अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री थीं रणवीर सिंह की दादी, लाहौर से लेकर मुंबई तक चलता था सिक्का….

आज हम आपको रणवीर सिंह यानी हिंदी सिनेमा के पावर हाउस के परिवार के एक खास सदस्य से मिलवाने वाले हैं. रणवीर जिन्होंने कम समय में इंडस्ट्री में अपना नाम बना लिया उन्हें दर्शकों का दिल जीतने का हुनर इन्हें विरासत में मिला है.
लाखों लोगों के चहेते बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह एक मल्टी टैलेंटेड एक्टर के तौर पर देखे जाते हैं. वह इंडस्ट्री के सबसे एनर्जेटिक एक्टर्स में से एक हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका परिवार लंबे समय से फिल्म बिजनेस का हिस्सा रहा है? रणवीर सिंह की दादी चांद बर्क 1940 के दशक की मशहूर एक्ट्रेस थीं. उनका जन्म 1932 में हुआ था और वह 1940 के दशक की एक बड़ी अदाकारा थीं. लोग उन्हें स्क्रीन पर देखना पसंद करते थे क्योंकि उनकी स्क्रीन प्रेजेंस बेहद शानदार थी. चांद बर्क ने अपने टैलेंट और कड़ी मेहनत के दम पर हिंदी और पंजाबी दोनों फिल्मों में नाम कमाया. उन्होंने एक्टिंग में 20 साल से ज्यादा समय बिताया और उन्हें पहला बड़ा ब्रेक लीजेंड्री स्टार राज कपूर से मिला. 1954 की फिल्म बूट पॉलिश में उन्होंने बेबी नाज और रतन कुमार की मतलबी चाची की अहम भूमिका निभाई.
1932 में पैदा हुई चांद बर्क एक ईसाई परिवार से थीं और बारह भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं. वह वास्तव में होशियार थीं और स्कूल में अच्छा परफॉर्म करती थीं. वह एक महान डांसर थीं! उनके भाई सैमुअल मार्टिन बर्क भारतीय सिविल सेवा में एक बड़े अधिकारी और एक राजनयिक थे. उन्होंने विदेश नीति के बारे में कुछ किताबें भी लिखीं. चांद ने अपने एक्टिंग के सफर की शुरुआत 1946 में माहेश्वरी प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी और निरंजन के डायरेक्शन में फिल्म ‘कहां गए’ से शुरू की. उन्होंने लाहौर में बनी कई पंजाबी फिल्मों में काम किया. इससे उन्हें डांसिंग लिली ऑफ पंजाब का टाइटल मिला. ऐसा कहा जाता है कि चांद ने 1945 में अपने डायरेक्टर निरंजन से शादी की लेकिन 1954 में वे अलग हो गए.
बताया जाता है कि भारत के विभाजन और चांद बर्क के बंबई बसने की वजह से उनके करियर पर बहुत असर पड़ा. उनके जीवन में एक ऐसा दौर भी आया था जब हमारी मंजिल (1949) की रिलीज के बाद भी चांद बर्क गुमनामी में चले गई थीं. हालांकि राज कपूर ने उन्हें खोजा और उन्होंने उन्हें शोबिज में दूसरा मौका दिया. राज ने उन्हें बूट पॉलिश (1954) में बेबी नाज और रतन कुमार की सताती चाची के रूप में कास्ट किया.
लेखक फिल्मी दुनिया से लेकर विविध विषयों पर लिखते हैं

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वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण में वृद्धि से गरीब वर्ग तक सहायता पहुंचाना हुआ आसान

आपको ध्यान होगा कि जब केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर को भारत में लागू करने के प्रयास कर रही थी तब कई विपक्षी दलों ने इस नए कर को देश में लागू करने के प्रति बहुत आशंकाएं व्यक्त की थीं। उस समय कुछ आलोचकों का तो यहां तक कहना था कि वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली देश में निश्चित ही असफल होने जा रही है एवं इससे देश के गरीब वर्ग पर कर के रूप में बहुत अधिक बोझ पड़ने जा रहा है। परंतु, केंद्र सरकार ने देश में पूर्व में लागू जटिल अप्रयत्यक्ष कर व्यवस्था को सरल बनाने के उद्देश्य से वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में लागू कर दिया था तथा इस कर में लगभग 20 प्रकार के करों को सम्मिलित किया गया था। वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को लागू करने के तुरंत उपरांत व्यापारियों को व्यवस्था सम्बन्धी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा था। परंतु, इन परेशानियों को केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों के सहयोग से धीरे धीरे दूर कर लिया गया है एवं आज वस्तु एवं सेवा कर के अन्तर्गत देश में कर व्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है जिससे देश में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण कुलांचे मारता हुआ दिखाई दे रहा है।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए धन की आवश्यकता होती है और यह धन देश की जनता से ही करों के रूप में उगाहे जाने के प्रयास होते हैं। उस कर व्यवस्था को उत्तम कहा जा सकता है जिसके अंतर्गत नागरिकों को कर का आभास बहुत कम हो। जिस प्रकार मक्खी गुलाब के फूल से शहद कुछ इस प्रकार से निकालती है कि फूल को मालूम ही नहीं पड़ता है, ठीक इसी प्रकार की कर व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा, वस्तु एवं कर सेवा के माध्यम से, देश में लागू करने के प्रयास किये गए हैं। गरीब वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर कर की दर को या तो शून्य रखा गया है अथवा कर की दर बहुत कम रखी गई है। इसके विपरीत, धनाडय वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर कर की दर बहुत अधिक रखी गई है। वस्तु एवं सेवा कर की दर को शून्य प्रतिशत से लेकर 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत एवं 28 प्रतिशत अधिकतम तक रखा गया है।

भारत में वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली को लागू किया हुए 6.5 वर्षों से अधिक का समय हो चुका है एवं आज देश में अप्रत्यक्ष कर संग्रहण में लगातार हो रही तेज वृद्धि के रूप में इसके सुखद परिणाम स्पष्टत: दिखाई देने लगे हैं। दिनांक 1 मई 2024 को अप्रेल 2024 माह में वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण से सम्बंधित जानकारी जारी की गई है। हम सभी के लिए यह हर्ष का विषय है कि माह अप्रेल 2024 के दौरान वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 2.10 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो निश्चित ही, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शा रहा है। वित्तीय वर्ष 2022 में वस्तु एवं सेवा कर का औसत कुल मासिक संग्रहण 1.20 लाख करोड़ रुपए रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 1.50 लाख करोड़ रुपए हो गया एवं वित्तीय वर्ष 2024 में 1.70 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया।

अब तो अप्रेल 2024 में 2.10 लाख करोड़ रुपए के स्तर से भी आगे निकल गया है। इससे यह आभास हो रहा है कि देश के नागरिकों में आर्थिक नियमों के अनुपालन के प्रति रुचि बढ़ी है, देश में अर्थव्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है एवं भारत में आर्थिक विकास की दर तेज गति से आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले 2/3 वर्षों में 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। भारत में वर्ष 2014 के पूर्व एक ऐसा समय था जब केंद्रीय नेतृत्व में नीतिगत फैसले लेने में भारी हिचकिचाहट रहती थी और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की हिचकोले खाने वाली 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। परंतु, केवल 10 वर्ष पश्चात केंद्र में मजबूत नेतृत्व एवं मजबूत लोकतंत्र के चलते आज वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है।

वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से देश में कर संग्रहण में आई वृद्धि के चलते ही आज केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग को विभिन्न विशेष योजनाओं का लाभ पहुंचाये जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। पीएम गरीब कल्याण योजना के माध्यम से मुफ्त अनाज के मासिक वितरण से 80 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ प्राप्त हो रहा है। पीएम उज्जवल योजना के अंतर्गत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किये गए हैं। इन महिलाओं के जीवन में इससे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है क्योंकि ये महिलाएं इसके पूर्व लकड़ी जलाकर अपने घरों में भोजन सामग्री का निर्माण कर पाती थीं और अपनी आंखों को खराब होते हुए देखती थीं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत भी 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं की सुरक्षा एवं गरिमा को कायम रखा जा सका है। जन धन खाता योजना के अंतर्गत 52 करोड़ से अधिक खाते खोलकर नागरिकों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में लाया गया है। इससे गरीब वर्ग के नागरिकों के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है।

पूरे भारत में 11,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो 50-90 प्रतिशत रियायती दरों पर आवश्यक दवाएं प्रदान कर रहे हैं। साथ ही, जल जीवन मिशन ने पूरे भारत में 75 प्रतिशत से अधिक घरों में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करके एक बड़ा मील का पत्थर हासिल कर लिया गया है। लगभग 4 वर्षों के भीतर मिशन ने 2019 में ग्रामीण नल कनेक्शन कवरेज को 3.23 करोड़ घरों से बढ़ाकर 14.50 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचा दिया गया है। इसी प्रकार, पीएम आवास योजना के अंतर्गत, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 4 करोड़ से अधिक पक्के मकान बनाए गए हैं एवं सौभाग्य योजना के अंतर्गत देश भर में 2.8 करोड़ घरों का विद्युतीकरण कर लिया गया है। विश्व भर के सबसे बड़े सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना – के अंतर्गत 55 करोड़ लाभार्थियों को माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल एवं अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है।

वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण में आई तेजी के चलते केवल गरीब वर्ग के लिए विशेष योजनाएं ही नहीं चलाई गईं है बल्कि विशेष रूप से केंद्र सरकार के लिए अपने पूंजीगत खर्च में भी बढ़ौतरी करने में आसानी हुई है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 11.11 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च का केंद्रीय बजट में प्रस्ताव किया गया है जो वित्तीय वर्ष 2023-24 के 10 लाख करोड़ रुपए का था एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.5 लाख करोड़ रुपए का था। केंद्र सरकार द्वारा की जा रही इतनी भारी भरकम राशि के पूंजीगत खर्च के कारण ही आज देश में निजी क्षेत्र भी अपना निवेश बढ़ाने के लिए आकर्षित हुआ है। विदेशी वित्तीय संस्थान भी अब भारत में अपना विदेशी निवेश बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार हो रही वृद्धि के कारण केंद्र सरकार के बजट में वित्तीय घाटे की राशि को लगातार कम किए जाने में सफलता मिलती दिखाई दे रही है, इससे केंद्र सरकार को अपने खर्चे चलाने के लिए बाजार से ऋण लेने की आवश्यकता भी कम होने जा रही है।

 

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – [email protected]




कहानी असली हीरा मंडी की

बॉलीवुड के दिग्गज फिल्मकार संजय लीला भंसाली की पहली वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ पिछले कई दिनों से लगातार बज में बनी हुई थी। अब ये 8 एपिसोड वाली सीरीज हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज कर दी गई है। इस वेब सीरीज में मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा, शेखर सुमन, फरदीन खान सहित कई सितारे हैं। भंसाली के दिमाग में पिछले 18 साल से ‘हीरामंडी’ का आइडिया था।
संजय लीला भंसाली की सीरीज को काफी पसंद किया जा रहा है। आज हम आपको हीरामंडी की एक ऐसी तवायफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान की मशहूर एक्ट्रेस थीं। नाम था निग्गो उर्फ नरगिस बेगम। निग्गो ने करीब 100 फिल्मों में काम किया था, जितना वह पर्दे पर चमकी, उतनी ही उनकी पर्सनल लाइफ दर्दनाक रही। आज हम आपको अपने बताने जा रहे हैं लाहौर के सबसे बदनाम रेड लाइट एरिया हीरामंडी में जन्मीं निग्गो की कहानी।
निग्गो उर्फ नरगिस का जन्म लाहौर के रेड लाइट एरिया हीरामंडी में हुआ था। उनकी मां तवायफ हुआ करती थीं, जो परिवार के गुजारे के लिए महफिलें और मुजरा किया करती थीं। निग्गो भी अपने मां के नक्शेकदम पर चलीं। बचपन से ट्रेडिशनल डांस सीखते हुए नरगिस इस कदर माहिर हो चुकी थीं कि हीरामंडी में लगने वाली उनकी महफिलों में उनका मुजरा देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुआ करती थी। 40 के दशक में राजशाही खत्म होने को आ गई। ये वो दौर भी था, जब सिनेमा की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन महिलाएं फिल्मों में काम करने से कतराती थीं। ऐसे में जब भी फिल्म के लिए हीरोइन की जरूरत होती थी तो प्रोड्यूसर तवायफों के ठिकाने का रुख करते थे।
कहा जाता है कि निग्गो एक बार हीरामंडी में महफिल सजाए बैठी थीं। हमेशा की तरह उनकी मेहफिल में भीड़ लगी हुई थी। तभी एक पास्तानी प्रोड्यूसर अपनी फिल्म के लिए हीरोइन की तलाश में निकला था। उन्होंने कोठे पर भीड़ लगी देखी तो खुद भी उसका हिस्सा बन गए। आला दर्जे की ट्रेडिशनल डांसर नरगिस के खूबसूरती, डांस और चेहरे के हावभाव देखकर वो प्रोड्यूसर इस कदर इंप्रेस हो गया कि उसने कुछ समय बाद नरगिस को अपनी फिल्म का ऑफर दे दिया। नरगिस भी हीरामंडी से निकलना चाहती थीं, और वह फिल्मों में काम करने के लिए तुरंत तैयार हो गईं।
नरगिस ने साल 1964 की पाकिस्तानी फिल्म इशरत से डेब्यू किया। बेहतरीन डांसर होने के नाते निग्गो को एक के बाद कई फिल्में मिलने लगीं। वह 1968 की शहंशाह-ए-जहांगीर (1968), नई लैला नया मजनूं (1969), अंदालिब (1969), लव इन जंगल (1970), अफसाना (1970), मोहब्बत (1972) जैसी 100 से ज्यादा फिल्मों में नजर आईं। उन्हें ज्यादातर फिल्मों में मुजरे के लिए ही रखा जाता था।
70 के दशक में निग्गो के नाम का पाकिस्तानी सिनेमा में बोलबाला था। इसी दौरान उन्हें प्रोड्यूसर ख्वाजा मजहर की फिल्म कासू में काम मिला। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही उन्हें ख्वाजा मजहर से प्यार हो गया और नरगिस ने ख्वाजा से शादी कर ली। कई लोग उनकी शादी के खिलाफ थे। वजह थी निग्गो का तवायफों के खानदान से ताल्लुक होना, लेकिन ख्वाजा मजहर ने कदम पीछे नहीं खींचे और निग्गो को अपनी बेगम बना लिया। ख्वाजा मजहर से शादी के बाद निग्गो ने हीरामंडी से नाता खत्म कर दिया। निग्गो की शादी के बाद हीरामंडी में रह रहे उनके परिवार की रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो चुका था। शादी के बाद निग्गो ने भी फिल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया।
वहीं जब तवायफ कल्चर जब खत्म होने वाला था तो शाही मोहल्ले में एक रिवाज की शुरुआत की गई कि अगर कोई शख्स शाही मोहल्ले के कोठे की लड़की से शादी करेगा, तो उसे उस लड़की के परिवार वालों को उसकी रकम चुकानी होगी। निग्गो के परिवार का रोजी रोटी का जरिया खत्म हो चुका था और वह चाहते थे कि निग्गो हीरामंडी वापिस आ जाएं। लेकिन जब उन्होंने लौटने से साफ इनकार कर दिया, तो परिवार उनके पति से रिवाज के तहत एक पैसों की मांग करने लगा।
जब निग्गो के परिवार की हर कोशिश के बाद वह सफल नहीं हुए तो मां ने अपनी तबीयत बिगड़ने का नाटक किया और निग्गो को हीरामंडी बुला लिया। जैसे ही वह घर पहुंचीं तो परिवार ने उनके कान भरने शुरू कर दिए। निग्गो जब कई दिनों तक घर नहीं लौटीं तो मजहर ख्वाजा परेशान रहने लगे। वो कुछ दिनों बाद उन्हें लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन परिवार के दबाव में निग्गो ने मजहर के साथ लौटने से साफ इनकार कर दिया। लाख कोशिशों के बाद निग्गो अपने पति के पास नही लौटी। 5 जनवरी 1972 की बात है। मजहर ख्वाजा निग्गो को लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन इस बार भी निग्गो ने उनके साथ आने से साफ इनकार कर दिया। नरगिस की बेरुखी से देखकर मजहर ख्वाजा ने गुस्से में अपनी जेब से बंदूक निकाली और निग्गो पर चलानी शुरू कर दी। उन्होंने निग्गो पर एक के बाद एक कई गोलियां चलाईं। हादसे में निग्गो ने हीरामंडी के अपने घर में ही दम तोड़ दिया और उनके साथ 2 म्यूजिशियन और अंकल की भी मौत हो गई। वहीं निग्गो की हत्या के जुर्म में मजहर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
साभार- https://www.facebook.com/naaradtvbawandar से
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किस्सा कैफी आजंमी और शौकत के रिश्ते का

किस शायर की शायरी पर फिदा होकर मासूम “शौकत” ने अपनी मंगनी तोड़ दी और शायर को अपना शौहर बना लिया?
मशहूर शायर और गीतकार कैफी आजमी ताउम्र अपनी रूमानियत के लिए मकबूल रहे। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह रही कि जो भी उनसे मिलता वे उसे अपना बना लेते। उनसे जुड़ा ऐसा ही एक फलसफा समकालीन शायर निदा फाजली ने साझा किया था। ….
निदा फ़ाजली ने कहा था- ये उन दिनों की बात है जब हम सभी जवान थे और अक्सर मुशायरों में जाया करते थे। हैदराबाद के ऐसे ही एक मुशायरे में कैफ़ी ने जैसे ही अपनी मशहूर नज़्म पढ़नी शुरू की तालियों के शोरगुल में उस लड़की ने पास बैठी अपनी सहेलियों से कहना शुरू किया, “कैसा बदतमीज शायर है, वह ‘उठ’ कह रहा है उठिए नहीं कहता और लगता है इसे तो अदब-आदाब की अलिफ-बे भी नहीं आती। फिर इसके साथ कौन उठकर जाने को तैयार होगा?” मुंह बनाते हुए उसने व्यंग्य से शायरी की पंक्ति दुहरा दी, ‘उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे..’ ।
मगर जब तक श्रोताओं की तालियों के शोर के साथ नज्म खत्म होती तब तक उस लड़की ने अपनी जिंदगी का सबसे अहम फैसला ले लिया था। मां-बाप के लाख समझाने पर भी नहीं मानी। सहेलियों ने इस रिश्ते की ऊंच-नीच के बारे में भी बताया की वह एक शायर है, शादी के लिए सिर्फ शायरी काफी नहीं होती। शायरी के अलावा घर की जरूरत होती है। वह खुद बेघर है, खाने-पीने और कपड़ों की भी जरूरत होती है। कम्युनिस्ट पार्टी उसे मात्र 40 रुपए महीना देती है। इससे कैसे गुजारा हो सकेगा। लेकिन वह लड़की अपने फैसले पर अटल रही।
और कुछ ही दिनों में अपने पिता को मजबूर करके बंबई ले आई जहां सज्जाद जहीर के घर में कहानीकार इस्मत चुगताई, फिल्म निर्देशक शाहिद लतीफ, शायर अली सरदार जाफरी, अंग्रेजी के लेखक मुल्कराज आनंद की मौजूदगी में वह रिश्ता जो हैदराबाद में मुशायरे में शुरू हुआ था, पति-पत्नी के रिश्ते में बदल गया। वो लड़की कोई और नहीं कैफ़ी की पत्नी शौकत खान थीं।
ये रही वो मशहूर नज़्म…जिसने शौकत खान को अपनी सगाई तोड़ने पर मजबूर किया….
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
कद्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं
तुझमें शोले भी हैं बस अश्क फिशानी ही नहीं
तू हकीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज जवानी ही नहीं
अपनी तारीख का उन्वान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान..मेरे साथ ही चलना है तुझे
साभार-https://www.facebook.com/profile.php?id=100068260389805 से



विवस्वान सूर्यदेव का पौराणिक और भौतिक विवेचन

महर्षि  कश्यप और  देव माता आदिति से 12 आदित्य पुत्रों का जन्म हुआ था जिनमें विवस्वान सूर्य देव प्रमुख थे।

भगवान सूर्य देव का ही एक अन्य नाम ‘आदित्य’ भी है। माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण ही इनका नाम आदित्य नाम पड़ा था। विवस्वान् का सूर्य, रवि, आदित्य आदि पर्याय वाची शब्द है। आदित्य को विवस्वान और सूर्य नारायण भी कहा गया है। इनमें बहुत ताप तथा तेज़ है। ये आठवें मनु वैवस्वत मनु , श्राद्धदेव मनु , रेवन्त , मृत्यु के देवता धर्मराज , कर्मफल दाता शनिदेव , शिकार की देवी भद्रा , नदियों में यमुना और वैद्यों में अश्विनी कुमारों के पिता और ऋषि कश्यप तथा अदिति के पुत्र हैं । महाभारत में सम्राट कर्ण तथा रामयण में वानरराज सुग्रीव इन्हीं के पुत्र माने जाते हैं। विवस्वान् को यज्ञ करने वाला पहला मनुष्य कहा गया है। ये विवस्वान् मनु और यम के पिता माने जाते हैं। (ऋग्वेद 8. 52; 10; 14, 16)।       तैत्तिरीयसंहिता में, उल्लेख किया गया है कि पृथ्वी के लोग इस विवस्वान की संतान हैं। (तैत्तिरीय संहिता, 6.5.6)।

इन्हें अग्निदेव भी कहा गया हैं। इनमें जो तेज व ऊष्मा व्याप्त है वह सूर्य से है। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी अग्नि द्वारा होता है। सूर्य को दिन के लिए पूजनीय माना जाता है, जबकि अग्नि को रात के दौरान अपनी भूमिका के लिए।  यह विचार विकसित होता है, कपिला वात्स्यायन कहते हैं, जहां सूर्य को अग्नि को पहला सिद्धांत और ब्रह्मांड का बीज बताया गया है।

संज्ञा विवस्वान् की पत्नी :-
विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा विवस्वान् की पत्नी हुई। उसके गर्भ से सूर्य ने तीन संतानें उत्पन्न की। जिनमें एक कन्या और दो पुत्र थे। सबसे पहले प्रजापति श्राद्धदेव, जिन्हें वैवस्वत मनु कहते हैं, उत्पन्न हुए। तत्पश्चात यम और यमुना- ये जुड़वीं संतानें हुई। यमुना को ही कालिन्दी कहा गया। भगवान् सूर्य के तेजस्वी स्वरूप को देखकर संज्ञा उसे सह न सकी। उसने अपने ही सामान वर्णवाली अपनी छाया प्रकट की। वह छाया स्वर्णा नाम से विख्यात हुई। उसको भी संज्ञा ही समझ कर सूर्य ने उसके गर्भ से अपने ही सामान तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया। वह अपने बड़े भाई मनु के ही समान था। इसलिए सावर्ण मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

छाया-संज्ञा से जो दूसरा पुत्र हुआ, उसकी शनैश्चर के नाम से प्रसिद्धि हुई। यम धर्मराज के पद पर प्रतिष्ठित हुए और उन्होंने समस्त प्रजा को धर्म से संतुष्ट किया। सावर्ण मनु प्रजापति हुए। आने वाले सावर्णिक मन्वन्तर के वे ही स्वामी होंगे। कहते हैं कि वे आज भी मेरुगिरि के शिखर पर नित्य तपस्या करते हैं।

सौर मंडल के राजा:-
इस सहस्राब्दी में, सूर्य-देवता को विवस्वान , सूर्य के राजा के रूप में जाना जाता है, जो सौर मंडल के भीतर सभी ग्रहों की उत्पत्ति है। ब्रह्म – संहिता में कहा गया है:
यच-चक्षुर एषा सविता सकल – ग्रहणम राजा समस्त – सुरा – मूर्तिर अशेष – तेज : यस्याज्ञय भ्रमति संभृत – कालचक्रो गोविंदम आदि – पुरुषम तम अहा ॐ भजामि।
“मुझे पूजा करने दो,” भगवान ब्रह्मा ने कहा, “भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व, गोविंदा [ कृष्ण ], जो मूल व्यक्ति हैं और जिनके आदेश के तहत सूर्य, जो सभी ग्रहों का राजा है, अपार शक्ति और गर्मी धारण कर रहा है। सूर्य भगवान की आंख का प्रतिनिधित्व करता है और उनके आदेश का पालन करते हुए अपनी कक्षा को पार करता है।”

सूर्य ग्रहों का राजा है, और सूर्य-देवता (वर्तमान में विवस्वान नाम ) सूर्य ग्रह पर शासन करते हैं, जो गर्मी और प्रकाश की आपूर्ति करके अन्य सभी ग्रहों को नियंत्रित कर रहे हैं। वह कृष्ण के आदेश के तहत घूम रहा है , और भगवान कृष्ण ने मूल रूप से भगवद- गीता के विज्ञान को समझने के लिए विवस्वान को अपना पहला शिष्य बनाया था । इसलिए, गीता तुच्छ सांसारिक विद्वानों के लिए एक काल्पनिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि अनादि काल से चली आ रही ज्ञान की एक मानक पुस्तक है । महाभारत (शांति- पर्व 348.51-52) में हम गीता के इतिहास का पता इस प्रकार लगा सकते हैं:
त्रेता -युगादौ च ततो विवस्वान मनवे ददौ।
मानुष च लोक -भृति- अर्थं सुतयेक्ष्वाकवे ददौ।
इक्ष्वाकुणा च कथितो व्याप्य लोकान् अवस्थित ।
” त्रेता – युग [सहस्राब्दी] की शुरुआत में सर्वोच्च के साथ संबंध का यह विज्ञान विवस्वान द्वारा मनु को दिया गया था । मनु ने मानव जाति के पिता होने के नाते, इसे अपने पुत्र महाराजा इक्ष्वाकु , इस पृथ्वी ग्रह के राजा को दिया था और रघु वंश के पूर्वज , जिसमें भगवान रामचन्द्र प्रकट हुए, इसलिए भगवद्गीता महाराज इक्ष्वाकु के समय से ही मानव समाज में विद्यमान थी । “

वर्तमान समय में हम कलियुग के पाँच हज़ार वर्ष पार कर चुके हैं , जो 432,000 वर्षों तक चलता है । इससे पहले द्वापर युग (800,000 वर्ष ) था , और उससे पहले त्रेता युग (1,200,000 वर्ष) था । इस प्रकार, लगभग 2,005,000 साल पहले, मनु ने अपने शिष्य और इस पृथ्वी ग्रह के राजा पुत्र महाराजा लक्ष्वाकु को भगवद गीता सुनाई थी । वर्तमान मनु की आयु लगभग 305,300,000 वर्ष आंकी गई है, जिसमें से 120,400,000 वर्ष बीत चुके हैं। यह स्वीकार करते हुए कि मनु के जन्म से पहले , गीता भगवान ने अपने शिष्य, सूर्य-देव विवस्वान को कही थी , एक मोटा अनुमान यह है कि गीता कम से कम 120,400,000 साल पहले बोली गई थी; और मानव समाज में यह दो मिलियन वर्षों से विद्यमान है।

यह लगभग पाँच हजार वर्ष पहले भगवान ने अर्जुन को पुनः सुनाया था। यह गीता के इतिहास का एक मोटा अनुमान है , स्वयं गीता के अनुसार और वक्ता भगवान श्रीकृष्ण के संस्करण के अनुसार । यह सूर्य-देवता विवस्वान को कहा गया था क्योंकि वह भी एक क्षत्रिय हैं और उन सभी क्षत्रियों के पिता हैं जो सूर्य-देवता, या सूर्य – वंश क्षत्रियों के वंशज हैं। क्योंकि भगवद्गीता वेदों के समान ही उत्तम है , भगवान के परम व्यक्तित्व द्वारा कही गई है, यह ज्ञान अपौरुषेय, अतिमानवीय है। चूँकि वैदिक निर्देश मानवीय व्याख्या के बिना वैसे ही स्वीकार किए जाते हैं, इसलिए गीता को सांसारिक व्याख्या के बिना स्वीकार किया जाना चाहिए। सांसारिक विवादी अपने-अपने तरीके से गीता पर अटकलें लगा सकते हैं, लेकिन वह भगवद्गीता नहीं है । इसलिए, भगवद- गीता को शिष्य उत्तराधिकार से वैसे ही स्वीकार किया जाना चाहिए, और यहां यह वर्णित है कि भगवान ने सूर्य-देवता से बात की, सूर्य-देव ने अपने पुत्र मनु से बात की , और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु से बात की।

सूर्य की प्रतिमा का विधान :-
सूर्य की प्रतिमा को अक्सर घोड़ों से जुते हुए रथ पर सवार दिखाया जाता है, जिनकी संख्या अक्सर सात होती है  जो दृश्य प्रकाश के सात रंगों और सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मध्यकाल में, सूर्य की पूजा दिन में ब्रह्मा , दोपहर में शिव और शाम को विष्णु के साथ मिलकर की जाती थी। कुछ प्राचीन ग्रंथों और कलाओं में, सूर्य को इंद्र , गणेश और अन्य के साथ समन्वित रूप से प्रस्तुत किया गया है। सूर्य एक देवता के रूप में बौद्ध और जैन धर्म की कला और साहित्य में भी पाए जाते हैं । महाभारत और रामायण में, सूर्य को राम और कर्ण के  आध्यात्मिक पिता के रूप में दर्शाया गया है। महाभारत और रामायण के पात्रों द्वारा शिव के साथ-साथ सूर्य की भी पूजा की जाती थी।

सूर्य और पृथ्वी की अवधारणा:-
सूर्य के  परिक्रमण के कारण ही पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं, जब यहाँ रात होती है तो दूसरी ओर दिन होता है,  सूर्य वास्तव में उगता या डूबता नहीं है।
– ऐतरेय ब्राह्मण III.44 (ऋग्वेद)
सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग 13 लाख 90 हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग 109 गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, 30 प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है।

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं)




अलवर में शीतल जल की प्याऊ

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।“(श्री रामचरितमानसउत्तरकाण्ड) अर्थात दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई अधर्म (पाप) नहीं है।

मानव-हित संबंधी जो भी कार्य किया जाता है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।उत्तर भारत, विशेषकर राजस्थान में इन दिनों गर्मी अपने चरम पर है।पेय-जल की किल्लत बढ़ रही है।ऐसे में अलवर के ‘सृजक संस्थान’ द्वारा आम जनता के लिए शरबत-मिश्रित शीतल पेयजल की व्यवस्था चर्चा का विषय बनी हुयी है। सामाजिक और साहित्यिक सरोकारों से जुड़ा यह संस्थान गत दस वर्षों से इस परहितकारी सेवा में लगा हुआ है।कहना न होगा कि सृजक संस्थान की ओर से जन सहयोग द्वारा प्रतिवर्ष गर्मियों में नि:शुल्क शीतल जल की प्याऊ का संचालन  किया जाता रहा है । इस वर्ष प्याऊ का शुभारंभ रविवार दिनांक 12 मई को सुबह 9:30 बजे भारत सिनेमा हॉल के सामने रेलवे ओवरब्रिज के नीचे किया गया। सृजक संस्थान के सचिव रामचरण राग‘ ने बताया कि इस अवसर पर अलवर शहर के सामाजिकसाहित्यिकशैक्षिकसांस्कृतिक क्षेत्रों के सैकड़ों गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में आमजन को शरबत पिलाया गया।

सृजक संस्थान द्वारा संचालित प्याऊ के उद्घाटन के अवसर पर सृजन-संस्थान के संरक्षक भागीरथ मीणाअनिल कौशिकअध्यक्ष डॉ अंजना अनिलवरिष्ठ उपाध्यक्ष गोकुल राम शर्मा दिवाकर‘, उपाध्यक्ष खेमेन्द्र सिंह चन्द्रावतसचिव रामचरण राग आदि  उपस्थित रहे।

इस वर्ष ‘सृजक संस्थान’ की ओर से लगाई गई प्याऊ का संचालन जुलाई माह में जगन्नाथ मेले तक किया जाएगा।




चित्रनगरी संवाद में मुंबई की सांस्कृतिक विरासत पर चर्चा

वरिष्ठ पत्रकार विमल मिश्र ने मुंबई महानगर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के ऐसे ऐसे चित्र प्रस्तुत किये कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गए। रविवार 12 मई 2024 की शाम को मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव में चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई के सृजन संवाद में विमल मिश्र ने अपनी सुदीर्घ पत्रकारिता के रोचक अनुभव श्रोताओं के साथ साझा किये। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में प्रशिक्षण के बाद विमल जी ने बनारस के सुप्रसिद्ध हिंदी दैनिक ‘आज’ में पांच साल काम किया। उसके बाद नवभारत टाइम्स मुंबई में उनकी नियुक्ति हुई। यहां नगर सम्पादक के पद से वे सेवा निवृत्त हुए।
श्रोताओं के सवालों का जवाब देते हुए विमल जी ने कहा कि ‘लोग’ स्तंभ का लेखन उनके लिए सबसे चुनौती पूर्ण काम था। यह स्तंभ नवभारत टाइम्स में 28 साल चला। सप्ताह में तीन लोगों पर लिखना होता था। इस तरह उन्होंने 28 साल में साढे पांच हज़ार लोगों के बारे में लिखा। इस स्तंभ में उन्होंने अनाथ बच्चों को खाना खिलाने वाली भिखारन से लेकर लोकल ट्रेन में पानी की बोतल बांटने वाले राजू भाई तक के बारे में लिखा।
मुंबई के लोकल स्टेशनों पर विमल मिश्र की किताब ‘मुंबई लोकल’ रेलवे की एनसाइक्लोपीडिया मानी जाती है। अब तक वे मुंबई महानगर पर 1200 से अधिक लेख लिख चुके हैं। उन्होंने मुंबई महानगर के कई ऐसे स्थलों का ज़िक्र किया जिन्हें विरासत के रूप में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। इनमें गिलबर्ट हिल से लेकर कान्हेरी की गुफाएँ तक शामिल हैं।
शुरूआत में में कथाकार सूरज प्रकाश ने प्रस्तावना पेश करते हुए कहा कि मुम्बई विरोधाभासों का शहर है। विमल जी ने इन विरोधाभासों पर विस्तार से लिखा है। प्रतिष्ठित लेखक राजशेखर व्यास ने विमल जी के योगदान की तारीफ़ करते हुए कहा कि मुम्बई के अपने निजी अनुभवों पर विमल जी को किताब लिखनी चाहिए।
‘धरोहर’ के अंतर्गत अभिनेता शैलेंद्र गौड़ ने विभाजन की त्रासदी पर आधारित गुलज़ार की कहानी का पाठ किया। विस्थापन की पीड़ा को उन्होंने ऐसे असरदार ढंग से पेश किया कि लोगों की आंखें नम हो गईं।
‘कविता में मुम्बई’ के अंतर्गत चुनिंदा कवियों ने मुम्बई महानगर पर लिखी कविताओं का पाठ किया। इनमें शामिल थे- दीप्ति मिश्र, मनजीत सिंह कोहली, गुलशन मदान, अनिल गौड़, अमर त्रिपाठी, प्रदीप गुप्ता, राजेश ऋतुपर्ण और सविता दत्त। संचालन आपके दोस्त देवमणि पांडेय ने किया।
कुल मिलाकर यह एक ऐसा यादगार कार्यक्रम था जिसमें मुंबई के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष से लेकर बदलते हुए परिदृश्य पर रोचक चर्चा हुई और महानगरीय अनुभवों पर विविधरंगी कविताएं भी सुनने को मिली। अगले रविवार 19 मई को शाम 5 बजे दिल्ली की ‘प्रासंगिक रंग संस्था’ रंगकर्मी आलोक शुक्ला के निर्देशन में चित्रनगरी संवाद मंच में ‘उसके साथ, नाटक का मंचन करेगी। आप सादर आमंत्रित हैं।



सीमा सिंह और सोनाली बेंद्रे द्वारा इंस्पायरिंग मदर्स का सम्मान

मुंबई : सामाजिक कार्यकर्ता और बिज़नेस वुमेन सीमा सिंह , मेघाश्रेय फाउंडेशन  द्वारा मदर्स डे के अवसर पर इंस्पायरिंग मदर्स  2024 का आयोजन किया गया इस अवसर पर सीमा सिंह , डॉक्टर मेघा सिंह और श्रेय सिंह के द्वारा शिक्षा , स्वास्थ्य , सेवा , खेल और  समाज कल्याण के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया । इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सोनाली बेंद्रे  भी उपस्थित रहे । इस कार्यक्रम में श्रेय सिंह और डॉ मेघा सिंह  ने मदर्स डे विषय पर पैनल को संचालित भी किया ।

इंस्पायरिंग मदर्स 2024 समारोह में आयपीएस आरती सिंह ,, डॉ प्रिया कुलकर्णी , मिसेज़  ललिता बाबर , डॉ रेशमा पई ,  आयआरएस बीना संतोष , मधु बोहरा , मंजु लोढ़ा , डॉ मनुश्री पाटिल , डॉ शिवानी पाटिल , रोमा सिंघानियाँ , डॉ मिन्नी बोधनवाला को सम्मानित किया गया ।

सीमा सिंह , मेघाश्रेय फाउंडेशन की संस्थापक हैं, सीमा सिंह अपने बच्चों डॉ मेघना सिंह और श्रेय सिंह के साथ विभिन्न सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों का आयोजन करती रहती हैं। सीमा सिंह ने अपने बच्चों डॉ मेघना सिंह और श्रेय सिंह की ओर से मेघा श्रेया फाउंडेशन की शुरुआत की। मेघाश्रेया फाउंडेशन भारत भर में वंचित बच्चों की बेहतरी और भूखे लोगों को खाना खिलाने की दिशा में काम करता है। अब तक, विभिन्न कार्यक्रमों  के माध्यम से पूरे भारत में पाँच लाख से अधिक लोगों के जीवन को बदल दिया है।

इस अवसर पर सीमा सिंह ने कहा कि ‘इंस्पारिंग मदर्स 2024 के द्वारा हम विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित करना मेघाश्रेय फाउंडेशन के लिए बहुत महत्वपूर्ण अवसर हैं । मैं देश के कई हिस्सों में जरूरतमंद बच्चों के लिए विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन करती हूँ और चाहती हूँ की समाज में बड़े स्तर पर वंचितों और जरूरतमंद बच्चों के लिए कल्याणकारी आयोजन किए जाये ।

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Ashwani Shukla
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पंच परिवर्तन बनेगा समाज परिवर्तन का सशक्त माध्यम

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए पिछले लगभग 99 वर्षों से निरंतर कार्य कर रहा है। भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन को गति देने एवं समाज में अनुशासन व देशभक्ति के भाव को बढ़ाने के उद्देश्य से माननीय सर संघचालक श्री मोहन भागवत ने समाज में पंच परिवर्तन का आह्वान किया है ताकि अनुशासन एवं देशभक्ति से ओतप्रोत युवा वर्ग अनुशासित होकर अपने देश को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करे। इस पंच परिवर्तन में पांच आयाम शामिल किए गए हैं – (1) स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, (2) नागरिक कर्तव्य, (3) पर्यावरण, (4) सामाजिक समरसता एवं (5) कुटुम्ब प्रबोधन। इस पंच परिवर्तन कार्यक्रम को सुचारू रूप से लागू कर समाज में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। स्व के बोध से नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होंगे। नागरिक कर्तव्य बोध अर्थात कानून की पालना से राष्ट्र समृद्ध व उन्नत होगा। सामाजिक समरसता व सद्भाव से ऊंच-नीच जाति भेद समाप्त होंगे। पर्यावरण से सृष्टि का संरक्षण होगा तथा कुटुम्ब प्रबोधन से परिवार बचेंगे और बच्चों में संस्कार बढ़ेंगे। समाज में बढ़ते एकल परिवार के चलन को रोक कर भारत की प्राचीन परिवार परंपरा को बढ़ावा देने की आज महती आवश्यकता है।

भारत में हाल ही के समय में देश की संस्कृति की रक्षा करना, एक सबसे महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरा है। सम्भावना से युक्त व्यक्ति हार में भी जीत देखता है तथा सदा संघर्षरत रहता है। अतः पंच परिवर्तन उभरते भारत की चुनौतियों का समाधान करने में समर्थ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले जी कहते हैं कि बौद्धिक आख्यान को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से बदलना और सामाजिक परिवर्तन के लिए सज्जन शक्ति को संगठित करना संघ के मुख्य कार्यों में शामिल है। इस प्रकार पंच परिवर्तन आज समग्र समाज की आवश्यकता है। पंच परिवर्तन में समाज में समरसता (बंधुत्व के साथ समानता), पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली, पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए पारिवारिक जागृति, जीवन के सभी पहलुओं में भारतीय मूल्यों पर आधारित ‘स्व’ (स्वत्व) की भावना पैदा करने का आग्रह जैसे आयाम शामिल हैं। नागरिक कर्तव्यों के पालन हेतु सामाजिक जागृति; ये सभी मुद्दे बड़े पैमाने पर समाज से संबंधित हैं। दूसरे, इन विषयों को व्यक्तियों, परिवारों और संघ की शाखाओं के आसपास के क्षेत्रों को संबोधित करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। इसे व्यापक समाज तक ले जाने की आवश्यकता है। यह केवल चिंतन और अकादमिक बहस का विषय नहीं है, बल्कि कार्रवाई और व्यवहार का विषय है।

व्यवहार में पंच परिवर्तन को समाज में किस प्रकार लागू करना है इस हेतु हम समस्त भारतीय नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे, क्योंकि पंच परिवर्तन केवल चिंतन, मनन अथवा बहस का विषय नहीं है बल्कि इस हमें अपने व्यवहार में उतरने की आवश्यकता है। उक्त पांचों आचरणात्मक बातों का समाज में होना सभी चाहते हैं, अतः छोटी-छोटी बातों से प्रारंभ कर उनके अभ्यास के द्वारा इस आचरण को अपने स्वभाव में लाने का सतत प्रयास अवश्य करना होगा। जैसे, समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो, प्रत्येक घर में सप्ताह में कम से कम एक बार पूजा या धार्मिक आयोजन हो एवं अपने परिवार के बच्चों के साथ बैठकर महापुरुषों के सम्बंध में सप्ताह में कम से कम एक घंटे चर्चा हो, परिवार के सभी सदस्यों में नित्य मंगल संवाद, संस्कारित व्यवहार व संवेदनशीलता बनी रहे, बढ़ती रहे व उनके द्वारा समाज की सेवा होती रहे, आदि बातों का ध्यान रखकर कुटुंब प्रबोधन जैसे विषय को आगे बढ़ाया जा सकता है।

मंदिर, पानी, श्मशान के सम्बंध में कहीं भेदभाव बाकी है, तो वह शीघ्र ही समाप्त होना चाहिए। हम लोग अपने परिवार सहित त्यौहारों के समय अनुसूचित जाति के बंधुओं के घर जाएं और उनके साथ चाय पान करें। साथ ही, हम अनुसूचित जाति के बंधुओं को सपरिवार अपने परिवार में बुलाकर सम्मान प्रदान करें। कुल मिलाकर समस्त समाज एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल हों ताकि आपस में भाई चारा बढ़े एवं देश में सामाजिक समरसता स्थापित हो सके।

सृष्टि के साथ संबंधों का आचरण अपने घर से पानी बचाकर, प्लास्टिक हटाकर व घर आंगन में तथा आसपास हरियाली बढ़ाकर हो सकता है। अपने घरों में जल का कोई अपव्यय नहीं हो रहा है एवं अपने परिवार में हरियाली की चिंता की जा रही है। अपने घर में, रिश्तेदारी में, मित्रों के यहां सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का आग्रह किया जा रहा है आदि बातों पर ध्यान देकर देश में पर्यावरण को सुधारा जा सकता है।

स्वदेशी के आचरण से स्व-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़ता है। फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए, देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए, इस बात का ध्यान देश के समस्त नागरिकों को रखना चाहिए। इसीलिए कहा जा रहा है कि स्वदेशी का आचरण भी घर से ही प्रारंभ होना चाहिए। समस्त नागरिकों के घर में स्वदेशी उत्पाद ही उपयोग होने चाहिए।

देश में कानून व्यवस्था व नागरिकता के नियमों का भरपूर पालन होना चाहिए तथा समाज में परस्पर सद्भाव और सहयोग की प्रवृत्ति सर्वत्र व्याप्त होनी चाहिए। इन्हें हमारे नागरिक कर्तव्यों के रूप में देखा जाना चाहिए। समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन हेतु हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे। विशेष रूप से युवाओं में नशाबंदी समाप्त करने के लिए, मृत्यु भोज रोकने के लिए तथा विभिन्न समाजों में व्याप्त दहेज की कुप्रथा समाप्त करने के गम्भीर प्रयास हम समस्त नागरिकों को मिलकर ही करने होंगे।

संघ के स्वयंसेवक आनेवाले दिनों में समाज के अभावग्रस्त बंधुओं की सेवा करने के साथ-साथ, इन पांच प्रकार की सामाजिक पहलों का आचरण स्वयं करते हुए समाज को भी उसमें सहभागी व सहयोगी बनाने का प्रयास करेंगे । समाजहित में शासन, प्रशासन तथा समाज की सज्जनशक्ति जो कुछ कर रही है, अथवा करना चाहेगी, उसमें संघ के स्वयंसेवकों का योगदान नित्यानुसार चलता रहेगा। वर्ष 2025 से 2026 का वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने के बाद का वर्ष है। उक्त वर्णित समस्त आयामों में संघ के स्वयंसेवक अपने कदम बढ़ायेंगे, इसकी सिद्धता संघ द्वारा किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

समाज की एकता, सजगता व सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम, जनहितकारी शासन व जनोन्मुख प्रशासन स्व के अधिष्ठान पर खड़े होकर परस्पर सहयोगपूर्वक प्रयासरत रहते है, तभी राष्ट्रबल वैभव सम्पन्न बनता है। बल और वैभव से सम्पन्न राष्ट्र के पास जब हमारी सनातन संस्कृति जैसी सबको अपना कुटुंब माननेवाली, तमस से प्रकाश की ओर ले जानेवाली, असत् से सत् की ओर बढ़ानेवाली तथा मृत्यु जीवन से सार्थकता के अमृत जीवन की ओर ले जानेवाली संस्कृति होती है, तब वह राष्ट्र, विश्व का खोया हुआ संतुलन वापस लाते हुए विश्व को सुखशांतिमय नवजीवन का वरदान प्रदान करता है । सद्य काल में हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का यही प्रयोजन है ।

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – [email protected]




पश्चिम रेलवे ने 2023-24 में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अपने मेधावी टिकट चेकिंग स्टाफ को किया सम्मानित

पश्चिम रेलवे ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में गहन टिकट चेकिंग अभियान के दौरान जुर्माने के रूप में लगभग 174 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड राशि एकत्र की

मुंबई। 

पश्चिम रेलवे ने अपना अब तक का सबसे अच्छा टिकट चेकिंग राजस्व हासिल किया है और 173.89 करोड़ रुपये का कुल टिकट चेकिंग राजस्व इकट्ठा करके अपने सभी पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। उल्‍लेखनीय है कि पश्चिम रेलवे ने 140 करोड़ रुपये के लक्ष्य को पार किया तथा निर्धारित लक्ष्य से 23.90% की वृद्धि दर्ज की। इस गौरवशाली क्षण का सेलिब्रेट करने के लिए पश्चिम रेलवे ने सभी छह मंडलों के 23 मेधावी टिकट चेकिंग स्टाफ को उनके सराहनीय प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री सुमित ठाकुर द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार 2,286 ऑन रोल टिकट चेकिंग स्टाफ में से 17 कर्मचारियों ने फ्री चेकिंग ड्यूटी/कोच मैनिंग ड्यूटी में काम करने के क्षेत्र में सर्वोच्च प्रदर्शन दर्ज किया। महिला विंग में छह महिला टिकट चेकिंग स्टाफ ने भी उच्चतम टिकट चेकिंग प्रदर्शन हासिल किया। उनके समर्पण और कड़ी मेहनत का सम्मान करने के लिए पश्चिम रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक (यात्री सेवा और खानपान) श्री तरूण जैन ने हाल ही में 6 मंडलों तथा चर्चगेट स्थित मुख्यालय कंट्रोल के तहत काम करने वाले फ्लाइंग स्क्वाड के इन 23 कर्मचारियों को मेरिट प्रमाण पत्र के साथ सम्मानित किया।

श्री ठाकुर ने आगे बताया कि टिकट चेकर के काम में न केवल वैध यात्रियों के बीच बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्रियों का पता लगाने के लिए कौशल और चतुराई की आवश्यकता होती हैबल्कि बिना टिकट वाले यात्रियों से जुर्माना राशि वसूलने के लिए नियमों के अच्छे ज्ञान और ठोस कौशल की भी आवश्यकता होती है। पश्चिम रेलवे को ऐसे कुशल और समर्पित टिकट-चेकिंग स्टाफ पर गर्व है।