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श्रीराम का चरित्र जन-मन का विश्वकोश है

अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन, प्रत्येक रामभक्त की हृदय भूमि का अभिनन्दन है। पूज्य पिता को दिए गए वचन की रक्षा के लिए निज धाम, धरा और धन सब कुछ त्यागकर वनगमन का मार्ग चुनने वाले राम, मानवता के आदर्श और पथप्रदर्शक हैं। रामलला मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम पूरे भारत को समूची मानवता से जोड़ने वाली मजबूत कड़ी के समान है।

राम तो सबके हैं, सबके मानस मंदिर में चिर प्रतिष्ठित हैं। अब उनकी जन्म स्थली में बनने वाला मंदिर उस प्रतिष्ठा को सामूहिक समरसता में बदलेगा। वह भारत के अर्थ को नए सिरे से वाणी देगा। इधर डॉ. जैन ने कहा कि छत्तीसगढ़ तो माता कौशल्या के राम से अपने नाते के लिए प्रख्यात है। इसलिए राम जन्म भूमि और इस भूमिपूजन से छत्तीसगढ़िया मानस का स्वाभाविक गहरा नाता है।

राम जी का जीवन चरित केवल वाल्मीकि और तुलसीदास ने ही नहीं रची है, भारत और दुनिया की कई भाषाओं में लिखी गई रामायण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन की विराटता और श्रीराम की सर्वव्यापकता की वाणी देती हैं। भारत-भूमि के कण-कण में रमे हुए लोकनायक श्रीराम पर जैन कवि स्वयंभू ने जैन मत के प्रवक्ता होकर भी रामकथा पर आधारित पउम चरिउ जैसी रचना की। असमिया कवि माधव कंदलि ने वाल्मीकि रामायण का सरल अनुवाद किया। उड़िया-साहित्य के प्रतिनिधि कवि सारलादास ने विलंका रामायण की रचना की।

प्रसिद्ध कन्नड़ कवि नागचंद्र ने भी रामायण की रचना की। उन्नीसवीं शती में देवचंदर नामक एक जैन कवि ने रामकथावतार लिखकर जैन रामायण की परंपरा को आगे बढ़ाया। दिवाकर प्रकाश भट्ट ने भी कश्मीरी रामायण की रचना की। वर्तमान में समूचे गुजरात में १९वीं शताब्दी की गिरधरदास रामायण सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है। इसी तरह अन्य अनेक भाषाओं में रामायण मिलती है जिससे ज़ाहिर होता है कि श्रीराम का पावन चरित्र सचमुच जन-मन का प्रतिबिम्ब है।