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संवेदना, संकल्प और समर्पण की त्रिवेणी है सुधीर भाई का सेवाधाम आश्रम

उज्जैन में देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर का ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखें श्रध्दालु प्रतिवर्ष उज्जैन आते हैं। महाकालेश्वर के अलावा उज्जैन में विक्रमादित्य की आराध्या देवी हरसिध्दि और महाकवि कालिदास की आराध्या गढ़कालिका के मंदिर भी हैं। उज्जैन में हजारों मंदिर हैं और कहा जाता है कि अगर आप एक बोरी चावल लेकर निकलें और हर एक मंदिर पर एक एक चावल का दाना भी चढ़ाएँ तो आपके चावल खत्म हो जाएंगे मगर मंदिरों का दर्शन पूरा नहीं होगा।

इसी उज्जैन में सेवाधाम आश्रम नाम का एक ऐसा तीर्थ है जहाँ देश भर के बच्चे बूढ़े और असहाय लोगों को शरण मिलती है। उज्जैन से 13 किलोमीटर दूर गंभीर बांध के रास्ते पर स्थित सेवाधाम आश्रम आज एक ऐसा पवित्र स्थान बन गया है जहाँ अपने माता-पिता से बिछुड़े छोटे-छोटे बच्चे, दिव्यांग, मानसिक रोगी, बुजुर्ग सब एक साथ रहते हैं। इनकी सेवा-सुश्रुषा इतनी श्रध्दा और समर्पण के साथ होती है कदाचित इनके परिवार के लोग भी न कर पाएँ। सेवाधाम आश्रम की स्थापना उज्जैन के समाजसेवी श्री सुधीर गोयल ने 1989 में की थी। देश के जाने माने पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक इसके अध्यक्ष हैं।

सेवाधाम आश्रम में 200 से अधिक देसी नस्ल की गायें हैं और इन गायों का दूध सेवाधाम में रह रहे सभी लोगों को दिया जाता है।

सेवाधाम आश्रम में जाना किसी तीर्थ में जाने का अनुभव देता है। चारों ओर से हरियाली से घिरा प्रकृति के अवदानों से भरपूर ये आश्रम उन 700 लोगों का परिवार है जो समाज और परिवार से या तो ठुकरा दिये गए हैं या बूले भटके यहाँ आ पहुँचे हैं। इन 700 लोगों में छोटे छोटे बच्चे भी हैं तो बड़े बुजुर्ग भी। सभी यहाँ एक परिवार की तरह रहते हैं। सबको समय पर भोजन कराने से लेकर उनको स्नान कराना व नित्य कर्म करवाने की जिम्मेदारी यहाँ सेवारत 100 से अधिक कर्मचारियों की होती है। ये अपना काम पूरी निष्ठा व संकल्प के साथ करते हैं। इसका उदाहरण भी प्रत्यक्ष देखने को मिला।

सेवाधाम में वे तमाम सुविधाएँ मौजूद है जो किसी अच्छे स्कूल, क्लब या जिमखाने में होती है। बच्चों के लिए हर तरह के खेल खिलौने हैं। उन्हें संगीत व नृत्य सिखाने की कक्षाएँ नियमित रूप से चलती है। एक लायब्रेरी भी है जहाँ हर विषय की पुस्तकें उपलब्ध है। बच्चों को पढ़ाने की भी व्यवस्था है। सेवाधाम में सबी वार त्यौहार पूरे रीति-रिवाज़ के साथ मनाए जाते हैं।

जब हम कर्मचारियों के साथ दिव्यांग व मानसिक रूप से अविकसित बच्चों के बीच उनसे मिलने गए तो सभी बच्चे कर्मचारियों के साथ ही हमसे ऐसे लिपट गए मानों हम उनके परिवार के बिछुड़े सदस्य हों। कोई भी बच्चा एक क्षण के लिए भी हमें छोड़ना नहीं चाहता था। उनके चेहरे पर जो प्रफुल्लता और मस्ती के भाव थे उसे देखकर लगता ही नहीं था कि इनके जीवन में किसी तरह की कोई कमी है।

कर्मचारियों ने बताया कि ये बच्चे प्यार के भूखे हैं, इनसे प्यार से बात करो तो आप इनसे चाहे जितना काम करवा लो, इनके अंदर आलस्य जरा भी नहीं होता। बगीचे की साफ-सफाई से लेकर पानी भरने और सभी तरह के काम करने में अनको आनंद आता है। लेकिन यदि किसी को डाँट दिया या ऊँची आवाज़ में बोल दिया तो फिर उसे मनाना मुश्किल है।

सेवाधाम में रह रहे बुजुर्गों की सेवा का काम 22 साल के वीरेंद्र सिंह रावत करते हैं। वे उनको नहलाने, शौच कराने से लेकर उन्हें कपड़े पहनाने का काम पूरी निष्ठा से करते हैं। रात को वे उनके साथ ही रहते हैं ताकि किसी को कोई परेशानी हो तो उसकी मदद कर सकें।

सुधीर भाई ने 1989 में जब एक दो बीमार लोगों की सेवा के साथ ये आश्रम एक झोपड़ी में शुरु किया था तो लोग उनकी मजाक बनाते थे। मजाक तो आज भी बनाते हैं। सुधीर भाई ने लावारिस, उपेक्षित और शरीर में घावों और कीड़े पड़े हुए लोगों को यहाँ लाकर उनकी सेवा-सुश्रुषा शुरु की। वे खुद ऐसे मरीजों की 24 घंटे सेवा करते थे जिनको कोई हाथ तक लगाना पसंद नहीं करता था। धीरे धीरे सेवाधाम लोगों की निगाह में चढ़ने लगा और यहाँ ऐसे लोगों को शरण मिलने लगी जिनका कोई नहीं होता है।

सेवाधाम में उन महिलाओँ और लड़कियों को भी शरण मिली जो घर से भागकर आ जाती है या घरवालों से परेशान होकर इधर उधर लावारिस भटकती रहती है। यहाँ सामूहिक विवाह के माध्यम से ऐसी कई लड़कियों का विवाह भी संपन्न करवाया गया।

सेवाधाम आश्रम ने नैत्रदान के माध्यम से 500 लोगों को आँखों की रोशनी प्रदान की। इस आश्रम की वजह से 8 हजार लोगों को को नया जीवन मिला। 4 हजार लोगों को उनके घर भेजकर या उन्हें नए तरीके से बसाकर उनके जीवन को एक नया आयाम दिया गया। आश्रम द्वारा अब तक 3 हजार लोगों की अंतिम क्रिया भी की जा चुकी है। मेडिकल कॉलेजों को 150 शव प्रदान किए जा चुके हैं।

सेवाधाम में सभी की दिनचर्या प्रार्थना के साथ शुरु होती है और दिन भर विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहने के बाद शाम को सभी हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। सुधीर भाई प्रतिदिन विधि-विधान से सूर्योदय व सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र करते हैं। इसके माध्यम से अब तक स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन कर ढाई लाख लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया है।

सेवाधाम आश्रम को देश भर के कई संस्थानों से पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। देश भर में कोविड और कोरोना का आतंक है, लेकिन सेवाधाम के 700 रहवासियों से लेकर यहाँ कार्यरत 100 कर्मचारियों पर कोरोना का कोई असर नहीं हुआ।

सुधीर भाई ने 1989 में सेवाधाम के नाम से जिस छोटे से पौधे को रौपा था आज वो एक वटवृक्ष बन गया है और उन लोगों के लिए शरणस्थली बन गया है, जो परिवार, समाज और अपने आप से ही जीने की उम्मीद छोड़ चुके होते हैं।

सेवा धाम आश्रम के सुधीर भाई से इस नंर पर संपर्क कर सकते हैं।

9425092505

सेवाधाम आश्रम की वेब साईट
https://sewadhamashram-ujjain.org/