मप्र पुलिस ने 69 उर्दू व फारसी शब्दों पर प्रतिबंध लगाया

मप्र पुलिस ने पुलिस की लिखा-पढ़ी और बोलचाल की भाषा में उर्दू, फारसी और अन्य भाषाओं के 69 शब्दों का इस्तेमाल अब बंद कर इनकी जगह हिंदी का उपयोग होगा। यह कवायद सवा दो साल से चल रही थी और अब गृह विभाग के आदेश पर पुलिस मुख्यालय द्वारा उक्त आशय के आदेश जारी कर दिए हैं।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पुलिस मुख्यालय भोपाल द्वारा पुलिस आयुक्त नगरीय पुलिस जिला भोपाल एवं इंदौर सहित समस्त पुलिस अधीक्षक अजाक एवं रेल मप्र को जारी पत्र में उल्लेख किया गया है कि पुलिस विभाग द्वारा की जा रही कार्यवाहियों में उर्दू, फारसी आदि अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है।

शासन द्वारा अपेक्षा की गई है कि पुलिस द्वारा की जा रही कार्यवाही में गैर हिन्दी शब्दों के स्थान पर हिंदी शब्दों का प्रचलन अधिक हो। अत: उपरोक्त संबंध में तैयार किए गए शब्दकोष की एक प्रति आपकी ओर अग्रिम कार्यवाही हेतु संलग्न की जा रही है। आपके अधीनस्थ समस्त इकाइयों को वितरित कर हिंदी शब्दों का प्रयोग किए जाने हेतु निर्देशित करें। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी किए गए पत्र के संलग्न हिंदी शब्दकोष में अदालत की जगह न्यायालय, इस्तगासा की जगह दावा या परिवाद, फरियादी को आवेदक, गिरफ्तार/हिरासत को अभिरक्षा लिखा जाएगा।

अब ये शब्द बदल जाएंगे
ताजिरात-ए-हिंद : भारतीय दंड संहिता
जाप्ता फौजदारी : दंड प्रक्रिया संहिता
अदालत : न्यायालय
कैदखाना : बंदी गृह
हाजिर/गैरहाजिर : उपस्थित/अनुपस्थित
तफ्तीश/तहकीकात : अनुसंधान/जांच
तहरीर : लिखित/लेखीय विवरण
इस्तगासा : दावा, परिवाद
इरादतन : साशय
कब्जा : आधिपत्य
कत्ल/कातिल/कतिलाना : हत्या, वध/ हत्यारा/ प्राणघातक
गुजारिश : प्रार्थना, निवेदन
गिरफ्तार/हिरासत : अभिरक्षा
नकबजनी : गृहभेदन, सेंधमारी
चश्मदीद गवाह : प्रत्यक्षदर्शी, साक्षी
बयान : कथन शेष 7 पेज 14 पर
फरियादी : आवेदक, शिकायतकर्ता
हलफनामा : शपथ पत्र
फैसला : निर्णय
मौत : मृत्यु
सजा/बरी : दोषसिद्ध/दोषमुक्त
मुकीम : रुकना, ठहरना
माकूल : उचित
मुल्जिम/मुजरिम : आरोपी/अपराधी
अदम चैक : असंज्ञेय, पुलिस हस्तक्षेप, अयोग्य अपराध की सूचना
जुर्म, (जरायम) दफा : अपराध, धारा
आमद/रवाना: रवानगी आगमन, प्रस्थान
कायमी : पंजीयन
कैफीयत/मजनून/तफसील : विवरण, विस्तृत विवरण
इत्तिला/इत्तिलान : सूचना/सूचनार्थ
तामील/अदम तामील : सूचना/सूचित न होना
म्याद : समय सीमा, अवधि
खारिज/खारिजी : निरस्त/ निरस्तीकरण रद्द
खैरियत : कुशलता
गवाह/गवाहन : साक्षी/साक्षीगणद्य
जमानत/मुचलका : प्रतिभूति/बंध पत्र
जप्त : अभिग्रहण, अधिग्रहण
तहत : अंतर्गत
जख्म/जख्मी/मजरूब : चोट, घाव/ घायल, आहत
ताकीद/हिदायत : चेतावनी, समझाइश
तब्दील : परिवर्तित, परिवर्तन
दस्तावेज : प्रपत्र अभिलेख
दस्तयाब : खोज लेना, बरामद
मौका-ए-वारदात : घटनास्थल
मशरुका : संपत्ति
मुतफर्रिक : विविध
मर्ग : अकाल मृत्यु
मंजूरशुदा : स्वीकृत
शिनाख्त : पहचान
सबूत : साक्ष्य, प्रमाण
संगीन : गंभीर
हमराह : साथ में
आला ए कत्ल : घटना, अपराध या हत्या में प्रयुक्त हथियार
गोशवारा : नक्शा
दस्तंदाजी/अदम दस्तंदाजी : संज्ञेय/असंज्ञेय




फिल्म में हीरो बनने आए तलत महमूद ने गायक बनकर पहचान बनाई

तलत महमूद का जन्म 24 फरवरी, 1924 को लखनऊ में हुआ था और 9 मई, 1998 को निधन हुआ. वे अपनी माता तथा गायक पिता की छठी संतान थे। उनके पिता अपनी आवाज को अल्लाह का दिया गला कहकर अल्लाह को ही समर्पित करने भर की इच्छा रखते थे और केवल नातें कहलाए जाने वाले इस्लामिक धार्मिक गीत गाते थे। बचपन में तलत ने अपने पिता की नकल करने की कोशिश की जिसका घर में ज्यादा समर्थन नहीं मिला।

उनकी एक बुआ उनको सुनती थीं और प्रोत्साहन देती थीं। उन्होने ही अपनी जिद पर किशोरवय तलत को संगीत की शिक्षा के लिए मॉरिश कालेज में दाखिल भी करवा दिया। सोलह साल की उम्र में तलत को कमल दासगुप्ता का गीत सब दिन एक समान नहीं गाने का मौका मिला। यह गीत प्रसारित होने के बाद लखनऊ में बहुत लोकप्रिय हुआ। लगभग एक साल के भीतर, प्रसिद्ध संगीत रेकॉर्डिंग कम्पनी एच एम वी की टीम कलकत्ता से लखनऊ आई और पहले उनके दो गाने रेकॉर्ड किये गए। उनके चलने के बाद तलत के चार और गाने रेकॉर्ड किए गए जिसमें ग़ज़ल तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी भी शामिल थी। यह ग़ज़ल बहुत पसन्द की गई और बाद में एक फिल्म में शामिल भी की गई।

दूसरे विश्वयुद्ध के समय उन दिनों में पार्श्व गायन का शुरुआती दौर था। अधिकतर अभिनेता अपने गाने खुद गाते थे। कुन्दन लाल सहगल की लोकप्रियता से प्रेरित होकर तलत भी गायक–अभिनेता बनने के लिए सन 1944 में कलकत्ता जा पहुंचे, जो उस समय इन गतिविधियों का प्रधान केन्द्र था। लगभग उसी समय जब कुन्दन लाल सहगल कलकत्ता छोड़कर मुंबई गए थे। कलकत्ता में संघर्ष के बीच तलत की शुरुआत बांग्ला गीत गाने से हुई। रिकार्डिंग कंपनी ने गायक के रूप में उनको तपन कुमार नाम से गवाया। तपन कुमार के गाए सौ से ऊपर गीत रेकॉर्डों में आए। न्यू थियेटर्स ने 1945 में बनी राजलक्ष्मी में तलत को नायक–गायक बनाया। संगीतकार राबिन चटर्जी के निर्देशन में इस फ़िल्म में उनके गाए जागो मुसाफ़िर जागो ने भरपूर सराहना बटोरी। उत्साहित होकर वे मुंबई जाकर अनिल विश्वास से मिले। अनिल दा ने यह कहकर लौटा दिया कि अभिनेता बनने के लिए वे बहुत दुबले हैं। बदन पर चरबी चढ़ाकर आने की नसीहत के साथ तलत वापस कलकत्ता चले गए¸ जहां उन्हें 1949 तक कुल दो फ़िल्में ही और मिली¸ तुम और वो और समाप्ति। कलकत्ता में काम ढीला देखकर वे पुन: मुंबई पहुंच गए।
अबकी बार अनिल विश्वास ने उन्हें फ़िल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म आरजू में परदे के पीछे से गाने का मौका दिया। दिलीप कुमार के उपर फिल्माया गया गीत ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल हिट हो गया और तलत की कंपकपाती आवाज संगीतकारों की निगाह में जम गई। लगभग इसी समय संगीतकार नौशाद अपने लिए एक चहेते गायक की तलाश में थे। शंकर-जयकिशन की फिल्म बरसात (1949) के हिट होने की वजह से नौशाद शंकर-जयकिशन को संगीत के क्षेत्र में अपना प्रतिद्वन्दी मानते थे और गायक मुकेश को शंकर-जयकिशन के खेमे का आदमी। रफ़ी या मन्ना डे पर तब तक उनकी निगाह गई नहीं थी अतः तलत को उन्होने अपने लिए गवाने की सोची। 1950 में बाबुल के लिए तलत को एक बार फिर दिलीप कुमार के लिए उन्हें गाने का मौका मिला – इस बार नौशाद के हाथों। इसी फिल्म का गीत मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसी का हिट हुआ और तलत महमूद तथा शमशाद बेगम की आवाज पसन्द की गई। उसी वर्ष तलत ने विभिन्न संगीतकारों की धुनों पर कुल सोलह गाने गाए। उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी।
इसी समय मुकेश को राज कपूर के गानों से ख्याति मिल रही थी तो रफी शहीद, दुलारी, मेला तथा बैजू बावरा के गानों से लोकप्रिय हो रहे थे। सेट पर धूम्रपान करने की आदत की वजह से नौशाद ने तलत को नजरअंदाज करना शुरु किया पर दूसरे संगीतकार तलत से कुछ न कुछ गवाते रहे और पचास के दशक के पूर्वार्ध में तलत की आवाज गूंजती रही। वो हिंदी और बंगला फिल्मों गायक तथा अभिनेता थे। अपनी थरथराती आवाज़ से मशहूर उनको गजल की दुनिया का राजा भी कहा जाता था।
तलत महमूद पहले हीरो बनना चाहते थे,सबसे पहले ये कलकत्ता गए जहां भारत में सबसे विकसित फिल्म टेक्नोलोजी इस्तेमाल हो रही थी,कुछ समय तक तलत महमूद ने तपन कुमार के नाम से बंगला गाने गाए,फिर वो बॉम्बे चले गए, किंतु उनकी नियति में हीरो नहीं एक बेहतरीन गायक बनना लिखा था।
साठ का दशक शुरू होते तक फ़िल्मों में उनके गाने बहुत कम होने लगे। ‘सुजाता’ का जलते हैं जिसके लिए इस वक्त का उनका यादगार गीत है। फ़िल्मों के लिए आख़िरी बार उन्होंने सन 1966 में जहांआरा में गाया¸ जिसके संगीतकार मदन मोहन थे। इसके बाद फ़िल्म संगीत का स्वरूप कुछ इस तरह बदलने लगा था कि उसमें तलत जैसी आवाज़ के लिए कोई गुंजाइश नहीं बची थी। लेकिन तलत के ग़ैर–फ़िल्मी गायन का सिलसिला बराबर चलता रहा और उनके अलबम निकलते रहे। ग़ज़ल गायकी के तो वे पर्याय ही बन गए थे। उनकी आवाज़ जैसे कुदरत ने ग़ज़ल के लिए ही रची थी।

तलत महमूद को सन 1956 में मंच पर कार्यक्रम के लिए दक्षिण अफ्रीका बुलाया गया। इस प्रकार के कार्यक्रम के लिए भारत से किसी फ़िल्मी कलाकार के जाने का यह पहला अवसर था। तलत महमूद का कार्यक्रम इतना सफल रहा कि दक्षिण अफ्रीका के अनेक नगरों में उनके कुल मिलाकर बाइस कार्यक्रम हुए¸ फिर विदेशों में भारतीय फ़िल्मी कलाकारों के मंच कार्यक्रमों का सिलसिला चल पड़ा। तलत महमूद इन कार्यक्रमों में लगातार व्यस्त रहे।
राही मतवाले,
तू छेड़ इक बार,
मन का सितार
जाने कब चोरी-चोरी आई है बहार..
हिंदी सिनेमा में दुर्लभ दृश्य। पार्श्व गायक और गायिका दोनों नायक और नायिका की भूमिका में हैं. भाप से चलने वाली ट्रेन की आवाज में तलत महमूद और सुरैया दोनों अपने लिए ये युगल गीत गा रहे है. फिल्म वारिस 1954। गीत कमर जलालाबादी। संगीतकार थे अनिल विश्वास!
साभार- https://www.facebook.com/creativocamaal से 



फिल्मी दुनिया के सदाबहार डीएसपी इफ्तेखार

पुलिस की वर्दी में रौब जमाने वाले इफ्तेखार। कभी भावुक पिता बनकर रुलाने वाले इफ्तेखार। वो एक्टर, जिसने अपने हर तरह के किरदारों में जान फूंकी। लेकिन पर्सनल जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही। उनकी मौत सबसे दर्दनाक हुई थी, जिसे जानकर आप भी सिहर उठेंगे।
इफ्तेखार खान ने 40 से 90 के दशक तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई फिल्मों में काम किया। वो राजेश खन्ना से लेकर अमिताभ बच्चन तक संग स्क्रीन शेयर करते नजर आए, लेकिन उन्हें ‘द रियल पुलिस ऑफ बॉलीवुड’ कहा गया। क्योंकि उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पुलिस ऑफिसर का दमदार किरदार निभाया और उनमें जान फूंक दी। क्या आप जानते हैं कि वो एक्टर होने के साथ पेंटर और सिंगर भी थे। एक तरफ वो अपना करियर बना रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी जिंदगी में तब तूफान आ गया, जब देश का विभाजन हुआ। उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला किया। इस दौरान वो आर्थिक तंगी से भी गुजरे, लेकिन हार नहीं मानी। फिर उनकी किस्मत चमकी और बॉलीवुड में छा गए, लेकिन उनकी मौत बहुत ही दर्दनाक हुई थी।
इफ्तेखार का जन्म 22 फरवरी 1924 को जालंधर में हुआ था। वो चार भाई और एक बहन में सबसे बड़े थे। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट्स से पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। वो 20 साल की उम्र में संगीतकार कमल दासगुप्ता के ऑडिशन के लिए वो कोलकाता चले गए। कमल दासगुप्ता उस समय एचएमवी के लिए काम कर रहे थे। वो इफ्तेखार की पर्सनैलिटी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एमपी प्रोडक्शंस को एक्टर के लिए उनके नाम की सिफारिश की।
इफ्तेखार ने साल 1944 में फिल्म ‘तकरार’ से करियर की शुरुआत की। ये मूवी आर्ट फिल्म्स-कोलकाता के बैनर तले बनी थी। दूसरी तरफ उनकी पर्सनल जिंदगी में उथल-पुथल मची थी। देश के विभाजन के दौरान उनके माता-पिता, भाई-बहन और कई करीबी रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए। इफ्तेखार को भारत में रहना पसंद था, लेकिन दंगों ने उन्हें कोलकाता छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। वो बीवी और बेटियों संग बंबई (अब मुंबई) चले गए। इस दौरान आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी, लेकिन मुंबई में किस्मत उनका इंतजार कर रही थी।
इफ्तेखार को कोलकाता में उनके समय के दौरान एक्टर अशोक कुमार से मिलवाया गया था। यही वजह रही कि मुंबई में बॉम्बे टॉकीज फिल्म मुकद्दर (1950) में एक किरदार के लिए उनसे संपर्क किया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें ज्यादातर पुलिस के किरदार में देखा गया और पसंद किया गया। उन्होंने 1940 से 1990 के दशक की शुरुआत तक अपने करियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की। उनके भाई इम्तियाज अहमद PTV (पाकिस्तान) के एक फेमस टीवी एक्टर हैं।
इफ्तेखार ने बतौर लीड एक्टर भी काम किया, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पिता, अंकल, ग्रेट-अंकल, दादाजी और पुलिस ऑफिसर, कमिश्नर, कोर्टरूम जज और डॉक्टर के किरदार निभाए और उन्हें काफी पसंद भी किया गया। उन्होंने ‘बंदिनी’, ‘सावन भादो’, ‘खेल खेल में’ और ‘एजेंट विनोद’ में निगेटिव रोल भी किया। 1960 और 1970 के दशक में इफ्तेखार ने तो चाचा और पिता की खूब भूमिका निभाई और उनकी एक्टिंग सीधे दिल में उतरती थी। चाहे कड़क पुलिस का किरदार निभाना हो या फिर भावुक पिता का। वो यश चोपड़ा की क्लासिक मूवी दीवार (1975) में अमिताभ बच्चन के करप्ट बिजनेस मेंटर का किरदार निभाया। उन्होंने ‘जंजीर’ में पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार निभाया। भले ही उनका सीन ज्यादा नहीं था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक्टिंग की, वो बहुत प्रभावशाली थी। 1978 की हिट फिल्म ‘डॉन’ के लिए भी उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने राजेश खन्ना संग भी भी खूब काम किया। वो ‘जोरू का गुलाम’, ‘द ट्रेन’, ‘खामोशी’, ‘महबूब की मेहंदी’, ‘राजपूत’ और ‘आवाम’ जैसी फिल्मों में नजर आए।
हिंदी फिल्मों के अलावा इफ्तेखार साल 1967 में अमेरिकन टीवी सीरीज ‘माया’ में नजर आए थे। इसके अलावा साल 1970 में इंग्लिश लैंग्वेज मूवी ‘बॉम्बे टॉकीज’ और 1992 में ‘सिटी ऑफ जॉय’ में भी दिखे।
इफ्तेखार ने कोलकाता की एक यहूदी महिला हन्ना जोसेफ से शादी की थी। हन्ना ने अपना धर्म और नाम बदलकर रेहाना अहमद रख लिया था। उनकी दो बेटियां थीं, सलमा और सईदा। सईदा की 7 फरवरी 1995 को कैंसर से मौत हो गई। बेटी की मौत ने इफ्तेखार को झकझोर दिया था। अ बेटी के गुजरने के बाद वो बुरी तरह बीमार पड़ गए। वो अंदर ही अंदर इतने घुट रहे थे कि बेटी की मौत के एक महीने के अंदर ही 4 मार्च को इफ्तेखार ने भी 71 साल की उम्र में दम तोड़ दिया था।
 
(साभार – https://www.facebook.com/shiv.meena.940 से) 



पुस्तकालयों के विकास में प्रोद्योगिकी की भूमिका महत्त्वपूर्ण

कोटा। आई.आई.एल.एम.विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा में “रीइमेजिनिंग स्मार्ट लाइब्रेरीज़: इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज, इनोवेशन एंड नॉलेज क्रिएशन (आईसीआरएसएल-2024)” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन मे राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा के संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव ने प्रथम सत्र मे आयोजित “पेनल डिस्कशन” की थीम “लाईब्रेरी सर्विसेज एण्ड ईमार्जिंग टेक्नोलोजीज, इनोवेशन” मे बतौर पेनेलिस्ट अपना उदबोधन देते हुये कहा कि- पुस्तकालय सेवाओ को बेहतर बनाने के लिए टेक्नोलोजी का बहुत योगदान हे लेकिन टेक्नोलोजी का निर्माण करते समय डीजाईन थिंकिंग तथा स्थानीय आवश्यकताओ को ध्यान मे रखकर बेहतर पुस्तकालय सेवाओ के लिए टेक्नोलोजी का निर्माण किया जाना चाहिए |

उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि 2016 मे जब दृष्टिबाधितों के लिए टेक्स्ट टू स्पीच पुस्तकालय सेवा प्रारम्भ की तो सुखद स्थिति तब गड़बड़ा गई जब गणित एवं विज्ञान के फार्मूलाज को स्पीच मे कनवर्ट करने की बात आई तब इस टेक्नोलोजीकल फेलयोर से “वोईस डोनेशन इनिशिएटीव का उद्भव हुआ |

इस अवसर पर डॉ बुद्धा चन्द्रशेखर मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनुवादिनी प्रतिष्ठान शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार एवं प्रोफेसर डॉ पदमकली बनर्जी उप कुलपति आई.आई.एल.एम. विश्वविद्यालय गुरुग्राम एवं चांसलर द्वारा सम्मानित किया गया |

इस चर्चा डॉ दीपक के अलावा रमाकांत रथ लाईब्रेरीयन हेरियट वाट विश्व विद्यालय दुबई (यू.ए.ई), एच. डब्ल्यू .कुशाला संजीवनी असिस्टेंट लाईब्रेरीयन यूनिवर्सिटी ऑफ इंडीजीनीयस मेडीसीन श्रीलंका , प्रोफेसर डॉ प्रोजस रॉय संयुक्त निदेशक पुस्तकालय एवं सूचना विभाग स्कूल ऑफ ओपेन लर्निंग दिल्ली विश्व विद्यालय दिल्ली, लता सुरेश हेड नॉलेज रिसोर्स सेंटर मिनिस्टरी ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स भारत सरकार , डॉ नीरज कुमार सिंह उप पुस्तकालयाध्यक्ष ए.सी. जोशी लाईब्रेरी पंजाब विश्वविधालय चंडीगढ़ पंजाब मौजूद रहे |

इस अवसर पर डॉं दीपक कुमार श्रीवास्तव ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र मे “एआई ट्रांसफोर्मींग दी लाईवज ऑफ विजुअली इम्पेयर्ड इंडीवीजुयल्स : दी रोल ऑफ पब्लिक लाईब्रेरीज़” विषय पर पेपर प्रजेन्ट किया | वही नाईजीरीयन शोधार्थी शागिरु बाला मुजा एवं डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव के साझा पत्र को “बेस्ट पेपर एवार्ड” से सम्मानित किया गया | इस सम्मेलन के संयोजक डॉ. के.पी. सिंह ने बताया कि दुनिया भर से प्राप्त 130 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुये जिन्हे समीक्षा के बाद 83 को प्रकाशन के लिए चयन किया गया है लगभग 300 से अधिक प्रतिनिधि और पुस्तकालय पेशेवरो ने इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेंगे। कार्यक्रम का प्रबंधन डॉ अनिल झारोटिया यूनिवर्सिटी लाईब्रेरीयन नॉर्थ केप यूनिवर्सिटी एवं डॉ धर्मेंद्र हरित यूनिवर्सिटी लाईब्रेरीयन अंसल यूनिवर्सिटी ने किया |

 




मोदी की भावी जीत से मचा हाहाकार…एक मोदी के पीछे कितने मोदी हैं

2024 में अनुमान से कहीं अधिक नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत 1984 के राजीव गांधी की कांग्रेसी जीत को मात देने जा रही है। तब इंदिरा लहर थी , अब की राम लहर है। बतर्ज राम से बड़ा राम का नाम। बड़े-बड़े अक्षरों में कहीं यह लिख कर रख लीजिए। स्क्रीनशॉट ले कर रख लीजिए। ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत काम आए। आलम यह है कि जनता के बीच कभी भूल से भी नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी कर देने पर जनता मारने के लिए दौड़ा लेती है। समय पर चुप न हो जाइए तो पिटने की नौबत आ जा रही है। हालां कि राजनीति और चुनाव में असंभव जैसा शब्द कभी नहीं होता। कभी भी कुछ भी संभव हो सकता है। अपराजेय कहे जाने नरेंद्र मोदी भी कभी न कभी हार सकते हैं पर अभी और बिलकुल अभी तो नामुमकिन है।

2024 के इस चुनाव में मोदी के 400 पार के टारगेट को रोक पाना किसी भी के लिए असंभव सा ही दिखता है फ़िलहाल। 400 पार नहीं , न सही , 400 के आसपास तो है ही। दस-पांच सीट आगे-पीछे हो सकती हैं। बस। बहुत ज़्यादा उलटफेर होता नहीं दीखता , 2024 की चुनावी धरती पर। विकास के असंख्य काम तो हैं ही भाजपा और एन डी ए के खाते में। आगे की रणनीति भी अदभुत है। भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो लाजवाब काम किए हैं मोदी ने वह तो न भूतो , न भविष्यति। सड़कों का महाजाल , एयरपोर्ट , रेल , अंतरिक्ष हर कहीं धमाकेदार उपस्थिति। तिस पर गरीबों को मुफ़्त राशन , पक्का मकान , शौचालय , गैस , जनधन , आयुष्मान जैसी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के , बिना हिंदू-मुसलमान के। लेकिन सेक्यूलरिज्म के थोथे नारे ने मुसलमानों को मुख्य धारा से काट कर सिर्फ़ यूज एंड थ्रो वाला वोट बैंक बना कर अभिशप्त कर दिया है। इतना कि मुसलमान सिर्फ़ इस्लाम सोचता है। ओवैसी जैसे लोग सिर्फ़ मुसलमान की बात करते हैं। देश , समाज , विकास आदि की परिधि से इतर सिर्फ़ इस्लाम और इस्लाम। नतीज़ा हिंदू-मुसलमान। वनली हिंदू-मुसलमान। यही चुनाव है और यही चुनाव परिणाम है।

मोदी की मानें तो 2047 की कार्य-योजना पर वह कार्यरत हैं। 2047 की कार्य-योजना मतलब विकास की योजना। दुनिया में भारत को नंबर वन बनाने की योजना। हिंदू-मुसलमान की योजना नहीं। चौतरफा विकास की पूर्णिमा की यह चांदनी न भी होती तो भी सिर्फ़ कश्मीर में 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ही काफी था नरेंद्र मोदी की तिबारा सरकार बनवाने के लिए। हैट्रिक लगाने के लिए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय सुनिश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन सूर्योदय तो हो रहा है। सूर्य तो चमक रहा है। राजनीतिक पंडित दक्षिण भारत में राम लहर को नहीं देख पा रहे हैं तो यह उन का दृष्टिभ्रम है। दक्षिण भारत ही क्यों समूचे भारत में राम लहर अनायास ही देखने को मिल रहा है। शायद इसी लिए 2024 का यह लोकसभा चुनाव अंतत: हिंदू-मुसलमान और आरक्षण की मूर्खता के युद्ध में तब्दील हो चुका है। न विपक्ष मोदी के दस साल के कामकाज पर सवाल खड़े कर रहा है , न मोदी अपने कामकाज पर बात कर रहे हैं। यह गुड बात नहीं है। भ्रष्टाचार , बेरोजगारी और महंगाई जैसी सर्वकालिक समस्याएं भी इंडिया गठबंधन ने अपने अहंकार में बंगाल की खाड़ी में बहा दी हैं। उन की प्राथमिकता में हिंदू-मुसलमान ही रह गया है।

एक मुस्लिम वोट बैंक के पागलपन के नशे में समूचा इंडिया गठबंधन धुत्त है। इतना कि इंडिया गठबंधन के लोग हर बार की तरह भूल बैठे हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सारी ताक़त ही है मुस्लिम तुष्टिकरण। 2014 में नरेंद्र मोदी की विजय हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव पर ही हुई थी। अन्ना हजारे के आंदोलन या मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार के आधार पर नहीं। सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक के सुबूत मांगने , नोटबंदी , जी एस टी , राफेल के तमाम शोर-शराबे और साज़िश के बावजूद 2019 का लोकसभा चुनाव भी मोदी ने हिंदू-मुसलमान की पिच पर ही न सिर्फ़ जीता बल्कि ज़्यादा बढ़त के साथ जीता। और जान लीजिए कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी नरेंद्र मोदी इसी हिंदू-मुसलमान की पिच पर कहीं और ज़्यादा बढ़त के साथ जीतने जा रहे हैं।

याद दिलाता चलूं कि भारतीय राजनीति में हिंदू-मुसलमान और जातीय राजनीति की जनक कांग्रेस है। हिंदू-मुसलमान की बुनियाद पर भारत का बंटवारा हो गया। इसी कांग्रेस की दुरंगी नीति के चलते। यही कांग्रेस अब भी हिंदू-मुसलमान की लालटेन जलाए रखती है। कांग्रेस की देखादेखी क्षेत्रीय पार्टियों यथा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी तथा बिहार राष्ट्रीय जनता दल ने तो रीढ़ और चेहरा ही बना लिया मुस्लिम वोट बैंक को। एम वाई का टर्म ही बन गया। अलग बात है कि पहले जो एम वाई का अर्थ था , मुस्लिम और यादव वह एम वाई धीरे-धीरे मोस्टली यादव में तब्दील हो गया है। फिर भी अभी एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव कहने लगे एम वाई मतलब महिला और युवा। तो एंकर हंसती हुई बोली , अखिलेश जी जब आप राजनीति में नहीं थे तब से पत्रकारिता कर रही हूं। अखिलेश यह सुन कर पूरी बेशर्मी से टोटी बन गए।

ख़ैर यह भी याद दिलाता और पूछता चलूं कि अगर गोधरा न होता तो ?

गोधरा न होता तो 2002 में गुजरात दंगा न हुआ होता। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों को तब जिस तरह पूरी बेरहमी से कुचला और दंगाइयों के होश ठिकाने किए , वह एक नज़ीर बन गया। गोधरा जिस में ट्रेन की कई बोगियों का बाहर से फाटक बंद कर मिट्टी का तेल डाल कर अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को ज़िंदा जला कर मारा गया , नरसंहार किया गया , इस पर सिरे से ख़ामोश रहने वाले लोगों ने गुजरात दंगों को स्टेट स्पांसर दंगे का नैरेटिव गढ़ा। सी बी आई जांच करवाई मनमोहन सिंह सरकार ने। बारह-बारह घंटे लगातार सी बी आई तत्कालीन मुख्यमंत्री , गुजरात नरेंद्र मोदी से पूछताछ करती थी तब के दिनों। यह वही दिन थे जब अमित शाह को पहले जेल फिर तड़ीपार किया गया मनमोहन सरकार के इशारे पर। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया। ख़ून का सौदागर बताया। एक से एक नैरेटिव गढ़े गए। तीस्ता सीतलवाड़ ने एन जी ओ बना कर , मोदी के ख़िलाफ़ तमाम फर्जी मुकदमे दर्ज करवाते हुए , आंदोलन करते हुए करोड़ो रुपए कमाए। तमाम अदालतों से होते हुए मामला सुप्रीमकोर्ट तक गया और सभी मामलों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली।

देश के लोगों को समझ आ गया कि दंगाइयों से अगर कोई निपट सकता है तो वह नरेंद्र मोदी ही है। मुस्लिम तुष्टिकरण का क़िला अगर कोई तोड़ सकता है तो वह वनली नरेंद्र मोदी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सॉफ्ट लोग नहीं। लालकृष्ण आडवाणी जैसे हार्डकोरर भी नहीं। इसी बिना पर 2013 में 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित किया गया। तैयारी 2012 में ही हो गई थी। बताया गया विकास का गुजरात मॉडल। लेकिन यह परदा था। सच तो यह था जो खुल कर कहा नहीं गया , वह था मुसलमानों के तुष्टिकरण को रोकने का गुजरात मॉडल। दंगाइयों को सबक़ सिखाने का गुजरात मॉडल। 2014 में भी पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। प्रचंड बहुमत से जीत कर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने।

गुजरात का विकास मॉडल पूरे देश में लागू किया। विकास के साथ ही दंगाइयों को क़ाबू किया और मुस्लिम तुष्टिकरण के कार्ड को नष्ट और ध्वस्त करते हुए बता दिया कि मुस्लिम वोट बैंक नाम की कोई चीज़ नहीं होती , सत्ता की राह में। मुस्लिम वोट बैंक को ध्वस्त करने के लिए मंडल-कमंडल के वोट को एक साथ किया। बताया कि यह हिंदू वोट बैंक है। इस के लिए 2012 से ही काम किया गया तब जा कर 2014 में सफलता मिली।

पहली बार देश में भाजपा की बहुमत की सरकार बनी। पर नाम एन डी ए ही रहा। घटक दलों को सरकार में भी सम्मान देते हुए शामिल किया गया। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ गुजरात दंगे की तोहमत तो कांग्रेस ने लगाया ही , उन की डिग्री की जांच-पड़ताल भी बहुत हुई। मोदी की पत्नी यशोदाबेन की खोज भी दिग्विजय सिंह जैसों ने की। ऐसे जैसे कोलंबस ने भारत की खोज की हो। पर सारे जतन धराशाई हो गए। ख़ुद दिग्विजय सिंह की बेटी की उम्र की अमृता राय से उन की प्रेम कहानी मोदी ने परोसवा दी। दिग्विजय-अमृता के तमाम अंतरंग फ़ोटो सोशल मीडिया पर घूमने लगे।

लाचार हो कर दिग्विजय सिंह को अमृता राय से विवाह करना पड़ा। फिर भी उन का राजनीतिक निर्वासन हो गया। तब के समय राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह ही थे। मणिशंकर अय्यर हुए फिर। फिर सैम पित्रोदा। सब खेत हो गए बारी-बारी। अब वामपंथी बुद्धिजीवियों ने राहुल और उन की कांग्रेस को घेर लिया है। वामपंथी बुध्दिजीवी ही उन के भाषण लिखते हैं। नारे लिखते हैं। राहुल गांधी को कटखन्ना और अप्रासंगिक बना कर प्रियंका को लड़की हूं , लड़ सकती हूं का पाठ याद करवाते हैं। अहंकार , बदतमीजी की भाषा से सराबोर कर संपत्ति के समान बंटवारे की थीसिस समझा कर राहुल की राजनीति का बंटाधार करवाने की पूरी योजना बनाते हैं। नरेंद्र मोदी और भाजपा को वामपंथी बुद्धिजीवियों का विशेष आभार मानना चाहिए। क्यों कि राहुल गांधी को मोदी का बेस्ट प्रचारक बनाने में वामपंथी बुद्धिजीवियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।अपना बेस्ट एफर्ट लगा दिया है। लतीफ़ा और पप्पू बनने के बावजूद वामपंथी बुद्धिजीवियों का बेस्ट एसेट हैं राहुल गांधी।

मोहब्बत की दुकान में नफ़रत और घृणा का सामान कैसे बेचा जाता है , वामपंथी बुद्धिजीवी ही तो सिखाते हैं राहुल गांधी को। यह हिंदू-मुसलमान भी वामपंथी ही सिखाते हैं। बुद्धू लेकिन धूर्त आदमी चने की झाड़ पर चढ़ जाता है। नहीं जानता कि विकास की पूर्णिमा की चांदनी के साथ ही साथ हिंदू-मुसलमान की पिच भी नरेंद्र मोदी की ताक़त है। पाकिस्तान और उस के आतंक का जो बाजा बजा देता हो , भीख का कटोरा थमा देता हो , अभिनंदन जैसे जांबाज़ को रातोरात वापस ला सकता हो उस के सामने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का मुस्लिम वोट बैंक तो बिना किसी मिसाइल के चित्त हो जाता है। इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों को अब से सही , आगामी 2029 के चुनाव में ही सही , तय कर लेना चाहिए कि हिंदू-मुसलमान की पिच न बनाएं। न भाजपा के बुलाने पर भी इस पिच पर आएं। यह पिच देश , समाज और राजनीति के लिए तो हानिकारक है ही , कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए बेहद हानिकारक। हिंदू-मुसलमान , आरक्षण की खेती , जाति-पाति इस वैज्ञानिक युग में छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए।

महाभारत का जुआ प्रसंग याद आता है। जुआ खेलने से पहले युधिष्ठिर कृष्ण को सभा से बाहर जाने को कह देते हैं। कृष्ण के सामने वह जुआ नहीं खेलना चाहते थे। बाद में कृष्ण कहते हैं कि एक तो जुआ खेलना नहीं था। खेला भी तो मुझे साथ रखना चाहिए था। जैसे दुर्योधन ने शकुनि को अपनी तरफ से पासे फेकने के लिए रखा , युधिष्ठिर भी मुझे रख सकते थे। मैं शकुनि को हरा देता। जीतने नहीं देता। द्रौपदी का चीर हरण नहीं होता। तो यही स्थिति नरेंद्र मोदी की है। जो लोग नहीं जानते , अब से जान लें कि राम मंदिर बनवाने के लिए भी नरेंद्र मोदी ने कृष्ण नीति का उपयोग किया।

चुनाव जीतने में भी नरेंद्र मोदी कृष्ण नीति का डट कर उपयोग करते हैं। अश्वत्थामा मरो, नरो वा कुंजरो वा… किसी युधिष्ठिर से कहलवा ही देते हैं। जयद्रथ को मरवाने के लिए सूर्यास्त का ड्रामा भी। जाने क्या-क्या। चाणक्य भी साथ रखते ही हैं। भाजपा के सारथी भी हैं नरेंद्र मोदी और अर्जुन भी। जब जो भूमिका मिल जाए। बन जाए। इसी लिए दुहरा दूं कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लोग जब हिंदू-मुसलमान और जाति-पाति के आचार्य जब थे , तब थे। अब इस का आचार्यत्व नरेंद्र मोदी के पास है। इसी लिए अनुमान से कहीं अधिक हाहाकारी जीत होने जा रही नरेंद्र मोदी की। पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है।

भाजपा हो , एन डी हो , कांग्रेस या इंडिया गठबंधन , मोदी नाम केवलम पर लड़ रहे हैं।

तानाशाह कह लीजिए , सांप्रदायिक कह लीजिए , अंबानी , अडानी जैसे पूंजीपतियों का मित्र कह लीजिए , यह आप की अपनी ख़ुशी है , आप का अपना ईगो मसाज है। पर जनता-जनार्दन ने नरेंद्र मोदी का एक नाम विजेता रख दिया है। विश्व विजेता। समय की दीवार पर लिखी इस इबारत को ठीक से पढ़ लीजिए। नहीं पढ़ पा रहे हैं तो अपनी आंख का इलाज कीजिए , चश्मा बदल लीजिए। और जो फिर भी नहीं पढ़ पा रहे हैं , अपनी ज़िद और सनक पर क़ायम हैं तो आप को आप की यह बहादुरी मुबारक़ ! ठीक वैसे ही जैसे सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर अपने सुभाषितों से मोदी का बेड़ा गर्क कर रहे हैं , आप भी कीजिए न ! आप का भी यह मौलिक अधिकार ठहरा। ई वी एम का तराना अभी शेष ही था कि वैक्सीन का तराना भी लोग अचानक गाने लगे। लेकिन जैसे इलेक्टोरल बांड का गाना हिट नहीं हुआ , वैक्सीन का भी पिट गया है।

1962 के चीन युद्ध का एक वाक़या है। एक युद्ध चौकी पर चीनी सैनिक बहुत कम रह गए थे। पास की भारतीय युद्ध चौकी पर भारतीय सैनिक ज़्यादा थे। चीनियों ने ख़ूब सारी भेड़ें इकट्ठी कीं। भेड़ों के गले में लालटेन बांध दीं। रात में लालटेन जला कर भेड़ों को भारतीय सीमा की तरफ हांक दिया। भारतीय सैनिकों को एक साथ इतने सारे लोग आते दिखे। लगा कि चीनी सैनिक आ रहे हैं। भारतीय सैनिक चीन के इस जाल-बट्टे में फंस गए। भारतीय सैनिक चौकी छोड़ कर भाग चले। चीन का नैरेटिव काम कर गया। भारतीय सेना हार गई। चौकी छिन गई। लेकिन चीन अब गले में लालटेन बांध कर , भेड़ हांक कर नहीं जीत सकता।

कोरोना नाम की भेड़ लालटेन बांध कर आई थी चीन से , पराजित हो कर लौट गई। भारत का विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन लेकिन अभी भी गले में लालटेन बांध कर भेड़ छोड़ने का अभ्यस्त है। भूल गया है कि थोक के भाव इधर-उधर के नैरेटिव रचने से चुनाव नहीं जीते जाते। कांग्रेसियों द्वारा जारी अमित शाह का आरक्षण संबंधी फर्जी वीडियो एक उदहारण है। इस डाल से उस डाल कूद कर मंकी एफर्ट से भी चुनाव नहीं जीते जाते। सेटेलाइट , नेट और ड्रोन का ज़माना है। घर बैठे दुनिया की किसी सड़क , किसी धरती , किसी आसमान का हालचाल तुरंत-तुरंत ले लेने का समय है यह। माना कि कुटिलता और धूर्तता राजनीति का अटूट अंग है। लेकिन इंडिया गठबंधन इस मामले में भी एन डी ए से बहुत पीछे है। नरेंद्र मोदी कुटिलता , धूर्तता और कमीनेपन में बहुत आगे हैं। कोसों आगे। राहुल गांधी जैसे लोग बहुत बच्चे हैं , इस मामले में। लालू यादव जैसे लोग दगे कारतूस हैं। एक शब्द है , मेहनत। नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं है। दिन-रात इतनी मेहनत , इस उम्र में तो छोड़िए एक से एक लौंडे राहुल , अखिलेश , तेजस्वी सोच भी नहीं सकते। तेजस्वी तो इस चुनाव प्रचार में जाने कितनी बार ह्वील चेयर पर दिखा है। यह कैसी नौजवानी है ?

अब देखिए न बीच चुनाव में दिल्ली शराब घोटाले के पितामह अरविंद केजरीवाल को बिना मांगे सुप्रीमकोर्ट ज़मानत थमा देता है , चुनाव प्रचार के लिए। यह भी लगभग असंभव था पर केजरीवाल के लिए संभव बन गया। अलग बात है केजरीवाल के प्रचार का कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं दीखता इस लोकसभा चुनाव में। क्यों कि अरविंद केजरीवाल भी चीन की वही भेड़ हैं जो गले में लालटेन बांधे घूम रही है। केजरीवाल के जेल में रहने से कुछ सहानुभूति का लाभ मिल रहा था , वह भी अब जाता रहा। सुप्रीम कोर्ट और अभिषेक मनु सिंधवी ने अनजाने ही सही केजरीवाल का नुकसान कर दिया है। क़ानून का मज़ाक उड़ा दिया है। जाने कितने की डील हुई है। क्यों कि अदालतें ऐसे फ़ैसले बिना किसी डील के नहीं करतीं। परंपरा अभी तक की यही है।

वैसे भी इंडिया गठबंधन एक डूबता हुआ जहाज है। राहुल ने मोदी को डेढ़ सौ सीट मिलने का ऐलान किया है। प्रियंका ने 180 और अरविंद केजरीवाल ने कोई दो सौ तीस सीट देने का ऐलान किया है और बताया है कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। फिर इसी सांस में यह भी कह दिया कि मोदी चूंकि 75 के होने वाले हैं इस लिए वह अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। इसी सांस में वह योगी की छुट्टी और ममता बनर्जी को जेल में भेजने का ऐलान थमा देते हैं। और सरकार नहीं बनेगी का चूरन फांकते हुए खांसने लगते हैं। तानाशाह भी बता देते हैं। संविधान बचाने का गाना भी गा देते हैं।

बताइए कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय लोग इस केजरीवाल को इसी बिना पर मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोकने के लिए भेजे हैं। ग़ज़ब न्यायप्रिय लोग हैं। एक न्याय राहुल दे रहे हैं , दूसरा टोटी यादव के रूप में विख्यात अखिलेश यादव। संदेशखाली की ममता बनर्जी के अजब रंग हैं। एक पूर्व जस्टिस और एक संपादक मोदी-राहुल में बहस करवाने का न्यौता अलग लिए घूम रहे हैं। ऐसे गोया छात्र-संघ का चुनाव हो रहा हो। राहुल ने न्यौता क़ुबूल करने का ऐलान कर दिया है। पहले भी वह मोदी से डिवेट की तमन्ना रखते हुए चैलेंज देते रहे हैं। पर मोदी ने कभी लिफ्ट नहीं दी। तानाशाह जो ठहरा।

देखिए तो वर्तमान में भी एन डी ए के पास भीतर-बाहर मिला कर 400 सीट है ही। हालां कि कुछ चतुर सुजान 2024 के इस लोकसभा चुनाव में 1977 के चुनाव की छाया देखते हुए सब कुछ उलट-पुलट होते हुए देख रहे हैं। इन चतुर सुजानों को लगता है कि जैसे तब 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी जैसी परम शक्तिशाली शासक की चुनावी नाव डूब गई थी , ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी की चुनावी नाव 2024 में डूबने जा रही है। पर यह तथ्य नहीं , उन चतुर सुजानों की मनोकामना है। और मनोकामना से कभी राजनीति नहीं सधती , न ही चुनाव। ग़ालिब लिख ही गए हैं :

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन

दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।

असल में लोकसभा , 2024 का चुनाव इस क़दर एकतरफा हो चला है कि किसी आकलन , किसी विश्लेषण की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। कोई आकलन करे भी तो क्या करे। फिर भी चर्चा-कुचर्चा तो हो ही सकती है।

जैसे लड़की हूं , लड़ सकती हूं की हुंकार भरने वाली प्रियंका वाड्रा को सोनिया ने कहीं से क्यों लड़ने लायक़ नहीं समझा। रावर्ट वाड्रा तो खुलेआम इज़हार कर रहे थे कि अमेठी से वह लड़ना चाहते हैं। अब राज्य सभा की तान ले रहे हैं। सोनिया ने लेकिन वाड्रा को भी झटका दे दिया। अमेठी छोड़ कर रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने को राहुल गांधी के वर्तमान मुख्य चाटुकार जयराम रमेश ने बताया है कि राहुल गांधी राजनीति और शतरंज के मजे हुए खिलाड़ी हैं। वह सोच समझ कर फ़ैसला लेते हैं। राहुल सोचते-समझते भी हैं , यह मेरे लिए नई सूचना है।

हक़ीक़त तो यह है कि इस मजे हुए खिलाड़ी ने समाजवादी पार्टी के कंधे पर बैठ कर रायबरेली का चुनाव जीतने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति में जीत का अपना कोई दांव नहीं है। वायनाड का तो स्पष्ट नहीं पता पर रायबरेली से अगर राहुल गांधी चुनाव हार जाते हैं तो बिलकुल आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अमेठी से स्मृति ईरानी की लपट रायबरेली तक पहुंचने में बहुत देर नहीं होगी। क्यों कि अमेठी में कांग्रेस ने सोनिया के मुंशी , मुनीम टाइप के एल शर्मा को खड़ा कर स्मृति ईरानी को जैसे वाकओवर दे दिया है। फिर मोदी-योगी-शाह की तिकड़ी की रणनीति को आप क्या हलवा समझते हैं , रायबरेली के लिए। अलग बात है कि अगर उसी दिन अगर भाजपा फुर्ती दिखाते हुए रायबरेली से स्मृति ईरानी का भी नामांकन करवा देती तो मंज़र कुछ और होता।

खैर , बकौल जयराम रमेश शतरंज और राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी राहुल गांधी ने जिस समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के कंधे पर बैठ कर रायबरेली जीतने का मंसूबा बनाया है , वही अखिलेश यादव कन्नौज में फंसे दीखते हैं। जाने क्या सोच कर रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को कन्नौज के कीचड़ में उतार दिया है। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ भी सपा क्लीयरकट गंवा रही है। मुलायम सिंह यादव याद आते हैं।

जब लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में सम्मलेन कर मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा कर अखिलेश यादव को अध्यक्ष बनाया गया तभी मुलायम ने कहा था , रामगोपाल यादव ने अखिलेश का भविष्य ख़राब कर दिया है। तब लोगों ने मुलायम के इस बयान को उन की हताशा बता दिया था। पर जब 2017 का विधान सभा चुनाव हुआ और अखिलेश की सत्ता चली गई तब लोगों की समझ में आया। अलग बात है कि बीच चुनाव ही अखिलेश यादव के लिए लोग कहने लगे थे कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता , वह किसी का नहीं हो सकता। कुछ समय पहले भरी विधानसभा में योगी ने भी अखिलेश को लताड़ लगाते हुए कहा कि , तुम ने तो अपने बाप का सम्मान नहीं किया ! और अब राहुल उसी अखिलेश यादव के बूते रायबरेली साधने आए हैं , मां की विरासत संभालने।

तो क्या जैसा मोदी कहते आ रहे हैं कि शाहज़ादे वायनाड हार रहे हैं ?

पता नहीं। पर रायबरेली वह ज़रूर गंवा रहे हैं। हमारे एक मित्र हैं। पुराने समाजवादी हैं। मुलायम सिंह के इर्द-गिर्द जमे रहते थे। मुलायम ने बारंबार उन्हें राज्य सभा भेजने का लेमनचूस चुसवाया पर कभी भेजा नहीं। हां , एक बार उन्हें राज्य मंत्री स्तर का एक ओहदा ज़रूर दे दिया। वह उसी में ख़ुश रहे। बाद में अखिलेश यादव की उपेक्षा से आजिज आ कर वह कांग्रेस की गोद में जा बैठे। कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्य प्रवक्ता भी बना दिया। कि तभी चुनाव घोषित हो गए और फिर कांग्रेस और सपा के बीच संभावित समझौता हो गया। वह लेकिन भाजपा के ख़िलाफ़ बिगुल बजाने में पीछे नहीं हुए। बीते महीने उन से बात हो रही थी। बात ही बात में वह भाजपा और मोदी के चार सौ पार के दावे की बात करने लगे। पूछने लगे कि यह चार सौ आएंगे कहां से ? बढ़ाएंगे कहां से ? मैं ने उन्हें धीरे से बताया कि दक्षिण भारत से। पश्चिम बंगाल से। इस पर मित्र कहने लगे , दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से इतना ? मैं ने कहा , बस देखते चलिए।

पहले ही कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय निश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन दक्षिण भारत में राम लहर है। इंडिया गठबंधन इस से बेख़बर है क्या ? गिलहरी प्रसंग याद कीजिए।

समुद्र पर सेतु बन रहा था। सभी अपने-अपने काम पर लगे थे। एक गिलहरी यह सब देख रही थी। उसे बड़ी पीड़ा हुई कि हम कुछ क्यों नहीं कर पा रहे। उस ने सोचा और फिर अचानक रेत में लोटपोट कर सेतु बनने की जगह जा कर अपनी देह झाड़ देती। बार-बार ऐसा करते उसे राम ने देखा। राम को लगा कि जब यह गिलहरी अपनी सामर्थ्य भर काम कर रही है तो हम भी कुछ क्यों न करें। राम ने एक पत्थर उठाया। लोग पत्थर पर राम नाम लिख कर समुद्र में डाल रहे थे। राम ने सोचा , अपना ही नाम क्या लिखना भला। बिना राम नाम लिखे पत्थर जल में डाल दिया। पत्थर तैरने के बजाय डूब गया। दूसरा पत्थर डाला , वह भी डूब गया। तीसरा-चौथा सभी पत्थर डूबते गए। राम घबरा गए। पीछे मुड़ कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। देखा तो पाया कि हनुमान देख रहे हैं।

राम ने हनुमान को बुलाया और पूछा कि कुछ देखा तो नहीं ? हनुमान ने कहा , प्रभु ! सब कुछ देखा ! राम ने हनुमान से कहा, चलो तुम ने देखा तो देखा पर किसी से यह बताना नहीं। हनुमान ने कहा , कि ना प्रभु , हम तो पूरी दुनिया को बताएंगे कि प्रभु राम का भी राम नाम के बिना कल्याण नहीं। इसी प्रसंग पर बहुत सारी भजन हैं , कथाएं हैं। एक मशहूर भजन है , राम से बड़ा राम का नाम ! तो क्या दक्षिण , क्या उत्तर , क्या पूरब , क्या पश्चिम राम से बड़ा राम का नाम चल रहा है। राम की यही मार जब इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ने लगी तो हिंदू-मुसलमान कर दिया। मुस्लिम आरक्षण का दांव चल दिया।

दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से सौ सीट भले न आए पर खाता खुलना बड़ी बात है। केरल से एक भी सीट ला पाना भाजपा के लिए सपना है पर अगर वायनाड ही जीत गई भाजपा तो ? कर्नाटक , आंध्र और तेलंगाना से तो भाजपा आ ही रही हैं। तामिलनाडु भी दौड़ में है। यह पहली बार होगा कि भाजपा दक्षिण भारत में अंगद की तरह पांव रखने जा रही है। राम मंदिर का संदेश और मोदी की रणनीति , मेहनत ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय लिख कर रख दिया है। उत्तर पूर्व में भी स्थिति बेहतर है। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली ने ममता बनर्जी को सकते में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश , राजस्थान , गुजरात और मध्य प्रदेश में कोई लड़ाई ही नहीं है। इंडी गठबंधन के उम्मीदवार ही खूंटा तोड़-ताड़ कर भागने लगे हैं। महाराष्ट्र और बिहार में तो इंडी गठबंधन के लोग परिवार को ही सर्वोपरि मानने में सब कुछ लुटा बैठे हैं।

पंजाब में भाजपा की स्थिति बहुत ख़राब है लेकिन बाक़ी के प्रदेशों में भाजपा की बल्ले-बल्ले है। ख़ास कर उत्तर प्रदेश में तो योगी ने भाजपा के आगे किसी को टिकने के लिए ज़मीन ही नहीं छोड़ी है। अस्सी सीट नहीं , न सही पचहत्तर-छिहत्तर सीट साफ़ तौर पर भाजपा की झोली में है। मैनपुरी से डिंपल यादव तो क्लीयरकट जीत रही हैं पर कन्नौज से अखिलेश यादव की जीत पक्की नहीं है। बुरी तरह फंसे हुए हैं। उन के ऊपर जूते-चप्पल चल रहे हैं। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ भी सपा गंवा रही है। मुख़्तार अंसारी के परिवार में फूट पड़ जाने के कारण ग़ाज़ीपर और मऊ भी खटाई में पड़ गया है।

लड़की हूं , लड़ सकती हूं का ज्ञान भाखने वाली प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली , अमेठी तो क्या देश में कहीं से भी अपने को लड़ने के लायक नहीं मानतीं। माता सोनिया गांधी हार के डर से राज्य सभा चली गईं ताकि 10 जनपथ , नई दिल्ली का आलीशान बंगला न छिन जाए। लतीफ़ा गांधी की जहां तक बात है , वह हारे चाहें जीतें , उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वह सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस डबल ज़ीरो पाने के लिए लड़ रही है। राहुल गांधी शायद अपनी ज़मानत बचा लें पर बाक़ी कांग्रेसियों की ज़मानत ज़ब्त है।

इस चुनाव को आप महाभारत के अंदाज़ में देख सकते हैं। जिस में एक राहुल गांधी ही नहीं दुर्योधन की भूमिका में उपस्थित हैं। संपूर्ण इंडिया गठबंधन में यत्र-तत्र दुर्योधन और दुशासन उपस्थित हैं। कोई लाक्षागृह बना रहा है , कोई चीर-हरण में संलग्न है , कोई अभिमन्यु की हत्या में।

इंडिया गंठबंधन को एक बात से संतोष बहुत है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा नहीं हो रहा है। एक संतोष यह भी है कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने मंडल-कमंडल के वोट बैंक को एक कर के 2014 और 2019 में एक कर के अपनी विजय पताका फहराई थी , जातीय जनगणना के उन के दांव में उसे छिन्न-भिन्न कर दिया है। इसी उत्साह का कुपरिणाम है कि मल्लिकार्जुन खड़गे शिव को राम से लड़ाने और राम पर शिव के विजय की घोषणा करने की मूर्खता कर बैठते हैं।

कभी क्षत्रिय समुदाय की भाजपा से नाराजगी , कभी कोविशील्ड की अफ़वाह , कभी स्कूलों में बम , कभी आरक्षण , कभी हिंदू-मुसलमान , कभी कुछ , कभी कुछ। हौसला इतना पस्त है , बदहवासी इतनी है कि अखिलेश यादव की उपस्थिति में मंच पर माइक से शिवपाल यादव भाजपा की बड़ी मार्जिन से जिताने का ऐलान कर बैठते हैं। राहुल गांधी की जुबान अलग बदजुबानी पर उतरती रहती है , तू-तड़ाक की भाषा बोलने लगते हैं।

चुनाव के पहले ही राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने जातीय जनगणना की ढोल बजा दी थी। मंशा साफ़ थी कि मंडल और कमंडल के वोट बैंक जो 2014 में भाजपा की सोशल इंजीयरिंग में एक हो चले हैं , उन्हें छिन्न-भिन्न कर तार-तार कर देना। नीतीश कुमार जब इंडिया गठबंधन में थे , बिहार में जातीय जनगणना का झंडा गाड़ दिया। भाजपा ने अवसर गंवाए बिना नीतीश कुमार को ही तोड़ कर एन डी ए में समाहित कर इंडिया गठबंधन की ताक़त में मनोवैज्ञानिक सेंधमारी कर दी। धीरे-धीरे इंडिया गठबंधन के कई सारे लोग ऐसे कूदने लगे जैसे किसी डूबते हुए जहाज से कूदने लगते हैं। कांग्रेस के डूबते जहाज से कूदने वालों की संख्या बेहिसाब है। सिलसिला है कि रुकता नहीं। नीतीश कुमार तो इतने उत्साहित हो गए हैं कि 400 की जगह 4000 सीट जितवाने की बात कर जाते हैं।

अपने मौलिक अधिकार और सवाल पूछने के अधिकार का प्रयोग करते हुए आप पूछ सकते हैं कि जब सब कुछ इतना आसान है , हिंदू-मुसलमान की पिच जो मोदी को इतनी ही रास आती है तो दिन-रात इतना खट क्यों रहे हैं। इतना तीन-तिकड़म क्यों कर रहे हैं भला तो आप को कन्हैयालाल नंदन की यह कविता ज़रूर ध्यान में रख लेनी चाहिए।

तुमने कहा मारो

और मैं मारने लगा

तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का

भरपूर वहन करोगे

लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा

मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में/ हारा हुआ ही कहलाऊंगा

तुम्हें नहीं मालूम

कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं

तो योग और क्षेम नापने का तराजू

सिर्फ़ एक होता है

कि कौन हुआ धराशायी

और कौन है

जिसकी पताका ऊपर फहराई

योग और क्षेम के

ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ

अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ

और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है

वैसे ही तुम भी लगाओ।


(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवँ वरिष्ठ पत्रकार हैं, उनके 13 उपन्यास, 13 कहानी-संग्रह समेत कविता, गजल, संस्मरण, लेख, इंटरव्यू, सिनेमा सहित  विभिन्न विधाओं में 75 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है लखनऊ में रहते हैं)

उनके ब्लॉग https://sarokarnama.blogspot.com/ पर ऐसे कई लेख पढ़े जा सकते हैं 




साइबर अपराध के पीडि़त साइबर दोस्त की सहायता लें

राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) पर साइबर अपराधियों द्वारा पुलिस अधिकारियों, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), नारकोटिक्स विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियां का रूप धारण कर धमकी, ब्लैकमेल, जबरन वसूली और “डिजिटल अरेस्ट” जैसी वारदातों को अंजाम देने के संबंध में बड़ी संख्या में शिकायतें दर्ज की जा रही हैं।

ये धोखेबाज आमतौर पर संभावित पीड़ित को कॉल करते हैं और कहते हैं कि पीड़ित ने कोई पार्सल भेजा है या प्राप्त किया है जिसमें अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या कोई अन्य प्रतिबंधित वस्तु है। कभी-कभी, वे यह भी सूचित करते हैं कि पीड़ित का कोई करीबी या प्रिय व्यक्ति किसी अपराध या दुर्घटना में शामिल पाया गया है और उनकी हिरासत में है। ऐसे कथित “केस” में समझौता करने के लिए पैसे की मांग की जाती है। कुछ मामलों में, पीड़ितों को “डिजिटल अरेस्ट” का सामना करना पड़ता है और उनकी मांग पूरी न होने तक पीड़ित को स्काइप या अन्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म पर धोखेबाजों के लिए उपलब्ध रहने पर मजबूर किया जाता है। ये जालसाज़ पुलिस स्टेशनों और सरकारी कार्यालयों की तर्ज पर बनाए गए स्टूडियो का उपयोग करने में माहिर होते हैं और असली दिखने के लिए वर्दी पहनते हैं।

देशभर में कई पीड़ितों ने ऐसे अपराधियों के जाल में फंस कर बड़ी मात्रा में धन गंवाया है। यह एक संगठित ऑनलाइन आर्थिक अपराध है और ऐसा माना जाता है कि इसे सीमापार आपराधिक सिंडिकेट द्वारा संचालित किया जाता है।

गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C), देश में साइबर अपराध से निपटने से संबंधित गतिविधियों का समन्वय करता है। गृह मंत्रालय इन साइबर अपराधों से निपटने के लिए अन्य मंत्रालयों और उनकी एजेंसियों, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और अन्य संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है। I4C ऐसे मामलों की पहचान और जांच के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों को इनपुट और तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रहा है।

I4C ने माइक्रोसॉफ्ट के सहयोग से ऐसी गतिविधियों में शामिल 1,000 से अधिक स्काइप आईडी को भी ब्लॉक कर दिया है। यह धोखेबाजों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सिम कार्ड, मोबाइल उपकरणों और म्यूल खातों को ब्लॉक करने में भी मदद कर रहा है। I4C ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘Cyberdost’ पर इन्फोग्राफिक्स और वीडियो के माध्यम से विभिन्न अलर्ट भी जारी किए हैं, जैसे कि X, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स।

नागरिकों को इस प्रकार की जालसाज़ी से सावधान रहने और इनके बारे में जागरुकता फैलाने की सलाह दी जाती है। ऐसी कॉल आने पर नागरिकों को तत्काल साइबरक्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 या www.cybercrime.gov.in पर सहायता के लिए इसे रिपोर्ट करना चाहिए।




नदियों के संरक्षण से जुड़ा है समाज और संस्कृति का भविष्य

जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) द्वारा संचालित नदी घाटी मंच की तरफ से मेधा पाटकर अराधना भार्गव राज कुमार सिन्हा मध्यप्रदेश, सी.आर. निलकंदन एस. पी. रवि केरल, मानसी असर हिमाचल प्रदेश, महेन्द्र यादव बिहार, समीर रतुङी उतराखंड, मीरा संघमित्रा तेलंगाना, देव प्रसाद राय सुप्रितम कर्मकार पश्चिम बंगाल, रोहित प्रजापति गुजरात, विधुत सयकिया आसाम, निशीकांत पधारे महाराष्ट्र ने देश की बहुमूल्य नदियों की गंभीर दशा के मद्देनज़र एक मज़बूत नदी प्रबंधन कानून की मांग किया है। उन्होंने वर्तमान लोकसभा चुनावों के सन्दर्भ में सभी राजनीतिक दलों और सांसदों के सामने प्रमुख मांगों के साथ एक पीपुल्स बिल का मसौदा रखा  है।
पृथ्वी पर गहराते पर्यावरणीय संकट और इससे जुडी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए  भारत में 2024 के संसदीय चुनाव न केवल देश, दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। जबकि चुनावी राजनीति में दूरदर्शी‌ लक्ष्य को छोड़, लोक-लुभानि नीतियों का दबदबा रहता है, जिसमें पर्यावरण के मुद्दों को हमेशा दरकिनार कर दिया जाता है।मसौदा में सभी पार्टियों का अपना ध्यान देश की अनमोल प्राकृतिक विरासत  हमारी नदियों  पर लाना चाहते हैं, जो न केवल हमारे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, बल्कि इस देश के प्रत्येक नागरिक को जीवन और आजीविका सुरक्षा प्रदान करती है। हमारी नदियाँ, सभ्यता की रीढ़ है। परन्तु भारत की प्राकृतिक जीवन रेखाएं बेहद  संकट में है और हम सभी दलों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और राजनेताओं से इस विषय को गंभीरता से लेने की अपील करते हैं।
नदियों के साथ किसानों, विशेष रूप से छोटे भूमि धारकों, मछुआरों, घुमंतू समुदायों और कई आदिवासी, दलित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के तटवर्ती अधिकार जुड़े हुए हैं। देश की विविध नदी घाटियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों और गठबंधनों के रूप में हम केंद्र और राज्य सरकारों की विकासात्मक नीतियों के बारे में चिंतित हैं।बड़ी विकास निर्माण परियोजनाओं पर आधारित आर्थिक व्यवस्था ने हमारे नदी की पारिस्थितिकी तंत्र और नदियों का वस्तुकरण, निजीकरण, विनियोजन और प्रदूषण ही किया है। इसमें विकास के नाम पर बांधों, बैराजों, तटबंधों, जलविद्युत परियोजनाओं, बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक और अवैध रेत खनन, सीवेज और अपशिष्ट प्रदूषण, इंटरलिंकिंग और रिवर फ्रंट परियोजनाओं का निरंतर निर्माण शामिल है।
इसके कारण भूमि उपयोग और जल विज्ञान में परिवर्तन ने देश में सतही और भूजल दोनों व्यवस्थाओं को प्रभावित किया है, जिससे लाखों लोग अपनी आजीविकाओं से बेदखल और विस्थापित हुए हैं। नर्मदा पर बाँध निर्माण में बिना पुनर्वास विस्थापन की ऐतहासिक साज़िश और अन्याय अब हमें मंज़ूर नहीं।
हम ‘नदी जल प्रशासन के लिए जिम्मेदार केंद्रीय जल आयोग (CWC) जैसे संस्थानों ने ‘जल प्रबंधन’ के नाम पर तकनीकी व इंजीनियरिंग परियोजनाओं को जनता पर थोपा है, जबकि नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम जो हमारी नदियों की पवित्रता का गुणगान करते हैं, उसमें नदी पुनर्जीवन के नाम पर सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी मात्र है। आज हम बढ़ते तापमान के साथ, भयंकर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, एक तरफ़ तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर हिमालय की नदियाँ और उसकी गोद में बसे मैदानी इलाकों को कभी बाढ़, तो कभी सूखे का समाना करना पड़ता है तो दूसरी तरफ नदियों के सूखने के कारण जल संसाधनों के बंटवारे पर अंतरराज्यीय और क्षेत्रीय विवाद बढ़ रहे हैं – जैसा कि हम कावेरी, महानदी, कोसी (सीमा-पार नदी) और मुल्लयार और पेरियार जैसी अन्य छोटी नदियों में देख पाते हैं।
पिछले वर्ष हुई चर्चाओं और विचार-विमर्श के माध्यम से, हमने यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत के संवैधानिक मूल्यों और सततता तथा समता के सिद्धांतों पर आधारित नदी प्रबंधन व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है। ‘विकास’ के नाम पर गलत प्राथमिकताओं को चुनौती देना और अपने संविधान, मानवाधिकारों, पारिस्थितिक स्थिरता और न्यायसंगत, लोकतांत्रिक भागीदारी के मूल्यों के आधार पर, हमारे नदियों के संरक्षण के लिए पैरवी करना हमारा लक्ष्य है। हम आपके समक्ष एक केंद्रीय कानून का मसौदा प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका उद्देश्य भारत में नदियों और तटीय अधिकारों की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जीवन है। इस मसौदा कानून में जिन कुछ प्रमुख मुद्दों को संबोधित किया गया है। जो इस प्रकार है-
(1) भारत की प्रत्येक नदियों के जल प्रवाह को अविरल एवं निर्मल रखने और गर्मी के मौसम में भी नदी सूखने न देने की जिम्मेदारी शासन लेगी।
(2) नदी और उसकी सहायक नदियों का प्रत्यक्ष जल ग्रहण क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र, वन आवरण‌ और जैव विविधता की सुरक्षा का कार्य स्थानीय ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और जिला पंचायत के साथ नियोजित कर उसे अमल में लाना।
(3) नदी जल, भूजल, जलीय जीव आदि पर असर लाने वाला अवैध रेत खनन पर संपुर्ण प्रतिबंध लगाना।
(4) नदी किनारे के प्रत्यक्ष  जल ग्रहण क्षेत्र के पहाङ और वन क्षेत्र के जल प्रवाह को प्रभावित करने वाले खनन, निर्माण कार्य, वन कटाई आदि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाएं ताकि घाटी की जनता को जलापूर्ति और नदी का जल प्रवाह बाधित न हो।
(5) उदगम स्थल से समुद्र तक पहुँचने वाली नदी को  हर प्रकार के प्रदुषण से मुक्त रखा जाए।इस हेतू नदी घाटी के हर क्षेत्र के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जल्द से जल्द तैयार करना।शहरी, ग्रामीण तथा औधोगिक क्षेत्र का अवशिष्ट और खेती में उपयोग किया जाने वाला रसायनिक खाद, कीटनाशक, दवाई आदि को ग्राम सभा एवं राज्य शासन की सबंधित संस्थाओं के माध्यम से नियंत्रित करना।
(6) नदी और नदी घाटी के किसी भी संसाधन को प्रभावित करने वाली कोई भी परियोजना का समाजिक, सांसकृतिक, पर्यावरणीय, जीवन एवं आजिविका, आवास आदि पर पङने वाले प्रभाव का सर्वांगीण अध्ययन और मुल्यांकन निष्पक्ष रूप से किया जाए। जिसमें परियोजना प्रभावितों की जनसुनवाई और परियोजना नियोजक संस्था के बीच संवाद और उसके निष्कर्ष के बाद ही परियोजना को मंजूरी दी जाए। जनसुनवाई में किसान, मजदूर, मछुआरे, पशुपालक, कारीगर तथा नदी पर किसी भी प्रकार की निर्भरता रखने वाले और उससे लाभ लाभ कमाने वाले नागरिकों को शामिल किया जाए।
(7) नदी घाटी या नदी पर बनी किसी भी योजना में आवास एवं आजिविका से विस्थापन न हो या कम से कम हो, ऐसा विकल्प अपनाना होगा। किसी भी परियोजना से कोई विस्थापन तथा नुकसान के पहले भूमिअर्जन, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना अधिनियम 2013 तथा सबंधित पुनर्वास नीति और प्रावधानों का पूरा अमल सुनिश्चित किया जाएगा।
(8) नदी घाटी के संसाधनों का दोहन, उपयोग, हस्तांतरण आदि की कोई भी योजना में उस क्षेत्र की की सभ्यता, संसकृति, पुरातत्त्वीय धरोहर, मानव वंश की शास्त्रीय धरोहर पर प्रतिकूल प्रभाव न हो इसके लिए पुरातत्व कानून का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना।
(9) पर्यटन या जल परिवहन की कोई भी परियोजना जिसमें नदी जल का प्रदुषण होना संभव है, उसे प्रदुषण नियंत्रण मंडल द्वारा गहन, सर्वांगीण एवं  निष्पक्ष अध्ययन और निष्कर्ष के आधार पर ही सबंधित विभाग द्वारा मंजूरी दिया जाए।जबकि उच्चतम न्यायालय और हरित न्याधिकरण ने जलापूर्ति वाले जलाशय में क्रुज चलाने को  प्रतिबंधित किया है।
(10) केंद्रीय जल आयोग के निर्देश और नियमावली के अनुसार हर जलाशय में जुलाई और अगस्त माह के अंत तक क्रमशः 50% और 25% क्षमता तक पानी खाली रखा जाएगा। जिससे वर्षा ऋतु तथा जलवायु परिवर्तन की विशेष स्थिति में अचानक आनेवाला वर्षा जल जलाशय में समा जाए और बाढ़ से नुकसान न हो। यह जिम्मेदारी हर परियोजना संचालक तथा सबंधित विभाग के प्रमुख अधिकारी एंव मंत्री की होगी।उल्घंन होने पर संबंधितों के खिलाफ कार्यवाही होगी।
(11) पूर्व में बन चुके बङे बांधों का व्यवस्थापन, सबंधित कानून, नीतियों तथा मंजूरी के साथ रखी गई शर्तों का संपुर्ण पालन करना होगा। बांधों की सुरक्षा, विस्थापित एवं प्रभावितों का न्यायपूर्ण पुनर्वास, पर्यावरणीय हानि की पूर्ति तथा आर्थिक लाभ- हानि का आकलन प्रति वर्ष करना होगा। जबतक पूर्व में बने बांधों के सबंध में मूल योजना के अनुसार लाभदायक तथा सफल और विस्थापितों का पुनर्वास और पर्यावरण की हानिपूर्ति, बांध सुरक्षा आदि की परिपूर्णता साबित नहीं होती, तबतक कोई नये बङे बांध को मंजूरी नहीं दी जाएगी।
(12) अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत जनतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में नदी घाटी में बसे समुदाय और समाजों की, नदी और घाटी से रिश्ता रखने वाले चिंतित नागरिक तथा विशेषज्ञों की सुनवाई हर जल विवाद न्याधिकरण को करना जरूरी होगा।
(13) न्यूनिकरणवादी इंजिनियरिंग आधारित जल ज्ञान और जलवायु संसाधनों को अस्वीकार कर, जलवायु न्याय के समग्र दृष्टिकोण के आधार पर प्रकृति और समुदाय केन्द्रित जल और नदी प्रशासन वयवस्था कायम करना।
(14) यूरोप और अमेरिका में बने हजारों बांध को तोड़ने की मुहिम 2016 से चलाया जा रहा है।जिसके अन्तर्गत अमेरिका ने 1900  और यूरोप ने 4000 से अधिक बांधों को तोङा गया है।सवाल उठता है कि भारत में बङे बांधों का निर्माण क्यों किया जा रहा है ? कहीं कार्पोरेट समर्थित नीतियों का हिस्सा तो नहीं है?
हम आशा करते हैं कि ये महत्वपूर्ण मुद्दे आपके चुनावी घोषणा-पत्रों और आपकी पार्टी की भविष्य की कार्य-नीति में शामिल होंगे।
राज कुमार सिन्हा
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ



अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री थीं रणवीर सिंह की दादी, लाहौर से लेकर मुंबई तक चलता था सिक्का….

आज हम आपको रणवीर सिंह यानी हिंदी सिनेमा के पावर हाउस के परिवार के एक खास सदस्य से मिलवाने वाले हैं. रणवीर जिन्होंने कम समय में इंडस्ट्री में अपना नाम बना लिया उन्हें दर्शकों का दिल जीतने का हुनर इन्हें विरासत में मिला है.
लाखों लोगों के चहेते बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह एक मल्टी टैलेंटेड एक्टर के तौर पर देखे जाते हैं. वह इंडस्ट्री के सबसे एनर्जेटिक एक्टर्स में से एक हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका परिवार लंबे समय से फिल्म बिजनेस का हिस्सा रहा है? रणवीर सिंह की दादी चांद बर्क 1940 के दशक की मशहूर एक्ट्रेस थीं. उनका जन्म 1932 में हुआ था और वह 1940 के दशक की एक बड़ी अदाकारा थीं. लोग उन्हें स्क्रीन पर देखना पसंद करते थे क्योंकि उनकी स्क्रीन प्रेजेंस बेहद शानदार थी. चांद बर्क ने अपने टैलेंट और कड़ी मेहनत के दम पर हिंदी और पंजाबी दोनों फिल्मों में नाम कमाया. उन्होंने एक्टिंग में 20 साल से ज्यादा समय बिताया और उन्हें पहला बड़ा ब्रेक लीजेंड्री स्टार राज कपूर से मिला. 1954 की फिल्म बूट पॉलिश में उन्होंने बेबी नाज और रतन कुमार की मतलबी चाची की अहम भूमिका निभाई.
1932 में पैदा हुई चांद बर्क एक ईसाई परिवार से थीं और बारह भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं. वह वास्तव में होशियार थीं और स्कूल में अच्छा परफॉर्म करती थीं. वह एक महान डांसर थीं! उनके भाई सैमुअल मार्टिन बर्क भारतीय सिविल सेवा में एक बड़े अधिकारी और एक राजनयिक थे. उन्होंने विदेश नीति के बारे में कुछ किताबें भी लिखीं. चांद ने अपने एक्टिंग के सफर की शुरुआत 1946 में माहेश्वरी प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी और निरंजन के डायरेक्शन में फिल्म ‘कहां गए’ से शुरू की. उन्होंने लाहौर में बनी कई पंजाबी फिल्मों में काम किया. इससे उन्हें डांसिंग लिली ऑफ पंजाब का टाइटल मिला. ऐसा कहा जाता है कि चांद ने 1945 में अपने डायरेक्टर निरंजन से शादी की लेकिन 1954 में वे अलग हो गए.
बताया जाता है कि भारत के विभाजन और चांद बर्क के बंबई बसने की वजह से उनके करियर पर बहुत असर पड़ा. उनके जीवन में एक ऐसा दौर भी आया था जब हमारी मंजिल (1949) की रिलीज के बाद भी चांद बर्क गुमनामी में चले गई थीं. हालांकि राज कपूर ने उन्हें खोजा और उन्होंने उन्हें शोबिज में दूसरा मौका दिया. राज ने उन्हें बूट पॉलिश (1954) में बेबी नाज और रतन कुमार की सताती चाची के रूप में कास्ट किया.
लेखक फिल्मी दुनिया से लेकर विविध विषयों पर लिखते हैं

साभार –https://www.facebook.com/manoj.narang.965  से




वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण में वृद्धि से गरीब वर्ग तक सहायता पहुंचाना हुआ आसान

आपको ध्यान होगा कि जब केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर को भारत में लागू करने के प्रयास कर रही थी तब कई विपक्षी दलों ने इस नए कर को देश में लागू करने के प्रति बहुत आशंकाएं व्यक्त की थीं। उस समय कुछ आलोचकों का तो यहां तक कहना था कि वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली देश में निश्चित ही असफल होने जा रही है एवं इससे देश के गरीब वर्ग पर कर के रूप में बहुत अधिक बोझ पड़ने जा रहा है। परंतु, केंद्र सरकार ने देश में पूर्व में लागू जटिल अप्रयत्यक्ष कर व्यवस्था को सरल बनाने के उद्देश्य से वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में लागू कर दिया था तथा इस कर में लगभग 20 प्रकार के करों को सम्मिलित किया गया था। वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को लागू करने के तुरंत उपरांत व्यापारियों को व्यवस्था सम्बन्धी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा था। परंतु, इन परेशानियों को केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों के सहयोग से धीरे धीरे दूर कर लिया गया है एवं आज वस्तु एवं सेवा कर के अन्तर्गत देश में कर व्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है जिससे देश में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण कुलांचे मारता हुआ दिखाई दे रहा है।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए धन की आवश्यकता होती है और यह धन देश की जनता से ही करों के रूप में उगाहे जाने के प्रयास होते हैं। उस कर व्यवस्था को उत्तम कहा जा सकता है जिसके अंतर्गत नागरिकों को कर का आभास बहुत कम हो। जिस प्रकार मक्खी गुलाब के फूल से शहद कुछ इस प्रकार से निकालती है कि फूल को मालूम ही नहीं पड़ता है, ठीक इसी प्रकार की कर व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा, वस्तु एवं कर सेवा के माध्यम से, देश में लागू करने के प्रयास किये गए हैं। गरीब वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर कर की दर को या तो शून्य रखा गया है अथवा कर की दर बहुत कम रखी गई है। इसके विपरीत, धनाडय वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर कर की दर बहुत अधिक रखी गई है। वस्तु एवं सेवा कर की दर को शून्य प्रतिशत से लेकर 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत एवं 28 प्रतिशत अधिकतम तक रखा गया है।

भारत में वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को लागू किया हुए 6.5 वर्षों से अधिक का समय हो चुका है एवं आज देश में अप्रत्यक्ष कर संग्रहण में लगातार हो रही तेज वृद्धि के रूप में इसके सुखद परिणाम स्पष्टत: दिखाई देने लगे हैं। दिनांक 1 मई 2024 को अप्रेल 2024 माह में वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण से सम्बंधित जानकारी जारी की गई है। हम सभी के लिए यह हर्ष का विषय है कि माह अप्रेल 2024 के दौरान वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 2.10 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो निश्चित ही, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शा रहा है। वित्तीय वर्ष 2022 में वस्तु एवं सेवा कर का औसत कुल मासिक संग्रहण 1.20 लाख करोड़ रुपए रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 1.50 लाख करोड़ रुपए हो गया एवं वित्तीय वर्ष 2024 में 1.70 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया।

अब तो अप्रेल 2024 में 2.10 लाख करोड़ रुपए के स्तर से भी आगे निकल गया है। इससे यह आभास हो रहा है कि देश के नागरिकों में आर्थिक नियमों के अनुपालन के प्रति रुचि बढ़ी है, देश में अर्थव्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है एवं भारत में आर्थिक विकास की दर तेज गति से आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले 2/3 वर्षों में 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। भारत में वर्ष 2014 के पूर्व एक ऐसा समय था जब केंद्रीय नेतृत्व में नीतिगत फैसले लेने में भारी हिचकिचाहट रहती थी और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की हिचकोले खाने वाली 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। परंतु, केवल 10 वर्ष पश्चात केंद्र में मजबूत नेतृत्व एवं मजबूत लोकतंत्र के चलते आज वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है।

वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से देश में कर संग्रहण में आई वृद्धि के चलते ही आज केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग को विभिन्न विशेष योजनाओं का लाभ पहुंचाये जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। पीएम गरीब कल्याण योजना के माध्यम से मुफ्त अनाज के मासिक वितरण से 80 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ प्राप्त हो रहा है। पीएम उज्जवल योजना के अंतर्गत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किये गए हैं। इन महिलाओं के जीवन में इससे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है क्योंकि ये महिलाएं इसके पूर्व लकड़ी जलाकर अपने घरों में भोजन सामग्री का निर्माण कर पाती थीं और अपनी आंखों को खराब होते हुए देखती थीं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत भी 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं की सुरक्षा एवं गरिमा को कायम रखा जा सका है। जन धन खाता योजना के अंतर्गत 52 करोड़ से अधिक खाते खोलकर नागरिकों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में लाया गया है। इससे गरीब वर्ग के नागरिकों के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है।

पूरे भारत में 11,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो 50-90 प्रतिशत रियायती दरों पर आवश्यक दवाएं प्रदान कर रहे हैं। साथ ही, जल जीवन मिशन ने पूरे भारत में 75 प्रतिशत से अधिक घरों में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करके एक बड़ा मील का पत्थर हासिल कर लिया गया है। लगभग 4 वर्षों के भीतर मिशन ने 2019 में ग्रामीण नल कनेक्शन कवरेज को 3.23 करोड़ घरों से बढ़ाकर 14.50 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचा दिया गया है। इसी प्रकार, पीएम आवास योजना के अंतर्गत, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 4 करोड़ से अधिक पक्के मकान बनाए गए हैं एवं सौभाग्य योजना के अंतर्गत देश भर में 2.8 करोड़ घरों का विद्युतीकरण कर लिया गया है। विश्व भर के सबसे बड़े सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना – के अंतर्गत 55 करोड़ लाभार्थियों को माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल एवं अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है।

वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण में आई तेजी के चलते केवल गरीब वर्ग के लिए विशेष योजनाएं ही नहीं चलाई गईं है बल्कि विशेष रूप से केंद्र सरकार के लिए अपने पूंजीगत खर्च में भी बढ़ौतरी करने में आसानी हुई है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 11.11 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च का केंद्रीय बजट में प्रस्ताव किया गया है जो वित्तीय वर्ष 2023-24 के 10 लाख करोड़ रुपए का था एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.5 लाख करोड़ रुपए का था। केंद्र सरकार द्वारा की जा रही इतनी भारी भरकम राशि के पूंजीगत खर्च के कारण ही आज देश में निजी क्षेत्र भी अपना निवेश बढ़ाने के लिए आकर्षित हुआ है। विदेशी वित्तीय संस्थान भी अब भारत में अपना विदेशी निवेश बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार हो रही वृद्धि के कारण केंद्र सरकार के बजट में वित्तीय घाटे की राशि को लगातार कम किए जाने में सफलता मिलती दिखाई दे रही है, इससे केंद्र सरकार को अपने खर्चे चलाने के लिए बाजार से ऋण लेने की आवश्यकता भी कम होने जा रही है।

 

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – [email protected]




कहानी असली हीरा मंडी की

बॉलीवुड के दिग्गज फिल्मकार संजय लीला भंसाली की पहली वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ पिछले कई दिनों से लगातार बज में बनी हुई थी। अब ये 8 एपिसोड वाली सीरीज हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज कर दी गई है। इस वेब सीरीज में मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा, शेखर सुमन, फरदीन खान सहित कई सितारे हैं। भंसाली के दिमाग में पिछले 18 साल से ‘हीरामंडी’ का आइडिया था।
संजय लीला भंसाली की सीरीज को काफी पसंद किया जा रहा है। आज हम आपको हीरामंडी की एक ऐसी तवायफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान की मशहूर एक्ट्रेस थीं। नाम था निग्गो उर्फ नरगिस बेगम। निग्गो ने करीब 100 फिल्मों में काम किया था, जितना वह पर्दे पर चमकी, उतनी ही उनकी पर्सनल लाइफ दर्दनाक रही। आज हम आपको अपने बताने जा रहे हैं लाहौर के सबसे बदनाम रेड लाइट एरिया हीरामंडी में जन्मीं निग्गो की कहानी।
निग्गो उर्फ नरगिस का जन्म लाहौर के रेड लाइट एरिया हीरामंडी में हुआ था। उनकी मां तवायफ हुआ करती थीं, जो परिवार के गुजारे के लिए महफिलें और मुजरा किया करती थीं। निग्गो भी अपने मां के नक्शेकदम पर चलीं। बचपन से ट्रेडिशनल डांस सीखते हुए नरगिस इस कदर माहिर हो चुकी थीं कि हीरामंडी में लगने वाली उनकी महफिलों में उनका मुजरा देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुआ करती थी। 40 के दशक में राजशाही खत्म होने को आ गई। ये वो दौर भी था, जब सिनेमा की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन महिलाएं फिल्मों में काम करने से कतराती थीं। ऐसे में जब भी फिल्म के लिए हीरोइन की जरूरत होती थी तो प्रोड्यूसर तवायफों के ठिकाने का रुख करते थे।
कहा जाता है कि निग्गो एक बार हीरामंडी में महफिल सजाए बैठी थीं। हमेशा की तरह उनकी मेहफिल में भीड़ लगी हुई थी। तभी एक पास्तानी प्रोड्यूसर अपनी फिल्म के लिए हीरोइन की तलाश में निकला था। उन्होंने कोठे पर भीड़ लगी देखी तो खुद भी उसका हिस्सा बन गए। आला दर्जे की ट्रेडिशनल डांसर नरगिस के खूबसूरती, डांस और चेहरे के हावभाव देखकर वो प्रोड्यूसर इस कदर इंप्रेस हो गया कि उसने कुछ समय बाद नरगिस को अपनी फिल्म का ऑफर दे दिया। नरगिस भी हीरामंडी से निकलना चाहती थीं, और वह फिल्मों में काम करने के लिए तुरंत तैयार हो गईं।
नरगिस ने साल 1964 की पाकिस्तानी फिल्म इशरत से डेब्यू किया। बेहतरीन डांसर होने के नाते निग्गो को एक के बाद कई फिल्में मिलने लगीं। वह 1968 की शहंशाह-ए-जहांगीर (1968), नई लैला नया मजनूं (1969), अंदालिब (1969), लव इन जंगल (1970), अफसाना (1970), मोहब्बत (1972) जैसी 100 से ज्यादा फिल्मों में नजर आईं। उन्हें ज्यादातर फिल्मों में मुजरे के लिए ही रखा जाता था।
70 के दशक में निग्गो के नाम का पाकिस्तानी सिनेमा में बोलबाला था। इसी दौरान उन्हें प्रोड्यूसर ख्वाजा मजहर की फिल्म कासू में काम मिला। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही उन्हें ख्वाजा मजहर से प्यार हो गया और नरगिस ने ख्वाजा से शादी कर ली। कई लोग उनकी शादी के खिलाफ थे। वजह थी निग्गो का तवायफों के खानदान से ताल्लुक होना, लेकिन ख्वाजा मजहर ने कदम पीछे नहीं खींचे और निग्गो को अपनी बेगम बना लिया। ख्वाजा मजहर से शादी के बाद निग्गो ने हीरामंडी से नाता खत्म कर दिया। निग्गो की शादी के बाद हीरामंडी में रह रहे उनके परिवार की रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो चुका था। शादी के बाद निग्गो ने भी फिल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया।
वहीं जब तवायफ कल्चर जब खत्म होने वाला था तो शाही मोहल्ले में एक रिवाज की शुरुआत की गई कि अगर कोई शख्स शाही मोहल्ले के कोठे की लड़की से शादी करेगा, तो उसे उस लड़की के परिवार वालों को उसकी रकम चुकानी होगी। निग्गो के परिवार का रोजी रोटी का जरिया खत्म हो चुका था और वह चाहते थे कि निग्गो हीरामंडी वापिस आ जाएं। लेकिन जब उन्होंने लौटने से साफ इनकार कर दिया, तो परिवार उनके पति से रिवाज के तहत एक पैसों की मांग करने लगा।
जब निग्गो के परिवार की हर कोशिश के बाद वह सफल नहीं हुए तो मां ने अपनी तबीयत बिगड़ने का नाटक किया और निग्गो को हीरामंडी बुला लिया। जैसे ही वह घर पहुंचीं तो परिवार ने उनके कान भरने शुरू कर दिए। निग्गो जब कई दिनों तक घर नहीं लौटीं तो मजहर ख्वाजा परेशान रहने लगे। वो कुछ दिनों बाद उन्हें लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन परिवार के दबाव में निग्गो ने मजहर के साथ लौटने से साफ इनकार कर दिया। लाख कोशिशों के बाद निग्गो अपने पति के पास नही लौटी। 5 जनवरी 1972 की बात है। मजहर ख्वाजा निग्गो को लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन इस बार भी निग्गो ने उनके साथ आने से साफ इनकार कर दिया। नरगिस की बेरुखी से देखकर मजहर ख्वाजा ने गुस्से में अपनी जेब से बंदूक निकाली और निग्गो पर चलानी शुरू कर दी। उन्होंने निग्गो पर एक के बाद एक कई गोलियां चलाईं। हादसे में निग्गो ने हीरामंडी के अपने घर में ही दम तोड़ दिया और उनके साथ 2 म्यूजिशियन और अंकल की भी मौत हो गई। वहीं निग्गो की हत्या के जुर्म में मजहर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
साभार- https://www.facebook.com/naaradtvbawandar से
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