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हिंदी की वर्पणमाला में समाई पति-पत्नी की नोक झोंक

मुन्ने के नंबर कम आए,

पति श्रीमती पर झल्लाए,

दिनभर मोबाइल लेकर तुम,

टें टें टें बतियाती हो…

खा़क नहीं आता तुमको,

क्या मुन्ने को सिखलाती हो?

यह सुनकर पत्नी जी ने,

सारा घर सिर पर उठा लिया l

पति देव को लगा कि ज्यों,

सोती सिंहनी को जगा दिया l

अपने कामों का लेखा जोखा,

तुमको मैं अब बतलाती हूंँ l

आओ तुमको अच्छे से मैं,

क ,ख, ग,घ सिखलाती हूँ l

सबसे पहले “क” से अपने,

कान खोलकर सुन लो जी..

“ख”से खाना बनता घर में,

मेरे इन दो हाथों से ही!

“ग”से गाय सरीखी मैं हूंँ,

तुम्हें नहीं कुछ कहती हूँ l

“घ” से घर के कामों में मैं,

दिनभर पिसती रहती हूँ l

पतिदेव गरजकर यूंँ बोले..

“च” से तुम चुपचाप रहो

“छ” से ज्यादा छमको मत,

मैं कहता हूंँ खामोश रहो!

“ज” से जब भी चाय बनाने,

को कहता हूंँ लड़ती हो..

गाय के जैसे सींग दिखाकर,

“झ” से रोज झगड़ती हो!

पत्नी चुप रहती कैसे,

बोली “ट” से टर्राओ मत

“ठ” से ठीक तुम्हें कर दूँगी..

“ड” से मुझे डराओ मत!

बोले पतिदेव सदा आफिस में,

“ढ” से ढेरों काम करूंँ..

जब भी मैं घर आऊंँ,

“त” से तुम कर देतीं जंग शुरू!

“थ” से थक कर चूर हुआ हूंँ..

आज तो सच कह डालूँ मैं!

“द” से दिल ये कहता है…

“ध” से तुमको धकियाऊंँ मैं!

बोली “न” से नाम न लेना,

मैं अपने घर जाती हूँ!

“प” से पकड़ो घर की चाबी

मैं रिश्ता ठुकराती हूँ!

“फ” से फूल रहे हैं छोले,

“ब” से उन्हें बना लेना l

” भ” से भिंडी सूख रही हैं,

वो भी तल के खा लेना…!!

“म” से मैं तो चली मायके,

पत्नी ने बांधा सामान l

यह सुनते ही पति महाशय,

के तो जैसे सूखे प्राण

बोले “य” से ये क्या करती

मेरी सब नादानी थी…

“”र” से रूठा नहीं करो…..

तुम सदा से मेरी रानी थी!

“ल” से लड़कर कहते हैं कि..

प्रेम सदा ही बढ़ता है!

“व” से हो विश्वास अगर तो,

रिश्ता कभी न मरता है l

“श” से शादी की है तो हम,

“स” से साथ निभाएंगे…

“ष” से इस चक्कर में हम….

षटकोण भले बन जाएंगे!

पत्नी गर्वित होकर बोली,

“ह” से हार मानते हो!

फिर न नौबत आए ऐसी

वरना मुझे जानते हो!

“क्ष” से क्षत्राणी होती है नारी

” त्र” से त्रियोग भी सब जानती है

“ज्ञ” से हे ज्ञानी पुरुष! चाय पियो

और खत्म करो यह राम कहानी!