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‘रामसंस्कृति की विश्वयात्रा’ पर रूस में होगी संगोष्ठी

हैदराबाद। मूल्यमूढ़ता से घिरे वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व के बुद्धिजीवी भारत की ओर आशा की दृष्टि से देखते हैं तथा विश्वबंधुत्व और सह-अस्तित्व के आदर्शों की पुनः प्रतिष्ठा द्वारा मानवाधिकारों की बहाली की कामना रखते हैं. इस परिप्रेक्ष्य में रामकथा में निहित मूल्य किस प्रकार आज की दुनिया को कुटुंब के रूप में जीने की राह दिखा सकते हैं, इस विषय पर व्यापक विचार विमर्श करने के लिए रूस और भारत के हिंदी जगत से जुड़े हुए कुछ हस्ताक्षर आगामी 10 मई से 17 मई के बीच रूस के नगरों कज़ान, मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में जुटेंगे. इस अवधि में वे “रामसंस्कृति की विश्वयात्रा : साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी” विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वैचारिक मंथन करेंगे.

इस कार्यक्रम के संयोजन में अग्रणी साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई के संस्थापक सचिव डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने उक्त आशय की जानकारी देते हुए बताया कि यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी रूस स्थित कज़ान संघीय विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान, रूसी-भारतीय फ्रेंडशिप सोसाइटी तथा तातरस्तान-भारत पीपुल्स फ्रेंडशिप सेंटर के सहयोग से आयोजित की जा रही है. उन्होंने यह भी बताया कि अयोध्या शोध संस्थान के सौजन्य से इस अवसर पर ‘रामसंस्कृति की विश्वयात्रा’ शीर्षक एक ग्रंथ भी प्रकाशित किया जा रहा है. संस्थान के निदेशक डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह ने एक भेंट में बताया कि दुनिया के 120 देशों में रामकथा व रामलीलाएँ होने के साक्ष्य मिले हैं. संस्थान उन देशों के विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों व कलाकारों से यह शोध कराएगा. शोध पूरा होने के बाद दुनिया में रामायण देशों का एक समूह बनेगा जो अपने आप में पहला इतना बड़ा समूह होगा.

इस विशिष्ट वैचारिक मंथन में भाग लेने वाले रूसी विद्वानों में डॉ. रामेश्वर सिंह, डॉ. गुजेल म्रात्खूजीना, डॉ. मीनू शर्मा, देमात्री बोबकोव, सुशील कुमार आजाद, कुमार विनायक और डॉ. इंदिरा गजियवा के नाम शामिल हैं, तो भारतीय विद्वानों में डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. सविता सिंह, डॉ. रघुनाथ प्रसाद, डॉ. अमरज्योति, डॉ. पुष्पा गुप्ता, डॉ. करमा देवी, डॉ. जगदीश प्रसाद शर्मा, डॉ. मीना डोले, डॉ. शिरोड़कर, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. मधु व्यास और डॉ. वंदना प्रदीप सम्मिलित हैं.

उल्लेखनीय है कि संयोजक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने ‘राम साहित्य’ पर ही दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से डीलिट की उपाधि भी अर्जित की है. उन्होंने बताया कि राम संस्कृति को विश्व भर में पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए इस शृंखला में अन्य देशों में भी ऐसे आयोजन किए जाएँगे.