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तानसेन समारोहः सर्दी की ठिठुरन में सुरों की वर्षा से भीग गए रसिक श्रोता

ग्वालियर। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अखिल भारतीय आयोजन तानसेन समारोह के दूसरे दिन की शाम की सभा में दो तहजीबों का संगीत सुनने को मिला। विशुद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ मैक्सिकन संगीत के रंग भी खूब खिले। सभा में सभी कलाकारों ने मंत्रमुग्ध करने वाली प्रस्तुतियां दीं।

सभा की शुरुआत भारतीय संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुई। विद्यार्थियों ने राग मधुवंती के सुरों में पिरोई और चौताल में निबद्ध तानसेन रचित बंदिश – ‘मेरे मन मा ही हरिनाम’ को बड़े ही सलीके से गाया। इस प्रस्तुति में पखावज पर संजय आफले ने संगत की। जबकि हारमोनियम पर साथ दिया मुनेंद्र सिंह ने। संयोजन संजय देवले का रहा।

सभा की दूसरी प्रस्तुति में मैक्सिको से आये डेनियल रब रेन्जेल ने स्पेनिश गिटार पर फ्लेमिंको शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी। इसके तहत उन्होंने लेटिन अमेरिकन और मैक्सिकन गीत संगीत की पारंपरिक प्रस्तुति दी। इसके साथ ही क्यूबन कंपोजिशन भी पेश की। डेनियल वर्ष 2000 से हिंदुस्तान में हैं और लेटिन म्यूजिक बैंड के सदस्य है। इसके साथ ही वे सितार भी सीख रहे हैं। डेनियल कई नृत्य प्रस्तुतियों में स्पेनिश गिटार पर साथ दे चुके हैं। बकौल डेनियल मैक्सिको का पारम्परिक संगीत फ्लेमिंको हिंदुस्तानी संगीत से काफी मिलता है। उनकी प्रस्तुतियों का रसिकों ने खूब लुत्फ उठाया।

सभा की तीसरी प्रस्तुति में जबलपुर से आये युवा कलाकार विवेक कर्महे का ख़याल गायन हुआ। विवेक जी काफी संभावनाशील गायक हैं। उन्होंने राग मुलतानी में अपना गायन प्रस्तुत किया। राग मुलतानी संधि प्रकाश राग है यानी दिन और रात की संधि का राग। सुंदर आलाप से शुरू करके उन्होंने तीन बंदिशें पेश कीं। तिलवाड़ा में निबद्ध पारम्परिक विलंबित बंदिश के बोल थे- ‘गोकुल गांव का छोरा-‘ जबकि तीनताल मध्य लय की बंदिश के बोल थे- हमसे तुम रार करोगी..’आपने अति द्रुत लय में एक ताल में निबद्ध पारंपरिक बंदिश पेश की जिसके बोल थे- ‘ नैनन में आन बान’ तीनों ही बंदिशों को विवेक जी ने बड़े मनोयोग से गाया। उनके गायन में तैयारी के साथ चैनदारी दिखी। राग की शुद्धता और बारीकियों का निर्वहन करते हुए उन्होंने बहलाबों और तानों की बेहतरीन प्रस्तुति दी। आपके साथ तबले पर श्रुतिशील उद्धव और हारमोनियम पर जितेंद्र शर्मा ने सहज संगत की।

सभा के अगले कलाकार थे प्रख्यात सुर बहार वादक पंडित पुष्पराज कोष्ठी एवं भूषण कोष्ठी। पिता पुत्र की ये जोड़ी ने अपने वादन से रसिकों को सिक्त करने की भरपूर कोशिश की। रेडियो से के ग्रैड श्री कोष्ठी के वादन में चैनदारी गाम्भीर्य और रागदारी की शुद्धता देखने को मिलती है।उन्होंने राग दुर्गा में वादन की प्रस्तुति दी।आलाप से शुरू करके उन्होंने चौताल में गत पेश की। विविध लयकारियों के साथ वादन को सजाते हुए राग की इस तरह बढ़त की कि एक एक सुर खिल उठा। उनके साथ पखावज पर संजय पंत आगले ने संगत की।

सभा का समापन पूना से आये धनंजय जोशी के ख़याल गायन से हुआ। पंडित अजय पोहनकर के शिष्य जोशी जी ने राग यमन से गायन की शुरुआत की। संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में तीन बंदिशें पेश की। एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे- मेरो मन बांध लीनों’ जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे- ‘माई सुगम रूप’। इसी राग में आपने द्रुत तीन ताल में पंडित सी आर व्यास की बंदिश – ऐरी न माने पिया ‘ भी पेश की। रात के पहले प्रहर के इस राग को धनंजय जी ने बड़े ही कौशल से गाया। राग का सिलसिलेवार विस्तार में सुर खिलते चले गए। फिर सुरों को वहलाते हुए विविधता पूर्ण तानों की अदायगी मैन को मोहने वाली रही। राग बागेश्री से गायन को आगे बढ़ाते हुए आपने दो बंदिशें पेश की। मध्यलय तीन ताल की बंदिश के बोल थे-‘ ऋतु बसंत–‘ जबकि द्रुत तीन ताल की बंदिश के बोल थे- जो हमने तुमसे बात कही’। इस राग को भी आपने बडे सलीके से और रंजकता से पेश किया। गायन का समापन आपने भैरवी से किया। आपके साथ तबले पर मनोज पाटीदार, और सारंगी पर फारुख लतीफ खांन ने संगत की। जबकि हारमोनियम पर जितेंद्र शर्मा ने साथ दिया।