र में वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत से बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई है। ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि दर पिछले वर्ष की चौथी तिमाही में 7.3 प्रतिशत से बढ़कर इस वर्ष चौथी तिमाही में 7.7 प्रतिशत पर पहुंच गई है। परंतु, कृषि, सेवा एवं वित्तीय क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में वृद्धि दर पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में कुछ कम रही है।

वैश्विक स्तर पर अन्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में लगातार कम हो रही वृद्धि दर के बावजूद भारत के सकल घरेलू




पर्यावरण मूलक नगरीय आयोजना पर उदयपुर में सेमिनार

उदयपुर , इंस्टीट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स इंडिया, आई टी पी आई की राजस्थान इकाई द्वारा पर्यावरण दिवस कार्यक्रम श्रंखला के तहत “पर्यावरण मूलक नगरीय आयोजना” विषयक सेमिनार का आयोजन हुआ

इंस्टिट्यूशन सभागार में उदयपुर स्कंध की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राज्य के पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक व आई टी पी आई रीजनल कमिटी सदस्य सतीश श्रीमाली ने राज्य में मास्टर प्लान निर्माण प्रक्रिया में पर्यावरण मूलक तत्वों व प्रावधानों के समावेश पर प्रकाश डाला। श्रीमाली ने कहा कि मास्टर प्लान एक क़ानूनी दस्तावेज है जिसके अनुरूप ही शहरों, कस्बों का विकास होना चाहिए।

मुख्य वक्ता विद्या भवन पोलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि बढ़ते तापक्रम, बाढ़, सूखा , मरुस्थलीकरण जैसी आपदाओं को देखते हुए नगरीय आयोजना , टाउन प्लानिंग के सिद्धांतों, दृष्टिकोण को नए रूप में परिभाषित करना होगा। मेहता ने कहा कि नगरीय आयोजना संसाधनों के अधिकतम खपत व दोहन के स्थान पर अधिकतम बचत एवं संवर्धन पर केन्द्रित रहनी चाहिए।

मेहता ने कहा कि नगरीय आयोजना में बाड़ी तथा बावड़ी का प्रावधान जरूरी है। लेंड प्लान को स्वीकृत करने में न्यूनतम तीस प्रतिशत पेड़ आच्छादित ग्रीन कवर की शर्त होनी चाहिए।विविध प्रजातियों के पेड़ों से युक्त एक उपवन( बाड़ी) का प्रावधान होना चाहिए। प्रति एक हजार वर्गफीट भूमि पर न्यूनतम एक बड़ा पेड़ तापक्रम अनुकूलन के लिए होना चाहिए। गहरे टयूबवेल के बजाय बावड़ियाँ बनाने का प्रावधान रखा जाना चाहिए । झीलों, नदियों, पहाड़ों को इको सेंसिटिव जोन घोषित कर इन्हें पक्के निर्माणों से बचाया जाना चाहिए।

मेहता ने कहा कि निर्माण कार्यों में चूने का प्रयोग लौटाना होगा। सीमेंट युक्त एक वर्ग फीट निर्माण दो किलो कार्बन उत्सर्जन का जिम्मेदार है जबकि चूना कार्बन का अवशोषण कर वातावरण को ठीक करता है। तापक्रम अनुकूलन भी करता है।

पर्यावरणविद महेश शर्मा ने कहा कि झीलों तथा नदियों में सीवरेज के प्रवेश को रोकना होगा तथा आम जन को समुचित मात्रा में शुद्ध जल मिले, इसके प्रावधान सुनिश्चित करने होंगे । वहीं, शहरों में जैव विविधता बनी रहे , यह प्रयास करने होंगे ।

इकलाई साउथ एशिया के जलवायु प्रबंधन विशेषज्ञ भूपेंद्र सालोदिया ने कहा कि हर तरफ पक्का निर्माण होने से शहर में जमीन सतह का तापक्रम निरंतर बढ़ रहा है , यह एक गंभीर पर्यावरणीय संकट है । इसके लिए पक्की सतह के बजाय वनस्पति युक्त जमीन सतह बढ़ाना जरूरी है।

संयोजन करते हुए उदयपुर के वरिष्ठ नगर नियोजक अरविन्द सिंह कानावत ने कहा कि नगरों में पर्यावरणीय समृद्धि तथा तापक्रम अनुकूलता के लिए नगर नियोजन विभाग विशेषज्ञों व आम जन की सलाह लेकर कार्य कर रहा है।

सेमिनार में इंटक उदयपुर स्कंध के सचिव गौरव सिंघवी, उप नगर नियोजक वीरेंद्र सिंह परिहार , निकिता शर्मा, महेंद्र सिंह परिहार, दिनेश उपाध्याय सहित निलेश सोलंकी , राज बहादुर , पुष्कर सेन ने भी विचार रखे।




क्या भारत कभी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन पाएगा

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार श्री एंग्स मेडिसिन के अनुसार वर्ष 1820 तक भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, 1820 आते आते चीन भारत से आगे निकल गया था। 1820 से 1870 के बीच चीन एवं भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पूरे विश्व में सबसे आगे थे। वर्ष 1870 से 1900 के बीच ब्रिटेन विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया परंतु ब्रिटेन पर यह ताज अधिक समय तक नहीं टिक सका क्योंकि इसके तुरंत बाद अमेरिका विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया था। इसके बाद तो आर्थिक प्रगति के मामले में अमेरिका एवं यूरोपीयन देश लगातार आगे बढ़ते रहे, विकसित अर्थव्यवस्थाएं बने और एशिया के देशों (विशेष रूप से भारत एवं चीन) का वर्चस्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग समाप्त सा हो गया था। परंतु, अब एक बार पुनः समय चक्र बदल रहा है एवं अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों की अर्थव्यस्थाएं आर्थिक विकास के मामले में ढलान पर दिखाई दे रही हैं एवं एशिया के देश, विशेष रूप से भारत एवं चीन, पुनः तेज गति से आर्थिक प्रगति करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपना दबदबा कायम करते नजर आ रहे हैं।

आज अमेरिकी अर्थव्यस्था का आकार लगभग 25 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है और चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 18 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2035 से 2040 के बीच चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं अमेरिका दूसरे नम्बर पर आ जाएगा और भारत तीसरे नम्बर पर आ जाएगा। परंतु, इसके बाद क्या भारत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए दूसरे नम्बर पर आ पाएगा। इस तरह की चर्चाएं आजकल आर्थिक जगत में होने लगी हैं। आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व में 11वां स्थान था जो आज 3.70 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के आकार के साथ विश्व में 5वें स्थान पर आ गई है।

 

ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2026 में भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी अर्थव्यवस्था से आगे निकलकर विश्व में चौथे स्थान पर आ जाएगी। इसी प्रकार वर्ष 2027 में जापानी अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में तीसरे स्थान पर आ जाएगी। गोल्ड्मन सच्स के अनुसार, अगले चार वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा। इसी प्रकार, ब्लूम्बर्ग के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था आगामी वर्षों में लगातार 6 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल करता रहेगा, और अमेरिका एवं चीन की आर्थिक विकास दर से आगे बना रहेगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास दर के तेज गति से आगे रहने के पीछे जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें शामिल हैं – भारतीय जनसंख्या में वृद्धि होते रहना (अमेरिका एवं चीन में जनसंख्या वृद्धि दर लगातार कम हो रही है), इससे भारतीय घरेलू बाजार मजबूत बना रहेगा एवं उत्पादों की मांग भी भारत में तेज गति से आगे बढ़ती रहेगी। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत की आबादी बढ़ कर 170 करोड़ नागरिकों की हो जाएगी, इससे भारत अपने आप में विश्व का सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा।

वर्ष 2024 में भारत में उपभोक्ता विश्वास सूचकांक 98.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दूसरे, भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए भी केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अत्यधिक मात्रा में पूंजी निवेश किया जा रहा है। भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित श्रेणी में लाने के लिए केवल रोड ही नहीं बल्कि रेल्वे, एयरपोर्ट, ऊर्जा एवं जल व्यवस्था को विकसित करने के लिए भी भरपूर पूंजी निवेश किया जा रहा है।

भारत में आज भी श्रमिक लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है, इससे कई विदेशी कम्पनियां अब चीन के स्थान पर भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयों को स्थापित कर रही हैं इससे भारत के औद्योगिक विकास को गति मिल रही है। भारत ने भी कई उद्योग क्षेत्रों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लागू की है जिसका लाभ विश्व की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां उठा रही हैं एवं अपनी औद्योगिक इकाईयां भारत में स्थापित कर रही हैं।

तीसरे भारत में आज 140 करोड़ की जनसंख्या में से 100 करोड़ से अधिक नागरिक युवा एवं कार्य कर सकने वाले नागरिकों की श्रेणी में शामिल हैं। इतनी बड़ी मात्रा में श्रमिकों की उपलब्धि किसी भी अन्य देश में नहीं है। अन्य विकसित देशों, चीन सहित, में कार्य कर सकने वाले नागरिकों की संख्या लगातार कम हो रही है क्योंकि इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। किसी भी देश में युवा जनसंख्या का अधिक होने से न केवल श्रमिक के रूप में इनकी उपलब्धि आसान बनी रहती है बल्कि इनके माध्यम से देश में उत्पादों की मांग में भी वृद्धि दर्ज होती है तथा युवा जनसंख्या की उत्पादकता भी अधिक होती है जिससे उत्पादन लागत कम हो सकती है। साथ ही, युवाओं द्वारा नवाचार भी अधिक मात्रा में किया जा सकता है। यह सब कारण हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरे विश्व में एक चमकता सितारा बनाने में सहायक हो रहे हैं।

हाल ही के समय में वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदला भी है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना बन रही है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था।

वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है।

भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत की रही है और यह वित्तीय वर्ष 2023-24 की समस्त तिमाहियों में लगातार तेज गति से बढ़ती रही है। पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है।

इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं। अब आगे आने वाले कालचक्र में वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में परिस्थितियां लगातार भारत के पक्ष में होती दिखाई दे रही हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान लगातार बढ़ते जाने की प्रबल संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं।




आकांक्षाओं के फूल खिलाती डॉ.वीना अग्रवाल रचनाएं

महाभारत खुद लिख रही है।
कभी तुम हो संगी सहेली हो तुम,
कभी भीड़ में भी अकेली हो तुम।
मैं न समझी तुम्हें तुम न समझीं मुझे,
एक अनबूझ उलझी पहेली हो तुम।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने काव्य पाठ का लोहा मनवाने वाली कवियित्री डॉ. वीना अग्रवाल का उक्त छंद, 306 छन्दों की काव्य कृति ‘जिन्दगी तुम’ की बानगी है जिसमें उन्होंने अपनी सहेली जिन्दगी की विस्तृत पड़ताल की है और इस कृति ने उन्हें खूब शोहरत दिलवाई । लेखिका ने कुछ इस तरह से लिखा है कि उनके भीतर हमें एक नई जिन्दगी की तलाश और जीवन का दर्शन मिलता है। इस छंद विधा संग्रह की कुछ और बानगी देखिए….
बड़ा खूबसूरत सा एहसास हो
प्रकृति और पुरुष का महारास हो,
दिगन्तों में छोटा सा अवकाश हो
नभरसर में नक्षत्र लगती हो तुम ।

जो रिश्ते सहेजे संभाले गए
उन्हीं के जनाजे निकाले गए,
न सोचा कभी जो वही हो गया
बनी मूढ़ मुजरिम सी तकती हो तुम ।

कोई मित्र मुझको न तुम सा मिला
मेरी धृष्टताओं को जिसने सहा,
कभी तुमने चाही विजय कीर्ति भी
कभी तो उदरपूर्ति लगती हो तुम।

चाँद अम्बर में उगा हो
चाँदनी है पास मेरे,
घन घटाओं में घिरे हों
किन्तु पावस पास मेरे,
आज सुर और ताल मेरे
क्यों विलम्बित हो गए हैं।

तुम्हीं आलम्बन हमारा
भाव भी अनुभाव तुम हो
तुम्हीं ने श्रंगार गाया
सर्ग लज्जा का तुम्हीं हो
आपके रसराज के
मन प्राण मधुकर हो गए हैं।

हुई सत्य ईमान की दुर्दशा
कि ली हो विधाता ने जैसे परीक्षा,
जिया खूब हंस-हंस के छल औ कपट
मगर सत्य शाश्वत ये कहती हो तुम।

प्रसिद्ध साहित्य मनीषी बलवीर सिंह करुण कहते हैं हलो जिन्दगी! कहो कैसी हो ? कहां-कहां घूम आई, क्या-क्या देख समझ आई? तुम तो चिर युवती हो, सदानीरा नदी के समान, तृप्ति से भरपूर, ऐसी रुआँसी क्यों दिख रही हो?…. रचनाकार वीना जिन्दगी से इसी अन्दाज में बतियाती हैं कभी सखी के समान तो कभी एकदम अजनबी के समान लगती रही उन्हें जिन्दगी। कभी प्रिय सखी तो कभी अजनबी लगती रही उन्हें जिन्दगी 306 छन्दों में।

साहित्यकार स्व. डॉ. दयाकृष्ण जी विजय ने इस इस पुस्तक की भूमिका में लिखा ” इस कृति को हम प्रसाद के ‘आँसू’ तथा जगदीश गुप्त की ‘सांझ की परम्परा’ की अगली कड़ी के रूप में देख सकते हैं। इसे उन्होंने जिन्दगी का खण्ड काव्य भी बताया है। भाव पक्ष इस काव्य कृति में जहाँ हृदय को छूता है, वहाँ कला पक्ष भी कम लुभावना नहीं है। यह सही है कि संगीत की मधुर गायिका होने के नाते उन्होंने उर्दू शायरों की स्वतंत्रता को हिन्दी मंच पर उतार गीत की लयात्मकता को एक नया प्रवाह दे दिया है। ”

साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही कहते हैं, ” मैंने जितने भी काव्य संकलन अब तक देखे, उनमें ‘जिन्दगी तुम’ बेहतर लगा । इनके दोनों काव्य संकलन दर्शन की विविधता लिये हुए हैं। ” पद्मश्री से सम्मानित कवि आशिक चक्रधर ने पुस्तक के अभिमत में लिखा है ” जिन्दगी के जितने आयाम हमारे सामने रखे हैं, वह उनके अनुभवों के खजाने से निकले हैं। हर छन्द हमारे समाज के वैविध्य रूपों को सरलता और सहजता से उकेर देता है। अनेक साहित्यिक विद्वानों ने इनकी रचना को अविस्मरणीय सृजन बताया।”

रचनाकार के प्रथम काव्य संग्रह ‘फूल खिले नीम तले’ में काव्योचित गुणों का समावेश और माधुर्य है। इस कृति पर साहित्यकार स्व.डॉ. मनोहर प्रभाकर ने अपनी सम्मति में लिखा “वीणा के बिम्ब परम्परागत हैं, किन्तु उनका प्रस्तुतीकरण और निर्वाह नए बोध के साथ जुड़ा हुआ है। कवयित्री का अंतर वर्तमान के प्रति काफी सजग है। उसकी दृष्टि समकालीन परिवेश और घटनाक्रम के पैनेपन से गहरे उतरकर बेधती है और तब काव्य शिल्प का सहारा लेकर उसकी कथा कागज पर उतर आती है। किन्तु इस पीड़ा में भी उम्मीद और आकांक्षाओं के फूल खिल रहे हैं। कवयित्री का यही आशावाद उसके सृजन में एक आकर्षण एवं शक्ति उत्पन्न करता है।” इस काव्य संग्रह का विमोचन पूर्व प्रधानमंत्री माननीय चन्द्रशेखर जी के करकमलों द्वारा हुआ। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था, ” वीणा जी ने जीवन की कटुता में आशा के फूलों का अनुभव किया है। ”

आप यद्यपि गद्य विधा में कविताएं और छंद लिखती है परंतु और पद्य विधा में लेख , संस्मरण और समीक्षाएं भी लिखती हैं।

रचनाकार की उक्त प्रकाशित दो काव्य कृतियों कर साथ – साथ ” नीराजन (काव्य संग्रह)”, “जिन्दगी तुम -( भाग 2 काव्य संग्रह ), प्रेम तुम (काव्य संग्रह) और हिन्दी प्रबन्ध काव्यों में युग चेतना (हाड़ौती अंचल के संदर्भ में) शीघ्र आने वाली आगामी कृतियां हैं। इन्होंने तीन कृतियां का संपादन भी किया है जिनमें श्रीमती शशि सक्सेना की ‘रिटर्न गिफ्ट’ कहानी संग्रह,डॉ. महेश बंसल का ” कितना शेष हूँ – कविता संग्रह” और श्रीमती शशि सक्सेना के ” तितलियों के पंख बालगीत संग्रह” शामिल हैं। इनके आलेख, कविताएं और समीक्षाएं देश के कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और आकाशवाणी केन्द्र कोटा ,जयपुर और
उदयपुर से कविताओं का प्रसारण हुआ है।

इन्होंने विभिन्न विषयों ज़िन्दगी, देश, भाषा, समाज, राजनीति, शृंगार, नारी, हास्य-व्यंग्य, बालगीत आदि पर कविताएं लिखी हैं। इनकी ” सैनिक की पाती ” शीर्षक से लिखी कविता की बानगी देखिए…………
पाती आई है कारगिल से, हाँ मैं वापस आऊँगा
लहरा करके तिरंगा या फिर उसमें लिपट कर आऊँगा ।
मैं माली हूँ इस गुलशन का इस गुलशन के अमन चैन का
गोली खाकर भी मैं दुश्मन सौ-सौ मार गिराऊँगा ।
मैं खेलूंगा खून से होली, तुम रंगों से गुलालों से ।
मैं बर्फीली रात में जागू, तुम नींदों के सपनों में ।
लहू मिला करके माटी में,चन्दन तिलक लगाऊँगा।
सदा मने त्यौहार देश में, जन्में नौनिहाल देश में ।
अपना आज मिटा करके मैं, कल बन करके आऊँगा ।
जो छेड़ेगा इसमी सीमा, दूभर कर दूँ, उसका जीना ।
स्वर्ग मेरे कश्मीर की वादी, मीट कर भी महकाऊंगा।
उड़े तिरंगा लाल किले पर, सदके अमर जवान ज्योति पर ।
जल-थल अम्बर की सेना में, प्राण फूंक मैं आऊँगा ।

कन्या के प्रति समाज की सोच और भ्रूण के रूप में ही उसे खत्म करने के आधुनिक समाज पर व्यंग्य है इनकी यह रचना का यह अंश…
कन्या भ्रूण
मैं कौन हूँ?
क्या एक इन्सान हूँ ?
नहीं!
यदि मैं इन्सान होती
तो इन्सान भ्रूण में ही
मेरी हत्या नहीं कर देता ।
लेकिन, जो लोग भ्रूण में ही
मेरा अस्तित्व मिटा देते हैं,
दरअसल –
वो इन्सान ख़ौफजदा हैं
मेरे जैसे जन्तु के अवतरण से
जहां-जहां भी ये जन्तु जन्म ले लेता है
दुर्भाग्य का दानव सिर पर मंडराने लगता है।
मेरा पिता कहलाने वाला इन्सान,
स्वयं की पत्नी नामक जन्तु की
जिम्मेदारी से ही नहीं उबर पाया था कि,
पुनः कन्या जन्म का वज्रपात,
एक व्यर्थ मानी जाने वाली वस्तु के लिए,
लाखों के दहेज की गठरी की व्यवस्था
उस गठरी के नीचे दिन-दिन दबता
पिता नामक इन्सान।

पर्यावरण से प्रेरित सृजन ” पेड़ ” नामक रचना में देखने को मिलता है ………….
जो मैं होती वृक्ष घनेरा,
पंछी सुन्दर करें बसेरा ।
पेड़ झूमकर नर्तित होते,
गुजित पक्षी कलरव करते ।
जीवन का संगीत सिखाता,
उजला-उजला रोज सवेरा । जो मैं ……….
शाखें मेरी झुकी फलों से,
दोनों हाथों से मैं देती।
अहंकार मेरा मिट जाता,
सरल – तरल मेरा मन होता ।
बैठ कदम्ब बांसुरी बजाता,
मोर मुकुट धर जगत चितेरा । जो मैं….

सामाजिक व्यवस्था पर ” एक नया युग ” में वे लिखती हैं……………..
काफिये रदीफ जोड़ कर, एक नया युग चलो लिखें।
हाशिये लकीर जोड़ कर, एक पृष्ठ शान्ति का रचें ।
धुएँ को उजास चाहिये, निराशा को आस चाहिये ।
पी सको अगर समुद्र तुम, अन्तहीन प्यास चाहिये ।
जमीं कायनात जोड़ कर, एक नए क्षितिज तक चलें ।
वक्त का लबरेज जाम था, पी सके न एक घूंट हम ।
शाख समय की झुकी रही, घड़ी पल न तोड़ सके हम ।
एक-एक तृण बटोरकर, एक नया नीड़ हम रचें।
सत्य फटे हाल में खड़ा छद्म रेशमी लिबास में ।
झूठ के सिर सेहरा बंधा, स्वार्थ के सगे बरात में ।
अंक और शून्य जोड़कर, दूर तक अनन्त हम लिखें ।
यज्ञ ध्वंस कर दिया गया, मूल्य बिक रहे हैं हाट में ।
न्याय खड़ा शीश धुन रहा, कपट सो रहा है ठाठ से ।
संग हवाओं का गर मिले, इक नई परवाज़ पर चलें ।
पा एग श्रृगाल सुरक्षा, सिंह सब शहीद हो गए ।
गिद्ध भोज अनवरत चला,हंस चतुर्मास कर रहे ।
एक-एक बूंद जोड़कर, प्रेम का अमोल घट भरें ।
कुर्सियाँ इमोशनल हुईं,आदमी लुकाठ हो गया।
शक्ति समर्पण किए खड़ी,आदमी ये ध्वंस बन गया ।
साज सरगमों से जोड़कर, एक नया गीत फिर बजे ।
सत्ता में फील गुड हुआ, जनता बेहाल हो रही । सत्ता ने ईद मनाई, जनता कुर्बान हो रही ।
एक-एक स्वार्थ छोड़कर, आओ सभी फील गुड करें।।

ये अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों की सूत्रधार भी रही। इनकी साहित्यिक सक्रियता के सफर में अनेक पड़ावों पर कई साहित्यिक आयोजन इन्होंने किए। भारतेन्दु समिति भवन’ में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के तत्वावधान में आयोजित “लेखिका सम्मेलन “,

” सूचना केन्द्र,कोटा में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर’ के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम, सूचना केन्द्र कोटा में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम”,”अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर 8 मार्च 2017 को ‘राजस्थान लेखिका सम्मेलन’, तथा “डीएवी स्कूल सभागार में ह्यूस्टन (यू.एस.ए.) के ‘रामचरित भुवन’ संस्था के अध्यक्ष श्री ओमप्रकाश के. गुप्ता के भारत (कोटा) आगमन पर आयोजित कार्यक्रमों में इनके संयोजन और सक्रिय भागीदारी से यादगार बन गए। ये कार्यक्रम आज तक भी साहित्यकारों की स्मृतियों में हैं।

संस्मरण विधा के तहत इनके पिछले 5 सालों में कई बार अमेरिका प्रवास पर इन्होंने अमेरिका एवं प्रवासी भारतीयों के संदर्भ में “हिन्दुस्तान से बाहर हिदी का स्थान” पर अपने संस्मरण भी लिखे हैं। इनके संस्मरण के कतिपय अंश, लिखती हैं “जब कहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी की बात चलती है, अखबारों में कुछ छपता है तो मेरे मन में यही बात उठती है कि कब हम हमारे देश में ही हिन्दी को महत्व देंगे ? कब हमारी भाषा को और हमें इंग्लैंड या अमेरिका में हेय दृष्टि से नहीं देखा जाएगा।

हिन्दुस्तान में जो अंग्रेजी बोलने में दक्ष नहीं हैं, कब हीन भावना से बाहर आयेंगे ?” वे लिखती हैं ” दुनियाभर के देशों में आज हिन्दी को बढ़ावा मिल रहा है। देश की कुल जनसंख्या मे आज 65 प्रतिशत लोग हिन्दी भाषा को जानने व समझने वाले हैं, मात्र 5 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी भाषा को बोलते, जानते व समझते हैं। बाकी 30 प्रतिशत गैर हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषी लोग तमिल, तेलगू और बंगला आदि भाषाओं को जानते हैं ।

मैंने अमेरिका प्रस्थान के पहले दिन से ही, लन्दन के हीथ्रो एयरपोर्ट से लेकर अमेरिका के बोस्टन शहर तक उनकी भाषाई सभ्यता पर गौर करना आरम्भ कर दिया था । ” मेरा तुलनात्मक अध्ययन चल रहा था , सोच रही थी क्या अंग्रेजी अधिक व्यवस्थित भाषा है ? किन्तु लग रहा था – अंग्रेजी हिन्दी से कम व्यवस्थित है । हिन्दी में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है जब की अंग्रेजी में नहीं।” इन्होंने लिखा, ” हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान है प्रवासी भारतीयों के दिल में। और जब हम स्वयं हमारे राष्ट्र और भाषा के गौरव एवं सम्मान से आश्वस्त होंगें, हिन्दी को अंग्रेजी से श्रेष्ठ समझेंगे तभी हम विदेशियों के मन में भी भारत, भारतीयों तथा हिन्दी के प्रति समानता, आदर तथा सम्मान का भाव पैदा कर सकेंगे । फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश में अमिताभ बच्चन का वह डायलॉग याद आ रहा है – बेशक, बेझिझक और बिंदास हिन्दी बोलिये। और भी बहुत से अनुभव इन्होंने अपने इस संस्मरण में लिखे हैं।

परिचय :
जीवन में संवेदनशील पारखी सृजनकार के रूप में विगत अर्द्ध शताब्दी से अधिक समय से लेखन में रत रचनाकार डॉ.वीना अग्रवाल का जन्म 6 दिसम्बर 1949 ग्राम उत्तरप्रदेश में इलाहबाद के ग्राम जुनिया में पिता ओम प्रकाश गर्ग एवं माता चन्द्रकांता गर्ग के आंगन में हुआ। आपका विवाह कोटा के लीलाधर अग्रवाल (एडवोकेट) के साथ हुआ। साहित्य सृजन के क्षेत्र में आपको विभिन्न प्रतियोगिताओं और सृजन के लिए विविध संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित किया गया। आपको प्रमुख रूप से ‘साहित्य श्री’ सम्मान,”सलिला साहित्य रत्न”,”शब्द शिल्पी” सम्मान के साथ – साथ “अमृता प्रीतम नेशनल पोइट्री अवार्ड एवं पोइट्री क्वीन अवार्ड” से सम्मानित किया गया है।
चलते – चलते इनकी देशभक्ति पूर्ण रचना के कुछ अंश………
हिन्दी वतन की आत्मा है, हिन्द की पहचान है।
हिन्दी हमारा स्वर मुखर, हिन्दी हमारा गान है।।
माता है ये, ममता है ये, ये एकता समता यही,
गीता है ये, ये रामधुन, भागीरथी सरिता यही ।
ये तो हमारी वेदना, ये तो हमारा प्राण है,
हिन्दी हमारा स्वर मुखर हिन्दी हमारा गान है ।। सब रंग इसमें देश भाषाओं के शामिल हो गए,
ये है रंगोली, देश के घर द्वार इससे सज गए ।इसको नमन जन-जन करें, ये तो हमारी शान है।




कोटा के साहित्यकार जितेन्द्र ‘ निर्मोही ‘ को अमराव देवी पहाड़िया स्मृति राजस्थानी गद्य पुरस्कार

कोटा/ राजस्थान में कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र ‘ निर्मोही ‘ को “अमराव देवी पहाड़िया स्मृति राजस्थानी गद्य पुरस्कार 2024 ” से रविवार 9 जून को डेह नागौर में सम्मानित किया गया। इनको सम्मान स्वरूप ग्यारह हजार रुपए नकद, शाल,श्रीफल सम्मान पत्र दिया जाकर समादृत किया गया। इनके साथ ही हाड़ौती अंचल से सी. एल. सांखला, हरिचरण अहरवाल को पुरस्कृत कर समादृत किया गया।

समारोह की मुख्य अतिथि मंजु बाघमार राज्य सरकार थी। पुलिस सेवा विमर्श राजस्थान सरकार अध्यक्ष एच. के. कुडी थे। मंच पर लक्ष्मण दान कविया, कार्यक्रम संयोजक पवन पहाडिया विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर जहूर खां मेहर उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. गजानन चारण द्वारा किया गया।

उल्लेखनीय है कि जितेंद्र ‘ निर्मोही ‘ ने न केवल साहित्य की विभिन्न विधाओं में विगत कई वर्षों से लेखन कर साहित्य जगत में स्वयं को स्थापित किया वरन आज अनेक साहित्यकार इनके मार्ग दर्शन की वजह से साहित्य के क्षेत्र में हैं और सृजन कर रहे हैं। इनके साहित्य पर कई शोध हो चुके हैं और वर्तमान में भी हो रहे हैं। इनकी प्रेरणा से साहित्य में कई नए प्रयोगात्मक लेखन कार्य हो रहे हैं। इनके समाजोपयोगी सृजन के लिए देश की अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आज हाड़ोती के साहित्य जगत की ये अनमोल धरोहर हैं, कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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अब गांव भर की भौजाई जैसी हालत है मोदी जी की

भारतीय राजनीति के महाबली नरेंद्र दामोदर दास ने अभी शपथ भी नहीं ली है लेकिन उन पर चढ़ाई शुरू हो गई है। दुहरी-तिहरी चढ़ाई। क्या सहयोगी , क्या विपक्ष। हर कोई चढ़ाई पर आमादा है। आंख दिखा रहा है। आंख मिला रहा है। नरेंद्र मोदी की हालत गांव के उस ग़रीब की लुगाई जैसी हो गई है , जो अब गांव भर की भौजाई है। भौजाई की इस दुर्गति को देखते हुए एक सवाल पूछने का मन हो रहा है कि नरेंद्र मोदी की नई सरकार की आयु कितनी है ?

पूछना इस लिए लाजिम है कि दस बरस बाद सही भारत को मिलीजुली सरकार फिर मिल गई है। विशुद्ध मिलीजुली सरकार। गो कि हमारे मित्र और भोजपुरी के अमर गायक बालेश्वर एक समय गाते थे ‘दुश्मन मिलै सबेरे लेकिन मतलबी यार न मिले / हिटलरशाही मिले मगर मिली-जुली सरकार न मिले / मरदा एक ही मिलै हिजड़ा कई हजार न मिलै।’ यहीं दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आता है :

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए

तो चार सौ सीट का सपना था। लक्ष्य था। कहां-कहां , कब और कैसे यह टूटा। राजनीतिक पंडित लोग लोग गुणा-भाग में लगे हुए हैं। पक्ष भी विपक्ष भी। घमासान मचा हुआ है। विपक्ष का भी सपना टूटा है। दुष्यंत फिर याद आ गए हैं : शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। लेकिन बुनियाद तो हिली नहीं। लक्ष्य तो नरेंद्र मोदी को हटाना था। हटा नहीं मोदी। चाहे जैसे भी हो नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधान मंत्री बन गए हैं। मनो बुनियाद बच गई है।

सांप-सीढ़ी का खेल बन कर रह गई है राजनीति। राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। पर भाजपा लोकसभा के इस सत्र में बहुमत के 272 के जादुई आंकड़े को अब किसी सूरत नहीं छू सकती। छोटी पार्टियां भाजपा में विलय करने से रहीं। हां , नीतीश और नायडू की ब्लैकमेलिंग का घनत्व कम करने के कुछ उपाय अवश्य संभव हैं। होंगे भी देर-सवेर। जैसे कि इंडिया गठबंधन के कुछ धड़ों को तोड़फोड़ कर एन डी ए परिवार को बढ़ा कर बड़ा करना। लेकिन यह भी टेम्परेरी इंतज़ाम है। 272 का जादुई आंकड़ा न होने से बड़े-बड़े काम का जो वादा , डंका बजा कर महाबली कर चुके हैं , उन का क्या होगा। समय-बेसमय चौआ , छक्का मारने की जो आदत है , जो धुन और सनक है , उस का क्या होगा। क्या होगा उन तमाम सुधारों का , विकास कार्यों का , इंफ्रास्ट्रक्चर का , जो अपेक्षित हैं। एन आर सी , जनसंख्या नियंत्रण , मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म करने का वायदा क्या पूरा होगा ? वन नेशन , वन इलेक्शन का क्या होगा ?

अभी और अभी तो मदारी की रस्सी बंध चुकी है महाबली नरेंद्र दामोदर दास मोदी के लिए। देखना दिलचस्प होगा कि महाबली मदारी की भूमिका में इस रस्सी पर कैसे और कितनी देर चल सकते हैं। धराशाई होते हैं या अटल बिहारी वाजपेयी की तरह संतुलन बना कर पांच बरस निकाल लेते हैं। क्यों कि सरकार अभी बनी नहीं और नीतीश कुमार के के सी त्यागी अग्निवीर का त्याग खुल कर मांग रहे हैं। इशारों में कई और सारी लगाम लगा रहे हैं। विशेष दर्जा बिहार को भी चाहिए और आंध्र को भी।

यह लगाम तोड़ पाएंगे , महाबली ?
तिस पर 12 सांसद पर आधा दर्जन मंत्री पद की फरमाइश। उस में भी रेल सहित तमाम मलाईदार विभाग। उधर चंद्रा बाबू , चंद खिलौना लैहों पर आमादा हैं।

16 सांसद पर आधा दर्जन मलाईदार विभाग वाले मंत्री पद और लोकसभा अध्यक्ष के पद की फरमाइश। जीतन राम माझी , अठावले जैसे एक-एक सीट वाले भी हौसला बांधे हुए हैं। अगर यह ख़बरें सच हैं तो महाबली का बल तो सारा छिन जाएगा। गृह , वित्त , रक्षा , कृषि ,परिवहन , रेल आदि तो महाबली किसी सहयोगी को देने से रहे। न लोकसभा अध्यक्ष पद। तमाम सुधार अपेक्षित हैं इन हलकों में। फिर इन सहयोगियों पर सारे सपने न्यौछावर हो जाएंगे तो मोदी के अपने भाजपाई सिपहसालार क्या करेंगे ?

लोकसभा का सत्र शुरू नहीं हुआ है , कांग्रेस के मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने शेयर की उछल-कूद पर जे पी सी की फरमाइश कर दी है। मतलब महफ़िल सजी नहीं और मुजरे पर मुजरे की फरमाइश शुरू !

सूर्योदय हुआ नहीं , सुबह हुई नहीं कि गरीब की लुगाई यानी गांव भर की भौजाई की सांसत शुरू।

गांव में मैं ने देखा है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद गरीब की लुगाई यानी गांव भर की भौजाई भी लेकिन सम्मान सहित जीने की जुगत लगा लेती है। गरीबी में अपना आन और अना बचा कर रख लेती है। सारे शोहदों की सनक शांति से उतार कर अपना शील बचा लेती है। फिर यह महाबली नरेंद्र दामोदर दास मोदी तो इवेंट मैनेजर ठहरे। डिप्लोमेट ठहरे। अहमदाबादी व्यापारी ठहरे।

कांग्रेस के मोहम्मद बिन तुग़लक़ से तो निपटना आसान है। वह तो बैटरी वाला खिलौना हैं। जितनी चाभी भरी वामियों ने उतना चले खिलौना वाली बात है। लेकिन यह सुशासन बाबू और नायडू बाबू की ब्लैकमेलिंग ? यह तो मुंबई में मुसलसल बरसात की तरह जारी रहने वाली है। यह फरमाइश पूरी तो वह फरमाइश। 272 का जादुई आंकड़ा होता तो यही लोग समर्पित सहयोगी होते। पर जैसे रखैलें होती हैं न , न जीने देती हैं , न मरने देती हैं। सुकून भर सांस नहीं लेने देतीं। बहुमत न होने पर सहयोगी पार्टियां सत्ता के सरदार के साथ वही सुलूक़ करने की सनक पर सवार रहती हैं।

एक समय नरसिंहा राव तो बिना किसी सहयोगी दल के अल्पमत की सरकार बड़े ठाट से पांच साल चला ले गए थे। लेकिन चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, गुजराल, मनमोहन सिंह हर किसी सरकार की यही कहानी रही है। सहयोगी डिक्टेट करते रहे। पैरों में बेड़ियां डाले रहते।

370 , राम मंदिर आदि तमाम सवाल पर अटल बिहारी वाजपेयी तो अकसर लाचार हो कर कहते रहते थे कि हमारी बहुमत की सरकार नहीं है , मिलीजुली सरकार है , क्या करें !

मनमोहन सिंह सरकार के सहयोगी दलों ने तो जम कर भ्रष्टाचार और अनाचार किए। पर मनमोहन सिंह तो मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं। में ही दस बरस बिता ले गए। शेष लोग भी थोड़ा-थोड़ा। मनमोहन सिंह के लिए तो एक बड़ी आफत सोनिया गांधी भी थीं। सुपर प्राइम मिनिस्टर थीं। कोई राष्ट्राध्यक्ष आए तो सोनिया गांधी ही आगे बढ़ कर हाथ मिलाती थीं। स्वागत करती थीं। मनमोहन सिंह निठल्लों की तरह कठपुतली बने सोनिया गांधी के पीछे खड़े रहते थे। लोग मजा लेते हुए कहते फिरते थे कि मनमोहन सरकार इतनी अमीर सरकार है कि हाथ मिलाने के लिए भी एक रख रखा है।

हां , देवगौड़ा ज़रूर एक बार जब बहुत परेशान हुए लालू प्रसाद यादव जैसे सहयोगी की ब्लैकमेलिंग से तो चारा घोटाले में लालू को बांध कर दुरुस्त कर दिया। सी बी आई इंक्वायरी करवा कर उन्हें रगड़ दिया। लालू अब इसी चारा घोटाले में बाक़ायदा सज़ायाफ्ता हैं। भूसी छूट गई है लालू प्रसाद यादव की। बीमारी के बहाने जेल से बाहर हैं। पर कब तक ?

नीतीश कुमार पर तो कोई कुछ नहीं कर सकता। पलटी वह चाहे जितनी मारें , जैसे और जब मारें , भ्रष्टाचार का कोई दाग़ , कोई छींटा उन पर नहीं है। नायडू पर जांच की तलवार ज़रूर है।

कई सारी कहानियां , कई सारे दृष्टांत हैं मिलीजुली सरकारों के। बीते दस बरस नरेंद्र मोदी ने भी मिलीजुली सरकार चलाई है। पर भाजपा अकेले स्पष्ट बहुमत में थी सो मोदी महाबली बन कर उपस्थित हुए। पर अब महाबली के पंख कट गए हैं। गगन को गाना कठिन हो गया है। 32 सीट कम पा कर ग़रीब की लुगाई बन गांव भर की भौजाई बने नरेंद्र दामोदर दास मोदी की यह कड़ी परीक्षा की घड़ी है। उन की तानाशाह की छवि अब चूर-चूर है। यह वही आदमी है जो एक सांस में किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्री बदल देता रहा है और पार्टी में कोई चूं नहीं बोल पाता था। समूचा प्रदेश जीत कर आए लोगों को घर बैठा देता था। केंद्र में , प्रदेश में ताश की तरह मंत्रिमंडल फेट देता था। अमरीका को चिढ़ा कर रूस से तेल ले लेता रहा है। अमरीका और चीन जैसे महाबलियों को पानी पिलाने वाला महाबली , इजराइल और फिलिस्तीन को एक साथ चाहने वाला मोदी , पाकिस्तान को घुटने के बल खड़ा कर कटोरा थमा देने वाले विश्व नेता को घर में ही घात मार कर लोगों ने रगड़ दिया है। कंबल ओढ़ा कर।

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने वाला मोदी अयोध्या में ही मात खा गया है। देश में विकास की चहुंमुखी चांदनी खिलाने वाला , गरीबों के लिए बेशुमार कल्याणकारी योजनाएं फलीभूत करने वाला मोदी अब ख़ुद बहुत ग़रीब हो गया है। इन गरीबों का ही श्राप लग गया है। काशी में हज़ारो करोड़ की विकास योजना लाने वाला मोदी ख़ुद हारते-हारते बमुश्किल बचा है।

ऐसे में क़ायदे से झोला उठा कर चल देना चाहिए था। अपमान का यह घूंट पीने से बेहतर था झोला उठा कर चल देना। जाने क्यों सहयोगी दलों का विष पीने को आतुर है यह महाबली। लगता है देश सेवा और देश को दुनिया के नक्शे में नंबर वन बनाने का नशा टूटा नहीं है अभी। बहुत मुमकिन है जल्दी है टूटे। अपमान कथा अभी शायद पूरी नहीं हुई है। हो सकता है जल्दी ही पूरी हो। क्यों कि इस देश के चुनाव के चक्के को विकास के आनबान शान की बयार नहीं , जाति की धरती , आरक्षण की हवा और मुसलमान का आसमान चाहिए।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं)




कमला झरिया: जिसके गाए गीत मुंबई से लेकर पेशावर और ढाका तक गूंजते थे

कमला झरिया का असली नाम कमला सिन्हा था। कमला झरिया भारत की कोयला राजधानी धनबाद की “कोकिला” कमला झरिया एक ऐसी महान और मशहूर शख्सियत जिनके गाने मुंबई से लेकर दिल्ली कोलकाता से ढाका तथा पेशावर से लेकर काबुल कंधार तक सुनी जाती थी। आज उन्हें लगभग भुला दिया गया है लेकिन वे हमारे धनबाद के रत्न थे।

कमला झरिया का जन्म 1906 में ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसीडेंसी में तत्कालीन मानभूम जिला के झरिया राज परिवार में एक कर्मचारी के घर हुआ था तथा राज दरबार में ही अपने परिवार के साथ रहती थी। कमला झरिया का असली नाम कमला सिन्हा था तथा वह जन्म से बंगाली थी। श्री के. मल्लिक (असली नाम कमाल मलिक था) जो उस समय एक बहुत लोकप्रिय ग्रामोफोन गायक थी, को महाराजा शिव प्रसाद अपने शादी के अवसर पर दरबार में गाने के लिए महल में आमंत्रित किया गया था। महाराजा के. मल्लिक के प्रदर्शन से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उन्हें झरिया में दरबारी गायक नियुक्त कर दिया।

झरिया महाराज के परिवार बांग्ला भाषी थे तथा वह बांग्ला संगीत प्रेमी थे। के मल्लिक को कुछ समय के लिए झरिया में रुकना पड़ा, इस दौरान उन्होंने कमला की संगीत प्रतिभा की खोज की और उसे कलकत्ता ले आए और एचएमवी अधिकारियों से उसका परिचय कराया। कमला ने एचएमवी के लिए चार गाने रिकॉर्ड किए और झरिया वापस चली गईं। उन्हें केवल चार गानों के लिए पैंसठ रुपये का भुगतान किया गया था। उनका पहला प्रकाशित रिकॉर्ड एक रेड लेबल वन था, जिसका नंबर 1930 में एन 3137 था। गाने थे ए) प्रिया जेनो प्रेम भूलो ना, एक ग़ज़ल और बी) निथुर नयन बाण केनो हनो, एक दादरा।

दोनों गानों के गीतकार _धीरेन दास_ थे। अधिकारियों को कलाकार का नाम रखने में कुछ दिक्कत हुई. वे उसका नाम तो जानते थे लेकिन उपनाम नहीं। वे उन्हें मिस कमला के रूप में श्रेय नहीं दे सके क्योंकि उसी नाम की एक गायिका पहले से ही मौजूद थी। अंततः उनके तत्कालीन निवास स्थान को ध्यान में रखते हुए उनकी पहचान मिस कमला (झरिया) के रूप में करने का निर्णय लिया गया और इस तरह उनके शानदार संगीत करियर की शुरुआत हुई।

संगीत में उनका औपचारिक प्रशिक्षण ठुमरी, ग़ज़ल और भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए उजीर खान जैसे दिग्गजों से हुआ था। जमीरुद्दीन खान, के. मल्लिक, श्री सतीश घोष और श्रीनाथ दास नंदी, जिनके साथ उन्होंने औपचारिक रूप से नारा बंधन प्रस्तुत किया और बन गईं नियमित विद्यार्थी. बाद में, वह काजी नजरूल इस्लाम और तुलसी लाहिड़ी के संपर्क में आईं, जो एक फिल्म निर्देशक, निर्माता, गीतकार और संगीत निर्देशक थे, वास्तव में वह एक बहुत ही रंगीन व्यक्तित्व थे और उनकी प्रतिभा व्यापक क्षेत्र में फैली हुई थी।

बाद में, कमला झारिया अपने निजी जीवन में तुलसी लाहिड़ी के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ गईं और उनकी पत्नी के रूप में उनके साथ रहने लगीं। कमला एचएमवी और सहयोगी कंपनी ट्विन रिकॉर्ड्स की नियमित कलाकार बन गईं, हालांकि बाद में उन्हें अपने गुरु तुलसी लाहिड़ी के साथ मेगाफोन कंपनी में स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन यह एचएमवी और मेगाफोन के बीच पूरी तरह से व्यावसायिक व्यवस्था का हिस्सा था। पायनियर, सेनोला, कोलंबिया जैसी अन्य रिकॉर्डिंग कंपनियों ने भी उनके गाने प्रकाशित किए।

वह 1933 में फिल्मों से जुड़ीं और उनकी पहली बंगाली फिल्म जमुना पुलिनी (1933) थी।, जो _अंगुरबाला_ और _इंदुबाला अभिनेत्री कन्होपात्रा (1937)_ की भी पहली ध्वनि फिल्में बनीं। वह बंगाली के अलावा हिंदी, उर्दू, मराठी, पंजाबी, गुजराती और कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाती थीं और उस दौर में कोई भी कलाकार इतनी अलग-अलग भाषाओं में नहीं गाता था, जो उनकी अखिल भारतीय स्थिति और लोकप्रियता को बताता है।

उनकी महान उपलब्धियों में से एक कीर्तन और रामप्रसादी जैसे बंगाली भक्ति गीत थे। कटारा राधिका देखिया अधिका, मां होवा की मुखर कथा, कनु कहे रै कहिते डराई (चंडीदास) जैसे गाने आज भी याद किए जाते हैं। उन्होंने मंत्र शक्ति (1935) , ठीकदार (1940), सोनार संगसार (1936), बिजोयिनी (1941), बंगाली (1936) , तरुबाला (1936) , नाइट बर्ड (1934) , सौतेली माँ (1935) जैसी फिल्मों में अभिनय किया। ), देवजानी (1939) , पाताल पुरी (1935) , मस्तुतो भाई (1934) , ब्लड फ्यूड्स (1931) और अन्य फिल्में। एक पार्श्व कलाकार के रूप में उन्होंने मोधु बोस द्वारा निर्देशित उर्दू फिल्म सेलिमा (1935) में नायिका माधवी के लिए अपनी आवाज दी।

उनका गायन करियर तीन दशकों से अधिक समय तक फैला रहा। कमला एक गायिका के रूप में ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना के समय से ही उससे जुड़ी हुई थीं। 1976 में, द ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया ने उन्हें जीवन भर की उपलब्धि के प्रतीक के रूप में गोल्ड डिस्क से सम्मानित किया। वह अपने करियर की शुरुआत से ही रेडियो से जुड़ी हुई थीं और उन्होंने विभिन्न देशी राजकुमारों के दरबार में गाते हुए पूरे भारत में कई दौरे भी किए। 1977 में, ऑल इंडिया रेडियो की स्वर्ण जयंती के जश्न के दौरान, उन्हें उन जीवित कलाकारों में से एक के रूप में सम्मानित किया गया, जिन्होंने ऑल इंडिया रेडियो की शुरुआत से ही हिस्सा लिया था।

तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी उपस्थिति से इस अवसर की शोभा बढ़ाई। वह बहुत अस्वस्थ थीं और उन्हें मंच पर दो अनुरक्षकों की मदद लेनी पड़ी। _अंगुरबाला_ भी उपस्थित थीं और उन्होंने वही गीत प्रस्तुत किया जो उन्होंने रेडियो कंपनी के प्रसारण के पहले दिन किया था। यह कमला की आखिरी सार्वजनिक उपस्थिति थी। तिकड़ी में से तीसरी, इंदुबाला उस समय इतनी बीमार थी कि वह इसमें शामिल नहीं हो सकी। 1972 में तीनों के जीवन और उपलब्धियों पर “तीन कन्या” नामक एक वृत्तचित्र बनाया गया था और फिल्म की स्क्रीनिंग के पहले दिन तीनों कलाकार उपस्थित थे।

इस अवसर पर उपस्थित लोगों में सत्यजीत रे और ऋत्विक घटक भी शामिल थे। कमला झारिया लंबे समय तक क्रोनिक अस्थमा से पीड़ित रहीं और 20 दिसंबर, 1979 को उनका निधन हो गया। इस तरह एक युग का अंत हो गया। वर्तमान में हमारे मानभूम के धनबाद तथा चास चंदनक्यारी अपना मूल बांग्ला संस्कृति तथा बांग्ला भाषा धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं तथा बाहरी भाषा धीरे-धीरे हाबी होते जा रहा है। हमें हमारे पुराने प्रतिष्ठा को पाने के लिए प्रयास करना होगा तथा हमारी भाषा और संस्कृति को बचाए रखना होगा।

साभार https://www.facebook.com/share/3wWgstvjf2q8tA2r/?mibextid=xfxF2i
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कई बंगलों के मालिक भारत भूषण का आखरी समय एक चाल में बीता

भारत भूषण 1950 के दशक के सुपरसितारों में भारत भूषण अव्वल थे. कई लोग उन्हें अपने समय के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में गिनते थे. वह रोमांटिक हीरो थे और उनके प्रशंसकों की संख्या करोड़ों में थी. राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार जैसे सुपरस्टार्स की मौजूदगी में भारत भूषण ने अपनी अलग पहचान बनाई।

उन्होंने अपने करियर में 30 से अधिक फिल्मों में काम किया और बैजू बावरा (1952), आनंद मठ (1952), मिर्जा गालिब (1954) और मुड़ मुड़ के ना देख (1960) जैसी हिट फिल्में दीं. लेकिन फिल्म निर्माता बनने की जिद और जुए की गलत आदत ने उन्हें बर्बाद कर दिया. अपने समय के सबसे अमीर अभिनेताओं में से एक होने के बावजूद, उन्होंने फिल्म निर्माण और जुए में मेहनत की गाढ़ी कमाई गंवा दी. बेहद गरीबी में उनकी मृत्यु हुई.

भारत भूषण 1920 में उत्तर प्रदेश के मेरठ में थे और अलीगढ़ में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिनय में हाथ आजमाने के लिए मुंबई आए. भारत भूषण ने 1941 में चित्रलेखा के साथ अपनी शुरुआत की. उनकी पहली हिट मीना कुमारी के साथ बैजू बावरा थी. इसके बाद उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु (1954) और बरसात की रात (1960) जैसी हिट फिल्मों में अभिनय किया।

बैजू बावरा ने भारत भूषण को घर-घर में मशहूर कर दिया. संजय लीला भंसाली आज इसी बैजू बावरा की कहानी पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. इस कहानी में भारत भूषण ने बैजू नाम केऐसे संगीतकार की भूमिका निभाई जिसने संगीत सम्राट तानसेन को चुनौती दी थी. भारत भूषण ने अपने समय की लगभग सभी लोकप्रिय अभिनेत्रियों के साथ काम किया. जिनमें गीता बाली (सुहाग रात), निरूपा रॉय (औरत तेरी यही कहानी), नरगिस (सागर) और मधुबाला (फागुन) शामिल हैं.

भारत भूषण बैजू बावरा के बाद मिली भारी सफलता संभाल नहीं सके. उन्होंने अपने भाई के साथ प्रोडक्शन में उतरने का फैसला किया और बड़ा घाटा उठाया. वह दिवालिया हो गए. एक समय भारत भूषण मुंबई में कई बंगलों के मालिक थे. शानदार कारों में घूमते थे. लेकिन निर्माता बनने का फैसला गलत साबित हुआ. वह जुए में भी काफी पैसा और प्रॉपर्टी हार गए. कर्ज चुकाने के लिए भारत भूषण ने अपनी अधिकांश संपत्ति बेच दी और एक चाल में रहने लगे. बाद के दौर में अपना गुजारा चलाने के लिए उन्होंने कुछ फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के रूप में भी काम किया. आखिरकार 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की आयु में अत्यंत गरीबी में उनकी मृत्यु हो गई.

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हमें मेहनतकश गरीब आदमी और उसकी मजबूरी नहीं दिखती

दिल्ली नोएडा मुंबई में नौकरी करने वाले आज भी 80% लोग यूपी बिहार के छोटे गांव से आने वाले हैं, ये जब गांव में रहते हैं तो लोगो से मिलना सहायता करना ये सब बड़ी शान के साथ करते हैं लेकिन यही लोग जब दिल्ली नोएडा में 20 माजिल घर में 15 हजार के फ्लैट में रहने लगते हैं तो ये बाबू साहब बन जाते हैं
नीचे एक बुजुर्ग नेहरू प्लेस के बेहद बिजी बाजार में बैठे हैं 2 3 घंटे होने के बाद भी एक रुपए की बोहनी नही होती।

वहीं इसके बाहर विदेशी दुकान मैकडोनाल्ड kfc में लोग लाइन लगा कर इंतजार कर रहे हैं की जल्दी दुकान खुले और कुछ खाया जाए
ये दादा ताजा नारियल की गिरी बेच रहे हैं और एक गिरी की कीमत मुश्किल से 10 रुपए है
हद तो तब हो जाती है, जब एक महिला KFC से अपने 2 बच्चो के साथ निकलती है और हाथ में 2 कोलड्रिंक ली होती है

उनका एक बच्चा बोलता है इसे लेने को तो वो बोलती हैं नो नो इट्स डर्टी दादा बिचारे सोचते हैं की तारीफ हो रही है और बड़े ही प्रेम और आस से एक नारियल की गिरी उसके आगे करते हैं लेकिन वो महिला को ये गंदा लगता है
उसी के बाद 2 3 लड़कियों का ग्रुप स्टारबक्स से 2 3 हजार रुपए की काफी पीकर बाहर आता है, उनमें से एक लड़की हाथ में आईफोन 15 लेकर आती है और पूछती है अंकल कितने का है… दादा फिर से नारियल उठाते हैं और बोलते हैं 10 रुपए का एक फिर लड़की बोलती है ओह इट्स टू मच इतनी छोटे से टुकड़े का 10 रूपर अच्छा चलो आप 10 के 2 देदो तो मैं लेलूँ

चूँकि बोहनी का मामला था इस लिए दादा में 10 के 2 दे दिए।

अब जरा सोचिए गांव से निकले लोग जिनके मां बाप ने कड़ी मेहनत से पाई पाई जोड़ कर आपको बाहर भेजते हैं। और आप वहां जाकर बड़े बड़े रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं साथ से जीएसटी और 2 3 तरह के टैक्स, साथ में टिप देकर अपने को कूल समझते हैं, लेकिन यदि कोई बेसहारा गरीब मिल जाए जो की अपने पेट को भरने के लिए 10 रुपए का समान बेचे तो ये उन्हे लुटेरे लगते हैं

कुछ महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें रेस्टोरेंट का सड़ा खाना जिसे वो देख भी नही रही हाईजनिक लगता है, लेकिन कोई गरीब अपने हाथ से छू कर कुछ ताजा समान दे तो वो अनहिजिनिक हो जाता है।

पता नही किस ढोंग में जी रहे हैं लोग
साभार
https://www.facebook.com/share/p/vtL5xhZCuTiDRMNZ/?mibextid=xfxF2i  से




बस्ती में बीजेपी के हरीश द्विवेदी की उपलब्धियां और उनके चुनाव हारने के कारण

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के तेलिया जोत (कटया) निवासी श्री हरीश द्विवेदी का जन्म 22 अक्टूबर 1973 को एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ है। उनके पिता श्री साधुशरण दुबे माता यशोदा देवी रहीं। पिता जी
किसान इंटर कालेज मरहा बस्ती में शिक्षक रहे है। 2006 में, उन्होंने विनीता द्विवेदी से विवाह किया, उनके एक बेटा और एक बेटी है 1991 से 1994 तक वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिला प्रमुख रहे है।हरीश द्विवेदी के जुझारू तेवर ही उनको हर किसी से अलग करते हैं।

आरएसएस की शाखा में 1990-91 में मुख्य शिक्षक के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले हरीश ने उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षा दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्व विद्यालय से की है। वह 1996 तक प्रदेश सहमंत्री रहे है। बाद में वह अभाविप के विभाग संगठन मंत्री बने।1999 से 2003 तक प्रयाग में संभाग संगठन मंत्री रहे है । 2004 से 2007 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी के राजनीतिक सलाहकार रहे है। इस दौरान वह 2005 से 2007 तक भाजयुमो के प्रदेश महामंत्री भी रहे। 2007 से 2010 तक भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे।

वह 2010 से 2013 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा उत्तर प्रदेश इकाई के भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभाला। उन्होंने भाजयुमो द्वारा सक्रिय रूप से तिरंगे यात्रा में भाग लिया था अनुराग ठाकुर और उन्हें अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ पठानकोट में हिरासत में लिया गया था । 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बस्ती सदर विधान सभा क्षेत्र से टिकट मिला। लगभग 34 हजार वोट पाते हुए तीसरे स्थान पर असफल रहे । 2013 से अब तक वह भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं। श्री हरीश द्विवेदी 43 वर्ष में सांसद का चुनाव लड़ा था।

उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के एक सदस्य के रूप में 2014 के चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की बस्ती सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए। 3.58 लाख वोट हासिल करते हुए वह चुनाव जीत गए। सपा उम्मीदवार बृज किशोर सिंह “डिंपल” दूसरे व बसपा उम्मीदवार राम प्रसाद चौधरी तीसरे स्थान पर रहे।

2019 भारतीय आम चुनाव में , वे बस्ती (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से लगातार दूसरी बार संसद सदस्य चुने गए। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार राम प्रसाद चौधरी को 30,354 (2.88%) मतों के अंतर से हराया। वे वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं ।

वह संसद में वित्त एवं ऊर्जा विभाग के स्टैडिंग कमेटी के सदस्य रहे हैं। संसद में उनका कामकाज औसत रहा है। पिछले 5 सालों के दौरान हरीश द्विवेदी का संसद में उपस्थिति 86 फीसदी रहा है, जबकि राष्ट्रीय औसत 80 फीसदी का है, जबकि राज्य औसत 86 फीसदी का है। वहीं उन्होंने महज 34 बहसों में हिस्सा लिया।

जबकि राष्ट्रीय औसत 67.1 फीसदी है, जबकि राज्य औसत 109 का है। अपने कार्यकाल के दौरान सांसद हरीश द्विवेदी ने सदन में 328 सवाल पूछे। जोकि राष्ट्रीय औसत 293 और राज्य औसत 198 से कहीं अधिक है। हालांकि, पूरे कार्यकाल के दौरान कोई भी प्राइवेट बिल सदन में पेश नहीं किया, जिसका राष्ट्रीय औसत 2.3 और राज्य औसत 1.8 है।

पहले के मुकाबले बस्ती का रेलवे स्टेशन बहुत बेहतर हो गया है, सड़के अच्छी हो गई हैं, लेकिन शहर गंदगी की मार झेल रही है। वैसे तो देश में स्वच्छ भारत अभियान जोरों से चलाया गया, लेकिन बस्ती में उनका कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला। मुंडेरवा में काम तो हुआ है लेकिन रोजगार के कुछ हुआ है, मुंडेरवा चीनी मिल शुरु है, लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार कम मिला है।

सांसद का कामकाज अच्छा है, लेकिन उन्हें और सुधार करने की जरुरत है । पिछले पांच साल में जिले में मेडिकल कॉलेज का निर्माण और बंद पड़ी मुंडेरवा चीनी मिल को चलाने बड़ा प्रॉजेक्ट आ चुकी है। उन्होंने राम जानकी मार्ग ,बस्ती अंबेडकर नगर मार्ग को राष्ट्रीय राज मार्ग का दर्जा दिलवाया।बस्ती को रिंग रोड की सौगात दिलवाई। मनवर गंगा एक्सप्रेस ट्रेन चलवाई। कई और ट्रेन चलवाए और उनके स्टॉपेज बढ़वाए। स्वच्छ भारत अभियान , मुख्य मंत्री सामूहिक विवाह योजना ,निःशुल्क बोरिंग योजना ,अम्बेडकर विशेष रोजगार योजना ,मुख्यमंत्री सामग्र ग्राम विकास योजना तथा प्रधान मंत्री आवास योजना- ग्रामीण
,गैस कनेक्शन,कन्या विद्याधन, प्रधान मंत्री आयुष्मान योजना आदि अनेक जन योजनाओं को आम जनता को दिलवाया। साथ ही भोखरी में लगभग 1000 करोड़ रुपये की धनराशि से विद्युत केन्द्र का निर्माण कार्य कराया और
लगभग 6000 गांवों/मजरों का विद्युतीकरण कराया।

अन्य प्रमुख सहभागिता कार्य :-
(2014-वर्तमान)- सदस्य, ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति ।
(2014-2019)- सदस्य, परामर्शदात्री समिति, कोयला मंत्रालय ।
(2016-2018)- सदस्य, सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति।
(2018-2019)- सदस्य, वित्त संबंधी स्थायी समिति ।
(2019-वर्तमान)- सदस्य, 17वीं लोकसभा (दूसरा कार्यकाल)। वे अध्यक्ष, याचिका समिति (लोकसभा)।
सदस्य, परामर्शदात्री समिति, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तथाअनुमान समिति के सदस्य के रूप में भी अपनी सहभागिता निभाते रहे। संगठन में राष्ट्रीय मंत्री के रूप में बिहार और पश्चिम बंगाल का दायित्व भी निभाया है।

2024 के (61लोकसभा चुनाव :-

इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में प्रीतिकूल परिणाम का सामना करना पड़ा है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के आम चुनाव में 80 में से 33 तथा सपा को 37 सीटें मिली हैं। 6 सीट कांग्रेस को मिली है। राष्ट्रीय लोकदल को 2 सीट, अपना दल (एस) को एक तथा आजाद समाज पार्टी को एक सीट मिली है।

उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट बनी फैजाबाद-अयोध्या लोकसभा सीट तथा उससे लगे हुए अंबेडकर नगर, बस्ती, खलीलाबाद, सुलतानपुर, अमेठी व रायबरेली आदि पर भी भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। यूपी के सियासी मैदान में अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ आए।

इसके कारणों और परिस्थितियों पर एक बार विहंगम दृष्टि डालना अनुचित ना होगा। बस्ती 61वे लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के श्री राम प्रसाद चौधरी को 524756 वोट मिले उन्होंने बीजेपी के श्री हरीश द्विवेदी को लगभग एक। लाख मतों से हराया।श्री हरीश द्विवेदी को 423798 वोट मिले। बीएसपी के
120957 मत मिले ।

बीजेपी के हार का विश्लेषण
1 .केंद्रीकरण और मशीनीकरण :-
भाजपा के यूपी में खराब प्रदर्शन के कई कारण रहे। इसमें सत्ताधारी दल का अत्यधिक केंद्रीयकरण और मशीनीकरण भी शामिल है। काफी पहले टिकट घोषित करने का भाजपाई प्रयोग भी सफल नहीं हुआ। अलबत्ता भाजपा प्रत्याशियों के हिसाब से विपक्षी दलों ने अपने पूर्व घोषित चेहरों को बदल दिया। तमाम सीटों पर टिकट वितरण को लेकर भारी असंतोष दिखा, जिसका असर नतीजों तक दिखाई दिया। वहीं भाजपा की रीढ़ कहा जाने वाला आरएसएस इस चुनाव में पूरी तरह नदारद दिखा। इसका असर मतदान प्रतिशत पर साफ नजर आया।

2. कार्यकर्ताओं में मायूसी :-

2014 के बाद यह पहला चुनाव था, जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं में हद दर्जे की मायूसी दिखाई दी। प्रदेश संगठन के तमाम बार कहने के बावजूद कार्यकर्ताओं ने वोटरों को घरों से निकालने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। पार्टी के कई नेताओं ने दबी जुबान से कहा कि जब सारे फैसले दिल्ली से ही होने हैं तो फिर भीषण गर्मी में कार्यकर्ता ही जान की बाजी क्यों लगाए?

दरअसल बीते कुछ समय में भाजपा में तमाम छोटे-बड़े फैसले दिल्ली दरबार से ही होते रहे हैं। यहां तक कि जिलाध्यक्षों के बदलाव का फैसला भी दिल्ली की मुहर के बाद ही हो सका। एमएलसी से लेकर राज्यसभा चुनाव से जुड़े अधिकांश फैसलों में यूपी की भूमिका लगातार घटी है। पार्टी ने केंद्रीय स्तर से इतने अधिक अभियान और कार्यक्रम चलाए कि उससे कार्यकर्ताओं में खिन्नता का भाव आ गया। यही कारण है कि बूथ स्तर तक सर्वाधिक संगठनात्मक कवायद करने वाली भाजपा को इस बार तमाम सीटों पर बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

3. संघ की बेरुखी :-

भाजपा के उदय से अब तक माहौल बनाने से लेकर मतदान प्रतिशत बढ़ाने में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह शायद पहला चुनाव था, जिसमें पूरे प्रदेश में आरएसएस और उससे जुड़े अन्य संगठन बिल्कुल सक्रिय नहीं दिखे। असल में संगठन और सरकार से जुड़े तमाम फैसलों में संघ बड़ी भूमिका निभाता रहा है। फिर चाहे वो विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति हो या संगठन से लेकर निगमों, बोर्डों आदि में नियुक्तियां, टिकट वितरण में भी संघ की राय खासा महत्व रखती थी।

इस लोकसभा चुनाव से पहले तीन बार संघ और भाजपा की समन्वय बैठकें हुईं। पांच चरणों के चुनाव के बाद भी संघ के पदाधिकारियों के साथ सरकार और संगठन के चेहरों ने बैठक की। मगर बंद कमरों की इन बैठकों का कोई प्रभाव जमीन पर नहीं दिखा। इसका भी सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ा।

4. प्रत्याशियों का विरोध :-

भाजपा के बारे में 2014 से लगातार यह कहा जाता है कि कई तरह के सर्वे के बाद ही प्रत्याशियों का चयन किया जाता है। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। पार्टी नेतृत्व का अति आत्मविश्वास तब दिखाई दिया, जब भाजपा की 51 नामों वाली पहली सूची में ही कई ऐसे सांसदों को प्रत्याशी घोषित किया गया, जिनकी जमीनी रिपोर्ट बेहद खराब थी। शुरुआती दौर में कई सीटों पर प्रत्याशियों को मुखर विरोध भी झेलना पड़ा। इसका नतीजा यह रहा कि तमाम सीटों पर पार्टी के विधायक और स्थानीय संगठन ही पार्टी प्रत्याशी को निपटाने में लगे रहे। नतीजा यह हुआ कि मोदी मैजिक भी नैया पार न लगा सका।

अपनों से दूरी के चलते हारे हरीश द्विवेदी:-

अपनों से दूरी के चलते हरीश द्विवेदी को जीत की हैट-ट्रिक लगाने की बजाय हार का सामना करना पड़ा है। जिन्होंने पहले साथ रहकर उन पर भरोसा जताया था, उनसे रिश्ता टूटता गया । चुनाव में वह कहीं साथ नजर नहीं आए। जिन पर हरीश ने आंख मूंद कर भरोसा किया वे लोग समय के साथ कदम से कदम मिलाकर तो चलते रहे, लेकिन उनके दिल में उपजे जख्म पर मरहम लगाने में वह सफल नहीं हो पाए। यही कारण रहा कि वह बड़े अंतर से चुनाव हार गए।

हरीश द्विवेदी लगातार राजनीतिक व सामाजिक रूप से सक्रिय रहे। टिकट को लेकर भी जिले में कई वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई। पार्टी ने भी कुछ ऐसे फैसले लिए, जिससे जिले में भाजपा की टीम कमजोर हुई।
बस्‍ती में 2014-2019 के चुनाव में जो लोग हरीश से जुड़े थे वह इनकी अनदेखी के चलते नाराज हो गए और धीरे-धीरे दूरी बना ली । पार्टी ने भी कुछ ऐसे फैसले लिए जिससे जिले में भाजपा की टीम कमजोर हुई। हार का एक कारण भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र का विरोध में आ जाना रहा।

हरैया विधान सभा के विधायक श्री अजय सिंह बस्ती के एक मात्र भाजपा के विधायक थे।शेष चार विधायक पहले ही पराजित होने के कारण तटस्थ हो गए थे।एक मात्र विधायक की महत्वाकांक्षा अंदरूनी विरोध कर पार्टी को नुकसान पहुंचाया है। श्री अजय सिंह भाजपा के विधायक का असहयोग भी बड़ा कारण रहा है।

6,. पार्टी में शामिल लोगों का विरोध :-

आखिरी दौर में तमाम ऐसे लोगों को पार्टी में शामिल कराया गया, जिनका पार्टी के ही स्तर पर विरोध खुलकर सामने आया। हरीश द्विवेदी कार्यकर्ताओं व समर्थकों को मनाने के साथ दूसरे दलों से आए हुए नेताओं के सहयोग से समीकरण साधने में जुटे रहे, लेकिन वह अंदरखाने में अपने ही खिलाफ बिछाई जा रही बिसात को भांपने में सफल नहीं हो पाए। लोग आश्वासन व भरोसा देते रहे। कुछ पूर्व विधायकों व पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी विरोध किया। कुछ मंच पर दिखते थे तो कुछ मंच पर भी किनारा किए रहे। हार का एक कारण भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र का विरोध में आ जाना रहा।
पहले तो उन्हें बसपा ने अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन नामांकन के अंतिम दिन अचानक उनका टिकट कट गया। दयाशंकर मिश्र ने हरीश पर टिकट कटवाने का आरोप लगवाया।

7. आरक्षण और संविधान संशोधन को लेकर हमला:-

चुनाव प्रचार के दौरान सपा गठबंधन के प्रत्याशी लगातार आरक्षण और संविधान संशोधन को लेकर हमला बोलते रहे, लेकिन इसके जवाब में भाजपा प्रत्याशी समेत बड़े नेताओं ने चुप्पी साध ली, इसके चलते बसपा का बड़ा वोट बैंक सीधे सपा गठबंधन की तरफ शिफ्ट हो गया और भाजपा उन मतदाताओं को समझाने में सफल नहीं हो पाई, जो आरक्षण और संविधान संशोधन को लेकर आशंकित थे।

8. गोलबंदी और अंतर्कलह :-
.गोलबंदी और अंतर्कलह भाजपा के लिए दिन-ब-दिन भारी पड़ती गई। जैसे ही लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा, यहां पार्टी में खेमेबंदी शुरू हो गई। शुरू में लगा टिकट के लिए दावेदारी का दौर है। प्रत्याशी घोषित होने के बाद स्थिति ठीक हो जाएगी, लेकिन हुआ उलटा। पार्टी ने चेहरा बदलने के बजाय लगातार तीसरी बार सांसद हरीश द्विवेदी पर भरोसा जताया। इसी के बाद अंर्तद्वंद्व और तेज हो गया। भीतर ही भीतर अपने ही लोग जुदा होने लगे। इस बिखराव को अंत तक न तो संगठन रोकने में सफल हो पाया और न ही प्रत्याशी। 2019 के चुनाव के बाद जिले में भाजपा का दबदबा इस कदर हुआ कि लोकसभा से लेकर विधानसभा सीट तक विपक्षी कहीं काबिज नहीं हो पाए। पांच विधायक के साथ सांसद पद भी भाजपा की झोली में थी। मगर, इस स्वर्णिम अवसर को भाजपा सहेज नहीं पाई। उस समय तत्कालीन विधायक और सांसद के बीच खींचतान जैसी स्थिति सामने आती रही। 2022 के पहले एक-दो बार प्रभारी मंत्री के सामने सरकारी बैठकों में भी भाजपा का अंर्तविरोध सामने आ चुका है।

9.सांसद और विधायक में अंर्तविरोध वा मतभिन्नता:-

सांसद और विधायक एक-दूसरे के खिलाफ आस्तीन चढ़ाते नजर आए। बहरहाल 2022 का विधानसभा चुनाव आ गया। यहां से पार्टी दिग्गजों की आपस में एक-दूसरे के प्रति त्योरी और चढ़ने लगी। इस चुनाव में सीटिंग एमएलए ही प्रत्याशी बना दिए गए। मोदी-योगी लहर के बाद भी यहां भाजपा को अंर्तविरोध से जमकर जूझना पड़ा। बस्ती सदर से तत्कालीन विधायक दयाराम चौधरी, रुधौली से तत्कालीन विधायक संजय जायसवाल, कप्तानगंज से तत्कालीन विधायक सीपी शुक्ल, महादेवा से तत्कालीन विधायक रवि सोनकर चुनाव हार गए। भाजपा के अंर्तविरोध का लाभ सपा प्रत्याशियों को मिला। भाजपा की झोली में केवल एक विधायक हर्रैया से अजय सिंह बचे रह गए। इसी चुनाव के बाद विपक्ष जहां हाबी होता गया, वहीं भाजपा में खेमेबंदी और मजबूत हुई। सांसद खेमे से नाराज पक्ष समय का इंतजार करने लगा। पहले उन्हें टिकट न मिले, इसे लेकर खींचतान हुई। मगर, जब यहां सफलता नहीं मिली तो नाराज खेमा चुनाव से ही तौबा कर लिया।

9. दिग्गजों का पलायन :-

सांसद हरीश द्विवेदी का टिकट घोषित होने के कुछ ही दिनों बाद भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र ने बगावत कर बसपा का दामन थाम लिया। उन्हें बसपा से प्रत्याशी भी घोषित कर दिया गया। हालांकि, बाद में उनका टिकट कट गया तो विपक्षियों ने इसका भी ठीकरा भाजपा पर ही फोड़ा। यहां से चुनाव ने नया मोड़ लिया। टिकट कटने के बाद दयाशंकर सपा में शामिल होकर गठबंधन प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी के साथ प्रचार में जुट गए। इसके अलावा संगठन के कुछ अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी और नेता चुनाव में भागदौड़ करने से अच्छा चुप्पी साध ली। भाजपा के चर्चित चेहरों में कुछ पूर्व विधायक, पूर्व पदाधिकारी बहुत सक्रिय नहीं दिखे। शीर्ष नेताओं के आगमन पर ही उन्हें मंचों पर देखा गया।

लेखक का परिचय:-
(लेखक ,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं ।