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किसान आंदोलन की दशा-भावी दिशा

किसान आंदोलन 2020-21 भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने वाला है। इस आंदोलन ने भारत की आजादी के अहिंसक आंदोलन की याद दिलायी है। यह आंदोलन भारत के उत्तर पंजाब से आरंभ हुआ, अप्रैल में आते -आते यह पूर्वोत्तर-पश्चिम-दक्षिण पूरे भारत में विस्तार पा चुका है।

अब केवल दिल्ली की सीमाओं पर सत्याग्रह करना ही नहीं भारतभर में किसान सत्याग्रह करना शुरू कर दिया है। अप्रैल से जून तक पूरे भारत भर के गाँव-गाँव , ग्राम सभाओं में किसान आंदोलन समर्थन में प्रस्ताव पारित होना आरंभ हुआ है। 22 मार्च 2021 से यह प्रक्रिया पुनः आरंभ हुई है। भीकमपुरा से आरंभ 18 यात्रा दलों ने अपने गांव-गांव जाकर किसानी के तीनों कानून, कम्पनी राज्य कायम करने की शुरूआत मानी है। इसे रोकने, कानून रदद् कराना और खरीद की गांरंटी कानून बनवाने का सत्याग्रह आरंभ करने का प्रस्ताव पारित हो रहा है।

राजनीति से तो भारत का लोकतंत्र बचा हुआ है। दलगत राजनीति का खेल इसे बिगाड़ रहा है। भारत को बिगड़ने से बचाना है तो किसान आंदोलन को दलगत राजनीति से मुक्त रखना बहुत जरूरी है। अभी तक किसान आंदोलन की दिशा दलगत राजनीति से मुक्त रही है। आजकल आंदोलन में दलगत आवाजें सुनाई दे रही है। मैं समझ सकता हूँ, राज ने संवेदनहीन बनकर व्यवहार किया है। किसान आंदोलन ने तभी दलगत राजनीतिक आवाज बनाई है। क्योंकि राज वोट का ही सम्मान करता है, उसे भी आजकल खरीदता है।

आंदोलन वोट को प्रभावित कर सकता है। यह दिखाना आंदोलनकारियों ने जरूरी समझा और चुनाव में कूद गये। चुनाव में कूदना आंदोलन की सेहत के लिए कभी अच्छा नहीं होता है। इसलिए अब यह किसान आंदोलन की सेहत सुधार का समय है। इस दिशा में प्रयास की जरूरत है। यह प्रयास स्वयं आंदोलनकारी करें तो बहुत अच्छा होगा। आंदोलनकारी शुरूआत नहीं करें तो देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस दिशा में शुरूआत करनी ही होगी। तभी लोकतंत्र बचेगा। यह आंदोलन लोकतंत्र को बचाने का आंदोलन है। लोकतंत्र बचेगा, तभी किसान बचेगा। किसान हित में खरीद गारंटी का कानून भी बनेगा।

आज के कानून हालात लोकतंत्र विरोधी है। लोकतंत्र का बचना इसी आंदोलन से संभव होगा। अब किसान फिर से कंपनी राज के अधीन नहीं होवे वह अपने संविधान के प्रकाश में किसान बना रहे है। अम्बेडकर जयंती 14 अप्रैल को किसान, लोकतंत्र और संविधान बचाने का संकल्प लें।

संविधान के सम्मान में किसान साक्षरता यात्रा 25 जून 2020 से देश भर में विविध रूपों में चालू है। अब हमारे संविधान पर संकट है। किसान की समता, उसके श्रम के मूल्य में समता नष्ट हो रही है। उसके श्रम को करार खेती द्वारा कैद कर दिया जायेगा। खरीद कानून द्वारा न्याय से वंचित कर दिया है। आवश्यक वस्तु संशोधन द्वारा किसान के उत्पाद पर एकाधिकार देकर कंपनी राज कायम किया जा रहा है।

25 जून 2020 से चलने वाली किसान कानूनी साक्षरता यात्रा आज तक चालू है। आगे भी भारत भर में यही चलती रहेगी, जब तक जरूरत होगी, तब तक चलती ही रहेगी। इसमें किसान आंदोलन की दशा-दिशा को समृद्ध बनाने का प्रयास है। 7 अप्रैल 2021 से 10 अप्रैल 2021 तक, दिल्ली में दो तरह के नए प्रयास होंगे।
पहला- 7-8 अप्रैल को किसानों-नेताओं से व्यक्तिशः संवाद। किसानों की भावी दिशा जानना। सर्वसम्मति बनाकर पहले जैसा साझा नेतृत्व बनकर, आंदोलन की आगे की दिशा स्पष्ट व सुनिश्चत बनाना।

दूसरा – 9-10 अप्रैल को सामूहिक संवाद ( गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल मार्ग, नई दिल्ली )में होगा। इसमें किसान नेताओं के संकल्पों को समृद्ध बनाने के तरीकों पर मंथन करना।

इस संवाद में भारत भर के किसान आंदोलन के नेता-कार्यकर्ता आमंत्रित है। 19-20 अप्रैल को मध्य पूर्व के आंदोलन भुवनेश्वर में 22-23 अप्रैल 2021 को दक्षिण भारत के मदुरै तमिलनाडु में संवाद होगा। इस संवाद को सभी के लिए खुला रखा गया है। इसमें सभी किसान नेता आमंत्रित है। यह सभी का साझा मंच है। सभी इसे अपना मानकर ही संवाद में भागीदार होंगे।

चुनावों से अपनी दूरी बनाकर अभी यह आंदोलन सफलता से चल रहा है। लोकतंत्र बचेगा, तभी चुनाव भी बचेगा। तमिलनाडु में उत्तर-भारत के किसान नेताओं को बड़ी संख्या में पहुँचना चाहिए। तमिलनाडु के किसान नेता ‘किसान कानून साक्षरता यात्रा’ में सक्रिय भूमिका निभा रहे है। दलगत राजनीति ने बड़ी संख्या में किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर चलने वाले आंदोलन में भागीदार होने से रोका है, लेकिन अब खुलकर वे इसमें आने लगे है। यह आंदोलन दक्षिण में ज्यादा जोरो से चलेगा, तभी भारतीय लोकतंत्र का यह सफल साधन बनेगा। हम अब दिल्ली जैसा ही दबाब भारत भर में बनायें। यही भावी किसान आंदोलन की दिशा है।

(लेखक देश के जाने माने जलसंरक्षण विशेषज्ञ हैं व दुनिया भर में जल पुरुष के नाम से जाने जाते हैं)