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वाकई सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसा कोई नहीं

डा. सुब्रमण्यम स्वामी के राज्यसभा सदस्य बनने के साथ हंगामा खड़ा हो गया। वे इमेज के अनुसार हंगामा कर दे रहे है। अगर वे ऐसा न करते तो जरुर आश्चर्य होता। विवादों से उनका पुराना नाता है। हिंदुस्तान में उनकी जोड़ और उनकी तोड़ का कोई दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल है। उनके बारे में कभी किसी ने कहा था कि अगर इस दुनिया में स्वामी न आए होते तो हमें उनका आविष्कार करना पड़ता। राज्यसभा में पहुंचते ही डा स्वामी ने अपनी आदत के मुताबिक छक्के, अठ्ठे जड़ने शुरु कर दिए। अगस्ता विवाद में सीधे सोनिया गांधी को निशाना बना डाला।

अंततः हारवर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रह चुके इस नेता के बारे में गुलाम नबी आजाद को यह कहते सुना गया कि उनके बाल भले ही सफेद हो गए हो पर उनमें परिपक्वता नहीं आई है। बुजुर्ग होने के बावजूद वे संसद और सड़क पर बोली जाने वाली भाषा में अंतर नहीं कर पाते हैं। स्वामी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि जितने कांग्रेस में उनके विरोधी हैं उससे कहीं ज्यादा विरोधी भाजपा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीब माने जाने वाले इन शक्तिशाली नेताओं के विरेाध के बावजूद वे न केवल भाजपा में अपनी जनता पार्टी का विलय करवाने में कामयाब रहे थे बल्कि राज्यसभा के लिए भी मनोनीत हो गए और अब उनके कैबिनेट में शामिल किए जाने की अफवाह गर्म है।

उनके व्यक्तित्व और हरकतों को देखने के बाद किसी के मन में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि वे अपने घर परिवार से लेकर राजनीति तक में कैसे संतुलन और सदभाव स्थापित कर पाते होंगे। वे विवादों और विरोधाभासों की ऐसी काकटेल है जिसका दुनिया में शायद कोई और उदाहरण मिल सके। यह 76 वर्षीय तमिल ब्राम्हण चेन्नई के निकट मायलापुरा में पैदा हुआ था व मात्र छह माह की उम्र में दिल्ली आ गया। उनके पिता सीताराम सुब्रमण्यम भारतीय सांख्यिकीय संस्थान में निदेशक थे व भारत सरकार के सचिव पद से रिटायर हुए।

पिता का झुकाव वामपंथियों की ओर था जबकि मां पद्मावति, दक्षिणपंथी संगठनों के करीब थी। उन्होंने दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स से स्नातक किया। फिर हारवर्ड विश्वविद्यलाय में पढ़ाने लगे। नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने उन्हें चीनी पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया पर इंदिरा गांधी से टकराव के चलते उनकी छुट्टी हो गई क्योंकि आर्थिक व परमाणु नीति पर उनके विचार मेल नहीं खाते थे। इंदिरा गांधी ने उनके बारे में कहा था कि वे तो अव्यवाहिक उपहार बांटने वाले सांता क्लाज है। उन्होंने हारवर्ड से पीएचडी की व फिर आईआईटी दिल्ली में मैथमेटिकल इकोनामिक्स पढ़ाने लगे। मुक्त व्यापार की वकालत करने वाले इस अध्यापक को आईआईटी से 1970 में हटा दिया व 20 साल तक मुकदमा लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में उन्हें पुनः बहाल कर दिया।

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पहले वे जनसंघ से जुड़े फिर जनता पार्टी के संस्थापकों में गिने जाने लगे। वे 1974-99 के बीच 5 बार लोकसभा के सांसद बने और अब राज्यसभा में हैं। उन्हें संघ के बेहद करीब माना जाता है क्योंकि वे कट्टरपंथी ऐसे हिंदू हैं जो यह लिखते हैं कि जो मुसलमान अपने पूर्वजों का हिंदू होना स्वीकार न करे तो मतदान करने का अधिकार छीन लेना चाहिए। उनके इस लेख पर हारवर्ड ने उनसे किनारा कर लिया पर वहीं अगर उनकी निजी जिंदगी पर नजर डाले तो पता चलेगा कि उनकी पत्नी रोक्सोना पारसी हैं। उनकी एक बेटी गीताजंली शर्मा ने एमआईटी के प्राध्यापक संजय शर्मा से शादी की है जो कि पूर्व सचिव एसएस शर्मा के बेटे हैं। उनकी छोटी बेटी सुहासनी हैदर जो कि पत्रकार है, उसने सलमान हैदर के बेटे नदीम हैदर से शादी की है। उनका साला यहूदी है व भाभी ईसाई हैं। पता नहीं इतने धर्मों के रिश्तेदारों के बीच अपनी कट्टर हिंदू विचारधारा को हावी करने के आदी डा. स्वामी कैसे सामंजस्य बैठा पाते होंगे। उनकी पत्नी का मानना है कि मुसलमान भी उनके पति को संदेह लाभ दे देते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि वे राष्ट्रवादी है। वे प्रधानमंत्री बनने की पूरी योग्यता रखते हैं इसीलिए उनके दुश्मनों की संख्या इतनी लंबी है। जबकि उनके छोटे भाई का कहना है कि अगर डा. स्वामी में दूसरे की राय को सुनने की सहनशीलता होती तो आज वे न जाने कहां पहुंचे होते।

डा. स्वामी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे कब किसके दोस्त बन जाए और फिर कब दुश्मनी कर ले कुछ कहा नहीं जा सकता है। वाजपेयी सरकार को गिराने के लिए वे जयललिता को सोनिया गांधी के यहां चाय पर ले जाते और फिर बाद में नेशनल हेराल्ड मामले में उन्हें व राहुल गांधी को अपना निशाना बनाते हैं। काला धन के खिलाफ अभियान छेड़ते हैं और विजय माल्या को जनता पार्टी के जरिए राजनीति करने देते हैं। आपातकाल के दौरान तो उन्होंने गजब कर दिखाया था वे विदेश चले गए। फिर चुपचाप भारत आए संसद पहुंचे। हाजरी लगाई। सरकार के खिलाफ सदन में भाषण दिया और पुनः फरार होकर विदेश पहुंच गए।

वे अटल बिहारी वाजपेयी से आज भी नफरत करते हैं। उनका कहना है कि आपातकाल के दौरान वे हीरो बन गए थे व इसे वाजपेयी हजम नहीं कर पाए। उन्होंने मोरारजी देसाई पर दबाव डालकर मुझे कैबिनेट मंत्री नहीं बनने दिया। मोरारजी मजबूर थे क्योंकि वाजपेयी के पास 78 जनसंघी सांसद थे। मोरारजी को पता था कि वे शराब पीते हैं जबकि खुद मोरारजी इसके सख्त खिलाफ थे। एक बार दिल्ली के किसी दूतावास में पार्टी हुई जहां स्वामी भी आमंत्रित थे। वे बताते हैं कि वाजपेयी ने इतनी पी ली थी कि वे बहकने लगे। यह बात मोरारजी तक पहुंची। उन्होंने मुझे बुलाकर इस खबर की पुष्टि करनी चाही तो मैंने कहा कि यह बात सच है। उन्होंने मेरे सामने वाजपेयी को बुलाया और उन्हें ऐसे डांटा मानो, चोरी करते हुए पकड़े जाने पर बच्चे को डांटते हैं। वाजपेयी इस घटना के बाद मुझसे चिढ़ गए और उन्होंने रामकृष्ण हेगड़े के साथ मिलकर मेरे खिलाफ अभियान छेड़ दिया।

स्वामी का दावा है कि जनता पार्टी को तोड़ने में वाजपेयी की अहम भूमिका थी व उन्होंने ही चरण सिंह के मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना पैदा किया था। उनके अनुसार मोरारजी देसाई वाजपेयी को जनता रामायण की कैकेयी मानते थे। डा. स्वामी को मुकदमे लड़ने का काफी शौक है ओर वे पूरी तैयारी के साथ ऐसा करते हैं। उनकी पत्नी सुप्रीम कोर्ट की वकील है। 2 जी घोटाले से लेकर जयललिता तक को जेल पहुंचाने में उनका हाथ रहा। जब उन्होंने टेलीफोन टेपिंग कांड उछाला तो राम कृष्ण हेगड़े को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वे तो ऐसी मिसाइल माने जाते हैं जो अगर किसी के पीछे लग जाए तो उसे ध्वस्त करके ही दम लेती है।

वे विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी के काफी करीब थे। पूर्व चुनाव आयुक्त टी एन शेषन उन्हें अपना गुरु मानते हैं क्योंकि वे हारवर्ड में उनके छात्र रह चुके हैं। वहीं स्वामी का दावा है कि उन्होंने ही चंद्रशेखर सरकार के कार्यकाल में शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनवाया था। चीनी भाषा के इस विद्वान का दावा है कि उनकी कोशिशों के कारण ही हम लोग मानसरोवर यात्रा शुरु हो सकी। भारतीय सांख्यकीय संस्थान के संस्थापक व जाने माने अर्थशास्त्री पीसी महलनबीस के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा था इसलिए उन्होंने अपने इस छात्र को अनेक बार फेल कर दिया। इसका बदला लेने के लिए उन्होंने जो शोध पत्र तैयार किया उसमें महालनबीस के दावों को नकार दिया गया था और इसके आधार पर ही उन्हें हारवर्ड पढ़ाने का प्रस्ताव मिला। यह देखना बहुत मजेदार है होगा कि अब वे पार्टी के अंदर व बाहर के अपने विरोधियों को कैसे निपटाते हैं।

साभार-http://www.nayaindia.com/ से