श्रीदेवी की मौत की खबरों पर मीडिया को आईना दिखाया सुधीर चौधरी ने

सुधीर चौधरी जब भी डीएनए प्रस्तुत करते हैं तो उनका अंदाज़ें बयाँ अलग होता है। सारगर्भित समाचार, सटीक विश्लेषण, बगैर सनसनीखेज बनाए खबरों को सहज-सरल शैली में प्रस्तुत कर उन्होंने टीवी की पत्रकारिता में एक धीर-गंभीर पत्रकार और प्रस्तोता की छवि बनाई है। श्री देवी की मौत की खबरों को देशभर के टीवी चैनलों द्वारा जिस फूहड़ ौर सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत किया सुधीर चौधरी ने इस पूरे घटनाक्रम को बहुत संवेदनशीलता के स्था प्रस्तुत करते हुए मीडिया की संवेदनहीन भूमिका को हास्यास्पद बताया है। ज़ी न्यूज़ के कार्यक्रम डीएनए में सुधीर चौधरी का ये अँदाज़ वाकई हमें बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देता है। प्रस्तुत है डीएनए कार्यक्रम में सुधीर चौधरी द्वारा किया गया विश्लेषण।

हमने आपसे कहा था कि जब किसी बड़ी शख्सियत की मौत होती है तो हमारे देश का मीडिया एक गिद्ध जैसा बन जाता है, जिस तरह से गिद्ध किसी की मौत से खुश होता है, उसी तरह हमारा मीडिया भी किसी बड़ी शख्स की मौत होते ही टीआरपी वाला जश्न मनाने में जुट जाता है। अगर किसी बड़ी शख्सियत की मौत हो जाए, या कोई बड़ी दुर्घटना हो जाए, जिसमें मरने वालों की संख्या ज्यादा हो, तो मीडिया के संपादकों की चेहरे की चमक बढ़ जाती है और ये संपादक तुरंत एक पत्रकार से फिल्म प्रड्यूसर बन जाते हैं। आजकल बड़े-बड़े न्यूज चैनल के संपादक इस बात पर मीटिंग करते हैं कि किसी की मौत से किस तरह ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाया जा सकता है और रिपोर्टिंग को कैसे ज्यादा से ज्यादा नाटकीय और मसालेदार बनाया जा सकता है। श्रीदेवी की मौत के बाद भी एक बार फिर ऐसा ही हुआ।

श्रीदेवी की आत्मा आज ये सब देखकर बहुत दुखी हो रही होगी। श्रीदेवी का शव तो दुबई से आ चुका है, लेकिन क्या मीडिया की नैतिकता कभी वापस आएगी, क्योंकि आज ये सवाल पूरे देश को, सारे दर्शकों और पाठकों को बहुत चुभ रहा है।

हम आपको आज एक न्यूज चैनल की रिपोर्टिंग का विडियो दिखाना चाहते हैं। इस न्यूज चैनल के संवाददाता ने एक बाथटब में बाकायदा लेटकर श्रीदेवी की मौत का तमाशा बनाने की पूरी कोशिश की। एक अभिनेत्री की मौत पर इस तरह की रिपोर्टिंग पत्रकारिता की मृत्यु के समान है। इन तस्वीरों को देखकर लोगों के मन ये सवाल उठता है कि ये रिपोर्टिंग है या फिर एक्टिंग। ये व्यक्ति एक संवाददाता है, जासूस है या फिर कोई एक्टर है। कोई ये सोच भी कैसे सकता है कि रीक्रिएशंस को देखकर जनता आकर्षित हो जाएगी। वास्तविकता ये है कि इस तरह के मीडिया ग्रुप्स अब जनता की हंसी का पात्र बन चुके हैं। मीडिया के आदर्श पहले किताबों में दफन हो रहे थे और अब अभिनेत्री के बाथटब में मीडिया के आदर्श डूब रहे हैं।

आजकल न्यूज चैनल्स के बहुत सारे एंकर्स दुनिया की किसी भी बड़ी जांच एजेंसी के एक्सपर्ट्स की तरह व्यवहार करते हैं और जब एक्सपर्ट्स नहीं होते तो वो जज बन जाते हैं। लेकिन वे इस बारे में बिल्कुल नहीं सोचते कि वे जनता के सामने कितने संवेदनहीन नजर आते हैं। एक अभिनेत्री की मौत, एक सुपर स्टार की मौत को कैसे बेचा जा रहा है। इसके लिए कैसे काल्पनिक चित्र बनाए जा रहे हैं, ये सबकुछ आपने पिछले कुछ दिनों में देखा होगा। सस्ते शीर्षक, सस्ती हेडलाइंस और बाथटब वाले वर्चुअल सेट्स आप सबको दिखाए जा रहे हैं और ये सबकुछ बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।

बहुत से मीडिया ग्रुप्स ने श्रीदेवी के डेथसर्टिफिकेट का इंतजार भी नहीं किया। श्रीदेवी की मौत कैसे हुई इस बारे में कई तरह की थ्योरीज पहले ही आपके सामने आनी शुरू हो गईं थीं। सोशल मीडिया पर उड़ रही अफवाहों को भी सच मान लिया गया। धैर्य और संयम का त्याग करके वैचारिक उत्तेजना फैलानी वाली पत्रकारिता को लगातार हर पल प्राथमिकता दी गई। किसी ने कहा श्रीदेवी की मौत कार्डिएक अरेस्ट की वजह से हुई है, किसी ने कहा कि बोटॉक्स इंजेक्शन की वजह से हुई उनकी मौत हुई है। किसी ने कॉस्मेटिक सर्जरीज को दोषी बताया। हर चैनल के पास, हर रिपोर्टर के पास, हर पत्रकार के पास श्रीदेवी को लेकर एक नई कहानी थी। ये पत्रकारिता का सबसे बड़ा शोक है कि इस दौर में किसी भी बड़ी शख्सियत की मृत्यु पर न्यूज चैनल के पत्रकारों का मकसद श्रृद्धांजलि देना नहीं होता, अपना दुख प्रकट करना नहीं होता, आपको खबर देना नहीं होता। उनकी श्रृद्धा अब सिर्फ टीआरपी के प्रति है।

अंग्रेजी भाषा के न्यूज चैनल्स भी पत्रकारिता के इस नैतिक पतन में अब बराबर के साझेदार बन रहे हैं। एक अंग्रेजी न्यूज चैनल ने तो बाथटब की लंबाई और श्रीदेवी की हाइट आप सबको नाप कर बताई और इस बात की भी जांच करने की कोशिश की कि क्या श्रीदेवी बाथटब में डूब सकती हैं।

आज सबके मन में सवाल ये है कि न्यूज चैनल्स को पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डेथ सर्टिफिकेट के तथ्यों पर भी विश्वास क्यों नहीं होता। क्या इसलिए कि श्रीदेवी की मृत्यु को सामान्य बताने वाली श्रीदेवी की रिपोर्ट्स सनसनी पैदा नहीं करेंगी और जो सनसनी पहले से ही न्यूज चैनल्स पैदा कर चुके हैं अब उस सनसनी को बरकरार कैसे रखा जाए। रिपोर्टिंग तथ्यों के आधार पर होगी या फिर सनसनी फैलाने के लिए। ये फैसला इस देश के पत्रकारों को भी लेना है और दर्शकों को भी लेना है।

दुबई से छपने वाले अखबार ‘खलीज टाइम्स’ ने भारतीय मीडिया के इस रवैये पर बहुत आश्चर्य जताया है। ‘खलीज टाइम्स’ ने भारतीय मीडिया से ये अपील की है कि आप न्यायधीष की तरह व्यवहार न करें। ‘खलीज टाइम्स’ ने भारतीय मीडिया से ये सवाल पूछा कि आप हर वक्त निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश क्यों करते हैं? निष्कर्ष पर पहुंचने की क्या जल्दी है? ‘खलीज टाइम्स’ ने भारतीय मीडिया को संयम बरतने और इंतजार करने की सलाह दी है।

एक विदेशी मीडिया समूह का भारतीय मीडिया पर इस तरह की टिप्पणी करना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इस बेइज्जती के बाद भी क्या भारत का मीडिया सबक लेगा। क्या उसमें परिपक्वता नजर आएगी ये देखने वाली बात है। आजकल हर कोई मीडिया चैनल्स पर सवाल उठा रहा है। आप भी जब कहीं बाहर जाते होंगे और मीडिया चैनल्स पर बात होती होगी तो आप भी यही महसूस करते होंगे कि उनकी गंभीरता पर लगातार प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी हर बार जब भी कोई ऐसी घटना होती है तो आपको भी मीडिया का यही नैतिक पतन देखने को मिलता है।

सुधीर चौधरी का ये वीडिओ ज़रुर देखें

https://www.facebook.com/sudhirchaudhary.72/videos/1613408318750436/