… और सीपी जोशी का समय शुरू होता है अब !

<p><span style="line-height:1.6em">सीपी जोशी को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। छोटी सी बात पर भी भड़क जाते हैं और किसी को भी खूब सुना भी देते हैं। कार्यकर्ताओं को कभी कभी तो ऐसी झाड़ पिला देते हैं कि कच्चा &ndash; पोचा तो उनके सामने खड़ा भी नहीं रह सकता। फिर भले ही उसे पुचकार भी देते हैं। अपने मन में उनके लिए सम्मान हैं, फिर भी अपने जैसे आदमी को भी वे कभी कभार परशुराम के अवतार में नजर आते रहे हैं। इसके पीछे वजह सिर्फ एक ही है कि उनको किसी का डर नहीं है।&nbsp;</span></p>

<p>राजनीति में तो खैर, वैसे भी उनको एक निडर नेता के तौर पर देखा जाता है। सचमुच कोई डर नहीं। कोई उनका कुछ बिगाड़ लेगा, यह वे सोचते ही नहीं। और ऐसा इसलिए नहीं है कि वे कांग्रेस के बहुत बड़े आदमी राहुल गांधी के नजदीकी हैं, और सोनिया गांधी उनको जानती हैं। बल्कि इसलिए है क्योंकि राजनीति में चोर लोग डरते हैं। भ्रष्ट लोग किसी को भी कुछ कहने से बचते हैं। और, बेईमान लोग अपने कारनामों के खुल जाने की वजह से कहीं भी टांग अड़ाने से दूर रहते हैं।&nbsp;</p>

<p>लेकिन सीपी जोशी को किसका डर। दाग उन पर कोई है नहीं। नाम भी उनका चमकदार है और बदनाम उनको अब तक तो कोई कर नहीं सका। लेकिन फिर भी वे जल्दी चिढ़ते हैं और गुस्सा भी करने लग जाते हैं। पता नहीं क्यू। इसे उनकी व्यक्तिगत कमजोरी माना जा सकता है और यह वे समझदार हैं इसलिए खुद भी जानते ही हैं। पर, अब उनको थोड़ा संभलकर चलना होगा, क्योंकि उनकी असली अग्नि परीक्षा की शुरूआत होनेवाली है। कुछ ही दिनों में राजस्थान विधानसभा के चुनाव हैं और पीछे के पीछे फट से लोकसभा के चुनाव भी आनेवाले हैं। लोकसभा तो फिर भी दूर की बात है, पर विधानसभा के चुनाव उनके लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज है। दिलीप कुमार की बहुत पुरानी फिल्म &lsquo;गोपी&rsquo; का एक गीत हैं – &lsquo;काजल की कोठरी में कैसो भी जतन करो, काजल का दाग भाई लागे ही लागे रे…. भाई काजल का दाग भाई लागे ही लागे&rsquo;… हमारे कांग्रेस महासचिव सीपी जोशी के लिए भी विधानसभा के चुनाव काजल की कोठरी साबित हो सकते हैं। जोशी के लिए यही सबसे बड़ा चैलेंज है।&nbsp;<br />
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वैसे, सीपी जोशी को अपन बीते 25 साल से जानते हैं। मगर, उनकी निजी जिंदगी के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते। कभी इसकी जरूरत भी नहीं पड़ी। सो, ज्यादा कुछ कह नहीं सकते। पर, लगता है कि वे अच्छे आदमी हैं और व्यवहार कुशल भी लगते रहते हैं। पढ़े लिखे तो हैं ही और बात भी तथ्यों के साथ करते हैं। लेकिन, जो लोग उनको भोला और भला आदमी मानते हैं, उनको अपनी सलाह है कि राजनीति में कोई भी भोला और भला नहीं होता। वहां तो सीधे सादे लोगों के लिए कोई जगह ही नहीं होती। सो, बात अगर राजनीति की करें, तो सीपी की राजनीतिक जिंदगी मैं चैलेंज शुरू से ही कभी कम नहीं रहे।&nbsp;</p>

<p>नाथद्वारा से लेकर उदयपुर और जयपुर से लेकर दिल्ली और अब बिहार तक हर जगह चैसेंज ही चैलेंज। और जो आदमी हर बार हर चैलेंज को फतह करके आगे बढ़ता रहा हो, वह कहां से भला और भोला आदमी हो सकता है। उस पर भी, जो आदमी हर पल अशोक गहलोत जैसे धुरंधर राजनेता की टंगड़ी में लंगड़ी लगाकर खुद के सीएम बनने के सपने देखता रहा हो, वह तो किसी भी नजरिये से भोला और भला नहीं हो सकता। लेकिन हां, अपन इतना जरूर जानते हैं कि जोशी बदमाश और बहुत तेजतर्रार किस्म के राजनेता नहीं हैं। अगर देश चलानेवाले हमारे बाकी बहुत सारे राजनेताओं की तरह जोशी भी चालाक और धूर्त होते, तो जो रेल मंत्रालय उनको मिला था, वह उनके राजनीतिक कद और छवि के हिसाब से भले ही बहुत बड़ा चैलेंज था, फिर भी वे सारी तिकड़म लगाकर उसी में जमे रहते। कोई कुछ भी कर लेता, जोशी वहां से हिलते नहीं। रेल मंत्रालय में मलाई और माल दोनों खूब थे। पर, जोशी ठहरे कांग्रेस के सिपाही। सो, जो पार्टी के महासचिव का काम मिला तो आदेश मानकर रेल मंत्रालय से सरक लिए।&nbsp;</p>

<p>अब वे कायदे से उस बिहार के प्रभारी हैं, जहां कांग्रेस पिछले कई चुनावों में धूल चाटती नजर आती रही है और आगे भी लगता है कई सालों तक ऐसा ही होता रहेगा। राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी इतने सालों से बिहार में जब कुछ भी नहीं कर पाए, तो सीपी जोशी के पास को कोई जादू की छड़ी तो नहीं है कि वे… जय काली कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाए खाली… कहते हुए उसे हिला देंगे और बिहार में कांग्रेस का कल्याण कर देंगे। &nbsp; &nbsp;&nbsp;</p>

<p>सीपी जोशी राजस्थान के ताकतवर नेता कहे जाते हैं। सो, बात कुछ महीनों पहले की भी कर ली जाए। जोशी अगर रेल मंत्री रहे होते, तो कम से कम मेवाड़ का तो कल्याण हो जाता और इस पहाड़ी इलाके के लोगों की रेल विकास की अपेक्षाओं पर रेल मंत्री के रूप में जोशी जरूर खरे उतरते, ऐसा लगभग सभी मानते हैं। पर शायद ठीक ही हुआ, कि अभी तो वे रेल मंत्रालय के सुर, ताल और लय को समझने की कोशिश कर ही रहे थे, कि पार्टी में महासचिव बना दिए गए। अपना मानना है यह बहुत अच्छा हुआ। खासकर, सीपी जोशी जैसे कड़क आदमी के लिए तो रेल मत्रालय और भी मुश्किल होता। क्योंकि खाऊ आदमी के लिए तो हर जगह, हर तरह के हजार रास्ते खुल जाते हैं, लेकिन बहुत सारे बेईमान लोगों के कुनबे के बीच किसी ठीकठाक आदमी के लिए अपना आशियाना बनाना कांटों भरे रास्ते से कम नहीं होता। रेल मंत्रालय हमारे देश में भ्रष्टाचार, बेईमानी और दलाली के सबसे बड़े गढ़ के रूप में कुख्यात रहा है।&nbsp;</p>

<p>विकास के नाम पर रोज अनेक ठेके निकलते हैं और सुबह से शाम तक कई करोड़ के वारे न्यारे भी होते रहते हैं। और ऐसी जगहों का रिवाज रहा है कि आप किसी का कोई काम नहीं भी करें, तो भी बहुत सारी मलाई खुद चलकर आपके होठों तक पहुंच ही जाती है। ऐसे में जोशी के लिए अपनी ईमानदार छवि को बनाए रहना बहुत मुश्किल होता। वैसे, सीपी जोशी किसी पर भी आसानी से मेहरबानियां न करने के लिए काफी कुख्यात रहे हैं। लेकिन रेल मंत्रालय का इतिहास है कि हर मंत्री की मातृभूमि अपने सपूत से विकास की गंगा को थोड़ा सा अपनी तरफ भी मोड़ने की आस करती रही है। सो, भले ही बहुत कम दिन के लिए रेल मंत्री रहे, पर भीलवाड़ा में रेल कारखाना तो खोल ही दिया। शायद इसलिए, क्योंकि सीपी जोशी भी आखिर मेवाड़ी इतिहास की उस परंपरा के प्राणी हैं, जिसमें, मायड़ थारो वो पूत कठै… के गीत गीए जाते हैं।</p>

<p>&nbsp;पर, अब राजस्थान में चुनाव हैं। पता नहीं नतीजा क्या होगा। पर, पिछली बार से लेकर इस बार तक पांच सालों से सीएम बनने का सपना सीपी की आंखों में टंगा हुआ है। अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने भले ही अशोक गहलोत को पूरी छूट दे दी हो और पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी भले ही सभी को अनुशासन में रहने की हिदायत दी हो, पर, राजनीति की महत्वाकांक्षाओं में ऐसा होता कहां है हुजूर… कि लोग अपनी हदों में रहें।&nbsp;</p>

<p>राजनीति में अपनी ताकत का दूसरे के लिए इस्तेमाल होते देखने से बड़ा दुख और कोई नहीं होता। इसलिए पार्टी के आदेश मानकर एक अनुशासित सिपाही की तरह काम करके कांग्रेस को भारी बहुतमत से जिताकर अशोक गहलोत को फिर से राजस्थान का सीएम बनते चुपचाप देखना सीपी जोशी के लिए कोई कम तकलीफदेह नहीं है। पर, जो कुछ भी करना है, तत्काल ही करना होगा। क्योंकि चुनाव शुरू हो गया है। अगर यह मान भी लें कि सीपी जोशी वास्तव में बहुत भले और भोले आदमी हैं, फिर भी राजनीति की राह में रोड़े बहुत हैं और फिसलन भी कोई कम नहीं। इसलिए, अब तक सारी भवबाधाओं को सहज तरीके से पार कर लेनेवाले सीपी जोशी चुनाव के इस आखरी वक्त में क्या कर गुजरते हैं, यह आप और हम सब मिलकर देखेंगे। क्योंकि सीपी जोशी का असली समय शुरू होता है अब… सही है ना ?&nbsp;<br />
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं) &nbsp; &nbsp;<br />
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लापरवाह डॉक्टरों पर 6 करोड़ का जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के एक अस्पताल और तीन डॉक्टरों को लापरवाही बरतने के आरोप में 6 करोड़ रुपए हर्जाना देने का आदेश द‌िया है। एसजे मुखोपाध्याय और वी गोपाला की बेंच ने कोलकाता स्थि‌त एएमआरआई अस्पताल और उसके तीन डॉक्टरों को आठ सप्ताह में ये हर्जाना देने का आदेश दिया है।

दरअसल अस्पताल और उसके तीन डॉक्टरों पर आरोप है कि उन्होंने भारतीय मूल की यूएस बेस्ड महिला रिसर्चर अनुराधा साहा के इलाज में लापरवाही बरती थी। इस लापरवाही के चलते महिला की मौत हो गई।

अस्पताल की इस लापरवाही पर महिला के पति ने न्यायालय में अर्जी दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पीड़ित परिवार को 6 करोड़ रुपए का मुआवजे का आदेश दिया।

क्या था पूरा मामला

ये मामला मार्च 1998 का जब एएमआरआई रिसर्चर और डॉ अनुराधा साहा गर्म‌ियों की छुट्टी में अपने घर कोलकाता आई हुई थी।
इसी दौरान उन्हें अप्रैल में स्किन रैशिस की शिकायत हुई। अनुराधा इसके ‌इलाज के लिए डॉ सुकुमार मुखर्जी से मिली। डॉ मुखर्जी ने अनुराधा को आराम की सलाह दी।

इसके बाद शिकायत बढ़ने पर डॉ सुकुमार ने 80 एमजी के दो डेपोमेड्रोल इंजेक्शन दिए। जिसे कोर्ट सुनवाई के दौरान बाद में विशेषज्ञों ने गलत कदम बताया। इंजेक्शन के बाद अनुराधा की हालत ज्यादा बिगड़ गई और उसे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल भर्ती कराया गया जहां अनुराधा साहा की मौत हो गई।

अनुराधा की मौत के बाद उनके पति कुनाल ने अस्पताल की लापरवाही के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल की गलती मानते हुए केस को राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग में भेज ‌द‌िया जहां मुआवजे की राश‌ि 1.7 करोड़ तय की। इस राश‌ि को नकारते हुए कुनाल ने 1998 से मुआवजे की रकम ब्याज के साथ 200 करोड़ करने की मांग की और सुप्रीम कोर्ट से फ‌िर गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने इस राश‌ि को बढ़ा कर 5.96 करोड़ कर द‌िया।

 

कोर्ट ने डॉ बलराम प्रसाद और डॉ सुकुमार मुखर्जी को 10-10 लाख जुर्माना और डॉ वैद्यनाथ हल्दर को आठ सप्ताह में 5 लाख रुपए देने का आदेश द‌िया।

 

बाकी बची राश‌ि को कोर्ट द्वारा ब्याज के साथ देने का आदेश द‌िया। पीड़‌ित मह‌िला के प‌त‌ि ने अस्पताल और डॉक्टर की लापरवाही के ख‌िलाफ 13 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। लापरवाही के चलते मरने वाली मह‌िला रिसर्चर अनुराधा खुद मनोवैज्ञ‌ान‌िक थी।

 

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14 नेताओं के सोशल मीडिया पर चनाव आयोग की नज़र

सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखने वाले कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेताओं पर चुनाव आयोग खुफिया नजर रखेगा। इनमें कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती से लेकर भाजपा और कांग्रेस के १८ बड़े नेता शामिल हैं। इनके ट्वीटर पर होने वाले विचारों के आदान-प्रदान के हर मिनिट का लेखा-जोखा सीडैक द्वारा रखा जाएगा। यह वही संस्था है जिसने गुजरात के विधानसभा चुनाव में इस गतिविधि को अंजाम दिया था।

 

चुनावा आयोग का मानना है कि  कि पेड न्यूज और आचार संहिता के दायरे में सोशल मीडिया को भी रखा गया है। मीडिया का यह माध्यम इन दिनों चर्चा के केन्द्र में है। बड़े नेता अपनी बात जल्द से जल्द लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका उपयोग करते हैं। अधिकांश बड़े नेताओं की ट्वीटर पर बड़ी फैन फालोइंग है। इसके जरिए कोई नेता आचार संहिता का उल्लंघन न कर सके, इसके लिए सीडैक संस्था को निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है। वह कांग्र्रेस, भाजपा, बसपा, एनसीपी, सपा और सीपीआईएम के अधिकारिक ट्वीटर के साथ वेबसाइट की २४ घंटे निगरानी करेगी। संस्था के प्रतिनिधियों ने सीईओ कार्यालय में मीडिया के सामने प्रस्तुतिकरण देते हुए अपने कामकाज के तौर-तरीकों के बारे में बताया। सीईओ जयदीप गोविंद ने बताया कि ट्वीटर पर कोई नेता आपत्तिजनक बात लिखता है या कोई उसकी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देता है तो उसे परीक्षण की परिधि में रखा जाएगा।

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हेमंत स्मृति कविता सम्मान ‘हरेप्रकाश उपाध्याय’ को विजय वर्मा कथा सम्मान ‘शरद सिंह’ को

मुम्बई। हेमंत फाउंडेशन की ओर से वर्ष २०१३ का हेमंत स्मृति कथा सम्मान युवा कवि हरेप्रकाश उपाध्याय [लखनऊ] के कविता संग्रह ‘खिलाड़ी दोस्त एवं अन्य कविताएं’ तथा विजय वर्मा कथा सम्मान चर्चित लेखिका शरद सिंह [सागर] के उपन्यास ‘कस्बाई सिमोन’ को दिये जाने की घोषणा संस्था की अध्यक्ष लेखिका संतोष श्रीवास्तव एवं सचिव प्रमिला वर्मा ने की। संस्था के महासचिव आलोक भट्टाचार्य एवं कार्याध्यक्ष सुमीता प्रवीण के अनुसार यह समारोह मुम्बई में ४ जनवरी २०१४ में आयोजित किया जायेगा जिसके अंतर्गत ग्यारह हजार मानधन, स्मृति चिन्ह, पुष्प गुच्छ एवं शॉल प्रदान किया जायेगा।

संस्था के निदेशक विनोद टीबड़ेवाला [कुलाधिपति जे.जे.टी.यू] ने जहां एक ओर शरद सिंह के लेखन को प्रौढ़,सामाजिक एवं नवीन कथानक युक्त बताते हुए कहा कि उनके लेखन में शाश्वत विचार एवं सामयिक घटनाओं,परंपराओं का गुंफन जिस कौशल से मिलता है वह सराहनीय है। वहीं निर्णायक भारत भारद्वाज [वरिष्ठ लेखक,समीक्षक] ने हरेप्रकाश उपाध्याय को जमीनी हकीकत एवं व्यापक भावबोध का कवि बताया। उनकी कविताओं में ग्रामीण संस्कृति के रीतिरिवाज रचना संदर्भ में चित्रित हैं।

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आसाराम पर फिल्म बनाएंगे प्रकाश झा

<p><span style="line-height:1.6em">नाबालिग से यौन शोषण के आरोपी आसाराम फिल्मी दुनिया के चहेते बन गए हैं। &nbsp;आसाराम पर एक साथ दो फिल्में बनने जा रही है। एक का नाम है &quot;चल गुरू हो जा शुरू&quot; और दूसरी का नाम है &quot;सत्संग&quot;। &nbsp;फिल्म निर्देशक प्रकाश झा सत्संग नाम से फिल्म बनाने जा रहे हैं। इस फिल्म में अजय देवगन, अर्जुन रामपाल या मनोज वाजपेयी आसाराम की भूमिका निभा सकते हैं।</span></p>

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&quot;चल गुरू हो जा शुरू&quot; टाइटल वाली फिल्म में हेमंत पांडे केन्द्रीय भूमिका में होंगे। पांडे टीवी धारावाहिक ऑफिस ऑफिस से मशहूर हुए थे। पांडे ने इस बात की पुष्टि की है कि वह फिल्म में केन्द्रीय भूमिका में होंगे। उन्होंने बताया कि फिल्म ढोंगी बाबाओं पर केन्द्रित हास्य व्यंग्य फिल्म है। फिल्म में ऎसे सभी बाबाओं के बारे में बताया जाएगा जिन्होंने धर्म को धंधा बना दिया है और सीधी साधी जनता उनकी ठगी का शिकार हो रहा है।&nbsp;</p>

<p>हिमालयन ड्रीम्स के बैनर तले बनने वाली फिल्म में हेमंत पांडे के अलावा चंद्रचूड़ सिंह,मनोज मिश्रा, मनोज पाहवा जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में है। फिल्म के निर्देशक हैं मनोज शर्मा। मनोज शर्मा 2010 में आसाराम पर स्वाहा नाम से फिल्म बना चुके हैं। यह फिल्म काफी विवादित रही थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद फिल्म रिलीज हो पाई थी। शर्मा ने बताया कि अगले साल मार्च अप्रै तक फिल्म रिलीज हो जाएगी।</p>
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जयराम रमेश को मुख्य अतिथि बनाना चाहते हैं नरेंद्र मोदी

गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी कई बार अपने विरोधियों को हैरत में डाल देते हैं। इस बार भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया है। मोदी ने कांग्रेस में उनके 'सबसे बड़े दुश्मनों' में शुमार जयराम रमेश को अजीबोगरीब स्थिति में डाल दिया है। उन्होंने ग्रामीण विकास मंत्री जयराम को सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' की नींव डालने से जुड़े कार्यक्रम का न्योता भेजा है। यह कार्यक्रम 31 अक्टूबर को होना है।

कांग्रेस नेता को 'मेरे प्रिय जयरामजी' के नाम से संबोधित करते हुए मोदी ने लिखा है कि इस परियोजना का जिम्मा सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट संभालेगा। मोदी ने रमेशा को लिखा है, "हमारा यह मानना है कि यह स्‍थल हमारे महान राष्ट्र की संस्कृति और सामाजिक जीवन के अहम आधार के रूप में जाना जाएगा और इसलिए इसे सरकार से दूर रखा गया है, ताकि सभी वर्गों से ताल्लुक रखे वाले लोग इसे लेकर सहयोग दे सकें।"

जयराम रमेश ने एक बार ‌कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री कांग्रेस को वैचारिक और प्रबंधकीय चुनौती दे सकते हैं, हालांकि उनकी पार्टी को यह बात अच्छी नहीं लगी थी।

पत्र में मोदी ने लिखा है कि सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा नर्मदा नदी के बीचोंबीच बनाई जाएगी। यह जगह नर्मदा जिले के केवादिया में सरदार सरोवर बांध से करीब साढ़े तीन किलोमीटर दूर है। यह प्रतिमा अमेरिका में बने स्टैच्यू ऑफ लि‌बर्टी दोगुनी होगी।

 

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कविता का एक दिन: राजस्थान साहित्य अकादमी और अपनी माटी का संयुक्त आयोजन

<p><span style="line-height:1.6em">राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर और अपनी माटी,चित्तौड़गढ़ के संयुक्त तत्वावधान में 29 सितम्बर, 2013 को सेन्ट्रल अकादमी सीनियर सेकंडरी स्कूल, सेंथी, चित्तौड़गढ़ में माटी के मीत-2 के आयोजन में सौ रचनाकारों और बुद्धिजीवियों ने वर्तमान परिदृश्य पर चिंतन-मनन किया। प्रख्यात पुरातत्त्वविद मुनि जिनविजय की स्मृति में हुए इस विमर्श प्रधान कार्यक्रम के पहले सत्र में शिक्षाविद डॉ. ए. एल. जैन ने मुनिजी के त्यागमय एवं अध्यवसायी जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। हिंदी के प्राचीन साहित्य में तिथियों और पाठ निर्धारण के सन्दर्भ में उनका महत्व है। उन्होंने सतत घुमक्कड़ी के बीच भी प्राच्य विद्या से जुड़े दो सौ ज्यादा ग्रंथों को संपादित कर प्रकाशित करवाया।</span></p>

<p>कवि, चिन्तक और निबंधकार डॉ. सदाशिव श्रोत्रिय ने पहले सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि अरसे से जीवन को रसमय और गहरा बनाने का दायित्व भी इसी साहित्य के खाते में रहा है। अगर सूर, मीरा, तुलसी, शमशेर और ग़ालिब नहीं होते तो हम कितना नीरस जीवन जी रहे होते। उन्होंने मौजूदा फुरसती लेखन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि एक वो ज़माना था जब सम्पादक बड़े मुश्किल से रचनाएं छापने को राजी होते थे और अब हालात यह है कि हर कोई लेखक है। छपास रोग ग्रस्त और तुरंता यशकामी लेखकों के बीच असल की पहचान मुश्किल काम है।</p>

<p>अलवर से आए आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि यह समय बड़ी चालाकी से हमें जड़विहीन कर रहा है। एक ओर तो बाजारवाद वंचित वर्ग को आत्महत्या की तरफ धकेलता है तो दूसरी ओर इसके मोहपाश के चलते लेखक आभिजात्य जीवन जीते हुए मूल सरोकारों से पृथक होते जा रहे हैं।एक और ज़रूरी बात यह कि लेखक जब दौलत से जुड़ जाता है तो वह डरपोक और कायर हो जाता है, उसके लिए विद्रोह का मतलब कविता में विद्रोह की बात तक सिमट जाता है। उपभोक्तावाद का छल यह है कि हम बड़े खुश है कि हमारा बेटा फलाने देश में मोटे पॅकेज पर नौकरी लग गया है जबकि वास्तव में इस तरह उसने अपना जीवन दूसरों को सौंप दिया है।</p>

<p>राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष वेद व्यास ने कहा कि इन सालों में एक भी लेखक ऐसा नहीं मिला जिसने सत्ता के विरोध में अपना बयान दिया हो या फिर नौकरी गंवाई हो। यह समर्पण-मुद्रा संघर्षशील समाज से मेल नहीं खाती।लेखक-बिरादरी में बढ़ती संवादहीनता भी एक घातक भूल है। उन्होंने आशा बंधाते हुए कहा कि इस बाज़ारवाद की उम्र पचास साल से अधिक नहीं है, इसलिए रचनाकार को अपने सार्थक हस्तक्षेप के साथ जीवित रहना चाहिए। इस सत्र का संचालन डॉ. कनक जैन ने किया। सत्र के आखिर में डॉ. रेणु व्यास की लिखी शोधपरक पुस्तक &nbsp;'दिनकर:सृजन और चिंतन' का विमोचन भी हुआ।&nbsp;</p>

<p>दूसरा सत्र 'कविता का वर्तमान' पर केन्द्रित था जिसे चित्तौड़ के तीन &nbsp;युवा कवियों के कविता पाठ से सार्थक और रुचिकर बनाया। विपुल शुक्ला ने मुस्कराहट, बुधिया, सीमा &nbsp;कविताओं के पाठ में &nbsp;बिम्ब रचने के अपने कौशल का परिचय दिया। अखिलेश औदिच्य ने अभिशप्त, दंगे, रोटी और भूख तथा पिता सरीखी कविताओं में अपने समय और समाज की विद्रूपताओं को उकेरा। तीसरे कवि के रूप में माणिक ने आदिवासी, त्रासदी के बाद, गुरुघंटाल और मां-पिताजी कविताएँ प्रस्तुत की। आदिवासी कविता में विद्यमान बारीक विवरण और संवेदना इस सत्र की उपलब्धि रही। डॉ. राजेन्द्र सिंघवी ने पढ़ी गयी कविताओं पर आलोचनात्मक दृष्टिपात करते हुए कहा कि यही कविता का वर्तमान है जहां रचनाकार अपने समय की नब्ज को पहचानने की कोशिश कर रहा है। जनपदों से निकली कविता की यह नई पौध आश्वस्तकारी है।&nbsp;</p>

<p>अध्यक्षता करते हुए जोधपुर से आए लोकधर्मी आलोचक और कवि डॉ. रमाकांत शर्मा ने अपने वक्तव्य में कविता के तत्वों की मीमांसा करने के साथ ही आयोजन में प्रस्तुत कविताओं को लेकर भी अपनी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ की। संवाद और विकल्प के पक्षधर डॉ शर्मा का कहना था कि साहित्य को विमर्शों में बांटना अपने आप में विखंडनवाद है। उन्होंने जोर देकर कहा कि शब्दों से खेलना कविता नहीं है अपितु जीवन से जूझते हुए कवि कर्म का निर्वाह किया जाना अपेक्षित है।</p>

<p>आयोजन में युवा चित्रकार मुकेश शर्मा के चित्र-प्रदर्शनी और प्रवीण कुमार जोशी के निर्देशन में लगाई लघु पत्रिका प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र रही। आखिर में वक्ता-श्रोता संवाद आयोजित हुआ जिसका संचालन डॉ. चेतन खिमेसरा ने किया। संवाद में प्रो भगवान् साहू, डॉ. कमल नाहर, डॉ. नित्यानंद द्विवेदी, मुन्ना लाल डाकोत, चन्द्रकान्ता व्यास, डॉ. राजेश चौधरी, कौटिल्य भट्ट, भावना शर्मा ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणियाँ दी। अपनी माटी के अध्यक्ष,समालोचक और कवि डॉ. सत्यनारायण व्यास ने आभार जताया।इस अवसर पर गीतकार अब्दुल ज़ब्बार, अपनी माटी उपाध्यक्ष अश्रलेश दशोरा, स्वतंत्र पत्रकार नटवर त्रिपाठी, अधिवक्ता भंवरलाल सिसोदिया, प्रो सत्यनारायण समदानी, नवरतन पटवारी, डॉ. ए. बी. सिंह, डॉ के. एस. कंग, डॉ. अखिलेश चाष्टा, महेश तिवारी, डॉ. नरेन्द्र गुप्ता, डॉ. के. सी. शर्मा, डॉ. रवींद्र उपाध्याय, डॉ. धर्मनारायण भारद्वाज, जी. एन. एस. चौहान, आनंदस्वरूप छीपा, सीमा सिंघवी, सुमित्रा चौधरी, &nbsp;रेखा जैन उपस्थित थे।</p>

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रिपोर्ट&nbsp;<br />
डालर सोनी ,चित्तौड़गढ़&nbsp;</p>

<p>डॉ सत्यनारायण व्यास&nbsp;<br />
अध्यक्ष,अपनी माटी संस्थान<br />
29 ,नीलकंठ,छतरी वाली खान,सेंथी, चित्तौड़गढ़-312001,<br />
राजस्थान-भारत,M-07597615771<br />
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सर्वोच्च न्यायालय ने 157 दवाओं के ट्रायल पर रोक लगाई

बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकसित दवा के प्रयोग में अनियमितता पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर तीखा प्रहार किया है। कोर्ट ने सोमवार को 157 दवाओं के ट्रायल पर रोक लगा दी। साथ ही 5 दवाओं के ट्रायल के आंकड़ों को गहन जांच में ले लिया है। इन दवाओं को जरूरी प्रक्रिया अपनाए बगैर ही देश पर थोप दिया गया था।

 

कोर्ट ने सरकार से कहा कि पहले सभी प्रक्रिया का पालन करें और बताएं कि इन ट्रायल से देश और इसके नागरिकों को क्या फायदा होगा?   स्वास्थ्य अधिकार मंच, इंदौर की जनहित याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट मे नौंवी सुनवाई हुई। जस्टिस आरएम लोढ़ा और एमके सिंह की पीठ को बताया गया कि दिसंबर 2012 के पहले शुरू किए गए 157 ड्रग ट्रायल के लिए सिर्फ नई औषधि सलाहकार समिति की मंजूरी ली गई।  

 

3 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित की गई सर्वोच्च और तकनीकी मामलों की समितियों की मंजूरी नहीं ली गई। इस पर कोर्ट ने आश्चर्य जताया। कोर्ट ने साफ कहा, दोनों समितियों के सामने 157 ट्रायल प्रस्तावों को रखा जाए और अनुमति के बाद ही इन्हें आगे बढ़ाया जाए। कोर्ट में 5 ऎसी दवाओं का मामला भी आया है, जिनकी मंजूरी वर्ष 2013 में दी गई। कोर्ट ने कहा है, इन दवाओं के जो भी आंकड़े सामने आ रहे हैं, उनकी गहन पड़ताल की जाए।  

 

जवाब नहीं दे सकी सरकार : सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट संजय पारिख ने कहा कि सरकार यह बताए कि इन ट्रायल्स से देश को क्या फायदा होगा? इन 162 ट्रायल में से कितने देश के बाहर पेटेंट किए गए हैं? नई दवाओं के विकास के नाम पर बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। इस पर सरकार की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सालिसिटर जनरल जवाब नहीं दे सके।   तीन बिंदुओं को जांचेगी दोनों कमेटियां   दवाओं से मरीजों को कितना जोखिम उठाना होगा और उन्हें क्या फायदा होगा?  संबंधित रोगों में वर्तमान में मौजूद इलाज से नई दवा किन बिंदुओं पर अलग है?  देश की स्वास्थ्य जरूरतों को इन दवाओं के ट्रायल से क्या फायदा होगा?

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मालदीव में चुनाव… भारत पर वैश्विक दबाव

मालदीव में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान शुरू होने से ठीक पहले अचानक चुनाव प्रक्रिया रोकने से माली में लोकशाही के भविष्य पर संकट गहरा गया, लेकिन इस निर्णय से हतप्रभ विश्व समुदाय का भारत पर वहां जल्द लोकतंत्र स्थापित कराने में अहम भूमिका निभाने का दबाव बढ़ गया है।
       
मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) का सदस्य देश है और वहां 19 अकटूबर को चुनाव होना था। मतदान से ठीक एक घंटा पहले चुनाव आयुक्त फवाद तौफीक ने यह कह कर दुनिया को हतप्रभ कर दिया कि दो प्रत्याशियों द्वारा मतदाता सूची को सत्यापित नहीं करने और पुलिस का समर्थन नहीं मिलने के कारण चुनाव स्थगित कर दिया गया है। देश के सभी 200 द्वीपों में चुनाव की तैयारियां पूरी हो चुकी थी और मतदान केंद्रों पर मतदान पेटियां पहुंच चुकी थी, लेकिन मतदान प्रक्रिया शुरू होती, इससे पहले ही चुनाव रोक दिए गए।
       
मालदीव सरकार का यह फरमान पूरी दुनिया के लोकतंत्र प्रेमियों के लिए चौंकाने वाला था। भारत ने चुनाव रद्द किए जाने की कडी निंदा की है और वहां जल्द चुनाव कराए जाने की मांग की है। इसके लिए भारत ने एक तरह से लॉबिंग भी की है। विदेश सचिव सुजाता सिंह जिस उल्लास के साथ चुनाव प्रक्रिया को देखने के लिए माले गई थी, उससे कहीं अधिक मायूस होकर वह स्वदेश लौटी और उन्होंने विश्व के कई देशों के राजनयिकों से मुलाकात कर मालदीव की स्थिति से उन्हें अवगत कराया है।
       
भारत की सक्रियता से दुनिया की यह उम्मीद बंधी है कि मालदीव जल्द ही लोकतंत्र की राह पर लौट आएगा। सैकड़ों द्वीपों को मिलाकर बना यह देश दक्षेस का भी सदस्य है और इस समूह में भारत ही सबसे बडा राष्ट्र है, इसलिए नई दिल्ली पर दुनिया ने एक तरह से दबाव बनाना शुरू कर दिया है, कि वह मालदीव में लोकतंत्र की स्थापना में अपनी अहम भूमिका निभाए, ताकि वहां जल्द से जल्द चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें।  
       
दुनिया की पांच बडी शक्तियों अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस तथा चीन के साथ ही जर्मनी ने भी भारत से कहा है कि वह मालदीव में चुनाव प्रक्रिया समय पर पूरी कराने के लिए काम करे। इन देशों के अलावा दक्षेस सदस्य बंगलादेश तथा श्रीलंका भी भारत पर यही उम्मीद लगाए बैठे हैं। ऑस्ट्रेलिया को भी उम्मीद है कि भारत की पहल पर माले की कुर्सी के लिए जल्द ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। मलेशिया और सऊदी अरब जैसे देशों ने भी इस मामले में भारत की तरफ उम्मीदभरी निगाह से देखना शुरू कर दिया है। चारों तरफ से भारत पर वहां लोकतंत्र की बहाली के लिए चुनाव प्रक्रिया जल्द शुरू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का दबाव लगातार बढ़ रहा है।
        
मालदीव में चुनाव प्रक्रिया रद्द किए जाने की अब तक स्पष्ट वजह सामने नहीं आई है। राष्ट्रपति पद के लिए नया चुनाव कब होगा, इस बारे में चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट की राय लेगा और उसके बाद ही चुनाव कराए जाएंगे। कोर्ट में प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव तथा जमूहरी पार्टी ने चुनाव प्रक्रिया को लेकर अर्जी लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने अर्जी पर दलील सुनने से यह कहते हुए मना कर दिया कि यह राष्ट्रीय मामला है और इसमें कोर्ट के सातों न्यायाधीशों की मौजूदगी जरूरी है। एक न्यायाधीश विदेश यात्रा पर हैं और उनके आने के बाद ही याचिका पर सुनवाई हो सकती है।
         
राष्ट्रपति मोहम्मद वहीद हसन का कहना है कि देश में 26 अक्टूबर तक चुनाव करा लिए जाएंगे। संविधान के अनुसार वहां अगले माह 11 नवंबर तक राष्ट्रपति को शपथ ग्रहण कर लेनी चाहिए, इसलिए 10 नवंबर तक चुनाव प्रक्रिया पूरी होनी जरूरी है। इससे पहले वहां सात सितंबर को दूसरी बार आम चुनाव कराए गए था, लेकिन किसी उम्मीदवार को जरूरी 50 फीसदी मत नहीं मिले, इसलिए 28 सितंबर को दूसरे चरण के मतदान कराने का फैसला किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद्द कर 20 अक्टूबर तक नया चुनाव कराने का आदेश दिया था, लेकिन शनिवार को चुनाव प्रक्रिया शुरू होती, उससे पहले ही चुनाव आयुक्त ने बताया कि पुलिस ने आयोग का काम रोक दिया है।  
      
मालदीव 1190 छोटे छोटे द्वीपों का देश है और वहां 200 द्वीपों पर आबादी बसी है। देश में 80 से अधिक रिसॉर्ट हैं। इस देश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन और मछली पकड़ने के व्यवसाय पर ही टिकी है। यह देश अंग्रेजों की दासता से 1965 में मुक्त हुआ और वहां की शासन व्यवस्था दूसरी सल्तनत के हाथों शुरू हुई।  
      
पहली बार 2008 में वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव हुए और डॉक्टर मोहम्मद नशीद लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए, लेकिन सात फरवरी 2012 को उपराष्ट्रपति वहीद ने तख्ता पलट करके उन्हें हटा दिया और स्वंय राष्ट्रपति बन गए। इसी बीच उन्होंने डॉक्टर नशीद को बंधक बनाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें वहां भारतीय दूतावास में शरण दी गई, ताकि मालदीव में लोकतंत्र फिर से शुरू किया जा सके। भारत की वहां बडी भूमिका है और विश्व समाज का मानना है कि माले में भारत की अहम भूमिका की वजह से लोकतंत्र स्थापित हो सकता है।
        
मालदीव राष्ट्रमंडल देशों का भी सदस्य है और अगले माह श्रीलंका में इन देशों के प्रमुखों की बैठक होनी है। इस बैठक में मालदीव की स्थिति पर गंभीरता से विचार विमर्श हो सकता है। इस बीच डॉक्टर नशीद ने भी विश्व समुदाय से मालदीव में लोकतंत्र की बहाली के लिए हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है। पिछले माह हुए चुनाव में उन्हें बहुमत के लिए आवश्यक 50 प्रतिशत की तुलना में 45 फीसदी मत मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को महज 25 प्रतिशत मत ही मिले थे।

(लेखक पत्रकार हैं और हिन्दुस्तान टाइम्स समूह से जुड़े हैं।)

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Ankur Vijaivargiya
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बॉस [हिंदी]

दो टूक :  कहते हैं रिश्ते वो नहीं होते जो खून से बनते हैं रिश्ते वो होते हैं जो खून में चढ़कर आपका साथ देते हैं . बस यही  छोटा सा सन्देश देती है निर्देशक अन्थोनी डिसूजा के साथ अक्षय  कुमार, अदिति राव हैदरी, शिव पंडि , मिथुन चक्रवर्ती, डैनी, जॉनी लीवर, परीक्षित साहनी,रोनित रॉय, आकाश दाद्भंडे, संजय मिश्रा, हैरी जोश,  गोविन्द नामदेव, मुकेश  तिवारी, गोविन्द नामदेव, सुदेश बेरी, शक्ति कपूर और सोनाक्षी सिन्हा के साथ प्रभु देवा के अभिनय वाली फिल्म बॉस भी यही कहानी कहती है.
 
कहानी : फिल्म की कहानी सूर्या उर्फ़ बॉस [अक्षय कुमार ] की है जो अपने पिता सत्याकांत  [मिथुन चक्रवर्ती]  के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता है और जो ऐसा करता है उसे वो सबक सिखा देता है . उसके पिता उसकी इस आदत से परेशां होकर उसे घर से निकाल देते हैं तो बिग बॉस [डैनी] उसे सूर्या को बॉस बनाकर गलत धंधों में लगा देते हैं। बॉस का एक छोटा भाई शिवा [ शिव पंडित ]  भी है, जो एक वर्दी वाले गुंडे आयुष्मान [रॉनित रॉय] की बहन अंकिता [ आदिती राव   हैदरी ] से प्रेम करता है।  इसके चलते आयुष्मान शिवा को मंत्री के बेटे विशाल [आकाश आकाश दाद्भंडे] के साथ प्रताड़ित  करता है तो हारकर आदर्शवादी पिता अपने बिगड़ैल बेटे बॉस की शरण लेता है। इसके बाद शुरू होती है बॉस की अपने भाई को मुक्त करने और पिता के लिए खुद को साबित करने की शुरुआत . फिल्म 2010 में आई मलयालम पोक्किरी राजा का रीमेक है जिसमें अक्षय कुमार की भूमिका ममूटी ने और शिव पंडित की भूमिका पृथ्वीराज ने निभाई थी। 

 गीत संगीत : फिल्म में कुमार , मनोज यादव , साहिल कौशल लील गोलू के  गीत और  संगीत मीत बंधुओं, यो यो हनी सिंह  भट्ट और पी ए दीपक का है लेकिन  गानों के नाम पर बॉस और पार्टी ऑल द नाइट को  छोड़ दें तो कोई गीत ऐसा नहीं है जो याद रखा जाये . हाँ एक गीत यहां जांबाज के गीत हर किसी को नहीं मिलता को जरुर आप एन्जॉय कर सकते हैं .

अभिनय : पहली बात . अक्षय फिल्म में उन्नीस मिनट बाद आते हैं और फिर पूर फिल्म में छाये रहते हैं लेकिन कुछ ऐसा नहीं करते जो नया है . सिर्फ उनकी भाषा , कपडे चल ढाल बदली है बाकी अंदाज नहीं . अब कोई हिरोइन नहीं है सिर्फ नायक ही नायक .अदिति ठीक हैं लेकिन अदिति के पास अभिनय के नाम पर दो-तीन रोमांटिक गाने, कुछ बिकिनी दृश्य  ही हैं और सोनाक्षी बस नाम को है . डैनी कमाल करते हैं हर बार और वो अपनी भूमिका को ईमानदार से निभा देते हैं और मिथुन भी . रोनित रॉय नए अंदाज में खलनायकी करते हैं और अक्षय को टक्कर देते हैं . शिव पंडित ठीक हैं और गोविन्द नाम देव के साथ  मुकेश  तिवारी , सुदेश बेरी , शक्ति कपूर निराश नहीं करते.

निर्देशन : कायदे से देखा जाए तो बॉस में कुछ भी नया नहीं है सिवाय इसके की उसे नए मसालों और तकनीक  साथ हमारे सामने परोस दिया गया है . फिल्म में नायक के एक्शन , हजारों बार दोहराए  जा चुके फारुमुले , तेज संगीत, बेवजह संवादों में आने वाले चुटकुले , बदमाशों की पिटाई, कॉमेडी, कैमरे के कमाल  सब कुछ है लेकिन कहानी नहीं  है यही कारण है क फिल्म में पिता पुत्र के रिश्ते को लेकर  गढ़ी गयी कहानी में भी कोई गति और स्वाभाविकता नहीं आ आ पायी है . भद्दे मजाक, फूहड़ संवाद और कई पुरानी लेकिन दक्षिण की रिमेक्स की तरह बॉस बहुत प्रभाव नहीं छोड़ते . फिर भी आप चाहें तो अक्की बॉस की ये फिल्म देख  लें.

फिल्म क्यों देखें : अक्षय और उनके हरियाणवी अंदाज के लिए .
फिल्म क्यों न देखें : अब महंगी फिल्म को क्यों घाटे में ले जाएँ .एक बार देख लें . 

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