Saturday, November 30, 2024
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एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सितारों की दिवाली पार्टी

एकता कपूर की बड़े सितारों से अनबन इस बार सुर्खियों में रही है शाहरुख, अक्षय और इमरान के बाद अब आमिर से भी उनकी लड़ाई का रास्ता खुल गया है। अब  आमिर खान ने अपने घर पर आयोजित दीवाली पार्टी की कपूर परिवार (एकता कपूर और उनके परिवार) का नाम हटा दिया।

बताया जा रहा है कि आमिर ने ये काम इमरान से एकता के बिगड़ते रिश्तों के चलते किया है। एकता कपूर ने भी अपने घर पर दीवाली पार्टी का आयोजन किया था जिसमें इमरान खान को नहीं बुलाया था।  आमिर को जब ये पता चला तो उन्होंने अपने भांजे का मान रखते हुए अपनी पार्टी में एकता को नहीं बुलाया। गौरतलब है कि वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई फिल्म की रिलीज के वक्त से ही एकता और इमरान के रिश्ते बिगड़े हुए थे।

 

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‘नेहरू को सताता था तख्तापलट का खौफ’

पीटीआई द्वारा जारी खबर में दावा किया गया है कि नई दिल्ली पूर्व थल सेनाध्यक्ष वी. के. सिंह ने अपनी किताब में दावा किया है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सैन्य तख्तापलट का 'खौफ' था और उन्हें सीमा पर चीनियों की मौजूदगी से अधिक तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल थिमैया की लोकप्रियता की चिंता ज्यादा सताती रहती थी।

सिंह ने अपनी आत्मकथा 'करेज ऐंड कन्विक्शन' में लिखा है, 'आजादी के बाद से देश में शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व सैन्य तख्तापलट की आशंका से डरा-सहमा रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है कि नेहरू के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग सैन्य तख्तापलट के प्रति उनके खौफ का फायदा उठाते थे और असैन्य-सैन्य रिश्ते विकसित होते वक्त उन लोगों ने इस रिश्ते में सेंध लगाना शुरू कर दिया।' सिंह ने अपनी आत्मकथा लेखक और फिल्मकार कुणाल वर्मा के साथ लिखी है।

उन्होंने कहा कि भारत के पहले रक्षामंत्री के रूप में सरदार बलदेव सिंह के चुनाव ने भविष्य के लिए भारत की योजनाएं निश्चित कीं। सिंह ने कहा कि सरदार बलदेव सिंह अपनी पॉलिटिकल महारत के लिए ज्यादा जाने जाते थे ना कि सैन्य महारत के लिए। पूर्व सेनाध्यक्ष ने यह भी कहा कि अगर सिर्फ नेहरू की चली होती तो फील्ड मार्शल के एम करिअप्पा कभी भी आर्मी चीफ नहीं बन पाते। उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी को अपने पिता से न सिर्फ देश की सत्ता मिली थी, बल्कि वह भी अपने उपर किसी को देख नहीं सकती थीं।    

पूर्व आर्मी चीफ ने लिखा है, 'एक व्यक्ति के तौर पर जनरल थिमैया की लोकप्रियता की वजह से प्रधानमंत्री को सीमा पर चीनियों की मौजूदगी से ज्यादा बुरे सपने आते थे। अक्टूबर 1962 में जब हमला हुआ तो भारतीय थलसेना 'ऑपरेशन अमर' में शामिल थी जहां वे मकान बनाने का काम कर रहे थे जबकि हमारे हथियारों के कारखाने कॉफी बनाने की मशीन बना रहे थे।'

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एक शिक्षक जो तैरकर छात्रों को पढ़ाने जाता है!

अब्दुल मलिक पिछले बीस साल से प्रत्येक दिन नदी को तैरकर पार करके एक दूसरे गाँव के स्कूल में पढ़ाने जाते हैं.  भारत के दक्षिण राज्य केरल के एक छोटे से गाँव में रहने वाले गणित के शिक्षक अब्दुल मलिक ने 20 साल में आज तक कभी स्कूल पहुंचने में देरी नहीं की और न ही कभी छुट्टी की है.  आज भी वो सिर पर बैग रखकर एक रबड़ टायर के सहारे तैरकर बच्चों को पढ़ने स्कूल जाते हैं. अपने जीवन की इस अनोखी दास्तान को अब्दुल मलिक ने बीबीसी के ख़ास कार्यक्रम आउटलुक में साझा किया.

अपने गाँव के बारे में पूछने पर अब्दुल मलिक बताते हैं, '' यह एक बहुत छोटा सा गाँव है. यहाँ रहने वाले लोग भी साधारण हैं. लेकिन छोटा सा गाँव होने के बावजूद यह बहुत ही ख़ास है. बहुत से पढ़े-लिखे लोगों का यहाँ होना ही इसकी विशेषता है. एक ग्रामीण इलाका होने के बावजूद यहाँ बहुत से शिक्षक रहते हैं. यहाँ पीढ़ियों से पढ़ने-पढ़ाने की परम्परा रही है.''

आप एक शिक्षक क्यों बनना चाहते थे? यह पूछने पर अब्दुल मलिक कहते हैं, ''मुझे लगता है कि एक शिक्षक बनने से हमें एक अच्छे नागरिक बनने में मदद मिलती है. मैं बचपन से ही एक शिक्षक बनना चाहता था. शिक्षा हमें बच्चों के आदर्श बनने में सक्षम बनाती है.''  "मुझे लगता है कि एक शिक्षक बनने से हमें एक अच्छे नागरिक बनने में मदद मिलती है. मैं बचपन से ही एक शिक्षक बनना चाहता था. शिक्षा हमें बच्चों के आदर्श बनने में सक्षम बनाती है."

स्कूल से नदी की दूरी के बारे में बताते हुए मलिक कहते हैं कि, ''स्कूल मेरे गाँव के पास स्थित कादालुंदी नदी के दूसरे छोर पर बसे एक गाँव में है. सड़क मार्ग से जाने पर मेरे गाँव से स्कूल सात किलोमीटर दूर पड़ता है. लेकिन नदी को पार कर जाने में ये दूरी सिर्फ़ एक किलोमीटर होती है. इस गाँव में कोई शिक्षक औऱ डॉक्टर नहीं है. यह गाँव नदी से तीन तरफ से घिरा हुआ है.''

बीस साल पहले काम शुरु करते वक्त मलिक स्कूल कैसे जाते थे इस सवाल पर वे बताते हैं, ''इसके रास्ते में कोई भी पुल नहीं है. बस से स्कूल तक तक सात किलोमीटर के रास्ते के दौरान सिर्फ़ एक पुल है जो कि अभी हाल ही में बना है. जब मैं पहली बार स्कूल पढ़ाने गया था तो मैं बस लेकर जाता था और 12 किलोमीटर के बाद एक पुल पड़ता था. मुझे तीन-तीन बसें बदल कर जाना पड़ता था."  मलिक बताते हैं कि उन्हें घर से जल्दी निकलता होता था ताकि कभी स्कूल के लिए देरी न हो. सवा दस बजे तक स्कूल पहुँचने के लिए मुझे लगभग साढ़े आठ बजे घर से निकलना पड़ता था. इस तरह उन्हें गाँव से नदी के दूसरे छोर पर बसे गाँव तक पहुँचने में दो घंटे लग जाते थे. सबसे ज़्यादा वक्त तो बस का इंतज़ार करने में जाया हो जाता था.  

भारत के आम गाँवों के स्कूलों की स्थिति कुछ इसी तरह की होती है. पढ़ाने के लिए तैरकर स्कूल जाने का विचार कैसे आया, इस पर मलिक कहते हैं, ''एक साथी शिक्षक ने मुझे नदी में तैरकर स्कूल आने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने मुझे बताया कि तैरकर स्कूल आना मेरे लिए आसान रहेगा. फिर मैंने तैरना सीखा और इसके बाद मैं फिर मैं तैरकर स्कूल पढ़ाने के लिए जाने लगा.''

क्या कभी किसी ने आपको ऐसा करने से रोकने की कोशिश की? इस सवाल पर मलिक जबाव देते हैं ,''किसी ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की. हाँ शुरुआत में मेरे परिवार को थोड़ी दिक्कत हुई. मेरी माँ मेरे इस काम को लेकर चिंतित थीं क्योंकि नदी में पानी का स्तर बहुत ज्यादा होता था. लेकिन जल्द ही सब समझ गये कि मैं तैरकर आसानी से स्कूल जा सकूँगा और फिर सबने इसे स्वीकार कर लिया.''

अपनी दिनचर्या के बारे में अब्दुल मलिक कहते हैं, ''मैं साढ़े पाँच बजे सोकर उठता हूँ. चाय पीने के बाद मैं स्कूल का कुछ काम निबटाकर साढ़े आठ बजे तक नहाने के बाद शर्ट और धोती पहनकर मैं स्कूल के लिए निकल जाता हूँ. अपने बैग में छाता, तौलिया, लंच और कुछ किताबों से भरा बैग भी मेरे साथ होता था.''  "कादालुंदी नदी लगभग 70 मीटर चौड़ी है. इसलिए इसे पार करना ज़्यादा कठिन नहीं होता. कभी-कभी नदी में तैरते हुए पेड़, कीड़े-मकोड़े,नारियल, कूड़ा, भी होते हैं लेकिन मैं इन सबसे नहीं डरता. ये चीजें मुझे मेरे लक्ष्य से भटका नहीं सकतीं."

 

मलिक बताते हैं, ''नदी किनारे पहुँचने के बाद मैं अपने कपड़े उतार, तौलिया लपेट कर सारा सामान बैग में रख नदी में तैरने के लिए उतर जाता हूँ. मेरे पास रबड़ के टायर की तरह एक ट्यूब भी होती है जो मुझे नदी से डूबने से बचाने में मदद करती है. इसके लिए मेरे बैग में एक विशेष जगह है. तैरने के दौरान मैं सामान से भरा बैग अपने सर के ऊपर रखता हूँ. इसके बाद नदी के दूसरे छोर पर पहुँचने के बाद मैं अपने कपड़े दोबारा पहन स्कूल पहुँच जाता हूँ.''

अब्दुल मलिक नौवीं कक्षा से ही चश्मा पहनते हैं और तैरते वक्त भी वे इसे पहने रहते हैं.  मलिक के मुताबिक बरसात के मौसम में नदी में पानी थोड़ा गंदा होता है लेकिन सामान्यतः नदी में पानी साफ होता है. बरसात के मौसम में पानी में 20 फीट नीचे तैरता हूँ लेकिन गर्मियों में नदी का स्तर बहुत ही कम होता है.''  मलिक के इस जुनून को लेकर लोगों की प्रतिक्रया के बारे में मलिक कहते हैं, ''लोगों की पहली बार जब लोगों ने मुझे तैरते देखा था तो वे उत्साहित और हैरान थे लेकिन अब उन्हें इसकी आदत हो गई है.

वे जानते हैं कि साढ़े नौ बजे मैं उन्हें नदी में तैरते मिल जाऊँगा. तैरने के बाद मैं थकान महसूस नहीं करता. गर्मियों में तैरकर स्कूल पहुँचने के बाद मैं तरोताजा महसूस करता हूँ. स्कूल से लौटने के बाद भी मैं तैरने की वही प्रक्रिया दोहराता हूँ.''

 

साभार- http://www.bbc.co.uk/ से

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पारिवारिक जीवन मूल्य बचाने के लिए एक जैन मुनि का शंखनाद

मुंबई शहर में ऐसे तो हर दिन की न कोई आयोजन होता है जिसमें ग्लैमर की चकाचौंध से लेकर कॉर्पोरेट की दुनिया के कार्यक्रम भी शामिल होते हैं। लेकिन किसी कार्यक्रम में रविवार के दिन सुबह 10 बजे एक साथ हजारों लोग पहुँच जाए और ठीक दस बजते ही कार्यक्रम में परवेश बंद कर दिया जाए ऐसा अनुभव अपने आप में चौंकाने वाला था।

मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर के पास स्थित खुले मैदान में पिछले कुछ रविवारों से ये नजारा देखने को मिला। इस परिसर में जैन मुनि परम पूज्य गणविजय श्री नय पद्मसागरजी  महाराज के प्रवचनों में परिवार में सद्भाव व पारिवारिक मूल्यों व संस्कृति को कैसे बचाया जाए इस विषय पर आयोजित प्रवचनों को सुने के बाद उनके व्यक्तित्व का एक अलग ही स्वरूप सामने आता है।

दस बजते ही श्री नय पद्मसागरजी  महाराज परिसर में प्रवेश करते हैं और हजारों लोगों की भीड़ का शोर-शराबा कदम निस्तब्धता में बदल जाता है। फिर कार्यक्रम की शुरुआत होती है बेहद औपचारिक रूप से इस आयोजन की सफलता से जुड़े कुछ लोगों का सम्मान होता है और फिर मुनि श्री श्री नय पद्मसागरजी  महाराज का ओजस्वी प्रवचन शुरु होता है। सब-कुछ मानो थम सा जाता है। किसी संत या मुनि को सुनते समय प्रायः हमारी धारणा होती है कि वे बहुत धीमे स्वर में अपनी बात कहेंगे, लेकिन श्री नय पद्मसागरजी  महाराज की वाणी को जोश और ओजस्व देखकर तो श्रोताओं की सुस्ती ही उड़ जाती है।

आज के दौर में पारिवारिक मूल्यों, संस्कारों और परंपराओं के विघटन पर वे चोट ही नहीं करते हैं बल्कि उसके सहज-सरल उपाय भी बताते हैं। वे महिलाओं का पक्ष भी लेते हैं और छोटी छोटी प्रेरक कथाओं और सारगर्भित उध्दरणों से महिलाओं को चेतावनी भी देते हैं। उनकी वामी का तेज प्रवाह चलताजाता है और श्रोता उसमें डूबता जाता है। दो ढाई घंटे तक अनवरत चलने वाले प्रवचन में उनकी वाणी का जोश कहीं कमजोर नहीं पड़ता, वे श्रोताओं को ललकारते भी हैं पुचकारते भी हैं और समझाते भी हैं, बात कहने का तरीका ऐसा कि उनका हर शब्द मर्मभेदी सा ह्रदय के तारों को झंकृत करता हुआ श्रोताओं की आँखों से आँसू बनकर निकलने लगता है।

परिवार की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं, हमारी भारतीय संस्कृति में परिवार की परिभाषा बहुत व्यापक है जिसमें माता-पिता से लेकर भाई बहन, पति-पत्नी, ननंद भोजाई, बुआ-फूफा, मौसा-मौसी, काका-काकी सभी शामिल हैं। जबकि अंग्रेजी डिक्शनरी में फैमिली की परिभाषा में कहा गया है में पति-पत्नी इटीसी।

इसी मानसिकता पर चोट करते हुए श्री नय पद्मसागरजी  कहते हैं हमने अपने रिश्ते-नातों को ही भुला दिया। हमने अपने परिवार से परिवार के लोगों का ही पत्ता काट दिया तो फिर परिवार बचेगा कैसे? फैशन के नाम पर युवतियों के पहनावे पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय स्त्री अपने पारंपरिक परिधान में ही शीलवान और संकोची नज़र आती है। विदेशी पहनावे ने हमारी संस्कृति के साथ क्कूर मजाक किया है।

अपने तीखे प्रवचन के दौरान श्री नय पद्मसागरजी  ने स्त्रियों और पुरूषों दोनों को ही चेतावनी दि कि अगर उन्होंने पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मर्यादा का पालन नहीं किया तो उन्हें इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगें।  उन्होंने कहा कि आज मोबाईल और टीवी ने आपका पूरा समय छीन लिया है। पति जब काम से थका-हारा आकर घर ता है तो  पत्नी अपने टीवी धारावाहिक के ब्रेक का इंतज़ार करती है ताकि पति को पानी पिला सके। फिर अगले ब्रेक का इंतज़ार करती है ताकि खाना खिला सके। यही हाल पति महोदय का है वे खाना खाने के बाद अपने मोबाईल में मशगूल हो जाते हैं। यानी घर में किसी के पास किसी के लिए समय ही नहीं है।

उन्होंने कहा कि सामूहिक परिवार में बच्चे अपने काका-काकी, दादा-दादी और नाना-नानी के साये में कब बड़े हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता है लेकिन जब से नौकरी करने वाले पति-पत्नी ने अपने माता-पिता को घर से दूर किया है, उनकी संतानें भी उनसे दूर हो गई है। एक ओर तो वे अपनेही माता-पिता से प्यार से वंचित हैं तो दूसरी ओर उनके बच्चे अपने माता-पिता के प्यार से वंचित हैं। इसी वजह से बच्चों का पूरा समय टीवी और मोबाईल पर गेम खेलने में चला जाता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ये स्थिति बच्चों के व्यक्तित्व के ले बेहद खतरनाक है।

उन्होंने कहा कि किसी घर में जिस दिन सास अपनी बहू को बेटी मान लेगी उस दिन कई समस्याएँ अपने आप समाप्त हो जाएगी।

कई लोक कथाओं और ज्वलंत सामाजिक उदाहरणों के माध्यम से, अपने पास आने वाले लोगों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली समस्याओं आदि के माध्यम से श्री नय पद्मसागरजी  ने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों क एक दूसरे के प्रति समर्पण परिवार को ही नहीं बचाता है बल्कि पूरे परिवार में खुशहाली भी लाता है। प्रवचन के दौरान वहाँ मौजूद श्रोताओं की भीड़ कभी ठहाके लगाती तो कभी भावशून्य होकर उनके प्रवचनों की गंभीरता को समझने की कोशिश करती तो कभी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी बात का समर्थन कर रही थी।

अपने प्रवचन के दौरान श्री नय पद्मसागरजी  ने जिस उष्मा, गरिमा और मर्मभेदी शब्दों के साथ परिवार नाम की परंपरा और विरासत को बचाने के लिए अपनी बात कही, वह अगर वहाँ मौजूद श्रोताओं के लिए सबक बन जाए तो पूरे समाज को एक नई दिशा मिल सकती है। 

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प्रधान मंत्री पर फिल्म बनाएंगे कुंदन शाह

जाने भी दो यारो जैसी कालजयी फिल्म के निर्देशक कुंदन शाह एक बार फिर सक्रिय हो चुके हैं। इस बार वे पी से पीएम तक नाम की व्यंग्यात्मक फिल्म बना रहे हैं। इस फिल्म का निर्माण पेन यानी पॉपुलर एंटरटेनमेंट नेटवर्क के जयंतीलाल गाडा कर रहे हैं। इस फिल्म में आज की राजनीति के विडंबनापूर्ण पक्ष को चित्रित किया जा रहा है।

फिल्म की कहानी के केंद्र में एक ऐसी औरत है, जो जिस्मफरोशी का धंधा करती है। लेकिन एक दिन जब उसके भीतर राजनीतिक महत्वाकांक्षा पनपती है, तो वह देह के सहारे शीर्ष पर पहुंच जाती है। इस फिल्म में पहले मल्लिका शेरावत को लिया जा रहा था, लेकिन अब उनकी जगह एक नई अभिनेत्री मीनाक्षी दीक्षित को मौका दिया जा रहा है। बता दें कि वीडियो कारोबार के लिए मशहूर पेन कंपनी अब पूरी तरह से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कूद चुकी है। विद्या बालन अभिनीत फिल्म कहानी के निर्माण से चर्चा में आई इस कंपनी की नई फिल्म सिंह साब द ग्रेट है।

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वकीलों के बीच वैदिक न्याय व्यवस्था पर हुआ विस्तृत व्याख्यान

आर्य समाज सिकंदरा राऊ  जिला हाथरस के तत्वावधान में २३ अक्टूबर २०१३ को  एडवोकेट बार कोंसिल के विशाल कक्ष में न्याय विषयक उपदेश हुआ | प्रवक्ता थे होशंगाबाद (मध्य प्रदेश )के आचार्य श्री आनंद पुरुषार्थी जी |लगभग २ घंटे तक चले इस कार्यक्रम मे आचार्य जी ने न्याय व नैतिकता को एक दूसरे का पर्याय बताया | धन यश के लालच में अपने धंधे में बेईमानी करने वाले लोगों को जमकर लताड़ा | ईश्वर किसी भी परिस्थति में किसी भी कर्म फल को माफ़ नहीं करता है भगवान् सभी जगह होने से मन वाणी और शरीर से हमारे द्वारा किये जाने वाले कर्मों को वह देख कर वह उनका फल अवश्य देता है | अत : हम सभी को पाप कार्यों से बचना चाहिए |उपदेश के बाद वकील भाइयों के प्रश्नों के यथोचित उत्तर भी आचार्य जी ने दिए |आर्यसमाज व वैदिक धर्म की कुछ आवश्यक पुस्तकों के नाम लिखवाये व इनको बुला कर पढने की प्रेरणा दी |बार कोंसिल को सत्यार्थ प्रकाश भेंट किया |आर्यसमाज के अधिकारी प्रधान राधेश्याम गुप्ता जी की पूरी टीम के साथ और  जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष श्री दिनेश कुमार चौहान ,श्री युवराज सिंह चौहान पूर्व अध्यक्ष, गोरीशंकर गुप्ता पूर्व अध्यक्ष सहित बहुत वकील  इसमें उपस्थित थे | अर्यासमाज सिकंदरा राऊ का वार्षिकोत्सव २० से २२ अक्टूबर तक मनाया गया था जिसमे आचार्य जी वक्ता के रूप में आमंत्रित थे |

श्याम बाबू वार्ष्णेय
मंत्री आर्यसमाज
सिकंदर राऊ
जिला हाथरस

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हेमा-धरमेंद्र की बेटी अहाना की शादी तय

हेमा मालिनी और धर्मेद्र की छोटी बिटिया अहाना की शादी तय हो गई है। खबर है कि अहाना की शादी की तारीख 2 फरवरी 2014 को होगी। पिछले दिनों खबर आई थी कि धर्मेद्र और हेमा की छोटी बेटी अहाना की मंगनी दिल्ली के एक व्यवसायी वैभव वोरा से 22 अक्टूबर को हो गई। 28 वर्षीय अहाना मंगनी से कुछ महीने पहले से ही वैभव के साथ घूम रही थी। इनकी मंगनी परिवार के जुहू वाले बंगले पर निजी रूप से हुई थी, जिसमें सिर्फ परिवार के लोग शामिल थे।

 

शादी की रस्मों के बारे में दोनों परिवारों ने अभी तक कुछ तय नहीं किया है। हेमा कहती हैं कि शादी पंजाबी होगी या दक्षिण भारतीय, ये निर्णय लेना बाकी है। अहाना और वैभव पहली बार ऐशा की शादी में मिले थे और धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे को लेकर गंभीर हो गए और आगे चलकर दोनों ने शादी का फैसला कर लिया।

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विद्या भवन पॉलिटेक्निक के विक्रम सिंह पूरे भारत में प्रथम

रबर टेक्नोलॉजी सेन्टर आई.आर.आई.परीक्षा,आई.आई.टी. खड्गपुर के परिणाम

वरीयता सूची में कुल तीन विद्यार्थी

उदयपुर। विद्या भवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय के पॉलिमर साइंस एवं रबर टेक्नोलॉजी पोस्ट डिप्लोमा के विद्यार्थियों ने, रबर टेक्नोलोजी सेन्टर आई.आई.टी. खड्गपुर द्वारा आयोजित डिप्लोमा इन इन्डियन रबर इन्स्टीट्यूट (डी.आई.आर.आई.) एवं पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन इन्डियन रबर इन्स्टीट्यूट (पी.जी.डी.आई.आर.आई.) में वरीयता सूची में राष्ट्रीय स्तर पर मेरिट प्राप्त की है।

संस्था के प्राचार्य अनिल मेहता ने बताया कि पॉलिमर साइंस एवं रबर टेक्नोलॉजी के विक्रम सिंह राव ने डी.आई.आर.आई. परीक्षा की वरीयता सूची में पूरे भारत में प्रथम एवं भरत भूषण नागदा ने वरीयता सूची में पूरे भारत में तीसरा स्थान प्राप्त किया। इसी प्रकार रोहित सिंह कुषवाह ने पी.जी.डी.आई.आर.आई. परीक्षा में वरीयता सूची में पूरे भारत में तृतीय स्थान प्राप्त किया है।
पोस्ट डिप्लोमा में प्रवेश प्रारम्भ

 प्राचार्य अनिल मेहता ने बताया कि प्राविधिक षिक्षा मण्डल, राजस्थान सरकार ने पोस्ट डिप्लोमा इन रबर टेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम में प्रवेष प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। डेढ़ वर्षीय इस पाठ्यक्रम में इन्जीनियरिंग के किसी भी संकाय में डिग्री अथवा डिप्लोमाधारी विद्यार्थी प्रवेष के पात्र हैं। देष में एक मात्र विद्या भवन में संचालित पोस्ट डिप्लोमा इन पॉलिमर साइंस एवं रबर टेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम में रोजगार के सौ फीसदी अवसर उपलब्ध हैंं।

इस पोस्ट डिप्लोमा के साथ-साथ विद्यार्थी आई.आई.टी. खड्गपुर की आई.आर.आई. परीक्षा के भी पात्र होते हैं। इस प्रकार यह ड्यूल डिग्री कोर्स है।

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मंगल यान की यात्रा के पीछे की पूरी कहानी

भारत का मंगलयान देश की सबसे महत्वाकांक्षी 20 करोड़ किलोमीटर दूर की अंतरिक्ष यात्रा पर जरवाना हो चुका है। 1,350 किलोग्राम का यह उपग्रह एक अरब से अधिक भारतीयों के सपनों के साथ आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से रवाना किया गया है। मंगल ग्रह के लिए इस अंतरिक्ष अभियान से राष्ट्रीय गौरव भी जुड़ा हुआ है.   भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में सैटेलाइट विकसित किया है. इसरो ने इस मानवरहित सैटेलाइट को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया है. इसकी कल्पना, डिजाइन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने किया है और इसे भारत की धरती से भारतीय रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. भारत के पहले मंगल अभियान पर 450 करोड़ रु. का खर्च आया है और इसके विकास पर 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया है.  

 

इस भारतीय सैटेलाइट में भारत में बने करीब 15 किलोग्राम वजन के पांच अंतरिक्ष उपकरण होंगे जो मंगल के वायुमंडल के नमूने लेंगे, जिसके बारे में हमारी जानकारी बहुत कम है. दुनिया का वैज्ञानिक समुदाय पहली बार मीथेन गैस सेंसर मंगल ग्रह पर भेजने के भारत के प्रयास को लेकर काफी उत्साहित है. लाल ग्रह मंगल पर मीथेन गैस की उपस्थिति वहां कार्बन आधारित जीवन का पक्का सबूत होगी.   भारत के मंगल अभियान के लिए इसरो के प्रोग्राम मैनेजर एम. अन्नादुरै पुख्ता ढंग से यह बात कहते हैं कि मंगल यान वहां पर मीथेन के होने या न होने को ‘स्पष्ट’ रूप से साबित कर देगा. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मार्स एटमॉस्फेयर ऐंड वोलेटाइल इवॉल्यूशन मिशन (एमएवीईएन) के मुख्य इन्वेस्टिगेटर ब्रूस एम. जाकोस्की का कहना है, “मैं काफी उत्साहित हूं कि पहली बार मंगल की कक्षा में मीथेन गैस से जुड़ी विश्वसनीय जानकारी मिल सकेगी.”

 

इसके यह मायने निकाले जा सकते हैं कि मंगल पर कदम रखे बिना ही भारत इस बड़े सवाल का जवाब देना चाहता है कि क्या इस ब्रह्मंड में हम अकेले हैं? एक अत्याधुनिक कैमरा मंगल ग्रह के रंगीन चित्र भी लेगा, जबकि एक अन्य प्रयोग यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि मंगल पर विरल वायुमंडल (थिन एटमॉस्फेयर) निरंतर कैसे बदलता रहता है.  

 

यह इस बात को समझने के लिए भी जरूरी है कि क्या कभी मंगल पर इंसानी बस्तियां बसाई जा सकती हैं. ग्रहों से जुड़ा आश्चर्यजनक संयोग है कि हाल ही में खोजा गया साइडिंग स्प्रिंग नाम का पुच्छल तारा 2014 में मंगल ग्रह के करीब से गुजरने वाला है और इस बात की पूरी संभावना है कि मंगलयान इस पुच्छल तारे के पिछले हिस्से से होकर गुजरेगा, जिससे उसे सही समय पर सही जगह होने का दुर्लभ मौका मिलेगा.

 

इसरो के चेयरमैन के. राधाकृष्णन का कहना है कि भारत का मंगल अभियान वास्तव में “टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन्य” करने वाला है, जिससे दुनिया को यह दिखाया जा सकेगा कि भारत दूसरे ग्रहों तक भी छलांग लगा सकता है. अब तक सिर्फ रूस, जापान, चीन, अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मंगल ग्रह तक जाने की कोशिश की है, जिनमें से सिर्फ अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को सफलता मिली है.

 

1960 से 45 मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं, जिनमें एक-तिहाई असफल रहे. 2011 में चीन के मिशन की असफलता सबसे ताजा उदाहरण है. अगर भारत मंगल ग्रह तक पहुंच गया तो पूरी तरह अपने दम पर यह कामयाबी हासिल करने वाला दुनिया का दूसरा देश होगा. नासा के एडमिनिस्ट्रेटर चाल्र्स बोल्डन ने भारत के इस पहले मंगल अभियान का समर्थन करते हुए कहा है, “अधिक से अधिक देशों का खोज से जुड़े प्रयासों खासकर मंगल खोज अभियान में हिस्सा लेना रोमांचक है.

 

इसमें हम कम्युनिकेशन और डाटा ट्रांसमिशन के जरिए सहयोग दे रहे हैं. हमारी भी उसमें भागीदारी है.”  बहुत से लोगों का मानना है कि यह 21वीं शताब्दी में एशिया में अंतरिक्ष होड़ की शुरुआत है. दो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भारत और चीन ग्रहों के बीच इस आधुनिक मैराथन में टक्कर ले रहे हैं. मंगल तक पहुंचने का तीसरा उम्मीदवार भी मैदान में है. 1998 में जापान का नोजोमी मार्स सैटेलाइट असफल रहा था.   

 

 वैसे तो अंतरिक्ष अभियान के लगभग हर पहलू में चीन ने भारत को मात दी है; उसने पहला मानव मिशन 2003 में भेजा था; उसका चंद्र मिशन भी भारत से पहले हुआ था फिर भी मंगल की यात्रा शायद भारत को बढ़त दिला देगी. नवंबर, 2011 में रूस के उपग्रह फोबोस ग्रंट पर सवार चीन का पहला मंगल यान यिंगहुओ-1 अंतरिक्ष में जाने में ही नाकाम हो गया था. इसरो के चेयरमैन का कहना है, “हम किसी से होड़ नहीं लगा रहे हैं. भारत के मंगल अभियान की अपनी प्रासंगिकता है.” फिर भी वे मानते हैं कि इस अभियान से कहीं न कहीं  ‘राष्ट्रीय गौरव’ जुड़ा है.”  

 

मंगलयान बनाने वाली टीम के मुखिया 50 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर सुब्बियन अरुणन ने बताया कि पिछले 15 महीने में अधिकतर रातें उन्होंने सैटेलाइट सेंटर में ही गुजारी हैं. अरुणन इस जल्दबाजी की एक अधिक तर्कसंगत वैज्ञानिक वजह बताते हैं. उनका कहना है कि मंगल ग्रह के लिए प्रक्षेपण का मौका हर 26 महीने में सिर्फ एक बार मिलता है. इस अवधि में हम पीएसएलवी जैसे कम शक्ति के लॉन्चर के जरिए भी मंगल तक पहुंच सकते हैं. अरुणन का कहना है कि इस जल्दबाजी की असली वजह ग्रहों की स्थिति में निरंतर होते बदलाव हैं.

 

भारत का यह यान 10 महीनों से ज्यादा समय के लिए अंतरिक्ष में रहेगा. अरुणन और उनके साथियों ने ज्यादातर छुट्टियों में भी काम किया और काम को डेडलाइन पर पूरा किया है.  भारत के मंगल अभियान की शुरुआत लीक से हटकर होगी क्योंकि पीएसएलवी मंगल यान को मंगल के सीधे रास्ते पर डालने के लिए पर्याप्त ताकत नहीं दे सकता. यह सैटेलाइट एक महीने तक पृथ्वी का चक्कर लगाएगा और सैटेलाइट में लगी रॉकेट मोटर के साथ उसमें जमा 852 किलो ईंधन का इस्तेमाल करते हुए इतना वेग हासिल कर लेगा कि नवंबर में 20 करोड़ किलोमीटर से भी लंबी यात्रा शुरू कर सकेगा. इस तरह पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से निकलने वाला यह भारत का पहला अंतरिक्ष यान होगा.     

 

भारत का ताकतवर रॉकेट पीएसएलवी अपने 25वें प्रक्षेपण में मंगल यान को अंतरिक्ष में ले जाएगा. सात मंजिला बिल्डिंग यानी 44 मीटर की ऊंचाई वाले पीएसएलवी रॉकेट का 300 टन का वजन पूरी तरह लदे हुए 747 बोइंग जंबो जेट के वजन के लगभग बराबर होगा. रॉकेट पर नजर रखने के लिए भारत पहली बार प्रशांत महासागर में दो विशेष जहाज तैनात करेगा.   नौ महीने के सफर के बाद सैटेलाइट जब मंगल के करीब पहुंचेगा तो मंगलयान की गति धीमी की जाएगी ताकि वह मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण में बंध सके.

 

एक बार ऐसा हो जाने पर यह यान अंडाकार कक्षा में घूमेगा और करीब छह महीने तक मंगल का अध्ययन करेगा.  इसरो के अनुसार इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती 20 से 40 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर मंगलयान से संचार संपर्क साधने की होगी. बंगलुरू से सैटेलाइट तक एकतरफ हुआ संदेश पहुंचने में कम-से-कम 20 मिनट लगेंगे. बंगलुरू के पास ब्यालालू में इस काम के लिए एक विशाल डिश एंटिना लगाया गया है.

 

सैटेलाइट और कंट्रोल रूम के बीच दोतरफा संपर्क में कम से कम 40 मिनट का अंतराल होगा. विमान की औसत गति 700 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. जरा-सी चूक होने पर करीब 9,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलता अंतरिक्ष यान आसानी से गुम हो सकता है. ऐसे किसी भी हादसे से बचने के लिए इसरो ने सैटेलाइट में चार कंप्यूटर लगाए हैं, जिससे सैटेलाइट पर पूरा नियंत्रण रह सके.

 

अब सवाल यह है कि जो देश अपनी 40 करोड़ जनता को आज भी बिजली नहीं दे सकता और जिसके 60 करोड़ निवासी खुले में शौच करते हैं क्या उसके लिए यह बहुत ऊंची छलांग है या शेख चिल्ली का पुलाव? इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर है कि आप विभाजन रेखा के किस तरफ  खड़े हैं.  

 

मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने एक अखबार को बताया, “यह महाशक्ति बनने के भारत के अभिजात्य वर्ग के हवाई सपने का हिस्सा लगता है.” 2008 में भारत के पहले चंद्र अभियान चंद्रयान-1 के सूत्रधार रहे इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर इसे राष्ट्रीय फिजूलखर्ची मानते हैं. उनकी नजर में यह वैज्ञानिक मिशन कतई नहीं है.   इन तमाम तर्कों को खारिज करते हुए इसरो के चेयरमैन राधाकृष्णन का कहना है, “भारत शून्य से शिखर तक अंतरिक्ष में अपनी टेक्नोलॉजी संबंधी दक्षता के सहारे एक से दूसरे ग्रह तक यात्रा करने की क्षमता दिखा रहा है.” फिलहाल हम सिर्फ पूरे खेल को देख सकते हैं और नतीजे आने का इंतजार कर सकते हैं.   

लेखक डेस्टिनेशन मूनः इंडियाज क्वेस्ट फॉर मून, मार्स ऐंड बियोंड के लेखक हैं.  

साभारः इंडिया टुडे हिन्दी से

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वी.के.सिंह का आरोप, 26 लाख का ट्रक 1 करोड़ में खरीदा

पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह ने हथियारों की खरीद-फरोख्त को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सिंह ने गुरुवार को कहा कि हथियार लॉबी काफी ताकतवर हो गई है। उन्होंने कहा कि हथियार लॉबी देश में सिस्टम का एक हिस्सा बन चुकी है। टाट्रा ट्रक करार मुद्दे पर सिंह ने कहा कि यह बड़ी हैरत की बात है कि जो ट्रक चेक गणराज्य में 26 लाख रुपए में उपलब्ध था उसे भारत में 1 करोड़ में बेचा गया।
 

सिंह ने एक अंग्रेजी न्यूज चैनल से कहा कि उन्होंने टाट्रा ट्रकों की खरीद को मंजूरी देने के एवज में 14 करोड़ रुपए की घूस की पेशकश के बारे में रक्षा मंत्री से चर्चा की थी।  अपनी आत्मकथा 'करेज ऐंड कनविक्शन' का हवाला देते हुए सिंह ने कहा, 'हथियार लॉबी अब काफी ताकतवर है। जहां तक हथियार डीलरों की बात है, वे सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं।' अपनी किताब में सिंह ने लिखा है कि उन्होंने घूस की पेशकश के बारे में रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी को बताया था और उनसे सावधान रहने को कहा था।
 

चैनल द्वारा यह सवाल किए जाने पर कि क्या जम्मू-कश्मीर के नेताओं को आर्मी द्वारा धन देने के अपने बयान पर वह अब भी कायम हैं, इस पर सिंह ने कहा कि वह पहले ही इस मुद्दे पर सफाई दे चुके हैं।  सिंह ने कहा, 'मैंने कभी नहीं कहा कि आर्मी नेताओं को पैसे देती है। मैंने सिर्फ इतना कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थिरता की प्रक्रिया में कुछ पैसे खर्च किए जाते हैं।'

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