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एक ही कुर्सी पर मामा शिवराज सिंह के दस साल

अपने को देश का दिल प्रचारित करने वाले मध्यप्रदेश में आज शिवराजसिंह चौहान के बतौर मुख्यमंत्री दस साल पूरे हो रहे है। यह बडी बात है। जरा याद करे दस साल पहले का मध्यप्रदेश। उमा भारती, बाबूलाल गौर, दिग्विजयसिंह, अर्जुनसिंह के चेहरों और उनके वक्त के मध्यप्रदेश को। मतलब भाजपा और कांग्रेस दोनों के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों को। कैसे-कैसे झंझट और कैसी-कैसी बाते थी। देश का दिल तब बीमारू प्रदेश था। बिना बिजली के था। बिना सडक के था। बिना राजनैतिक सौहार्द के था। तभी देश के दिल को उसके सौम्य, सॉफ्ट, सहज मिजाज वाला एक नेता मिला। और उन्होने दिल से राज करते हुए लोगों के दिल में ऐसी जगह बनाई कि आज दस साल पूरे हो रहे है। यों इस राज में व्यापम जैसे कुछ घाव है। बावजूद इसके मौटी बात यह है कि मध्यप्रदेश की बुनावट, लोगों के चरित्र, मिजाज और उसकी जरूरत के माफिक राज करने में शिवराजसिंह चौहान निश्चित ही सफल हुए है। यह सफलता कई मायनों में अभूतपूर्व है।

प्रदेश तब फलते-फूलते है जब उनके मिजाज के अनुसार मुख्यमंत्री सत्ता में आए। गुजरात के मिजाज में नरेंद्र मोदी, बिहार के मिजाज में नीतिशकुमार या तमिलनाडु, ओडिसा के मिजाज माफिक जयललिता व नवीन पटनायक जैसी लीक में मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह चौहान और छतीसगढ़ में रमनसिंह अपनी छाप छोडे हुए है। इनकी छाप ने ही प्रदेश में बार-बार भाजपा को चुनाव जीताया है। प्रदेश और लोगों के स्वभाव माफिक कमान के योग ने भाजपा का बडा फायदा कराया।

मध्यप्रदेश देश का निराकार सा राज्य रहा है। इसे अर्जुनसिंह, दिग्विजयसिंह ने अपने मिजाज से बदलना चाहा मगर उससे उलटे बेडा गर्क हुआ। ठिक विपरित शिवराजसिंह की कमान में यदि मध्यप्रदेश निखरा है तो वजह प्रदेश के लोगों के मिजाज के माफिक शिवराजसिंह का चलना रहा है। मध्यप्रदेश में लोग सहज, विनम्र है तो शिवराजसिंह भी सहज और विनम्र हैं। लोग भले, सहज, सरल है तो शिवराज भी वैसे ही। फिर शिवराजसिंह सतत इस कोशिश में रहे है कि गरीब के साथ गरीब, किसान के साथ किसान तो पार्टी के बीच कार्यकर्ता, संघ के बीच स्वंयसेवक रहे और महिलाओं के भाई तो बच्चों के मामा। जैसा प्रदेश, प्रदेश के जैसे लोग वैसा मुख्यमंत्री।

image555यही शिवराजसिंह चौहान की सफलता का मूल मंत्र है। यों विरोधियों का यह अनुभव है कि वे ऐसा करके सबकों टोपी पहनाते है। किसी के सगे नहीं और सबके मामा! पर हर नेता की अपनी एक शैली होती है। इस बात को हर कोई मानेगा कि शिवराजसिंह चौहान ने आम आदमी से केमेस्ट्री जैसे जोड़े रखी तो वह लोगों में कुछ न कुछ अच्छी छाप, अच्छे काम से ही हुई। शिवराजसिंह चौहान के दस सालों की सबसे बडी खूबी या पूंजी यदि कोई है तो वह यह है कि उन्होने लोगों में गुस्सा नहीं पैदा होने दिया। लोगों में, पार्टी में, संघ में अपनेपन का भरोसा बनवाए रखा। तभी भाजपा इन दस सालों में भरपूर खुशहाल रही। पंचायत, विधानसभा-लोकसभा हर चुनाव में वह छाई रही। गरीब के घर सरकारी योजनाएं पहुंची तो सड़क, बिजली, पानी की समस्या से प्रदेश बाहर निकला और बीमारू राज्य विकासशील राज्य की सूची में जा पहुंचा।

शिवराजसिंह ने बडी बाते, बडा हल्ला नहीं किया पर छोटा –छोटा इतना किया है कि हर घर, परिवार के हर सदस्य में उन्होने अपनी जगह बनाई। मुख्यमंत्री निवास को अलग-अलग वर्गों, समूहों की चौपाल सा बना दिया। इसका असर सचिवालय वल्लभ भवन में हुआ तो भाजपा, संघ कार्यालयों में भी हुआ। कई मायनों में प्रदेश का प्रशासन भी एक अलग नई शिवराज शैली में ढला है। धमक भले दिग्विजय, अर्जुनसिंह जैसी न रही हो लेकिन व्यवस्था के सतत, चौतरफा चले रहने, दौडे रहने का सिलसिला मुख्यमंत्री के हेलिकॉप्टर की तरह उडा रहा। दस साल लगातार, बिना चिंता और बिना विराम के।

और आज दस साल पूरे हुए। जो सोचा नहीं था वह शिवराजसिंह ने पाया। देखना है आज के इस मौके पर पुनरावलोकन, समीक्षा के साथ भविष्य की शिवराजसिंह क्या रूपरेखा बनाते है? दस साल के बाद का खतरा बासी होने का है। सो जरूरत नए सिरे से अपने को गढ़ने, रिइनवेंट करने की है। कुछ नए अंदाज मे, कुछ नया अनहोना कर दिखाने के आगे के संकल्प की है!

साभार- nayaindia.com से